1857 की क्रांति
- 10 मई, 1857 को मेरठ की छावनी में विद्रोह से देश में क्रांति कीशुरुआत हुई।
- राजस्थान में क्रांति का आरम्भ – 28 मई, 1857 को नसीराबाद छावनीमें ।
राजस्थान में क्रांति के कारण :-
- पॉलिटिकल एजेन्टों द्वारा राज्य प्रशासन व आन्तरिक मामलों मेंहस्तक्षेप करना।
- अंग्रेजी सरकार की आर्थिक नीतियाँ।
- सामन्तों ने अपनी महत्त्वहीन स्थिति के लिए अंग्रेजी सरकार कोजिम्मेदार माना।
- अफीम पर एकाधिकार एवं अंग्रेजी माल के प्रचार ने आम जन कीस्थिति खराब कर दी।
- ब्रिटिश सत्ता के सामाजिक सुधारों ने जनता को सरकार के प्रति शंकालुबना दिया।
- ईसाई मिशनरियों के कार्य को जनता ने अपने धर्म के लिए खतरामाना।
- अंग्रेजी संरक्षण के कारण शासक गैर-जिम्मेदार व निरंकुश हो गए।
- साहित्य ने भी जनता में अंग्रेज विरोधी वातावरण बनाने में अहम् भूमिकानिभाई।
- तात्कालिक कारणों में नई एनफील्ड राइफल्स व आटे में हड्डियों काचूरा मिलाना प्रमुख थे।
क्रांति के समय राजपूताना :-
- ए.जी.जी. - जॉर्ज पैट्रिक लॉरेन्स
- ए.जी.जी. का कार्यालय सर्दियों में अजमेर व गर्मियों में माउण्ट आबूथा।
- विभिन्न राज्यों में नियुक्त पॉलिटिकल एजेन्ट -
रियासत | पॉलिटिकल एजेंट |
कोटा | मेजर बर्टन |
जोधपुर | मैक मोसन |
भरतपुर | मोरिसन |
जयपुर | ईडन |
उदयपुर | शॉवर्स |
सिरोही | जे. डी. हॉल |
- राजस्थान में 6 अंग्रेज छावनियाँ थी –
क्र.सं. | छावनी | मुख्यालय | रेजीमेंट |
1. | खैरवाड़ा | उदयपुर | भीलरेजीमेंट |
2. | नीमच | कोटा | कोटाबटालियन |
3. | एरिनपुरा | पाली | जोधपुरलीजियन |
4. | ब्यावर | अजमेर | मेररेजीमेंट |
5. | नसीराबाद | अजमेर | 15वीं और 30वीं बंगालनेटिवइन्फैन्ट्री |
6. | देवली | टोंक | कोटाकन्टिन्जेंट |
- छावनियों में सबसे शक्तिशाली नसीराबाद छावनी थी।
- सभी छावनियों में लगभग 5000 सैनिक थे लेकिन कोई अंग्रेज सैनिकनहीं था। केवल 30 अंग्रेज अधिकारी थे।
- खैरवाड़ा व ब्यावर छावनियों ने विद्रोह में भाग नहीं लिया।
- क्रांति के समय चार प्रमुख एजेंसियाँ कार्यरत थी-
क्र. सं. | नाम | केन्द्र | अंग्रेजअधिकारी |
1. | मेवाड़राजपूतानास्टेटएजेंसी | उदयपुर | मेजरशॉवर्स |
2. | राजपूतानास्टेटएजेंसी | कोटा | मेजरबर्टन |
3. | पश्चिमराजपूतानास्टेटएजेंसी | जोधपुर | मैकमोसन |
4. | जयपुरराजपूतानास्टेटएजेंसी | जयपुर | कर्नलईडन |
- 19 मई, 1857 को ए.जी.जी. लॉरेन्स को मेरठ में विद्रोह की सूचनामिली।
- 23 मई को ए.जी.जी. द्वारा सभी शासकों को एक पत्र लिखकर कम्पनीसरकार के प्रति निष्ठावान रहने के लिए कहा गया।
- अंग्रेजों का शस्त्रागार - अजमेर
- कुशलराज सिंघवी के नेतृत्व में जोधपुर की अश्वारोही सेना को अजमेरकी रक्षार्थ नियुक्त किया।
नसीराबाद में विद्रोह :-
- विद्रोह - 28 मई, 1857 को दोपहर 3 बजे
- राजस्थान में क्रांति का श्रीगणेश यहीं से हुआ।
- 15 वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री के सैनिकों को मेरठ विद्रोह की सू्चनामिलने पर नसीराबाद भेज दिया।
- अजमेर की सुरक्षा के लिए मेर रेजीमेन्ट व डीसा से अंग्रेजी सेना बुलाईगई।
- विद्रोह - 28 मई, 1857 को 15 वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री के सैनिकोंद्वारा
- मेजर स्पोटिसवुड और कर्नल न्यू बारी की हत्या कर दी।
- लेफ्टिनेंट लॉक तथा कप्तान हार्डी घायल हो गए।
- अंग्रेज अधिकारियों ने ब्यावर में शरण ली।
- यहाँ से सैनिकों ने दिल्ली के लिए कूच किया।
- मारवाड़ व मेवाड़ की सेना ने अंग्रेज अधिकारियों के नेतृत्व में विद्रोहीसैनिकों का पीछा किया।
- 18 जून, 1857 को विद्रोही सैनिक दिल्ली पहुँचे और अंग्रेजी सेना कोपरास्त किया।
नीमच का विद्रोह:-
- विद्रोह - 3 जून, 1857 को रात्रि 11 बजे
- नीमच छावनी मेजर शॉवर्स के नियंत्रण में थी।
- कर्नल एबॉट ने सैनिकों को धर्म ग्रंथ देकर कम्पनी के प्रति निष्ठावान बनेरहने की शपथ दिलवाई।
- तब मोहम्मद अली बेग ने अवध के सन्दर्भ में कहा कि “जब अंग्रेजअपनी शपथ भंग कर सकते हैं, तो वे उनसे यह अपेक्षा क्यों करते हैं किभारतीय अपनी शपथ का पालन करेंगे।”
- एक अंग्रेज सार्जेन्ट की पत्नी व बच्चों की हत्या कर दी व छावनी कोलूटा।
- चित्तौड़गढ़, हम्मीरगढ़, बनेड़ा व शाहपुरा होते हुए देवली पहुँचे औरछावनी को लूटा।
- देवली में महीदपुर की सैनिक टुकड़ी भी इनके साथ मिल गई।
- जोधपुर की सेना ने कैप्टन हार्डकेसल और मेवाड़ सेना में कैप्टन शॉवर्सके नेतृत्व में देवली की ओर गए विद्रोही सैनिकों का पीछा किया।
- शाहपुरा के ठिकानेदार ने मेवाड़ी सेना की रसद की सहायता नहीं की।
- विद्रोही सैनिकों के देवली से टोंक पहुँचने पर टोंक के सैनिक भी इनसेमिल गए।
- टोंक से सभी सैनिकों ने दिल्ली कूच किया।
- कैप्टन शॉवर्स ने कोटा, बूँदी और मेवाड़ की सेना की सहायता से 6 जूनको नीमच छावनी पर पुन: अधिकार कर लिया।
भरतपुर में विद्रोह:-
- विद्रोह शुरुआत - 31 मई 1857
- पॉलिटिकल एजेन्ट - मेजर मॉरीशन
- शासक - जसवंतसिंह
- शाहगंज में अंग्रेजी सेना की हार होने पर मॉरीशन को भरतपुर छोड़ने केआदेश मिले।
- सम्पूर्ण क्रांति में राज्य की स्थिति अशांत बनी रही।
- जनता द्वारा विद्रोही सैनिकों को सहयोग व समर्थन मिला।
धौलपुर में विद्रोह:-
- शासक - भगवंतसिंह
- धौलपुर शासक ने मथुरा और करौली में विद्रोह के दमन हेतु सेना भेजीतथा अंग्रेजों को सुरक्षित आगरा पहुँचाया।
- गुर्जर नेता देवा ने 3000 सैनिकों के साथ राजकीय खजाने से 2 लाखरुपये लूटे।
- अक्टूबर, 1857 में धौलपुर की अधिकांश सेना ग्वालियर व इन्दौर केविद्रोहियों से मिल गई।
- धौलपुर शासक को मारने की धमकी दी।
- राव रामचन्द्र व हीरालाल के नेतृत्व में 1000 क्रांतिकारियों ने राज्य कीतोपें लेकर आगरा पर आक्रमण कर दिया।
- दिसम्बर, 1857 तक धौलपुर शासक क्रांतिकारियों के अधीन रहा।
- अंतत: पटियाला की सेना ने धौलपुर को विद्रोहियों से मुक्त करवाया।
- धौलपुर राजस्थान की एकमात्र रियासत थी, जहाँ विद्रोह बाहर केक्रांतिकारियों (ग्वालियर, इंदौर) द्वारा किया गया तथा इस विद्रोह को बाहरके सैनिकों (पटियाला) के द्वारा दबाया गया।
माउण्ट आबू में विद्रोह :-
- विद्रोह - 21 अगस्त, 1857 को जोधपुर लीजियन द्वारा
- एरिनपुरा से आई हुई सेना भी विद्रोहियों से मिल गई।
- विद्रोहियों के हमले में ए.जी.जी. लॉरेन्स का पुत्र घायल हो गया।
- सरकारी खजाने को लूटकर सैनिकों ने एरिनपुरा की ओर प्रस्थानकिया।
- 23 अगस्त, 1857 को जोधपुर लीजियन ने एरिनपुरा में विद्रोह करदिया।
- ‘चलो दिल्ली मारो फिरंगी’ का नारा लगाते हुए वे दिल्ली की ओररवाना हुए।
आउवा का विद्रोह :-
- नेतृत्व - ठाकुर कुशालसिंह
- खैरवा गाँव में सैनिकों की मुलाकात आउवा ठाकुर कुशालसिंह से हुई।
- ठाकुर कुशालसिंह, जोधपुर महाराजा तख्तसिंह से नाराज था।
- आसोप ठाकुर शिवनाथसिंह, गूलर ठाकुर विशनसिंह औरआलनियावास के ठाकुर अजीतसिंह भी विद्रोही सैनिकों के साथ मिल गए।
- आउवा ठाकुर ने मेवाड़ के सलूम्बर, कोठारिया, लसाणी, रूपनगर वआसींद के जागीरदारों को भी भाग लेने के लिए कहा।
- इस प्रकार विद्रोही सैनिकों की संख्या 6000 हो गई।
- आउवा के विद्रोह की सूचना मिलने पर ए.जी.जी. लॉरेन्स ने जोधपुरमहाराजा को विद्रोह का दमन करने हेतु पत्र लिखा।
- महाराजा तख्तसिंह ने किलेदार ओनाड़सिंह और फौजदार राजमहललोढ़ा के नेतृत्व में सेना आउवा भेजी। लेफ्टिनेंट हीथकोट भी साथ था।
- बिथौड़ा का युद्ध - 8 सितम्बर, 1857 को राजकीय सेना व विद्रोहीसैनिकों के मध्य हुआ जिसमें क्रांतिकारी विजयी हुए।
- किलेदार ओनाड़सिंह मारा गया व शेष सेना भाग गई।
- विद्रोहियों ने जोधपुर सेना की तोपें, अन्य युद्ध सामग्री और 1 लाखरुपये अपने कब्जे में ले लिए।
- ए.जी.जी. लॉरेन्स जोधपुर के पॉलिटिकल एजेन्ट मैक मोसन के साथसेना लेकर आउवा रवाना हुआ।
- चेलावास का युद्ध - 18 सितम्बर 1857 को अंग्रेजी सेना वक्रांतिकारियों में हुआ जिसमें विद्रोही सैनिक जीत गए।
- क्रांतिकारियों ने मैक मोसन का सिर काटकर आउवा में घुमाया औरकिले के दरवाजे पर टाँग दिया।
- ऊँट पालक रेबारी समुदाय के लोग मैक मोसन की कब्र पर पूजा अर्चनाकरते हैं।
- मैक मोसन के बाद ‘निक्सन’ जोधपुर का पॉलिटिकल एजेन्ट बना।
- राजस्थानी साहित्य में चेलावास के युद्ध को ‘गोरे-कालों का युद्ध’ कहाजाता है।
- 10 अक्टूबर, 1857 को जोधपुर लीजियन के विद्रोही सैनिकों ने आउवासे दिल्ली की ओर प्रस्थान किया।
- आसोप, आलनियावास व गूलर के ठाकुर भी इनके साथ थे।
- आसोप ठाकुर शिवनाथसिंह ने विद्रोही सैनिकों का नेतृत्व किया।
- दिल्ली जाते समय इन सैनिकों ने रेवाड़ी पर अधिकार कर लिया।
- 16 नवम्बर को नारनौल में क्रांतिकारियों को अंग्रेजी सेना ने हरा दिया।
- ठाकुर शिवनाथसिंह आसोप लौट आया व अंग्रेजों के सामने समर्पणकर दिया।
- आलनियावास व गूलर के ठाकुर शेखावाटी में लूटमार करते रहे तथाइन्हें जागीरी से अपदस्थ कर दिया।
- कर्नल हॉम्स के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने आउवा पर आक्रमण किया।
- 20 जनवरी, 1858 को अंग्रेजी सेना ने आउवा किले को घेर लिया।
- 23 जनवरी को ठाकुर कुशालसिंह किले की सुरक्षा का भार लांबिया केठाकुर पृथ्वीसिंह को सौंपकर मेवाड़ में सलूम्बर की ओर चला गया।
- किलेदार के विश्वासघात के कारण 24 जनवरी, 1858 को अंग्रेजीसेना ने किले पर अधिकार कर लिया।
- किले के मंदिर में स्थापित सुगाली माता की मूर्ति को होम्स अजमेर लेगया जिसे अजमेर म्यूजियम में रखा गया।
- सुगाली माता को ‘क्रांतिकारियों की देवी’ कहा जाता है जिनके 10 सिर व 54 हाथ हैं।
- आउवा के पतन के बाद ठाकुर कुशालसिंह मारवाड़ में लूटपाट करतारहा।
- कुशालसिंह ने कोठारिया के रावत जोधसिंह के यहाँ शरण ली।
- 8 अगस्त, 1860 को ठाकुर कुशालसिंह ने नीमच में आत्मसमर्पण करदिया।
- मेजर टेलर की अध्यक्षता में जाँच आयोग ने कुशालसिंह के खिलाफजाँच की तथा निर्दोष करार दिया।
- 10 नवम्बर, 1860 को कुशालसिंह को रिहा कर दिया।
- जोधपुर महाराजा ने कुशालसिंह के जागीर का बड़ा भाग जब्त करलिया।
- डॉ. एम.एस. जैन के अनुसार आउवा के ठाकुर व उनके साथियों केविद्रोह को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर बताया जाता है।
- प्रिचार्ड ने ‘दी म्यूटिनीज इन राजपूताना’ में लिखा की आउवा ठाकुर काझगड़ा अपने राजा से था, अंग्रेजी सरकार से नहीं।
- 1858 में ए.जी.जी. की रिपोर्ट में उल्लिखित है कि आउवा ठाकुर काझगड़ा अपने महाराजा से था।
1857 की क्रांति में मारवाड़ रियासत :-
- शासक - महाराजा तख्तसिंह
- पॉलिटिकल एजेन्ट – मैक मोसन
- अजमेर भेजी गई जोधपुर की सैनिक टुकड़ी ने अंग्रेजों के विरोध मेंभूतपूर्व ए.जी.जी. सदरलैण्ड की प्रतिमा पर पत्थर फेंके।
- जोधपुर की सेना को कैप्टन हार्डकेसल के नेतृत्व में विद्रोहियों का पीछाकरने के लिए भेजा।
- प्रिचार्ड के अनुसार जोधपुर की राजकीय सेना की सहानुभूति विद्रोहियोंके साथ थी।
- आउवा में ग्रामीणों ने युद्ध में सक्रिय सहयोग दिया।
कोटा का जनविद्रोह :-
- पॉलिटिकल एजेन्ट - मेजर बर्टन
- शासक - महाराव रामसिंह-द्वितीय
- शुरुआत - 15 अक्टूबर, 1857
- नीमच में विद्रोह के दमन हेतु कोटा राज्य की सेना प्रयोग में ली गई थी।
- नेतृत्व - कोटा राज्य के भूतपूर्व वकील लाला जयदयाल और सेना मेंरिसालदार मेहराब खाँ द्वारा।
- इन दोनों ने एक परिपत्र जारी किया जिसमें सैनिकों के आटे में हड्डियोंको पीसकर मिलाने तथा चर्बी वाले कारतूसों के प्रयोग से सैनिकों का धर्मभ्रष्ट करने की बात की गई।
- 12 अक्टूबर, 1857 को मेजर बर्टन नीमच से कोटा पहुँचा।
- 15 अक्टूबर को कोटा की राजकीय सेना और कोटा कन्टिन्जेन्ट केसैनिकों ने जयदयाल व मेहराब खाँ के नेतृत्व में रेजीडेन्सी को घेर लिया।
- विद्रोहियों ने मेजर बर्टन, उसके दो पुत्रों और सर्जन डॉ. सेडलर की हत्याकर दी।
- क्रांतिकारियों ने राज्य की 127 तोपों, कोतवाली, राजकोष और रसदभण्डारों पर अधिकार कर लिया।
- कोटा महाराव को महल में नजरबंद कर दिया।
- जयदयाल व मेहराब खाँ ने राज्य का प्रशासन अपने हाथ में ले लिया।
- विद्रोहियों के आगे विवश होकर 15 अक्टूबर, 1857 को महाराव नेपूर्ण उत्तरदायित्व अपने ऊपर लिया।
- राज्य पर लगभग 5 माह तक विद्रोहियों का नियंत्रण रहा।
- करौली शासक द्वारा भेजे गए 2000 सैनिक कोटा महाराव को मुक्तनहीं करा सके।
- 22 मार्च, 1858 को अंग्रेजी सेना कोटा पहुँची।
- 30 मार्च, 1858 को अंग्रेजी सेना ने कोटा को क्रांतिकारियों से मुक्तकरवा दिया।
- कोटा ही एकमात्र ऐसा स्थान था जहाँ क्रांतिकारियों को जनता कासहयोग मिला।
- जयदयाल व मेहराब खाँ को फाँसी दे दी गई।
- मेजर बर्टन की हत्या के संबंध में लॉर्ड रॉबर्ट्स की अध्यक्षता में एकजाँच आयोग गठित किया।
- जाँच आयोग ने महाराव को निरपराध लेकिन उत्तरदायी बताया।
- कोटा महाराव की तोपों की सलामी 15 से घटाकर 11 कर दी।
मेवाड़ का विद्रोह :-
- शासक - महाराणा स्वरूपसिंह
- पॉलिटिकल एजेन्ट - मेजर शॉवर्स
- महाराणा ने एक आदेश द्वारा जागीरदारों व अधिकारियों को अंग्रेजों कापूर्ण सहयोग करने के लिए कहा।
- 29 मई, 1857 को जनता ने शॉवर्स के समक्ष विरोध प्रदर्शन किया।
- सलूम्बर के रावत केसरीसिंह और कोठारिया के रावत जोधसिंह नेआउवा ठाकुर कुशालसिंह को शरण व सैनिक सहायता दी।
- रावत केसरीसिंह ने तात्या टोपे, राव साहब व विद्रोहियों की मदद की।
- नाथूराम खड़गावत के अनुसार रावत जोधसिंह ने नाना साहब को भीशरण दी।
- बनेड़ा व शाहपुरा के सामन्तों ने भी क्रांतिकारियों की मदद की।
- भीण्डर, बदनौर, आसींद के जागीरदारों ने भी राव साहब व आउवाठाकुर कुशाल सिंह की मदद की।
- महाराणा ने नीमच में दमन हेतु अपनी सेना भेजी।
- नसीराबाद से आए अंग्रेजों को पिछोला झील के जगमंदिर महल मेंसुरक्षित ठहराया। यहाँ इनकी देखभाल गोकुलचन्द मेहता द्वारा की गई।
- मेवाड़ के वकील सहीवाला अर्जुनसिंह ने आटे से रोटी बनवाकर स्वयंखाई और मेवाड़ के सैनिकों का संदेह दूर किया।
- नीमच, निम्बाहेड़ा व जीरन में विद्रोह का दमन करने में महाराणास्वरूपसिंह ने अंग्रेजों की मदद की।
जयपुर में क्रांति :-
- शासक - सवाई रामसिंह
- पॉलिटिकल एजेन्ट - ईडन
- राज्य के कई उच्च अधिकारी लियाकत अली खाँ, उस्मान खाँ वसादुल्ला खाँ अंग्रेज विरोधी थे।
- क्रांति के समय राज्य में विद्रोह की कोई घटना नहीं हुई।
करौली में क्रांति :-
- शासक - मदनपाल
- मदनपाल ने अपनी पूरी सेना अंग्रेजों की मदद के लिए आगरा भेज दी।
- करौली शासक ने कोटा महाराव की सहायता हेतु 2000 सैनिक भेजे।
- ए.जी.जी. लॉरेन्स ने करौली शासक मदनपाल को सर्वाधिक वफादारमाना।
- मदनपाल को Grand Commander State of India की उपाधिदी गई तथा तोप सलामी की संख्या 13 से बढ़ाकर 17 कर दी गई।
अलवर में विद्रोह :-
- शासक – बन्नेसिंह/विनयसिंह
- 11 जुलाई, 1857 को अलवर का शासक शिवदानसिंह बना।
- बन्नेसिंह ने आगरा में अंग्रेजों की मदद हेतु अपनी सेना भेजी।
- इस सेना को क्रांतिकारियों ने घेर लिया जिसमें अलवर सेना के कईसैनिक मारे गए।
- दिल्ली के पतन के बाद क्रांतिकारियों ने अलवर में शरण ली। जहाँ उन्हेंजनता का समर्थन मिला लेकिन राज्य पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार कर अंग्रेजोंका सौंप दिया।
प्रतापगढ़ में विद्रोह :-
- शासक - दलपतसिंह
- विद्रोहियों को दबाने के लिए इसने अपनी सेना नीमच भेजी और राज्यसे क्रांतिकारियों को गुजरने भी नहीं दिया।
- दिसम्बर, 1858 में तात्या टोपे प्रतापगढ़ आया लेकिन वह मेजर रॉक केप्रतापगढ़ आने के कारण आगे चला गया।
टोंक में विद्रोह :-
- शासक - नवाब वजीरुद्दौला
- राज्य की सेना ने क्रांतिकारियों का साथ दिया।
- नवाब का मामा मीर आलम खाँ अंग्रेज विरोधी होने के कारण अंग्रेजों सेसंघर्ष में मारा गया।
- निम्बाहेड़ा का हाकिम अहमदयार खाँ और पलोद का ठिकानेदारमोइनुद्दीन अंग्रेज विरोधी थे।
- टोंक की सेना व जनता ने तात्या टोपे की सहायता की।
बीकानेर में विद्रोह :-
- शासक - सरदारसिंह
- यह राजस्थान का एकमात्र शासक था जिसने क्रांतिकारियों के दमन हेतुस्वयं अभियान का नेतृत्व किया और सेना लेकर राज्य से बाहर गया।
- यह विद्रोहियों के दमन हेतु सेना लेकर पंजाब के हासी, सिरसा व हिसारगया।
- बीकानेर की सेना ने ‘वाडलू’ नामक स्थान पर क्रांतिकारियों को पराजितकिया।
- क्रांति के समय महाराजा द्वारा किए गए सहयोग के कारण अंग्रेजसरकार ने बीकानेर को ‘टीबी परगने’ के 41 गाँव दिए।
बाँसवाड़ा में विद्रोह :-
- शासक - महारावल लक्ष्मणसिंह
- कुशलगढ़ के राव हमीरसिंह ने विद्रोही सैनिकों को रोकने का असफलप्रयास किया। अत: अंग्रेज सरकार ने उसे ‘खिलअत’ देकर सम्मानितकिया।
- 11 दिसम्बर, 1858 को तात्या टोपे ने बाँसवाड़ा पर अधिकार कर दियालेकिन एक दिन बाद ही अंग्रेजी सेना के आने के कारण वह मेवाड़ की ओरचला गया।
डूँगरपुर में विद्रोह :-
- शासक - महारावल उदयसिंह
- इसने नीमच में विद्रोहियों को रोकने में अंग्रेजों की सहायता की।
झालावाड़ में विद्रोह :-
- शासक - पृथ्वीसिंह
- यहाँ क्रांति के समय शांति रही।
- पृथ्वीसिंह ने क्रांतिकारियों को पकड़ने में मदद करने वालों को ईनाम देनेकी घोषणा की।
- दिल्ली पर अंग्रेजों का अधिकार हो जाने पर पृथ्वीसिंह ने खुशियाँ मनाईऔर ए.जी.जी. को बधाई भेजी।
जैसलमेर में विद्रोह :-
- शासक - महारावल रणजीतसिंह
- इसने राज्य से कोटा जाने वाली अंग्रेजी सेना के लिए रसद की व्यवस्थाकी।
सिरोही में क्रांति :-
- शासक - शिवसिंह
- सिरोही शासक ने अंग्रेजों का सहयोग किया।
- रीवा के ठाकुर ने क्रांतिकारियों की सहायता की।
बूँदी में क्रांति :-
- शासक - रामसिंह
- बूँदी के शासक ने क्रांति में अंग्रेजों का सहयोग किया।
क्रांति का विश्लेषण :-
- फैज अली खाँ व अचरोल ठाकुर रणजीतसिंह के नेतृत्व में जयपुर सेनाने गुड़गाँव में विद्रोह का दमन किया।
- सवाई रामसिंह ने आगरा व अजमेर के मध्य संचार तथा सड़क मार्ग कोखुला रखा।
- उदयपुर महाराणा ने बेदला ठाकुर बख्तावरसिंह को सेना सहित शॉवर्सके साथ नीमच भेजा।
- जोधपुर तख्तसिंह ने दिल्ली पर अंग्रेजी नियंत्रण स्थापित होने की खुशीमें 21 तोपें छोड़ी।
- ए.जी.जी. ने अपनी रिपोर्ट में बीकानेर, जयपुर व करौली के शासकोंकी सर्वाधिक प्रशंसा की और बूँदी शासक को उदासीन बताया।
- कोटा को छोड़कर अन्य किसी स्थान पर जनता ने क्रांति में सक्रिय रूपसे भाग नहीं लिया।
राजस्थान और तात्या टोपे :-
- बचपन का नाम - रामचन्द्र पाण्डुरंग
- जन्म - येवला, अहमदनगर (महाराष्ट्र)
- तात्या टोपे पेशवा नाना साहब का सहयोगी था।
- इसने कानपुर में क्रांति का नेतृत्व किया।
- 22 जून, 1858 को अलीपुर में चार्ल्स नेपियर ने टोपे को पराजितकिया।
- सैन्य सहायता की आशा में यह राजस्थान आया।
- वह जयपुर जा रहा था लेकिन रॉबर्ट्स के जयपुर आने के कारण बान्दाके नवाब रहीम अली खाँ के साथ टोंक चला गया।
- टोंक नवाब द्वारा तात्या के विरुद्ध भेजी गई सेना विद्रोही सैनिकों केसाथ मिल गई।
- तात्या टोंक से इन्द्रगढ़, माधोपुर होता हुआ बूँदी पहुँचा और वहाँ सेमेवाड़ की ओर मुड़ गया।
- इसने माण्डलगढ़ से मेवाड़ में प्रवेश किया।
- रतनगढ़ व सिंगोली होते हुए वह रामपुरा पहुँचा लेकिन अंग्रेजअधिकारियों की मौजूदगी के कारण वह भीलवाड़ा चला गया।
- 9 अगस्त, 1858 को सांगानेर के पास कोठारी नदी के किनारे जनरलरॉबर्ट्स की सेना से पराजित होने के बाद कोठारिया चला गया।
- कोठारिया के रावत जोधसिंह ने तात्या की सहायता की।
- 13 अगस्त, 1858 को तात्या रूकमगढ़ के पास अंग्रेजी सेना से पुन: परास्त हुआ और आकोला होते हुए झालरापाटन पहुँचा।
- झालरापाटन की सेना तात्या से मिल गई। यहाँ से तात्या मध्य भारत कीओर चला गया।
- तात्या दूसरी बार दिसम्बर 1858 में राजस्थान आया।
- 9 दिसम्बर, 1858 को वह कुशलगढ़ होता हुआ बाँसवाड़ा पहुँचा।
- 11 दिसम्बर को तात्या ने बाँसवाड़ा पर अधिकार कर लिया।
- बाँसवाड़ा से वह सलूम्बर की ओर गया जहाँ रावत केसरीसिंह ने उसकीमदद की।
- तात्या भीण्डर से होता हुआ प्रतापगढ़ पहुँचा जहाँ मेजर रॉक से हुए युद्धमें उसे भारी क्षति पहुँची।
- जीरापुरा में कर्नल बेसेन के साथ युद्ध में उसे पीछे हटना पड़ा।
- इन्द्रगढ़ पहुँचने पर फिरोजशाह अपनी सेना के साथ तात्या से मिलगया।
- कैप्टन शॉवर्स और हॉनर्स की सेना से पराजित होकर वह सीकर पहुँचा।
- सीकर में तात्या कर्नल हॉम्स से पराजित हुआ।
- तात्या के 600 सैनिकों ने बीकानेर महाराजा के समक्ष आत्मसमर्पणकर दिया।
- अंतत: निराश होकर तात्या अपने मित्र नरवर के मानसिंह के पास चलागया।
- मानसिंह ने विश्वासघात करते हुए 7 अप्रैल, 1859 को तात्या कोअंग्रेजों को सुपुर्द कर दिया।
- 18 अप्रैल, 1859 को उसे फाँसी दे दी गई।
- तात्या टोपे जैसलमेर के अलावा राजपूताना राज्य की प्रत्येक रियासतमें घूमा।
- शंकरदान सामौर ने तात्या टोपे के लिए निम्न पंक्तियाँ लिखी है-
“जठै गियो जग जीतियो, खटके बिण रण खेत।
तगड़ो लड़ियो तांतियो, हिंदथान रे हेत।।"
विद्रोह के परिणाम :-
- क्रांति के बाद ब्रिटिश संसद ने 1858 में एक अधिनियम के तहत भारतमें कम्पनी के शासन को समाप्त कर भारत का प्रशासन ब्रिटिश संसद कोसौंप दिया।
- देशी राज्यों को बनाए रखने की नीति के तहत 1862 में सभी शासकोंको ‘सनदें’ प्रदान की गई।
- बीकानेर महाराजा सरदारसिंह को खिलअत, उपहार और टीबी परगनेके 41 गाँव दिए।
- जैसलमेर महारावल रणजीतसिंह को 2000 रुपये की खिलअत दीगई।
- झालावाड़ राज्य से एक वर्ष की खिराज वसूल नहीं की गई।
- टोंक के नवाब की तोपों की सलामी 15 से 17 कर दी।
- मेवाड़ महाराणा स्वरूपसिंह को खिलअत दी गई।
- विद्रोहियों का सहयोग व अंग्रेजों का विरोध करने वाले सामन्तों कोदण्डित किया गया व उनकी जागीरें जब्त कर ली।
- रियासतों के सिक्कों पर महारानी विक्टोरिया का नाम लिखा जानेलगा।
- राजस्थान में रेल लाइनों का जाल बिछाया गया और संचार के साधनोंका विकास किया गया।
तिथ्यानुसार विद्रोह का क्रम
क्रांति कीतिथि | स्थान |
28 मई, 1857 | नसीराबाद मेंविद्रोह |
31 मई,1857 | भरतपुर राज्यमें विद्रोह |
3 जून, 1857 | नीमच मेंविद्रोह |
11 जुलाई,1857 | अलवर राज्यमें विद्रोह |
21 अगस्त,1857 | एरिनपुरा केसैनिकों काविद्रोह |
23 अगस्त,1857 | जोधपुरालीजियन मेंविद्रोह |
8 सितम्बर, 1857 | बिठौड़ा5 / बिथौड़ा कायुद्ध |
18 सितम्बर, 1857 | चेलावास कायुद्ध |
15 अक्टूबर, 1857 | कोटा मेंविद्रोह |
रियासत | क्रांति के समयशासक |
कोटा | रामसिंह |
जोधपुर | तख्तसिंह |
भरतपुर | जसवंतसिंह |
उदयपुर | स्वरूपसिंह |
जयपुर | रामसिंह द्वितीय |
सिरोही | शिवसिंह |
धौलपुर | भगवंतसिंह |
बीकानेर | सरदारसिंह |
करौली | मदनपाल |
टोंक | वजीरुद्दौला |
बूँदी | रामसिंह |
अलवर | विनयसिंह |
जैसलमेर | रणजीतसिंह |
झालावाड़ | पृथ्वीसिंह |
प्रतापगढ़ | दलपतसिंह |
बाँसवाड़ा | लक्ष्मणसिंह |
डूँगरपुर | उदयसिंह |
क्रांति के प्रमुख व्यक्तित्व -
अमरचंद बांठिया-
- जन्म - 1797, बीकानेर
- मूलत: बीकानेर निवासी।
- ये ग्वालियर में व्यापार करते थे।
- इन्हें ‘ग्वालियर का नगर सेठ’ और ‘कोषाध्यक्ष’ का सम्मान प्राप्त हुआ।
- क्रांति के समय बांठिया ने रानी लक्ष्मी बाई व तात्या टोपे की आर्थिकसहायता की थी।
- अत: इनको ग्वालियर में 22 जून, 1858 को फाँसी दे दी गई।
- 1857 की क्रांति का राजस्थान का प्रथम शहीद।
- उपनाम –
1. 1857 की क्रांति का भामाशाह
2. राजस्थान का मंगल पांडे
ठाकुर कुशालसिंह
- मारवाड़ राज्य के आउवा ठिकाने के ठिकानेदार।
- ये मारवाड़ शासक तख्तसिंह से नाराज थे।
- अप्रैल, 1857 को तख्तसिंह द्वारा भेजी गई सेना को पराजित किया।
- एरिनपुरा छावनी के विद्रोही सैनिकों का नेतृत्व स्वीकार किया।
- 8 सितम्बर, 1857 को बिथौड़ा के युद्ध में जोधपुर राज्य की सेना को पराजित किया।
- 18 सितम्बर, 1857 को चेलावास के युद्ध में ए. जी. जी. लॉरेन्स के नेतृत्व वाली सेना को पराजित किया।
- 20 जनवरी, 1858 को अंग्रेजी सेना ने किले को घेर लिया।
- ये 23 जनवरी को किले का भार पृथ्वीसिंह को सौंपकर सलूम्बर चले गए।
- 8 अगस्त, 1860 को नीमच में अंग्रेजों के सामने आत्म समर्पण कर दिया।
डूँगजी – जवाहरजी (काका-भतीजा)
- डूँगजी व जवाहरजी बठोठ पाटोदा (सीकर) के ठाकुर थे।
- रामगढ़ के सेठों को लूटकर धन गरीबों में बाँट दिया।
- डूँगजी के साले भैरोंसिंह ने लालच में आकर इन्हें अंग्रेजों से गिरफ्तारकरवा दिया।
- डूँगजी को कैद कर आगरा के किले में डाल दिया।
- 31 दिसम्बर, 1846 को जवाहर जी ने लोठिया जाट, करणिया मीणाव साँवता नाई आदि की सहायता से किले से डूँगजी को आजाद करवालिया।
- 1847 में इन्होंने छापामार लड़ाई से अंग्रेजों को परेशान कर दिया।
- 18 जून, 1847 को इन्होंने नसीराबाद छावनी को लूटा था।
- जवाहरजी बीकानेर नरेश रतनसिंह के पास चले गए। रतनसिंह नेजवाहरजी को अंग्रेजों को सौंपने से मना कर दिया।
- डूँगजी ने जोधपुर राज्य के आश्वासन पर आत्मसमर्पण कर दियालेकिन महाराजा तख्तसिंह ने डूँगजी को अंग्रेजों को सौंप दिया।
मेहराब खान (कोटा) –
- जन्म - 11 मई, 1815 को करौली में।
- कोटा स्टेट आर्मी में रिसालदार था।
- कोटा में एजेंसी हाउस पर अक्टूबर, 1857 में आक्रमण किया।
- इस आक्रमण में मेजर बर्टन, उनके दो पुत्र और कई सारे लोग मारे गए।
- इन्होंने लाला जयदयाल भटनागर के साथ कोटा राज्य का शासन अपनेहाथ में ले लिया।
- 1859 में अंग्रेजों के हाथों पकड़े गए और इन्हें मृत्युदंड दे दिया गया।
रावत जोधसिंह (कोठारिया) –
- मेवाड़ के कोठारिया ठिकाने के ठिकानेदार।
- 1857 की क्रांति के समय क्रांतिकारियों का साथ दिया।
- आउवा के ठाकुर कुशालसिंह को अंग्रेजों के विरुद्ध सहायता व शरणदी।
- अगस्त, 1858 में तात्या टोपे की रसद आदि से सहायता की।
- नाना साहब जब बिठुर से भागकर कोठारिया आए तब जोधसिंह ने उन्हेंशरण दी तथा सहायता की।
रावत केसरीसिंह (सलूम्बर)
- मेवाड़ राज्य के सलूम्बर ठिकाने के ठिकानेदार।
- विद्रोह में क्रांतिकारियों को शस्त्र, रसद व सैनिक सहायता दी।
- कई विद्रोहियों को अपने यहाँ शरण दी।
- नीमच में विद्रोह को दबाने के कारण मेवाड़ महाराणा को धमकी दी।
- केसरीसिंह ने आउवा ठाकुर कुशालसिंह व तात्या टोपे की सहायता की तथा उन्हें शरण दी।
लाला जयदयाल भटनागर (कोटा)-
- जन्म – 4 अप्रैल, 1812 को कामां, भरतपुर
- ये कोटा महाराव के दरबार में वकील थे।
- कोटा में 1857 की क्रांति के मुख्य संगठनकर्ता।
- इन्होंने 1857 के विद्रोह में कोटा के विद्रोह का नेतृत्व किया।
- मार्च, 1858 में जनरल रॉबर्ट्स ने कोटा में विद्रोहियों से युद्ध किया। फलत: जयदयाल ने कोटा छोड़ दिया।
- कोटा व बूँदी के महाराव ने इनकी गिरफ्तारी के लिए 12 हजार रुपयेके इनाम की घोषणा की।
- लीलिया नामक व्यक्ति ने इनाम के लालच में इन्हें गिरफ्तार करवा दिया।
- 17 सितम्बर, 1860 में कोटा के एजेंसी हाउस में फाँसी दी गई।
हरदयाल भटनागर
- जन्म – 1817, कामां (भरतपुर)
- जयदयाल भटनागर का छोटा भाई।
- ये 1857 की क्रांति में जनरल रॉबर्ट्स से युद्ध में मारे गए।
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