भौतिक स्वरूप एवं भौतिक विभाजन
भौतिक प्रदेश का तात्पर्य :-
• स्थल मण्डल पर स्थित भौगोलिक उच्चावच (जैसे-पर्वत, पठार,मैदान, झील, नदियाँ), प्राकृतिक वनस्पति, वन, प्राकृतिकसंसाधन आदि का किसी क्षेत्र विशेष के सन्दर्भ में अध्ययन,भौतिक प्रदेश कहलाता है।
भौतिक प्रदेश के विभाजन का आधार :-
1. स्थल स्वरूप; जैसे- पर्वत, पठार, मैदान, मरुस्थल।
2. भौगोलिक दशाएँ; जैसे- जलवायु, मृदा, प्राकृतिक वनस्पति,वर्षा की मात्रा।
3. विशिष्ट आर्थिक लक्षण; जैसे- खनिज संसाधन, ऊर्जा संसाधन, औद्योगिक क्षेत्र एवं विकास।
4. कृषि एवं फसल प्रतिरूप।
5. जनसंख्या वितरण, परिवहन के साधन इत्यादि।
राजस्थान के भौतिक प्रदेश :-
• राजस्थान के भौतिक प्रदेशों का सर्वप्रथम वर्गीकरण वर्ष1968 में प्रो. वी.सी. मिश्रा ने अपनी पुस्तक ‘राजस्थान काभूगोल’ में किया, जिसका प्रकाशन वर्ष 1968 में नेशनल बुकट्रस्ट ने किया।
• प्रो. वी.सी. मिश्रा ने स्थल स्वरूप, भौगोलिक दशा, कृषि तथाफसल प्रतिरूप, विशिष्ट आर्थिक लक्षण के आधार पर राजस्थानको सात भौगोलिक प्रदेशों में विभाजित किया–
प्रो. वी.सी. मिश्रा द्वाराप्रस्तावित भौगोलिक प्रदेश (1966-68) | |
भौगोलिकप्रदेश | जिले |
पश्चिमीशुष्कमैदान | जैसलमेर, बाड़मेर, दक्षिण-पूर्वी बीकानेर, पश्चिमी जोधपुर, दक्षिण-पश्चिमी चूरू तथा पश्चिमी नागौर |
अर्द्ध शुष्कप्रदेश | जालोर, पाली, नागौर, सीकर, झुंझुनूँ, उत्तर-पूर्वी चूरू व दक्षिणी-पूर्वी जोधपुर |
नहरी क्षेत्र | श्रीगंगानगर, पश्चिमी बीकानेर तथा उत्तरी जैसलमेर |
अरावलीप्रदेश | उदयपुर, दक्षिण-पूर्वी पाली, पश्चिमी डूँगरपुर व सिरोही |
पूर्वी कृषिऔद्योगिकप्रदेश | जयपुर, सवाई माधोपुर, अजमेर, भीलवाड़ा, बूँदी, भरतपुर, अलवर, धौलपुर व कोटा शहर। |
दक्षिण-पूर्वीकृषि प्रदेश | बाँसवाड़ा, कोटा, चित्तौड़गढ़, झालावाड़ व पूर्वी डूँगरपुर |
चम्बलबीहड़प्रदेश | धौलपुर और सवाई माधोपुर |
• सन् 1964 में डॉ. हरिमोहन सक्सेना ने व प्रो.ए.के तिवारी ने“राजस्थान का प्रादेशिक भूगोल” नामक पुस्तक में उच्चावच एवंभौगोलिक संरचना के आधार पर राजस्थान को चार भौतिकप्रदेशों में विभाजित किया -
1. पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश (थार का मरुस्थल)
2. अरावली पर्वतीय प्रदेश
3. पूर्वी मैदानी प्रदेश
4. दक्षिण पूर्वी पठारी प्रदेश (हाड़ौती का पठार)
1. पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश
पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश (थार का मरुस्थल) की उत्पत्ति :-
• राजस्थान में अरावली पर्वतमाला के पश्चिम में स्थित विशिष्टभौगोलिक प्रदेश पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश (थार का मरुस्थल) की उत्पत्ति नूतन महाकल्प (नियोजोइक एरा, चतुर्थक युग) केप्लीस्टोसीन काल में टेथिस सागर के अवशेष के रूप में हुई है।
• सर सिरिल फॉक्स तथा बैलेण्ड फोर्ड के अनुसार – टर्शियरीकाल (साइनोजोइक एरा- तृतीयक महाकल्प) तक थार कामरुस्थल समुद्र के नीचे था। चतुर्थक महाकल्प के प्लीस्टोसीनकाल में समुद्र के निरन्तर पीछे हटने, सूखने, मानवीयक्रियाकलापों; जैसे - अतिचारण, निर्वनीकरण, मृदा एवं जल केअनुचित प्रबंधन के कारण मरुस्थलीय दशाओं का विकास हुआ।
● थार का मरुस्थल टेथिस सागर का अवशेष है जिसके प्रमाणनिम्नलिखित है–
(i) पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश में स्थित खारे पानी कीझीलें
(ii) टर्शियरी कालीन अवसादी चट्टानों में जीवाश्मखनिज; जैसे - कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस केभण्डार
(iii) जैसलमेर के कुलधरा गाँव से व्हेल मछली केअवशेष मिले।
● कुछ भूगोल विशेषज्ञों की मान्यता है कि थार का मरुस्थलसहारा मरुस्थल का भाग है परन्तु यह मान्यता असत्य है, क्योंकि -
(i) थार के मरुस्थल में माइकोसिस्ट चट्टानें मिलती हैंजबकि सहारा मरुस्थल में माइकोसिस्ट चट्टानों का अभावहै।
(ii) जैसलमेर के आकल गाँव (राष्ट्रीय जीवाश्म पार्क) में जुरैसिक कालीन प्राकृतिक वनस्पति के अवशेष मिलेजबकि सहारा के मरुस्थल में ऐसे कोई प्रमाण नहीं मिले।
थार के मरुस्थल का विस्तार :-
• थार का मरुस्थल क्षेत्रफल की दृष्टि से विश्व में 17वाँ बड़ामरुस्थल है, जिसका विस्तार भारत तथा पाकिस्तान में है।
• थार का मरुस्थल भारत के उत्तर - पश्चिमी राज्यों (हरियाणा- पंजाब - गुजरात - राजस्थान) में विस्तृत है।
• भारत में थार के मरुस्थल का सर्वाधिक विस्तार राजस्थान मेंतथा न्यूनतम विस्तार हरियाणा राज्य में है।
• राजस्थान में थार के मरुस्थल का विस्तार राजस्थान के कुलक्षेत्रफल का 61.11 % है, जबकि राजस्थान में मुख्य मरुस्थल 1,75,000 वर्ग किलोमीटर है।
• राजस्थान में थार के मरुस्थल का अक्षांशीय विस्तार 25° उत्तरी अक्षांश से 30° उत्तरी अक्षांश के मध्य है।
• राजस्थान में थार के मरुस्थल का देशान्तरीय विस्तार 69°30' पूर्वी देशान्तर से 70°45'पूर्वी देशान्तर के मध्य है।
• थार के मरुस्थल की लंबाई 640 किलोमीटर तथा चौड़ाई 300 से 360 किलोमीटर तक है।
• इस क्षेत्र के उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में औसत ऊँचाई समुद्र तल से 300 मीटर तथा दक्षिणी क्षेत्र लगभग 150 मीटर ऊँचा है।
• पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश का विस्तार बारह जिलों में है– बाड़मेर, जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर, हनुमानगढ़, श्रीगंगानगर जिले पूर्ण मरुस्थल तथा जालोर, पाली, नागौर, चूरू, झुंझुनूँ, सीकर जिले अर्द्ध मरुस्थलीय हैं।
• थार के मरुस्थल का ढाल पूर्व से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण की ओर है।
थार के मरुस्थल की विशेषताएँ :-
• थार के मरुस्थल का जनसंख्या, जनघनत्व एवं जैव विविधताकी दृष्टि से विश्व में प्रथम स्थान है इस कारण इसे ‘धनीमरुस्थल’ कहा जाता है।
• थार के मरुस्थल में परम्परागत ऊर्जा संसाधन (कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस) एवं गैर-परम्परागत ऊर्जा संसाधनों (सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, बायोमास) की संभावना के कारण इसे ‘विश्व का शक्तिगृह’ (World Power House) की संज्ञा दीगई है।
• थार का मरुस्थल भारत में स्थित न्यून वायुदाब का केन्द्र है।
• थार का मरुस्थल भारतीय उपमहाद्वीप में मानसून कोआकर्षित करता है तथा ऋतु चक्र को नियमित करता है।
• थार का मरुस्थल क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान का सबसेबड़ा व न्यूनतम जनघनत्व वाला भौतिक प्रदेश है।
• थार के मरुस्थल में टर्शियरी कालीन अवसादी चट्टानों कीप्रधानता है, जिसमें जीवाश्म खनिज (कोयला, पेट्रोलियम पदार्थ, प्राकृतिक गैस, चूनापत्थर आदि) के भण्डार हैं।
1. बाड़मेर का गुढ़ामालानी क्षेत्र - पेट्रोलियम पदार्थ
2. जैसलमेर का शाहगढ़ सब बेसिन - प्राकृतिक गैस
3. बीकानेर - नागौर बेसिन (पूनम क्षेत्र)-पेट्रोलियम एवंप्राकृतिक गैस
4. जैसलमेर का सोनू क्षेत्र - चूना पत्थर
• थार के मरुस्थल में कहीं-कहीं विंध्य क्रम, रायलोक्रम, देहलीक्रम, बुन्देलखण्ड नीस, क्रिटेशियस कालीन चट्टानें भी पाईजाती हैं।
• थार के मरुस्थल में रेतीली बलुई मृदा का विस्तार है। मृदा केवैज्ञानिक वर्गीकरण के अनुसार एन्टीसोल तथा एरिडीसोल मृदापाई जाती है।
• पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश में सिंचाई का प्रमुख साधन नहरें हैंतथा प्रमुख नहर इंदिरा गाँधी नहर, जिसे मरुगंगा की संज्ञा दीगई।
• थार के मरुस्थल में मरुद्भिद वनस्पति (जीरोफाइट्स) पाईजाती है।
• थार के मरुस्थल में मुख्यत: खरीफ की फसल का अधिकउत्पादन किया जाता है।
• थार के मरुस्थल की मुख्य नदी लूणी नदी है।
● मरुस्थलीय क्षेत्र में विशिष्ट लवण झीलों को स्थानीय भाषा में डांड कहते है।
थार के मरुस्थल से संबंधित महत्त्वपूर्ण बिंदु :-
• थली- थार के मरुस्थल का स्थानीय नाम।
• धोरे- रेतीली मृदा व रेत के टीले, जो हवा के साथ अपना स्थान बदल लेते हैं, इन्हें बालुका स्तूप एवं स्थानीय भाषा में ‘धोरे’ कहते हैं।
• लू- थार के मरुस्थल में ग्रीष्म ऋतु में चलने वाली गर्म एवंशुष्क पवन, जो स्थानीय गर्म पवन का उदाहरण है।
• स्थानीय पवन- तापमान तथा वायुदाब में विषमता के कारणकिसी स्थान विशेष से चलने वाली स्थानीय पवन दो प्रकार कीहोती है-गर्म एवं ठण्डी।
• भ-भूल्या- थार के मरुस्थल में आकस्मिक आने वाले वायु केचक्रवात को स्थानीय भाषा में भभूल्या कहा जाता है।
• चक्रवात- ग्रीष्म ऋतु में केन्द्र में अधिक तापमान एवं निम्नवायुदाब के कारण पवन तीव्रगति से परिधि (बाहर) से केन्द्र कीओर गति करती है तथा गर्म होकर ऊपर उठती है, इस अवस्था कोचक्रवात कहा जाता है।
• मावठ- थार के मरुस्थल में शीत ऋतु में भूमध्य सागरीयपश्चिमी विक्षोभों से होने वाली वर्षा ‘मावठ’ कहलाती है। मावठरबी की फसल (गेहूँ) के लिए अधिक उपयोगी है इस कारणमहावट (मावठ) को गोल्डन ड्रॉप्स (सुनहरी बूँदें) कहा जाता है।
• पुरवइया- ग्रीष्मकालीन दक्षिण-पश्चिम मानसून की बंगाल कीखाड़ी शाखा में आने वाली मानसूनी हवाओं को स्थानीय भाषा मेंपुरवइया कहा जाता है। पुरवइया राजस्थान में अधिकांश जिलोंमें 90% वर्षा करती हैं।
• रन- बालुका स्तूपों के मध्य स्थित दलदली क्षेत्र रन/टाट/तल्ली/ अभिनति कहलाता है। राजस्थान में सर्वाधिक रनजैसलमेर में स्थित है। 'थोब' रन क्षेत्रफल की दृष्टि से थार केमरुस्थल का सबसे बड़ा रन क्षेत्र है।
• बॉलसन- प्लाया के सूखने से निर्मित मैदान बॉलसन कहलाताहै।
राजस्थान में मरुस्थल के प्रकार :-
1. हम्मादा- चट्टानी/पथरीला मरुस्थल – पोकरण (जैसलमेर), फलोदी (जोधपुर), बालोतरा (बाड़मेर)।
2. रैग- यह एक मिश्रित मरुस्थल है जो हम्मादा के चारों ओरपाया जाता है। यह जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर में आते हैं।
3. इर्ग- इसे सम्पूर्ण मरुस्थल व महान मरुस्थल कहा जाता है।इसमें जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर, नागौर, चूरू, सीकर, झुंझुनूँक्षेत्र आते हैं।
• लघु मरुस्थल :- कच्छ रन (गुजरात) से बीकानेर के मध्यस्थित मरुस्थल को लघु मरुस्थल की संज्ञा दी गई है।
थार के मरुस्थल का वर्गीकरण :-
• जलवायु के आधार पर–
1. शुष्क रेतीला प्रदेश- 0-25 सेमी. वर्षा
2.अर्द्ध शुष्क प्रदेश- 25-50 सेमी. वर्षा
• शुष्क रेतीला व अर्द्ध शुष्क प्रदेश को 25 सेमी. वर्षा रेखा (250 मिमी.) विभाजित करती है।
(1) शुष्क रेतीला प्रदेश/राठी प्रदेश :-
• 25 सेमी. (250 मिमी.) वर्षा रेखा के पश्चिम में स्थित प्रदेशजहाँ 25 सेमी. से कम वर्षा होती है।
• 25 सेमी. वर्षा रेखा (250 मिमी.) शुष्क रेतीले प्रदेश की पूर्वीसीमा का निर्धारण करती है।
• शुष्क मरुस्थल को पुन: दो भागों में विभाजित कियागया है-
(A) बालुका स्तूप मुक्त प्रदेश – 41.50 प्रतिशत।
(B) बालुका स्तूप युक्त प्रदेश – 58.50 प्रतिशत।
(A) बालुका स्तूप मुक्त प्रदेश :-
• शुष्क रेतीले प्रदेश का वह भाग जहाँ बालुका स्तूप (धोरे) नहींपाए जाते हैं।
• इसमें परतदार (अवसादी) चट्टानें पाई जाती है।
• शुष्क रेतीले प्रदेश का 41.50 प्रतिशत है।
• बालुका स्तूप मुक्त प्रदेश का विस्तार जैसलमेर (सर्वाधिक), बाड़मेर, जोधपुर में है।
लाठी सीरीज–
• जैसलमेर से मोहनगढ़ तक 64 किलोमीटर क्षेत्र में फैली एकभूगर्भीय जल पट्टी है।
• जैसलमेर में ट्रियासिक युगीन अवसादी चट्टानों का जमाव है,जो मीठे जल पट्टी व स्टील ग्रेड चूना पत्थर के लिए प्रसिद्ध है।
• सेवण घास का वैज्ञानिक नाम लसियुरुस सिडीकुस है, सेवणघास को स्थानीय भाषा में लीलोण कहा जाता है।
चाँदन नलकूप–
• लाठी सीरीज में जैसलमेर में चाँदन नामक स्थान पर स्थितनलकूप जहाँ से आस-पास के क्षेत्र में जलापूर्ति होती है।
• इसे ‘थार का घड़ा’ भी कहा जाता है। ये एक भूगर्भीय जलपट्टी का उदाहरण है।
आकल गाँव जीवाश्म पार्क–
• जैसलमेर में राष्ट्रीय मरु उद्यान में आकल गाँव में स्थितजीवाश्म पार्क जहाँ पर जुरैसिक कालीन प्राकृतिक वनस्पति केअवशेष मिले हैं।
कुलधरा ग्राम–
• बालुका मुक्त प्रदेश में स्थित जैसलमेर का वह गाँव जहाँ सेव्हेल मछली या डायनासोर के अवशेष मिले हैं।
• कुलधरा ग्राम में राजस्थान के पहले कैक्टस गार्डन की स्थापना की गई है।
(B) बालुका स्तूप युक्त प्रदेश–
• शुष्क रेतीले प्रदेश में स्थित वह क्षेत्र जहाँ बालुका स्तूपों कीप्रधानता होती है।
• थार के मरुस्थल बालू रेत (रेतीली बलुई) मृदा से निर्मितलहरदार स्थलाकृति बालुका स्तूप कहलाती है।
• यह जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, बीकानेर, दक्षिणी श्रीगंगानगरक्षेत्र में पाए जाते हैं। विशेषता – इर्ग, बालुका स्तूप, खड़ीन।
बालुका स्तूपों का वर्गीकरण–
• मरुस्थल के विभिन्न भागों में बालुका स्तूप (Sand Dunes) का विस्तार –
(i) अनुदैर्ध्य/पवनानुवर्ती/रेखीय/सीप बालुका स्तूप–
• पवन की दिशा के समांतर या अनुदिश निर्मित होने वालेबालुका स्तूप अनुदैर्ध्य बालुका स्तूप कहलाते हैं।
• इनकी ऊँचाई 10 मीटर होती है।
• यह सर्वाधिक जैसलमेर के दक्षिण-पश्चिमी भाग, रामगढ़ के दक्षिण-पश्चिम, जोधपुर व बाड़मेर में पाए जाते हैं।
(ii) अनुप्रस्थ बालुका स्तूप–
• पवन की दिशा के लम्बवत् या समकोण पर पवन के मार्ग मेंअवरोध आने से निर्मित बालुका स्तूप अनुप्रस्थ बालुका स्तूपकहलाते हैं।
• इनकी ऊँचाई 10 से 40 मीटर तक होती है।
• यह रावतसर (हनुमानगढ़), सूरतगढ़ (श्रीगंगानगर), बीकानेर, चूरू व झुंझुनूँ जिलों में पाए जाते हैं।
(iii) बरखान/बरच्छान/अर्द्ध चन्द्राकार बालुका स्तूप–
• वायु भँवर के कारण गतिशील या अस्थिर अर्द्धचंद्राकारबालुका स्तूप बरखान या बरच्छान कहलाता है।
• इनकी ऊँचाई 10 से 20 मीटर व चौड़ाई 100 से 200 मीटर होती है।
• यह भालेरी (चूरू), ओसिया (जोधपुर), सीकर, बाड़मेर, जैसलमेर, सूरतगढ़, लूणकरणसर, करणीमाता क्षेत्र में पाए जातेहैं।
(iv) तारा बालुका स्तूप–
• वे बालुका स्तूप जो तारे के समान दिखाई देते हैं तारा बालुकास्तूप कहलाते हैं।
• इनकी ऊँचाई 10 से 25 मीटर होती है।
• यह मोहनगढ़, पोकरण (जैसलमेर), सूरतगढ़ (श्रीगंगानगर)क्षेत्र में पाए जाते हैं।
(v) पैराबोलिक बालुका स्तूप–
• यह बालुका स्तूप सम्पूर्ण मरुस्थल में पाए जाते हैं।
• इनकी आकृति परवलयाकार (अर्द्धचंद्राकार) होती है।
• इनकी ऊँचाई 10 से 25 मीटर होती है।
• ये बालुका स्तूप सर्वाधिक बीकानेर जिले में बनते हैं।
(vi) सब्र काफिज–
• छोटी झाड़ियों के सहारे बनने वाले बालुका स्तूपों को सब्रकाफिज कहा जाता है। यह सम्पूर्ण मरुस्थल में पाए जाते हैं।
(vii) नेटवर्क बालुका स्तूप–
• हनुमानगढ़ से हरियाणा के मध्य एक शृंखला में पाए जाने वालेबालुका स्तूप नेटवर्क बालुका स्तूप कहलाते हैं।
(viii) अवरोधी बालुका स्तूप–
• अवरोधी बालुका स्तूप किसी अवरोध के कारण बनते हैं।
• पुष्कर, बुढ़ा पुष्कर, बिचून पहाड़ जोबनेर एवं सीकर की पहाड़ियाँ इस प्रकार के टीलों को जन्म देती हैं।
प्लाया झील–
• ये झीलें केन्द्रमुखी जल-प्रवाह से लाभान्वित है।
• थार के मरुस्थल में बालुका स्तूपों के मध्य स्थित निम्न भूमिजहाँ वर्षा जल एकत्र होने से बनी अस्थायी झील का निर्माण होताहै।
• राजस्थान में सर्वाधिक प्लाया झीलें जैसलमेर में स्थित हैं।
• खारे जल की प्लाया झील को ‘सैलीनास’ भी कहते हैं।
• प्लाया झीलों में वाष्पीकरण के कारण लवणों की मात्रा मेंवृद्धि वाले क्षेत्र क्षारीय क्षेत्र /कल्लर भूमि कहलाती है।
(2) अर्द्ध शुष्क प्रदेश :-
• पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश में स्थित वह भू-भाग जहाँ 25-50 सेमी. वर्षा होती है।
• अर्द्ध शुष्क प्रदेश का विस्तार- शुष्क रेतीला मैदान तथाअरावली पर्वतीय प्रदेश के मध्य पाया जाता है।
• 25 सेमी. वर्षा रेखा अर्द्ध शुष्क प्रदेश की पश्चिमी सीमा कानिर्धारण करती है।
• जलवायु के आधार पर यह उष्ण – मरुस्थलीय है।
अर्द्ध शुष्क प्रदेश का वर्गीकरण–
• भौगोलिक संरचना के आधार पर इसे चार भागों में विभक्त किया गया है–
(i) घग्घर प्रदेश-
• श्रीगंगानगर- हनुमानगढ़ में घग्घर नदी द्वारा निर्मित मैदानीप्रदेश।
• प्राचीन काल में यह क्षेत्र यौद्धेय प्रदेश कहलाता था।
• इस भू-भाग में बरखान टीले पाए जाते हैं।
• घग्घर का तल जिसे स्थानीय भाषा में नाली कहा जाता है।
• राजस्थान में नहरों द्वारा सर्वाधिक सिंचाई की जाती है।
• घग्घर दोआब प्रदेश– सतलज व घग्घर नदी के बीच कीभूमि। घग्घर दोआब प्रदेश में रेवेरीना मृदा श्रीगंगानगर में पाई जाती है। रेवेरीना मिट्टी में सर्वाधिक गेहूँ का उत्पादन किया जाताहै।
• राज्य में सेम (जल उत्प्लावन की समस्या) की समस्या से ग्रसित क्षेत्र – रावतसर, पीलीबंगा, लूणकरणसर, बड़ोपल हैं।
• सेम (जल उत्प्लावन की समस्या) की समस्या का समाधाननहरी क्षेत्र के आस-पास वृक्षारोपण है।
(ii) शेखावाटी प्रदेश (अन्त:स्थलीय प्रवाह का मैदानी)
• चूरू, झुंझुनूँ, सीकर तथा नागौर का उत्तरी क्षेत्र है।
• शेखावाटी प्रदेश की मुख्य नदी काँतली, रूपनगढ़ व मेन्था नदीहै।
• इस क्षेत्र की प्रमुख झीलें-सांभर, डीडवाना, कुचामन, सुजानगढ़, तालछापर व परिहारा (चूरू) हैं।
• प्राचीन जलोढ़ मृदा (बांगर) का विस्तार झुंझुनूँ क्षेत्र में है।
• शेखावाटी प्रदेश में वर्षा जल संरक्षण– छोटे तालाब को ‘सर’कहा जाता है। पक्के कुएँ को ‘नाडा’ व कच्चे कुएँ को ‘जोहड़’कहा जाता है।
• जोहड़ विकास कार्यक्रम- डॉ. राजेन्द्र सिंह (जोहड़ वाले बाबा) द्वारा प्रारम्भ। शेखावाटी प्रदेश (सीकर) में वर्षा जल संरक्षण कोबढ़ावा देना (जल संरक्षण)।
(iii) नागौरी उच्च भूमि-
• नागौर में 300 से 500 मीटर ऊँची अरावली से पृथक् उच्चभूमि क्षेत्र है।
• नागौरी उच्च भूमि सोडियम लवणों की अधिकता के कारणयह क्षेत्र बंजर व रेतीला है।
• नागौरी उच्च भूमि का वर्गीकरण-
- मकराना श्रेणी – सफेद संगमरमर का जमाव क्षेत्र (मार्बल)।
- मांगलोद श्रेणी – जिप्सम का जमाव क्षेत्र।
- जायल श्रेणी – फ्लोराइड युक्त जल।
- कूबड़ पट्टी/बाँका पट्टी/हॉच बेल्ट
- जायल (नागौर) से अजमेर के मध्य स्थित फ्लोराइड युक्तजल पट्टी।
(iv) गौड़वाड़ प्रदेश (लूणी बेसिन)-
• लूणी बेसिन का विस्तार दक्षिणी जोधपुर-पाली-जालोर-पश्चिमी सिरोही में हैं।
• लूणी व उसकी सहायक नदियाँ लीलड़ी, सूकड़ी, जवाई, जोजरी तथा बाण्डी के बहाव क्षेत्र में जलोढ़क मैदान है।
2. अरावली पर्वतीय प्रदेश
अरावली पर्वतीय प्रदेश की उत्पत्ति :-
• अरावली का शाब्दिक अर्थ पर्वतों की शृंखला है जिसे विष्णुपुराण में सुमेरू पर्वत/मेरु पर्वत / परिपत्र पर्वत कहा गया है।
• अरावली पर्वतीय प्रदेश की उत्पत्ति 4.88 अरब वर्ष पूर्व आद्यमहाकल्प (एजोइक एरा, प्री पैल्योजोइक एरा, पूर्व प्राथमिकमहाकल्प) के प्री-कैम्ब्रियन काल में गौण्डवाना लैण्ड में वलन कीक्रिया से पर्वतों की एक शृंखला के रूप में निर्माण हुआ जिसेअरावली पर्वतमाला कहा गया।
• अरब सागर को अरावली का गर्भ गृह कहा जाता है।
• उच्चावच की दृष्टि से अरावली पर्वतमाला भारत केप्रायद्वीपीय पठारी प्रदेश का भाग है।
• अरावली पर्वतमाला से पूर्व देहली क्रम भी चट्टानों का विस्तारथा जिसे राजस्थान में तीन भागों में विभाजित किया गया –
(i) अलवर समूह – अलवर
(ii) अजबगढ़ समूह – सिरोही
(iii) रायलो समूह – बाड़मेर
अरावली पर्वतमाला का विस्तार :-
• इसका विस्तार भारत के तीन राज्यों गुजरात, राजस्थान, हरियाणा तथा केन्द्र शासित प्रदेश दिल्ली में है।
• राजस्थान में अरावली का लगभग 80% भाग स्थित है।
• भारत में अरावली का विस्तार पालनपुर (गुजरात) सेरायलसीमा (रायसीना) दिल्ली तक 692 किलोमीटर है।
• राजस्थान में अरावली सिरोही से खेतड़ी तक शृंखलाबद्ध है, परन्तु बाद में छोटी-छोटी पहाड़ियों के रूप में दिल्ली तक विस्तारहै।
• राजस्थान में अरावली की कुल लम्बाई 550 किमी. है।
• अरावली पर्वतमाला का अक्षांशीय विस्तार 23°20’ उत्तरीअक्षांश से 28°20’ उत्तरी अक्षांश के मध्य है।
• अरावली पर्वतमाला का देशांतरीय विस्तार 72°10’ पूर्वीदेशान्तर से 77°03’ पूर्वी देशान्तर के मध्य है।
• अरावली पर्वतीय प्रदेश राजस्थान के कुल भौगोलिक क्षेत्रफलका 9% भाग है।
• राजस्थान में अरावली का विस्तार दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्वदिशा में है।
• इसका विस्तार राज्य के 9 जिलों – सिरोही, उदयपुर, राजसमंद, अजमेर, जयपुर, दौसा, अलवर, सीकर व झुंझुनूँ में है।
• राजस्थान में अरावली की ऊँचाई तथा चौड़ाई-उत्तर-पूर्व सेदक्षिण-पश्चिम की ओर बढ़ती है।
• राजस्थान में अरावली की सर्वाधिक चौड़ाई राजसमंद सेबाँसवाड़ा के मध्य है।
• राजस्थान में अरावली की सर्वाधिक ऊँचाई राजसमंद सेसिरोही के मध्य है।
• राजस्थान में अरावली का सर्वाधिक विस्तार उदयपुर वन्यूनतम विस्तार अजमेर जिले में है।
• राजस्थान में अरावली की सर्वाधिक ऊँचाई सिरोही व न्यूनतम ऊँचाई जयपुर जिले में है।
अरावली पर्वतीय प्रदेश की विशेषताएँ :-
• अरावली पर्वतमाला उत्पत्ति की दृष्टि से विश्व की प्राचीनतमवलित पर्वत माला है जो उत्तरी अमेरिका की अप्लेशियनपर्वतमाला के समकक्ष है। जिसे महान भारतीय जल विभाजकरेखा की संज्ञा दी गई है।
• यह प्रदेश राजस्थान को दो भौगोलिक प्रदेशों मरुस्थलीय एवंगैर मरुस्थलीय भागों में विभाजित करता है।
• अरावली पर्वत की अनेक नदियाँ – बनास, लूणी, बेड़च, खारी, कोठारी, सूकड़ी व साबरमती का उद्गम स्थल है।
• अरावली पर्वतीय प्रदेश मरुस्थल के पूर्ववर्ती विस्तार कोरोकता है।
• उत्पत्ति के समय अरावली की ऊँचाई लगभग 2800 मीटर थीलेकिन अपरदन प्रक्रम के परिणामस्वरूप अरावली वर्तमान मेंअवशिष्ट पर्वतमाला के रूप में विस्तृत है, जिसकी औसत ऊँचाई 930 मीटर है।
• अरावली पर्वतीय प्रदेश में धारवाड़ क्रम की ग्रेनाइट, नीस, क्वार्ट्जाइट चट्टानों की प्रधानता है। इस कारण अरावलीधात्विक खनिज; जैसे - लौह अयस्क, ताँबा, सीसा, जस्ता, टंगस्टन, चाँदी आदि की दृष्टि से समृद्ध प्रदेश है।
• अरावली पर्वतमाला हिमालयी पर्वतीय प्रदेश तथा पश्चिमीघाट के मध्य स्थित सबसे ऊँची पर्वत शृंखला है।
• राजस्थान में सर्वाधिक वन सम्पदा तथा वन्यजीव अभयारण्य, जैव विविधता अरावली पर्वतीय प्रदेश में पाई जाती है।
• अरावली पर्वतीय प्रदेश में लाल मृदा (पर्वतीय मृदा, इन्सेप्टीसोल) का विस्तार है। लाल मृदा मक्का के लिए उपयोगीहै।
• अरावली पर्वतमाला राजस्थान के तीनों अपवाह तंत्र (आंतरिकप्रवाह तंत्र, बंगाल की खाड़ी नदी तंत्र, अरब-सागरीय नदी तंत्र) कीअधिकांश नदियों का उद्गम स्थल है।
• अरावली पर्वतमाला को राजस्थान में आदिवासियों की आश्रयस्थली कहा जाता है।
अरावली पर्वतीय प्रदेश का वर्गीकरण :-
• अरावली पर्वतीय प्रदेश को ऊँचाई के आधार पर तीन भागों मेंविभाजित किया गया है–
1. उत्तरी अरावली(जयपुर से खेतड़ी)
• उत्तरी अरावली प्रशासनिक दृष्टि से पाँच जिलों - जयपुर, अलवर, दौसा, सीकर व झुंझुनूँ में है।
• उत्तरी अरावली की पहाड़ियों की औसत ऊँचाई 450-700 मीटर है।
• इस क्षेत्र में तोरावाटी, शेखावाटी, अलवर व जयपुर की पहाड़ियाँ शामिल हैं।
• उत्तरी अरावली का विस्तार सांभर से उत्तर-पूर्व में है।
• उत्तरी अरावली की प्रमुख चोटियाँ निम्नलिखित हैं -
(i) रघुनाथगढ़ (सीकर) – 1,055 मीटर
(ii) खोह (जयपुर) – 920 मीटर
(iii) भैराच (अलवर) – 792 मीटर
(iv) बरवाड़ा (जयपुर) – 786 मीटर
(v) बाबाई (झुंझुनूँ ) – 780 मीटर
(vi) बिलाली (अलवर) – 775 मीटर
(vii) बैराठ (जयपुर) – 704 मीटर
(viii) सरिस्का (अलवर) – 677 मीटर
(ix) भानगढ़ (अलवर) – 649 मीटर
(x) जयगढ़ (जयपुर) – 648 मीटर
(xi) नाहरगढ़ (जयपुर) – 599 मीटर
(xii) अलवर किला (अलवर) – 597 मीटर
(xiii) सिरावास (अलवर) – 651 मीटर
(xiv) मनोहरपुरा (जयपुर) – 747 मीटर
• उत्तरी अरावली में कोई दर्रा नहीं है।
2. मध्य अरावली (अजमेर से जयपुर) :-
• मध्य अरावली का विस्तार अजमेर-जयपुर जिले में विस्तृत है।
• मध्य अरावली की पहाड़ियों की औसत ऊँचाई –700 मीटर है।
• इस क्षेत्र से लूणी नदी का उद्गम नाग पहाड़ से होता है।
• मध्य अरावली की प्रमुख चोटियाँ निम्नलिखित हैं –
(i) गोरमजी - अजमेर - 934 मीटर
(ii) मेरियाजी (टॉडगढ़)-अजमेर - 933 मीटर
(iii) तारागढ़ - अजमेर - 873 मीटर
(iv) नागपहाड़ - अजमेर - 795 मीटर
• मध्य अरावली के प्रमुख दर्रे निम्नलिखित हैं –
(i) बर दर्रा – अजमेर
(ii) अरनिया – अजमेर
(iii) सुराघाट – अजमेर
(iv) पीपली – अजमेर
(v) परवेरिया – अजमेर
(vi) शिवपुरी – अजमेर
3. दक्षिणी अरावली (आबू से अजमेर) :-
• दक्षिण अरावली का विस्तार राजसमंद, सिरोही व उदयपुरजिलों में है।
• दक्षिण अरावली की पहाड़ियों की औसत ऊँचाई 1000 मीटरहै।
• भोराट का पठार, लसाड़िया का पठार एवं गिरवा पर्वतीय क्षेत्र इस क्षेत्र में स्थित हैं।
• दक्षिण अरावली की प्रमुख चोटियाँ निम्नलिखित हैं–
(i) गुरुशिखर - सिरोही – 1,722 (1727) मीटर
(ii) सेर - सिरोही – 1,597 मीटर
(iii) देलवाड़ा - सिरोही – 1,442 मीटर
(iv) जरगा - उदयपुर – 1,431 मीटर (उदयपुर/राजसमंद का सर्वोच्च शिखर)
(v) अचलगढ़ - सिरोही – 1,380 मीटर
(vi) कुम्भलगढ़ - राजसमंद – 1,224 मीटर
(vii) ऋषिकेश - सिरोही – 1,017 मीटर
(viii) कमलनाथ - उदयपुर – 1,001 मीटर
(ix) सज्जनगढ़ - उदयपुर – 938 मीटर
(x) सायरा - उदयपुर – 900 मीटर
(xi) लीलागढ़ - उदयपुर – 874 मीटर
(xii) नागपानी - उदयपुर – 867 मीटर
(xiii) गोगुन्दा - उदयपुर – 840 मीटर
(xiv) आबू 9 सिरोही – 1295 मीटर
• राजस्थान में अरावली की सर्वाधिक ऊँची चोटियाँ सिरोहीजिले में हैं जबकि राजस्थान में अरावली की सर्वाधिक चोटियाँउदयपुर जिले में हैं।
• दक्षिण अरावली के प्रमुख दर्रे निम्नलिखित हैं–
(i) स्वरूप घाट - पाली
(ii) देसूरी की नाल - पाली
(iii) सोमेश्वर दर्रा - पाली
(iv) कामली घाट - राजसमंद
(v) गोरम घाट - राजसमंद
(vi) हाथीगुढ़ा दर्रा - राजसमंद
(vii) केवड़ा की नाल - उदयपुर
(viii) देबारी दर्रा - उदयपुर (H.M. सक्सेना के अनुसार मध्य अरावली में स्थित)
(ix) हाथी दर्रा - उदयपुर
(x) फुलवारी की नाल - उदयपुर
(xi) जीलवा/पगल्या नाल – मारवाड़ को मेवाड़ से जोड़ती है।
आबू पर्वत खण्ड के पश्चिम में जसवंतपुरा की पहाड़ियाँ है।
• इस क्षेत्र में सिवाना पर्वतीय क्षेत्र में गोलाकार पहाड़ियाँ है, जिन्हें छप्पन की पहाड़ियाँ एवं नाकोड़ा पर्वत कहा जाता है।
• यह पहाड़ी जालोर में स्थित है।
• इस पहाड़ी पर डोरा पर्वत 869 मीटर, इसराना भाखर 839 मीटर, रोजा भाखर 730 मीटर, झारोल 588 मीटर व सुंधा पर्वत है।
अरावली के प्रमुख पठार :-
(i) उड़िया का पठार– सिरोही में स्थित राजस्थान का सबसेऊँचा पठार (1,360 मीटर ऊँचाई)।
(ii) आबू का पठार– सिरोही जिले में स्थित आबू पर्वत 19 किमी. लम्बा और 8 किमी. चौड़ा पठारनुमा है, जो समुद्र तल से 1200 मीटर ऊँचा है। आबू का पठार एक बैथोलिक संरचना काउदाहरण है। स्थलाकृति की दृष्टि से आबू के पठार को इन्सेलबर्गकी संज्ञा दी गई है।
(iii) भोराट का पठार– गोगुन्दा (उदयपुर) से कुम्भलगढ़ (राजसमंद) के मध्य स्थित 1,225 मीटर उच्च पठारी क्षेत्र।
(iv) मेसा का पठार– चित्तौड़गढ़ में बेड़च तथा गम्भीरी नदियोंद्वारा अपरदित पठार (620 मीटर ऊँचाई)।
(v) मानदेसरा का पठार– चित्तौड़गढ़
(vi) लसाड़िया का पठार– जयसमंद झील के पूर्व में स्थितविच्छेदित एवं अपरदित पठारी क्षेत्र (राजस्थान का सबसे कटा-फटा पठार है।)
(vii) देशहरो का पठार– उदयपुर में जरगा तथा रागा कीपहाड़ियों के मध्य स्थित वर्षभर हरा-भरा रहने वाला पठारी क्षेत्र।
(viii) भोमट का पठार– उदयपुर - डूँगरपुर - बाँसवाड़ा के मध्यस्थित पठारी क्षेत्र जहाँ भोमट जनजाति निवास करती है।
(ix) काकनवाड़ी का पठार- अलवर का भानगढ़ दुर्ग तथाकाकनवाड़ी दुर्ग काकनवाड़ी के पठार पर स्थित है।
अरावली के प्रमुख पर्वत एवं पहाड़ियाँ :-
(i) गिरवा- उदयपुर के आस-पास पाई जाने वाली अर्द्धचंद्राकारया तश्तरीनुमा पहाड़ियों को स्थानीय भाषा में ‘गिरवा’ कहा जाताहै।
(ii) भाकर- पूर्वी सिरोही में स्थित तीव्र ढाल वाली पहाड़ियाँभाकर कहलाती हैं।
(iii) मेवल- डूँगरपुर, बाँसवाड़ा के मध्य स्थित पहाड़ियों कोस्थानीय भाषा में ‘मेवल’ कहा जाता है।
(iv) मगरा- उदयपुर के उत्तर-पश्चिम में स्थित अवशिष्टपहाड़ियाँ मगरा कहलाती है।
उत्तरी अरावली की पहाड़ियाँ-
• झुंझुनूँ की पहाड़ियाँ :- पालखेत की पहाड़ियाँ, लोहागढ़पर्वत, भोजागढ़ पर्वत, अधवाड़ा पर्वत, नेहरा पर्वत
• सीकर की पहाड़ियाँ :- खण्डेला की पहाड़ियाँ, तोरावाटी कीपहाड़ियाँ, मालखेत की पहाड़ियाँ, जीणमाता की पहाड़ियाँ, हर्षपर्वत, नेछवा पहाड़ी
• जयपुर की पहाड़ियाँ :- ईगल की पहाड़ियाँ, आमेर कीपहाड़ियाँ, बैराठ की पहाड़ियाँ, मनोहरपुरा की पहाड़ियाँ, जमवारामगढ़ की पहाड़ियाँ, सेवर की पहाड़ियाँ, झालाना डूँगरी वचुलगिरि हैं।
• अलवर की पहाड़ियाँ :- नीलकण्ठ की पहाड़ियाँ, कालीघाटीकी पहाड़ी, उदयनाथ की पहाड़ी, हर्षनाथ की पहाड़ी, देवगिरि कीपहाड़ी।
• दौसा :- देवगिरि की पहाड़ियाँ
मध्य अरावली की पहाड़ियाँ :-
• मेरवाड़ा की पहाड़ियाँ (अजमेर)
• बीठली की पहाड़ी (अजमेर) – बीठली की पहाड़ी पर स्थिततारागढ़ दुर्ग को गढ़ बीठली के नाम से भी जाना जाता है।
दक्षिणी अरावली की पहाड़ियाँ :-
• भीलवाड़ा की पहाड़ियाँ – बीजासण की पहाड़ी, माण्डल कीपहाड़ी, बिजौलिया की पहाड़ी।
• राजसमंद की पहाड़ियाँ – खमनौर की पहाड़ियाँ, दिवेर कीपहाड़ियाँ, कुकरा की पहाड़ी, बिजराल की पहाड़ी
• उदयपुर की पहाड़ियाँ – धोलिया डूँगरी, जोलियाँ डूँगरी, मनीयोल पहाड़ी
• मानगाँव की पहाड़ियाँ – सिरोही में स्थित है।
• पालखेड़ा पर्वत - चित्तौड़गढ़ में स्थित है।
3. पूर्वी मैदानी प्रदेश
उत्पत्ति :-
• पूर्वी मैदानी प्रदेश की उत्पत्ति नूतन महाकल्प (चतुर्थकमहाकल्प, नियोजोइक एरा) के प्लीस्टोसीन काल में गंगा तथायमुना द्वारा लाई गई मृदा/जलोढ़कों के निक्षेप/जमाव से हुई।
विस्तार :-
• पूर्वी मैदानी प्रदेश का राजस्थान में विस्तार मुख्यत: अरावलीपर्वतमाला के पूर्व में है।
• पूर्वी मैदानी प्रदेश राजस्थान के कुल क्षेत्रफल का 23% है।
• पूर्वी मैदानी प्रदेश में राजस्थान की कुल जनसंख्या का 40% निवास करता है।
• पूर्वी मैदानी प्रदेश का विस्तार सवाई माधोपुर-करौली-भीलवाड़ा-टोंक-भरतपुर – जयपुर – अलवर - धौलपुर व डूँगरपुर – बाँसवाड़ा - चित्तौड़गढ़ के छप्पन ग्रामों का मैदानी भाग है।
• पूर्वी मैदानी प्रदेश का ढाल पश्चिम से पूर्व है।
विशेषता :-
• पूर्वी मैदानी प्रदेश भारतीय उच्चावच के उत्तरी विशाल (मध्य केविशाल) मैदान का भाग है।
• यह मैदान पश्चिम से पूर्व की ओर 50 सेमी. (500 मिली मीटर) समवर्षा रेखा द्वारा विभाजित है।
• जलोढ़ (एल्फीसोल) मृदा क्षेत्र होने के कारण पूर्वी मैदानीप्रदेश सर्वाधिक उपजाऊ तथा सर्वाधिक कृषि संभावना वालाभौतिक प्रदेश है।
• खनिज संपदा की दृष्टि से पूर्वी मैदानी प्रदेश राजस्थान कासर्वाधिक निर्धन भौतिक प्रदेश है।
• राजस्थान की अधिकांश जनसंख्या की अर्थव्यवस्था काआधार कृषि होने के कारण पूर्वी मैदानी प्रदेश राजस्थान कासर्वाधिक जनघनत्व वाला भौतिक प्रदेश है।
• पूर्वी मैदानी प्रदेश की औसत वर्षा 60-80 सेमी है तथाजलवायु की दृष्टि से उपआर्द्र जलवायु प्रदेश में शामिल है।
• पूर्वी मैदानी प्रदेश में सिंचाई के प्रमुख साधन - नलकूप तथाकुएँ हैं।
पूर्वी मैदानी प्रदेश का वर्गीकरण :-
• भौगोलिक संरचना के आधार पर पूर्वी मैदानी प्रदेश को तीनभागों में विभाजित किया गया है-
(1) चम्बल बेसिन–
• चम्बल बेसिन की सबसे प्रमुख भौगोलिक विशेषता बीहड़ है।
• बीहड़– चम्बल नदी द्वारा अवनालिका अपरदन से निर्मितउत्खात स्थलाकृति जिसमें घने जंगल पाए जाते हैं बीहड़ कहलाता है। बीहड़ चम्बल (कोटा) से यमुना नदी (उत्तर प्रदेश) तक फैला हुआ है।
(2) बनास-बाणगंगा बेसिन–
• बनास बाणगंगा बेसिन को चार मैदानी प्रदेशों में विभाजितकिया गया है जो निम्नलिखित हैं –
1. रोही का मैदान - जयपुर से भरतपुर के मध्यबाणगंगा तथा यमुना नदियों के मध्य स्थित मैदानी प्रदेश, जिसेरोही दोआब प्रदेश के नाम से जाना जाता है।
2. मालपुरा - करौली मैदान - मालपुरा (टोंक) सेकरौली के मध्य बनास तथा बाणगंगा नदियों के मध्य स्थितदोआब प्रदेश
3. खैराड़ प्रदेश - जहाजपुर (भीलवाड़ा) से टोंक केमध्य बनास नदी द्वारा निर्मित मैदान।
4. पीडमॉन्ट का मैदान - देवगढ़ (राजसमंद) सेभीलवाड़ा के मध्य बनास नदी द्वारा निर्मित अवशिष्ट पहाड़ी युक्तमैदान।
(3) माही बेसिन–
• राजस्थान के दक्षिणी भाग में माही नदी के आस-पास का क्षेत्रजिसे माही बेसिन के नाम से जाना जाता है को तीन मैदानी प्रदेशोंमें विभाजित किया गया है जो निम्नलिखित है–
1. छप्पन का मैदान - प्रतापगढ़ से बाँसवाड़ा के मध्यमाही नदी के किनारे स्थित छप्पन गाँवों या नदी नालों का समूह।
2. कांठल का मैदान - प्रतापगढ़ में स्थित माही नदी कातटवर्ती मैदान।
3. वागड़ प्रदेश – डूँगरपुर व बाँसवाड़ा के मध्य स्थितमाही नदी द्वारा निर्मित विखंडित पहाड़ी क्षेत्र।
• माही बेसिन को प्राचीनकाल में पुष्प प्रदेश के नाम से जानाजाता था।
4. दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश
• प्राचीनकाल में दक्षिण पूर्वी पठारी प्रदेश पर हाड़ा वंश का क्षेत्राधिकार होने के कारण इसे हाड़ौती का पठार कहा जाता है।
दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश की उत्पत्ति :-
• दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश की उत्पत्ति मध्यजीवी महाकल्प (मिसोजोइक एरा या द्वितीयक महाकल्प) के क्रिटेशियस काल में गौंडवाना लैण्ड में ज्वालामुखी क्रिया के दरारी उद्गार से निकले लावा के जमाव से हुई है।
दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश (हाड़ौती का पठार) का विस्तार :-
• हाड़ौती का पठार प्रायद्वीपीय पठारी प्रदेश के मालवा के पठार का उत्तरी भाग है, जिसका विस्तार राजस्थान के दक्षिण-पूर्व में है। इस कारण इसे दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश कहा जाता है।
• अक्षांशीय दृष्टि से हाड़ौती के पठार का विस्तार 23°51' उत्तरी अक्षांश से 25°27' उत्तरी अक्षांश के मध्य है।
• देशान्तरीय दृष्टि से हाड़ौती के पठार का विस्तार 75°15' पूर्वी देशान्तर से 77°25' पूर्वी देशान्तर के मध्य है।
• हाड़ौती के पठार का विस्तार राजस्थान के कोटा, बूँदी, बाराँ, झालावाड़ जिलों में है।
• हाड़ौती के पठार का क्षेत्रफल 24,185 वर्ग किलोमीटर है जो राजस्थान के कुल क्षेत्रफल का 7% है।
• हाड़ौती के पठार में राजस्थान की कुल जनसंख्या का लगभग 13% भाग निवास करता है।
• क्षेत्रफल की दृष्टि से हाड़ौती का पठार राजस्थान का सबसे छोटा भौतिक प्रदेश है।
• हाड़ौती के पठार की औसत ऊँचाई 500 मीटर है तथा ढाल दक्षिण से उत्तर है।
हाड़ौती का पठार– विशेषताएँ :-
(i) हाड़ौती का पठार अरावली पर्वतमाला तथा विन्ध्याचल के मध्य स्थित एक संक्रांति प्रदेश है जो अरावली-विन्ध्याचल- प्रायद्वीपीय पठारी क्षेत्र का संक्रमण स्थल है।
(ii) हाड़ौती के पठार में बूँदी से सवाईमाधोपुर के मध्य एक भ्रंश घाटी स्थित है, जिसे महान सीमा भ्रंश या ग्रेट बाउंड्री फॉल्ट की संज्ञा दी गई है।
(iii) हाड़ौती के पठार में ज्वालामुखी के दरारी उद्गार से निर्मित क्रिटेशियस कालीन बैसाल्ट चट्टानों का विस्तार है। इस कारण हाड़ौती के पठार में बलुआ पत्थर तथा एल्युमिनियम के भण्डार पाए जाते हैं।
(iv) हाड़ौती के पठार में ज्वालामुखी क्रिया से निकले लावा के विखण्डन से निर्मित काली मृदा (वर्टीसोल) का विस्तार है।
(v) हाड़ौती के पठार की प्रमुख नदी चम्बल नदी है जो दक्षिण से उत्तर दिशा में बहती है।
(vi) राजस्थान में सर्वाधिक नदियाँ हाड़ौती के पठार में प्रवाहित होती हैं, जिसमें राजस्थान का सबसे बड़ा अपवाह तंत्र चम्बल नदी तंत्र भी शामिल है। इस कारण हाड़ौती के पठार में जल द्वारा मृदा अपरदन की समस्या सर्वाधिक है।
(vii) हाड़ौती के पठार में नदियों की अधिकता के कारण विशेष प्रकार का अपवाह श्रेणी अन्त: अस्पष्ट- अधर प्रवाह तंत्र पाया जाता है।
(viii) राजस्थान में दक्षिण-पश्चिम मानसून की बंगाल की खाड़ी शाखा हाड़ौती के पठार से प्रवेश करती है।
(ix) हाड़ौती का पठार राजस्थान में सर्वाधिक वर्षा तथा सर्वाधिक आर्द्रता वाला भौतिक प्रदेश है जहाँ 80 सेमी. से अधिक वर्षा होती है तथा अति आर्द्र जलवायु पाई जाती है।
• दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश (हाड़ौती के पठार) का क्षेत्र सभी जगह एकरूपता न लेकर धरातलीय दृष्टि से भिन्नता रखता है, इस कारण इस प्रदेश को पाँच धरातलीय उप-प्रदेशों में विभाजित किया गया है–
1. अर्द्ध चन्द्राकार पर्वत श्रेणियाँ –
• दक्षिण-पूर्वी पठारी क्षेत्र (हाड़ौती के पठार) पर अर्द्ध-चन्द्राकार रूप में पर्वत चोटियाँ विस्तृत है, जो बूँदी-मुकुन्दरा पर्वत चोटियों के रूप में जानी जाती हैं।
• इनका विस्तार उत्तर-पूर्व में इन्द्रगढ़ से लाखेरी (बूँदी) के दक्षिण-पश्चिम तक है।
(i) बूँदी की पर्वत श्रेणियाँ –
• यह दोहरी पर्वतमाला है, जो उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम कीओर फैली हुई है, इसकी कुल लम्बाई 96 किमी. है।
• इस श्रेणी में चार दर्रें स्थित हैं – पहला बूँदी के निकट बूँदी दर्रा (देवली, कोटा मार्ग), दूसरा जैतवास दर्रा, तीसरा रामगढ़-खटगढ़ (मेज नदी मार्ग बनाती है), चौथा लाखेरी दर्रा।
• इन पर्वत श्रेणियों की औसत ऊँचाई 300 से 350 मीटर है।
• इस क्षेत्र का सर्वोच्च शिखर सतूर (353 मीटर) है।
(ii) मुकुन्दरा की पर्वत श्रेणियाँ –
• इनका विस्तार हाड़ौती के मध्य उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व मेंलगभग 120 किमी. में है।
• इस क्षेत्र की पर्वत श्रेणियों की समुद्र तल से औसत ऊँचाई 335 से 503 मीटर है।
• मुकुन्दरा की पहाड़ियों की सर्वोच्च चोटी चाँदबाड़ी (517मीटर) है।
2. नदी निर्मित मैदान –
• यह क्षेत्र चम्बल व उसकी सहायक नदियों कालीसिंध, पार्वती, मेज और उनकी उप-सहायक नदियों के उपजाऊ मिट्टी के जमावसे हुआ है।
3. शाहबाद का उच्च क्षेत्र –
• बाराँ के पूर्वी क्षेत्र में मध्य प्रदेश से लगा हुआ, जो समुद्र तलसे 300 मीटर ऊँचाई पर है।
• इस क्षेत्र की सर्वोच्च पर्वत श्रेणी कस्बा थाना (456 मीटर) है।
• इस क्षेत्र की विशेष भू-आकृति रामगढ़ की पहाड़ी (घोड़े कीनाल की आकृति Horse Shoe type) है।
• रामगढ़ की पहाड़ी का उद्गम ‘टेक्टोनिक’ कारणों से हुआ है।
4. झालावाड़ का पठार –
• मुकुन्दरा की श्रेणियों के दक्षिण में 300 से 450 मीटर कीऊँचाई वाला पठारी क्षेत्र है।
• यह क्षेत्र मालवा के पठार का अभिन्न अंग है।
5. डग-गंगधर उच्च प्रदेश –
• यह क्षेत्र हाड़ौती के पठार के दक्षिण-पश्चिम में विस्तृत है।
• यह 450 मीटर ऊँचाई वाला क्षेत्र है।
• इस क्षेत्र की पश्चिमी सीमा चम्बल नदी बनाती है।
• उच्च क्षेत्र होने के बाद भी यह क्षेत्र कृषि क्षेत्र है।
नोट :- ऊपरमाल भैंसरोड़गढ़ (चित्तौड़गढ़) से बिजौलिया (भीलवाड़ा) के बीच पठारी क्षेत्र दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेशका भाग है।
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