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राजस्थान कला एव संस्कृति: राजस्थान के पर्यटक स्थल नोट्स

I. राजस्थान के प्रमुख मंदिर

महत्त्वपूर्ण तथ्य :-
● 8वीं सदी से राजस्थान में जिस क्षेत्रीय शैली का विकास हुआ उसे गुर्जर प्रतिहार या महामारू कहा गया है। गुर्जर प्रतिहार शैली का अंतिम व सबसे भव्य मंदिर किराडू का सोमेश्वर मंदिर (लगभग 1016 ई.) है। यह भारत के सबसे अच्छे मंदिरों में से एक है। इसका शिखर दर्शनीय है।
● 9वीं सदी में विकसित गुर्जर-प्रतिहार शैली के महत्त्वपूर्ण मंदिर- कामेश्वर (पाली) एवं रणछोड़जी मंदिर (खेड़, बालोतरा)।
● 10वीं व 11वीं सदी के प्रारम्भ में गुर्जर-प्रतिहार शैली का पूर्ण विकास व सोलंकी शैली का प्रारम्भ देखने को मिलता है। इस समय के महत्त्वपूर्ण मंदिर - कैकीन्द या जसनगर का नीलकण्ठेश्वर मंदिर है। सीकर का हर्षनाथ मंदिर भी इसी शैली का है।
●11वीं से 13वीं सदी के बीच बने राजस्थान के मंदिर सर्वश्रेष्ठ हैं। यह मंदिर शिल्प का स्वर्णकाल था। इस काल में राजस्थान में काफी संख्या में विशाल व अलंकृत मंदिर गुर्जर-प्रतिहार व सोलंकी शैली में बने। इस शैली के मंदिरों में ओसियां का सच्चियाय माता मंदिर, समिद्धेश्वर मंदिर (चित्तौड़गढ़) आदि प्रमुख है। भूमिज शैली में बना सबसे पुराना (1010-20 ई.) मंदिर पाली जिले में सेवाड़ी का जैन मंदिर है। भूमिज शैली में बने अन्य मंदिर - मेनाल का महानालेश्वर, रामगढ़ का भण्डदेवरा व बिजौलिया का उंडेश्वर मंदिर आदि इस शैली के उदाहरण हैं।


अजमेर के मंदिर


ब्रह्मा मंदिर
 पुष्कर में स्थित ब्रह्मा मंदिर राजस्थान के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है।
 इस मंदिर में ब्रह्मा जी की चतुर्मुखी प्रतिमा गर्भगृह में स्थापित है।
 यह मंदिर संगमरमर से निर्मित तथा चाँदी के सिक्कों से जड़ा हुआ है।
 इस मंदिर में सूर्य भगवान की संगमरमर की मूर्ति प्रहरी की भाँति खड़ी है। इस मूर्ति की विशेषता यह है कि सूर्य भगवान की मूर्ति जुते पहने हुए दिखाई दे रही है।

सोनीजी की नसियां
 19वीं सदी में बना यह एक जैन मंदिर है।
● यह मंदिर भारत के समृद्ध मंदिरों में से एक है।
● इसका प्रवेश द्वार लाल पत्थर से बना हुआ है तथा अन्दर संगमरमर की दीवारें बनी हैं। जिन पर काष्ठ आकृतियाँ तथा शुद्ध स्वर्ण पत्रों से जैन तीर्थंकरों की छवियाँ व चित्र बने हैं।
● इस मंदिर के मुख्य कक्ष को स्वर्णनगरी का नाम दिया गया है।

सावित्री मंदिर
● ब्रह्मा जी के मंदिर के पीछे ऊँची पहाड़ी पर सावित्री मंदिर बना हुआ है।
● सावित्री जी को ब्रह्मा जी की पहली पत्नी माना जाता है।
● मंदिर तक पहुँचने के लिए सुविधाजनक सीढ़ियाँ बनी हुई है। अब इस मंदिर में रोप-वे की सुविधा उपलब्ध है।

अजमेर के अन्य मंदिर
● वराह मंदिर, रंगनाथ मंदिर


जयपुर के मंदिर


गोविन्ददेव जी मंदिर (जयपुर)
● यह गौड़ीय सम्प्रदाय का प्रमुख मंदिर है।
● गौड़ीय सम्प्रदाय अनुयायी इनके युगल रूप अर्थात् राधाकृष्ण के रूप में पूजा करते हैं।
● वल्लभ सम्प्रदाय के अनुयायी इनके बालरूप की पूजा करते हैं।
● गोविन्ददेव जी के मंदिर में लगी यह मूर्ति सवाई जयसिंह द्वारा वृन्दावन से लाकर जयपुर में प्रतिष्ठापित करवाई।
● यह मंदिर जगन्नाथपुरी, ब्रज और ढूँढाड़ क्षेत्र की परम्पराओं का सुन्दर संयोजन प्रस्तुत करता है।

जगतशिरोमणि मंदिर (आमेर)
● इस मंदिर का निर्माण कच्छवाहा शासक मानसिंह की पत्नी कनकावती ने अपने पुत्र जगतसिंह की स्मृति में करवाया था।
● मान्यता है कि इस मंदिर में प्रतिष्ठित काले पत्थर की कृष्ण की वही मूर्ति है जिसकी मीरा चित्तौड़ में आराधना किया करती थी। मानसिंह इसे चित्तौड़ से लेकर आए थे।
● यह मंदिर अपने उत्कृष्ट शिल्प एवं सौन्दर्य के कारण आमेर का सबसे अधिक विख्यात मंदिर है।

शिलादेवी का मंदिर (आमेर)
● इस मंदिर का निर्माण कच्छवाहा शासक मानसिंह ने करवाया था।
● मानसिंह शिलादेवी की मूर्ति को बंगाल से जीतकर लाए थे।
● इस मंदिर के कपाट चाँदी के बने हुए हैं। जिन पर विद्या देवियाँ व नव दुर्गा का चित्रण किया गया है।

जयपुर के अन्य मंदिर –
● गढ़ गणेश मंदिर (मोती डूँगरी), ताड़केश्वर मंदिर, नृसिंह मंदिर, बिड़ला मंदिर, बिहारी जी का मंदिर, लक्ष्मीनारायण मंदिर, गलता जी मंदिर, नकटी माता का मंदिर, सूर्य मंदिर, कलकी मंदिर, शाकम्भरी माता का मंदिर आदि।


उदयपुर के मंदिर


एकलिंगजी का मंदिर (उदयपुर)
● एकलिंगजी का लकुलीश मंदिर उदयपुर के निकट कैलाशपुरी नामक गाँव में स्थित है।
● इस मंदिर का निर्माण आठवीं सदी में मेवाड़ के गुहिल शासक बप्पा रावल ने करवाया था।
● इस मंदिर को वर्तमान स्वरूप महाराणा रायमल ने दिया था।
● इस मंदिर के मुख्य भाग में काले पत्थर से बनी एकलिंगजी की चतुर्मुखी प्रतिमा है।
● एकलिंगजी को मेवाड़ राजघराने का कुल देवता माना जाता है। मेवाड़ के शासक स्वयं को इनका दीवान मानते थे।
● इस मंदिर के अहाते में कुंभा द्वारा निर्मित विष्णु मंदिर है।
● इस मंदिर में शिवरात्रि को प्रतिवर्ष मेला लगता है।

जगदीश मंदिर (उदयपुर)
● इस मंदिर का निर्माण 1651 ई. में महाराणा जगतसिंह ने करवाया था।
● यह मंदिर पंचायतन शैली में बना हुआ है। चार लघु मंदिरों से परिवृत्त होने के कारण इसे पंचायतन कहा गया है।
● इस मंदिर में भगवान जगदीश (विष्णु) की काले पत्थर से निर्मित पाँच फीट ऊँची प्रतिमा स्थापित है।
● इस मंदिर के चारों कोनों में शिव-पार्वती, गणपति, सूर्य तथा देवी के चार लघु मंदिर तथा गर्भगृह के सामने गरुड़ की विशाल प्रतिमा है।
● कर्नल टॉड, गौरीशंकर हीराचंद ओझा, कविराजा श्यामलदास आदि ने इस मंदिर के शिल्प की उत्कृष्टता की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की है।

सास-बहू का मंदिर (नागदा)
● नागदा में 1026 ई. में गुहिल शासक श्रीधर द्वारा कुछ मंदिरों का निर्माण करवाया गया है। इनमें से दो जुड़वाँ वैष्णव मंदिर सास-बहू मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।
● इनमें बड़ा मंदिर (सास का मंदिर) दस सहायक देव मंदिरों से घिरा हुआ है, जबकि छोटा मंदिर (बहू का मंदिर) पंचायतन प्रकार का है। 
● यह मंदिर 10वीं सदी के बने हुए हैं।
● यह मंदिर विष्णु (सहस्त्रबाहु) को समर्पित है।
● यह मंदिर श्वेत पत्थर के चौकोर चबूतरों पर निर्मित है। सास के मंदिर का शिखर ईंटों का है तथा शेष मंदिर संगमरमर का है।

उदयपुर के अन्य मंदिर
● ऋषभदेव का मंदिर (धुलेव), अम्बिका माता मंदिर (जगत)


चित्तौड़गढ़ के मंदिर


शिव मंदिर (बाडोली)
● यह पंचायतन शैली का मंदिर है।
● इस मंदिर में मुख्य मूर्तियाँ शिव-पार्वती और उनके अनुचरों की है।
● ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण हूण शासक तोरमाण के पुत्र मिहिरकुल ने करवाया था।
● इस मंदिर को प्रकाश में लाने का श्रेय कर्नल जेम्स टॉड को जाता है।

चित्तौड़गढ़ के अन्य मंदिर
● मीराबाई का मंदिर, सावलियाँ सेठ का मंदिर (मण्डफिया), कुम्भ श्याम मंदिर, कालिका माता का मंदिर, मातृकुण्डिया का मंदिर, समिद्धेश्वर महादेव का मंदिर, नीलीया  महादेव मंदिर (बस्सी)।


बाड़मेर के मंदिर


किराडू के मंदिर (बाड़मेर)
 किराडू को राजस्थान का 'खजुराहो' (कामशास्त्र की मूर्तियों के कारण) कहा जाता है।
● किराडू प्राचीन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर 11वीं - 12वीं शताब्दी के बने हुए हैं।
● यहाँ पर पाँच मंदिरों का समूह है, जिनमें वैष्णव व शैव मंदिर हैं।
● किराडू के मंदिरों में से सबसे सुन्दर सोमेश्वर मंदिर है।
● यह मंदिर उच्च कोटि की तक्षण कला के साथ-साथ गुप्तकालीन व क्षेत्रीय परमार और सोलंकी शैली का अद्भुत मिश्रण प्रस्तुत करता है।
● किराडू के मंदिरों की मूर्तियाँ जीवन के विभिन्न पहलुओं को समेटे हुए हैं।
● वीर रस, शृंगार रस, युद्ध, नृत्य, कामशारूप इत्यादि की भाव भंगिमा युक्त मूर्तियाँ शिल्पकला की दृष्टि से अनूठी है।

श्री नाकोड़ा जैन मंदिर (बाड़मेर)
● यह एक जैन मंदिर है।
● आलमशाह ने 13वीं शताब्दी में इस मंदिर पर हमला किया और इसे लूटकर ले गया था लेकिन वह भगवान की प्रतिमा को नहीं ले जा सका। गाँव वालों को इस हमले का आभास होने पर उन्होंने इस मूर्ति को गाँव में ही ले जा कर छिपा दिया तथा 15वीं सदी में प्रतिमा को वापस लाकर मंदिर में पुन:स्थापित किया गया।
● तीसरी शताब्दी में निर्मित इस मंदिर को कई बार पुन:निर्मित किया जा चुका था। यहाँ के मंदिरों में सबसे बड़ा मंदिर पार्श्वनाथ का है।

राणी भटियाणी मंदिर (जसोल)
● बाड़मेर के जसोल गाँव में स्थित यह मंदिर मुख्यतया ढोली जाति की आस्था का केन्द्र है।
● राणी भटियाणी एक हिन्दू देवी है, जो 'भुआ-सा' के नाम से प्रसिद्ध हैं।
● यह जैसलमेर के जोगीदास गाँव की राजकुमारी थीं तथा भाटी राजपूत थीं।

बाड़मेर के अन्य मंदिर
● विरात्रा माता का मंदिर (चौहटन), नागणेची माता का मंदिर (नागाणा गाँव), मल्लीनाथ मंदिर (तिलवाड़ा), ब्रह्मा जी का मंदिर (आसोतरा), आलम जी का मंदिर, हल्देश्वर महादेव मंदिर (पीपलूद)


पाली के मंदिर


जैन मंदिर (रणकपुर)
● यह मंदिर अपनी अद्भुत शिल्पकला एवं भव्यता के लिए विख्यात है।
● यह मंदिर प्रथम जैन तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित है।
● इस मंदिर का निर्माण महाराणा कुंभा के शासनकाल में (1433-1468 ई.) धरणीशाह नामक एक जैन व्यापारी ने करवाया था।
● यह मंदिर 1444 खंभों पर टिका हुआ है। इस कारण इसे 'खंभों का अजायबघर' कहा जाता है।
● इस मंदिर के मूल गर्भगृह में आदिनाथ की चार मुख वाली मूर्ति प्रतिष्ठापित है। इसलिए यह मंदिर 'चौमुखा मंदिर' कहलाता है।

पाली के अन्य मंदिर
● निम्बों का नाथ, सोमनाथ मंदिर, रामदेव जी का मंदिर (बिराँटिया खुर्द), आशापुरा माता का मंदिर (नाडोल)


सिरोही के मंदिर


देलवाड़ा जैन मंदिर (सिरोही)
● देलवाड़ा के जैन मंदिर सिरोही जिले में आबू पर्वत पर स्थित है।
● यहाँ के जैन मंदिरों में दो मंदिर प्रमुख हैं।
● पहला मंदिर प्रथम जैन तीर्थंकर ऋषभदेव को समर्पित है। इसका निर्माण 1031 ई. में गुजरात के चालुक्य शासक भीमदेव के मंत्री विमलशाह ने बनवाया था। इस मंदिर को विमलवसाही के नाम से जाना जाता है।
● दूसरा मंदिर 22वें जैन तीर्थंकर नेमिनाथ को समर्पित है। इसका निर्माण 1230 ई. में वास्तुपाल व तेजपाल द्वारा करवाया गया था। इस मंदिर को लूणवसाही के नाम से जाना जाता है।
● इस मंदिर के मंडप, स्तम्भों, छतरियों तथा वेदियों के निर्माण में श्वेत पत्थर पर बारीकी से खुदाई की गई है।
● इस मंदिर के रंग-मण्डप व नवचौकी की कलात्मकता अद्भुत है।

सिरोही के अन्य मंदिर
● अचलेश्वर महादेव मंदिर, सारणेश्वर मंदिर, वशिष्ठ मंदिर, अर्बुदा माता मंदिर (आबू), कुँवारी कन्या का मंदिर।


बाराँ के मंदिर


शिव मंदिर(भण्डदेवरा)
● यह मंदिर पंचायतन शैली में बना हुआ है।
● बाराँ के रामगढ़ में स्थित भण्डदेवरा का शिव मंदिर ‘हाड़ौती के खजुराहो’ के रूप में प्रसिद्ध है।
● इसकी वास्तुकला की शैली खजुराहो शैली से मिलती-जुलती है, इसी लिए इसे ‘राजस्थान का मिनी खजुराहो’कहा जाता है।
● इसका निर्माण 10वीं सदी में मेदवंशीय राजा मलयवर्मा ने करवाया था।
● यहाँ प्रसाद के तौर पर, एक देवता को मिठाई व सूखे फल चढ़ाए जाते हैं तथा दूसरे देवता की सेवा में मांस मदिरा प्रस्तुत किया जाता है।

बाराँ के अन्य मंदिर  
● ब्राह्मणी माता का मंदिर, गडगच्च देवालय(अटरू), कल्याणमल का मंदिर, प्यारे रामजी का मंदिर, फूलदेवरा का शिवालय।


झालावाड़ के मंदिर


सूर्य मंदिर (झालरापाटन)
● 10वीं शताब्दी में बना यह भगवान शिव को समर्पित सूर्य मंदिर, झालरापाटन के सर्वाधिक मनोहारी मंदिरों में से एक है।
● इस विशाल मन्दिर में सूर्य और विष्णु के सम्मिलित भाव की एक ही प्रतिमा मुख्य रथिका में है।
● इस मंदिर में गर्भगृह के बाहर शिव की ताण्डव नृत्यरत प्रतिमा और मातृकाओं की प्रतिमाएँ हैं। गर्भगृह की रथिका में त्रिमुखी सूर्य प्रतिमा है, जिसमें विष्णु का भाव मिश्रित है।
● इस मंदिर का शिखर पद्मनाभ या सूर्य मंदिर के रूप में लोकप्रिय ओडिशा के कोणार्क सूर्य मंदिर के समान उत्कीर्ण किया गया है।
●झालरापाटन, झालावाड़ का जुड़वाँ शहर है जिसे 'सिटी ऑफ बैल्स' यानी घंटियों का शहर कहा जाता है।

शीतलेश्वर मन्दिर (झालरापाटन)
● यह मंदिर झालरापाटन (झालावाड़) में चन्द्रभागा नदी के तट पर स्थित है। यह मन्दिर राजस्थान के तिथियुक्त मन्दिरों में सबसे प्राचीन (689 ई.) हैं। इस मन्दिर के भग्नावशेषों में केवल गर्भगृह और छत रहित अंतराल ही मिलता है।

झालावाड़ के अन्य मंदिर
● कालिका मंदिर, सात सहेली मंदिर (झालरापाटन), वराह मंदिर।


जोधपुर के मंदिर


सच्चियाय माता मन्दिर, ओसियां
● सच्चियाय माता का बारहवीं सदी का विशाल और भव्य मन्दिर ओसियां (जोधपुर) में स्थित है।
● यह मंदिर गुर्जर-प्रतिहार शैली में बना हुआ है।
● इस पंचायतन शैली के मन्दिर के कोनों पर विष्णु, शिव व सूर्य के मन्दिर बने हुए हैं।
● सच्चियाय माता हिन्दुओं और ओसवाल समाज दोनों की पूज्य देवी है।
● ओसियां के वैष्णव मंदिरों में हरिहर मंदिर व सूर्य मंदिर प्रमुख हैं।
● जैन मंदिरों में महावीर जी का मंदिर तथा शाक्त मंदिरों में पीपला माता एवं सच्चियाय माता के मंदिर प्रमुख है।
● ओसियां के मन्दिरों के दरवाजों पर पौराणिक तथा लोक कथाओं का चित्रण किया गया है। यहाँ 8वीं सदी के बने वैष्णव व जैन मंदिर समूह गुर्जर-प्रतिहार कला के प्रमुख केन्द्र थे।
जोधपुर के अन्य मंदिर 
● महामंदिर, रातानाडा का गणेश मंदिर, मूथाजी का मंदिर, अचलनाथ शिवालय, कुन्जबिहारी मंदिर, रसिक बिहारी मंदिर, रावण का मंदिर, 33 करोड़ देवी-देवता की साल, तीजा मांजी का मंदिर, ज्वालामुखी मंदिर, गंगश्यामजी का मंदिर, घनश्यामजी का मंदिर, सीताराम मंदिर, राजरणछोड़ जी का मंदिर, उदयमंदिर, उष्ट्रवाहिनी एवं हिंगलाज माता का मंदिर, खरानना देवी का मंदिर, संतोषी माता का मंदिर।


जैसलमेर के मंदिर


तनोट माता मंदिर
● तनोट माता का मंदिर तनोट (जैसलमेर) में स्थित है।
● इस मंदिर का निर्माण तणुराव भाटी (तन्नूजी) ने वि.सं. 828 में करवाया था।
● तनोट माता को हिंगलाज माता का पुनर्जन्म माना जाता है।
   इस मंदिर में यहाँ के गाँवों के लोग तथा विशेषकर,बीएसएफ के जवान पूर्ण श्रद्धा के साथ पूजा अर्चना करते हैं।

जैसलमेर के अन्य मंदिर
● नीलकण्ठ महादेव, हिंगलाज देवी मंदिर।


अलवर के मंदिर


भर्तृहरि का मंदिर
● अलवर के लोक देवता भर्तृहरि एक राजा थे। उनके जीवन के अन्तिम वर्ष यहीं बीते थे।
● भर्तृहरि के मंदिर में एक अखण्ड ज्योत सदैव प्रज्वलित रहती है।
● महाराजा जयसिंह ने 1924 ई. में भर्तृहरि के मंदिर को नया स्वरूप दिया।
● भर्तृहरि के मंदिर में मुख्य मेला भाद्रपद की अष्टमी को लगता है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु बाबा भर्तृहरि की आराधना करने आते हैं।
● भर्तृहरि के मंदिर के पास में ही हनुमान मंदिर, शिव मंदिर और श्रीराम मंदिर स्थित है।

अलवर के अन्य मंदिर
● नृत्य गणेश, नीलकण्ठ महादेव मंदिर, पाण्डुपोल हनुमान जी का मंदिर, धोलागढ़ देवी का मंदिर।


भरतपुर के मंदिर


गंगा मंदिर
● यह मंदिर राजपूत मुगल तथा द्रविड़ स्थापत्य शैली का सुन्दर मिश्रण है।
● यह मंदिर महाराजा बलवंत सिंह द्वारा 1845 ई. में बनाना शुरू किया गया था, जिसका निर्माण कार्य 90 वर्षों तक चला।
● बलवंत सिंह के उत्तराधिकारी राजा बृजेन्द्र सिंह ने इस मंदिर में देवी गंगा नदी की मूर्ति की स्थापना की थी।
● ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर के निर्माण के लिए, राज्य के सभी कर्मचारियों तथा समृद्ध लोगों ने एक माह का वेतन दान किया था।
● यहाँ मुख्य आकर्षण भगवान कृष्ण, लक्ष्मीनारायण और शिव पार्वती की मूर्तियाँ हैं।
● गंगा सप्तमी और गंगा दशहरा के अवसर पर यहाँ बड़ी संख्या में लोग आते हैं।

भरतपुर के अन्य मंदिर
● लक्ष्मण मंदिर।


दौसा के मंदिर


हर्षद माता का मंदिर(आभानेरी)
● आभानेरी नामक स्थान पर स्थित हर्षतमाता का मंदिर गुर्जर-प्रतिहार कालीन कला का उत्कृष्ट उदाहरण है।
● मूलत: यह एक विष्णु मंदिर था।
● 8वीं  9वीं सदी में गुर्जर प्रतिहार शासकों द्वारा निर्माण करवाया गयाथा।
● इस मंदिर के गर्भगृह में देवी हर्षद माता की प्रतिमा प्रतिष्ठित होने केकारण इसका नामकरण हर्षद माता मंदिर किया गया परन्तु मूलतयहमंदिर भगवान विष्णु का मंदिर है।
● ऐसी मान्यता है कि देवी हमेशा हँसमुख प्रतीत होती है और भक्तों को खुश रहने का आशीर्वाद प्रदान करती है।

दौसा के अन्य मंदिर
● मेहंदीपुर बालाजी का मंदिर, बेजनाथ मंदिर, गुप्तेश्वरजी का मंदिर।


डूँगरपुर के मंदिर


बेणेश्वर मंदिर
● यह मंदिर सोम व माही नदियों के तट पर स्थित हैं।
● इस अँचल के सर्वाधिक पूजनीय शिवलिंग बेणेश्वर मंदिर में स्थित है।
● सोम और माही नदियों के तट पर स्थित पाँच फीट ऊँचा ये स्वयंभू शिवलिंग शीर्ष से पाँच हिस्सों में बँटा हुआ है।
● बेणेश्वर मंदिर के पास स्थित विष्णु मंदिर जिसका निर्माण मावजी की बेटी, जनककुँवरी द्वारा 1793 ई. में करवाया गया था।
● मावजी के दो शिष्य अजे और वाजे ने लक्ष्मी नारायण मंदिर का निर्माण किया।
● इन मंदिरों के अलावा भगवान ब्रह्मा का मंदिर भी है।
● माघ शुक्ल पूर्णिमा (फरवरी) को यहाँ सोम व माही नदियों के संगम पर विशाल मेला लगता हैं।

डूँगरपुर के अन्य मंदिर
● देवसोमनाथ मंदिर, गवरीबाई का मंदिर, धनमाता एवं कालीमाता मंदिर, विजय राज राजेश्वर मंदिर, श्रीनाथ मंदिर।


जालोर के मंदिर


सुंधा माता मंदिर
● सुंधा माता का मंदिर सुंधा पर्वत के ऊपर स्थित है।
● यह मंदिर समुद्र तल से ऊपर 1220 मीटर की ऊँचाई पर बनाया गया है।
● इस मंदिर में चामुंडा देवी की एक प्रतिमा है।
● मंदिर के सफेद संगमरमर के बने खंभे माउंट आबू के दिलवाड़ा मंदिर की याद दिलाते हैं।
● इस मंदिर में ऐतिहासिक महत्त्व के कुछ शिलालेख हैं।

जालोर के अन्य मंदिर –
● चामुण्डा मंदिर (आहोर), पातालेश्वर मंदिर (सेवाड़ा), वराह श्याम मंदिर (भीनमाल), क्षेमकरी माता का मंदिर (भीनमाल)।    


करौली के मंदिर


कैला देवी मन्दिर (करौली)
● कैला देवी का मंदिर करौली के त्रिकुट पर्वत की पहाड़ियों के बीच कालीसिंध नदी के किनारे पर बना हुआ है।
● यह मंदिर देवी के नौ शक्ति पीठों में से एक माना जाता है। मुख्य मन्दिर में कैलादेवी (महालक्ष्मी) एवं चामुण्डा देवी की प्रतिमाएँ स्थापित हैं।
● धार्मिक आस्था के प्रमुख केन्द्र के रूप में प्रतिष्ठित इस मन्दिर में लाखों दर्शनार्थी प्रतिवर्ष आते हैं। इसलिए यहाँ लगने वाले मेले को लक्खी मेला कहा जाता है। इस मेले में लांगुरिया गीत गाये जाते हैं।
● यहाँ एक भैरू मन्दिर और हनुमान मन्दिर (जिसे यहाँ के लोग लांगुरिया नाम से पुकारते हैं) स्थित है।

श्री महावीरजी मंदिर
● श्री महावीरजी का यह मंदिर 19वीं सदी में बना है, जो कि एक जैन तीर्थस्थल है।
● प्रत्येक वर्ष यहाँ चैत्र शुक्ल त्रयोदशी से वैशाख कृष्ण प्रतिपदा तक (मार्च-अप्रैल), एक मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें हजारों जैन श्रद्धालु आते हैं।

करौली के अन्य मंदिर
● मदनमोहन जी का मंदिर।


बीकानेर के मंदिर


करणी माता मंदिर(देशनोक)
●यह मंदिर पर्यटकों में ‘टैम्पल ऑफ रैट्स’ के नाम से मशहूर है।
●यह मंदिर बीकानेर से 30km की दूरी पर देशनोक गाँव में है।
●इस मंदिर के गर्भगृह में करणी माता की मूर्ति स्थापित है।
●करणी माता मंदिर का द्वार सफेद संगमरमर से बनी एक सुंदर संरचना है।
●हजारों चूहों को पवित्र मानकर, इस मंदिर में भक्त लोग लड्‌डू व दूध की बड़ी परातें चढ़ाते हैं, जिन्हें चूहे खाते व पीते हैं।

बीकानेर के अन्य मंदिर
●कपिलमुनि मंदिर (कोलायत), हेरम्ब गणपति मंदिर, भैरव मंदिर (कोडमदेसर)।


टोंक के मंदिर


डिग्गी कल्याण जी मंदिर
● श्री डिग्गी कल्याण जी का यह मंदिर 5600 वर्षों पुराने हिंदू मंदिरों में से एक है।
● श्री कल्याण जी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है।
●यह मंदिर टोंक से लगभग 60km की दूरी पर स्थित है। मंदिर का भव्य शिखर 16 स्तम्भों पर आधारित है।

टोंक के अन्य मंदिर
● भैरू मंदिर (मालपुरा)।


सवाई माधोपुर के मंदिर


गणेश मन्दिर, रणथम्भौर
● रणथम्भौर के किले में स्थित त्रिनेत्र गणेश (रणतभँवर गजानन) मंदिर देशभर में विख्यात है।
● इस मंदिर में सिन्दूर लेपन की मात्रा अधिक होने के कारण मूर्ति का वास्तविक स्वरूप जानना कठिन है, पर इतना निश्चित है कि गणेशजी के मुख की ही पूजा की जाती है। गर्दन, हाथ, शरीर, आयुध व अन्य अवयव इस प्रतिमा में नहीं है।
● इस मंदिर में विवाह आदि मांगलिक अवसरों पर गणेश जी को प्रथम पत्रिका पहुँचाकर निमन्त्रित करने की सुदीर्घ परम्परा है।

सवाई माधोपुर के अन्य मंदिर
●काला-गौरा भैरव मंदिर, मेहन्दीपुर बालाजी का मंदिर।


राजसमंद के मंदिर


श्रीनाथ जी मंदिर (नाथद्वारा)
● यह मंदिर राजसमन्द जिले के श्रीनाथद्वारा में स्थित है।
● यह मन्दिर पुष्टिमार्गीय वैष्णवों का प्रमुख तीर्थस्थल है।
● यहाँ कृष्ण के बालरूप की पूजा की जाती है।
● जब औरंगजेब द्वारा हिन्दू मूर्तियों एवं मन्दिरों को तुड़वाने पर मथुरा से दाउजी महाराज के नेतृत्व में वैष्णव भक्त श्रीनाथ जी की मूर्ति सिहाड़ (आधुनिक नाथद्वारा) लाये थे। जहाँ महाराणा राजसिंह ने उन्हें शरण देकर यहाँ मूर्ति को प्रतिष्ठित किया था।
● इस मंदिर में अष्टछाप कवियों के पद गाये जाते हैं, जिसे 'हवेली संगीत' कहा जाता है।
● यहाँ श्रीनाथजी के स्वरूप के पीछे कृष्णलीला विषयक पट लगाया जाता है, जिसे 'पिछवाई' कहा जाता है।

राजसमन्द के अन्य मंदिर
● द्वारिकाधीश मंदिर (काँकरोली), चारभुजा नाथ मंदिर (गढ़बोर), कुंतेश्वर महादेव मंदिर।


नागौर के मंदिर


● दधिमाता का मंदिर (गोठ-मांगलोद), कैवाय माता मंदिर (किणसरिया), तेजाजी मंदिर (खड़नाल), गुसाई मंदिर (जुंजाला), चारभुजा मंदिर (मेड़ता), बंशी वाले का मंदिर, कैकीन्द या जसनगर का नीलकण्ठेश्वर मंदिर।


भीलवाड़ा के मंदिर


● सवाई भोज मंदिर (आसींद), बाईसा महारानी मंदिर, धनोप माता का मंदिर, हरणी महादेव मंदिर, शाहपुरा का रामद्वारा, तिलस्वा महादेव मंदिर, बाणमाता शक्ति पीठ (माण्डलगढ़)।


धौलपुर के मंदिर


● सैपऊ महादेव मंदिर, भूतेश्वर महादेव मंदिर (बसेड़ी)।


बाँसवाड़ा के मंदिर


● घोटियाअंबा मंदिर, ब्रह्मा जी का मंदिर (छीछ), त्रिपुरा सुंदरी मंदिर (तलवाड़ा), अर्थूना के जैन मंदिर, नंदिनी माता तीर्थ (बड़ोदिया), घूणी के रणछोड़जी मंदिर।


झुंझुनूँ के मंदिर


● राणी सती का मंदिर, लोहार्गल मंदिर, रघुनाथ का मंदिर, द्वारकाधीश मंदिर (नवलगढ़), जगदीश मंदिर (चिड़ावाँ), राणी सती का मंदिर, शारदा देवी मंदिर (पिलानी)।


सीकर के मंदिर


● खाटू श्यामजी का मंदिर, जीणमाता का मंदिर, हर्षनाथ मंदिर, शाकंभरी देवी मंदिर।


चूरू के मंदिर


● सालासर हनुमान जी मंदिर, तिरुपति बालाजी का मंदिर, गोगाजी की जन्मस्थली (ददरेवा),


बूँदी के मंदिर


● प्राकृतिक शिव मंदिर, रामेश्वरम केशवराय महादेव मंदिर।


कोटा के मंदिर


● कंसुआ का शिवमंदिर, चारचौमा शिवालय, बूढ़ादीत का सूर्य मंदिर, मथुरेशजी का मंदिर, गेपरनाथ महादेव मंदिर, विभीषण मंदिर (कैथून), काकूनी मंदिर। 

 II. राजस्थान के प्रमुख दुर्ग

 

महत्त्वपूर्ण तथ्य- 
● राजस्थान में दुर्गों के स्थापत्य के विकास का प्रथम उदाहरण कालीबंगा की खुदाई में मिलता है। 
● सातवीं से तेरहवीं शती तक का काल राजस्थान में स्थापत्य की दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण रहा है। 
● सम्पूर्ण देश में राजस्थान वह प्रदेश है जहाँ पर महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के बाद सर्वाधिक गढ़ और दुर्ग बने हुए हैं। 
● शुक्रनीति के अनुसार राज्य के सात अंग माने गए हैं जिनमें दुर्ग भी एक है। 
● कुछ दुर्ग ऐसे भी हैं, जिन्हें दो या अधिक दुर्गों के प्रकार में शामिल किया जा सकता है, जैसे चित्तौड़ के दुर्ग को गिरि दुर्ग, पारिख दुर्ग एवं एरण दुर्ग की श्रेणी में रखा जाता है। चित्तौड़ दुर्ग सहित राजस्थान के कई दुर्गों को सैन्य दुर्ग की श्रेणी में रखा जाता है।
● भटनेर दुर्ग (हनुमानगढ़) तथा भरतपुर का लोहागढ़ दुर्ग मिट्‌टी से बने दुर्ग हैं।

शुक्र नीति के अनुसार दुर्गों के प्रकार - 09 

(1) एरण दुर्ग - वे दुर्ग, जिसके मार्ग में खाई, काँटों व पत्थरों से युक्त दुर्गम मार्ग हो। उदाहरण - जालोर दुर्ग

(2) औदुक दुर्ग - जल दुर्ग भी कहा जाता है। ऐसा दुर्ग जो विशाल जल राशि से घिरा हुआ हो। उदाहरण - गागरोन दुर्ग।

(3) पारिख दुर्ग - वह दुर्ग, जिसके चारों तरफ बहुत बड़ी खाई हो।

     उदाहरण – भरतपुर दुर्ग, जूनागढ़ दुर्ग (बीकानेर)।

(4) पारिध दुर्ग - ऐसा दुर्ग जिसके चारों तरफ ईंट, पत्थर तथा मिट्टी से बनी बड़ी-बड़ी दीवारों का विशाल परकोटा हो।

    उदाहरण - चित्तौड़ दुर्ग, जैसलमेर दुर्ग।

(5) गिरि दुर्ग - किसी उच्च गिरि या पर्वत पर अवस्थित दुर्ग।

     उदाहरण - चित्तौड़ दुर्ग, मेहरानगढ़ दुर्ग (जोधपुर) आदि।

(6) धान्वन दुर्ग - मरुभूमि (मरुस्थल) में बना दुर्ग।

    उदाहरण - जैसलमेर का दुर्ग।

(7) वन दुर्ग - सघन बीहड़ वनों में निर्मित दुर्ग।

    उदाहरण - सिवाणा दुर्ग।

(8) सैन्य दुर्ग - खंडों या ईंटों से समतल भूमि पर निर्मित दुर्ग, जहाँ युद्ध की व्यूह रचना में चतुर सैनिक निवास करते हो। इस श्रेणी में लगभग सभी दुर्ग आते हैं।

    शुक्र नीति के अनुसार सैन्य दुर्ग को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है।

(9) सहाय दुर्ग (लिविंग फोर्ट) - वह दुर्ग, जिसमें शूरवीर तथा सदा अनुकूल रहने वाले बांधव लोग रहते हो।

● राजस्थान के 6 दुर्ग यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल - 

 1. आमेर दुर्ग

 2. गागरोन दुर्ग 

 3. कुम्भलगढ़ दुर्ग

 4. जैसलमेर दुर्ग 

 5. रणथम्भौर दुर्ग

 6. चित्तौड़गढ़ दुर्ग

● ये दुर्ग जून, 2013 में नोमपेन्ह (कम्बोडिया) में हुई वर्ल्ड हेरिटेज कमेटी की बैठक में यूनेस्को साइट की सूची में शामिल किए गए।

चित्तौड़गढ़
  चित्तौड़गढ़ राजस्थान के किलों में क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा किला है। 
  यह किला गंभीरी और बेड़च नदियों के संगम पर स्थित है। 
  यह दुर्ग मेसा पठार पर स्थित है। 
●  यह राजस्थान का सबसे बड़ा ‘लिविंग फोर्ट’ है।
  वीरविनोद के अनुसार मौर्य राजा चित्रांग (चित्रांगद) ने यह किलाबनवाकर अपने नाम पर इसका नाम चित्रकोट रखा था, उसी का परिवर्तित नाम चित्तौड़ है। 
●  दिल्ली से मालवा और गुजरात जाने वाले मार्ग पर अवस्थित होने के कारण मध्यकाल में इस किले का सामरिक महत्त्व था। 
●  इस किले में इतिहास के तीन प्रसिद्ध साके हुए – 

     1. पहला साका 1303 ई. में अलाउद्दीन खिलजी के समय।

     2. दूसरा साका 1535 ई. में गुजरात के शासक बहादुरशाह के समय।

     3. तीसरा साका 1568 ई. में अकबर के आक्रमण के समय हुआ था। 

●  चित्तौड़गढ़ में इतिहास प्रसिद्ध साकों में 1303 ई. का रानी पद्मिनी का जौहर और 1535 ई. का रानी कर्णावती का जौहर मुख्य है। 
●  अलाउद्दीन खिलजी ने इस दुर्ग पर अधिकार कर इसका नाम खिज्राबाद रख दिया था।
●  चित्तौड़गढ़ के लिए यह उक्ति प्रचलित है– “गढ़ तो चित्तौड़गढ़ बाकी सब  गढ़ैया”।
 चित्तौड़ के किले में प्रवेश के लिए सात प्रवेश द्वार बने हुए हैं जो क्रमश: पाड़नपोल, भैरवपोल, हनुमानपोल, गणेशपोल, जोड़लापोल, लक्ष्मणपोल और रामपोल हैं।
●  भैरवपोल व हनुमानपोल के मध्य जयमल और कल्ला राठौड़ की छतरियाँ बनी हुई हैं।
●  चित्तौड़ के किले में अनेक पुराने महल, भव्य देव मन्दिर, कीर्ति स्तम्भ, जलाशय, पानी की बावड़ियाँ, शस्त्रागार, अन्न भंडार, गुप्त सुरंग इत्यादि हैं।
●  दर्शनीय स्थल - समिद्धेश्वर मन्दिर, मीरा बाई का मन्दिर तुलजामाता का मंदिर, कालिका माता मन्दिर, नवलखा भंडार, भामाशाह की हवेली, शृंगार चंवरी प्रासादत्रिपोलिया दरवाजाकुंभश्याम मंदिरसोमदेव मंदिर,कुम्भा द्वारा निर्मित विजयस्तंभरानी पद्मिनी के महलगोराबादल केमहलचित्रांग मोरी तालाब तथा जैन कीर्ति स्तंभ उल्लेखनीय हैं।

कुंभलगढ़ (राजसमंद)
● यह दुर्ग संकटकाल में मेवाड़ के राजपरिवार का आश्रय स्थल रहा है। 
● इस दुर्ग का प्रमुख शिल्पी मण्डन था। 
● कुंभलगढ़ दुर्ग 36 किलोमीटर लम्बे परकोटे से घिरा हुआ है जो अन्तर्राष्ट्रीय रिकॉर्ड में दर्ज है। 
● कर्नल जेम्स टॉड ने कुम्भलगढ़ की तुलना सुदृढ़ प्राचीरों, बुर्जों, कँगूरों के विचारों से ‘एट्रूस्कन’ वास्तु से की है।
● यहीं उदयसिंह का राज्याभिषेक हुआ एवं महाराणा प्रताप का जन्म हुआ। इसके ऊपरी छोर पर राणा कुंभा का निवास है, जिसे ‘कटारगढ़’ कहते हैं। 
● इस किले की ऊँचाई के बारे में अबुल फजल ने लिखा है कि “यह इतनी बुलन्दी पर बना हुआ है कि नीचे से ऊपर की ओर देखने पर सिर से पगड़ी गिर जाती है।“
● दर्शनीय स्थल - झालीबाव बावड़ी, कुम्भस्वामी विष्णु मंदिर, झालीरानी का मालिया, मामादेव तालाब, उड़ना राजकुमार (पृथ्वीराज राठौड़) की छतरी आदि अन्य प्रसिद्ध स्मारक बने हुए हैं।

रणथम्भौर दुर्ग (सवाईमाधोपुर)
● इस दुर्ग का निर्माण आठवीं शताब्दी में अजमेर के चौहान शासकों द्वारा करवाया गया था। 
● एक मान्यता के अनुसार इसका निर्माण रणथान देव चौहान ने करवाया था। 
● हम्मीरदेव चौहान की आनबान का प्रतीक रणथम्भौर दुर्ग पर अलाउद्दीन खिलजी ने 1301 ई. में ऐतिहासिक आक्रमण किया था। हम्मीर विश्वासघात के परिणामस्वरूप लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ तथा उसकी पत्नी रंगदेवी ने जौहर किया। यह जौहर राजस्थान के इतिहास का प्रथम जौहर माना जाता है। 
● रणथम्भौर दुर्ग राणा हम्मीर देव चौहान के साहस का मूक गवाह है, जो 1301 ई. में अलाउद्दीन से युद्ध करते हुए अपने शरणागत धर्म के लिए बलिदान हुआ।
● रणथम्भौर दुर्ग के स्थापत्य की विलक्षण बात यह है कि इसमें गिरि दुर्ग और वन दुर्ग दोनों की विशेषताएँ विद्यमान हैं। 
● रणथम्भौर की सुदृढ़ व्यवस्था से प्रभावित होकर अबुलफजल ने लिखा है कि, “यह दुर्ग बख्तरबंद है।” 
● नौलखा दरवाजा, हाथीपोल, गणेशपोल, सूरजपोल और त्रिपोलियापोल किले के प्रमुख प्रवेशद्वार हैं।
● दर्शनीय स्थल - हम्मीरमहल, रानी महल, हम्मीर की कचहरी, सुपारी महल, 32 खम्भों की छतरी, जोगी महल, पीर सदरुद्दीन की दरगाह, गणेश मन्दिर, रानीहाड़ तालाब, लक्ष्मीनारायण मंदिर, जौरा-भौंरा महल, बादल महल, पद्मला तालाब इत्यादि स्थित है।

जैसलमेर का किला
● इस किले को सोनार का किला भी कहा जाता है। 
● राजस्थान की स्वर्णनगरी कहे जाने वाले जैसलमेर में त्रिकूट पहाड़ी पर पीले पत्थरों से निर्मित है।
● इसका निर्माण 1155 ई. में भाटी शासक राव जैसल ने करवाया था।
● इस दुर्ग के चारों ओर विशाल मरुस्थल फैला हुआ है। 
● इसके बारे में यह कहावत प्रचलित है कि, “यहाँ पत्थर के पैर, लोहे का शरीर और काठ के घोड़े पर सवार होकर ही पहुँचा जा सकता है।“
● दूर से देखने पर यह किला पहाड़ी पर लंगर डाले एक जहाज जैसा प्रतीत होता है। 
● इस किले में 99 बुर्ज हैं जिसमें अनेक छिद्र व मारक निशान बने हुए हैं। 
● दुर्ग के चारों ओर घाघरानुमा परकोटा बना हुआ है। जिसे कमरकोट अथवा पाडा कहा जाता है। 
● जैसलमेर का किला ढाई साके के लिए प्रसिद्ध है। 
● पहला साका – अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के दौरान हुआ।
● दूसरा साका – फिरोजशाह तुगलक के समय आक्रमण के दौरान हुआ। 
● तीसरा साका – 1550 में कंधार के अमीरअली ने यहाँ के भाटी शासक लूणकरण को विश्वासघात करके मार दिया था, परन्तु भाटियों की विजय होने के कारण महिलाओं ने जौहर नहीं किया। यह घटना अर्द्ध साका कहलाती है।
● किले के भीतर बने प्राचीन एवं भव्य जैन मंदिर पार्श्वनाथ और ऋषभदेव मंदिर अपने शिल्प एवं सौंदर्य के कारण आबू के देलवाड़ा जैन मंदिरों के तुल्य है। 
● इस किले को कारीगरों ने चूने के स्थान पर बड़े-बड़े पीले पत्थरों को परस्पर जोड़कर खड़ा किया है। 

● दर्शनीय स्थल - रंगमहल, मोती महल, गजविलास और जवाहर विलास प्रमुख हैं। 

● जैसलमेर के किले में हस्तलिखित ग्रंथों का एक दुर्लभ भण्डार है जिसमें अनेक ग्रंथ ताड़पत्रों पर लिखे गए हैं तथा वृहद आकार के है इसे जिनभद्र सूरी ग्रंथ भण्डार कहा जाता है। 

गागरोन का किला (झालावाड़)
●  यह किला ‘जलदुर्ग’ की श्रेणी में आता है।
● यह किला कालीसिंध व आहू नदियों के संगम पर स्थित है।
● इसका निर्माण 11वीं शताब्दी में डोड परमारों द्वारा करवाया गया था। उनके नाम पर यह डोडगढ़ या धूलरगढ़ कहलाया। तत्पश्चात् यह दुर्ग खींची चौहानों के अधिकार में आ गया। 
● यह किला अचलदास खींची की वीरता की याद दिलाता है, जो 1423 में माण्डू के सुल्तान हुशंगशाह से लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ। 
● दर्शनीय स्थल - संत पीपा की छतरी, सूफी संत मिट्‌ठे साहब (संत हमीदुद्दीन चिश्ती) की दरगाह तथा औरंगजेब द्वारा निर्मित बुलंद दरवाजा इस किले की शोभा बढ़ाते हैं।

जयगढ़ (आमेर) 

नोट:- 

● जयगढ़ का निर्माण महाराजा मानसिंह प्रथम (1589-1614) ने करवाया था। इतिहासकार जगदीश सिंह गहलोत और डॉ. गोपीनाथ शर्मा के अनुसार इस किले निर्माण मिर्जा राजा जयसिंह 1621-1667 ई. ने करवाया तथा उन्हीं के नाम पर यह जयगढ़ कहलाया। (स्रोत : राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी - डॉ. हुकुमचंद जैन, डॉ. नारायण लाल माली अध्याय-9 स्थापत्य कला की प्रमुख विशेषताएँ, किले एवं स्मारक)

 इस किले के निर्माण में विभिन्न कच्छवाहा शासकों का योगदान रहा है, इसे वर्तमान स्वरूप सवाई जयसिंह ने प्रदान किया।

● जयगढ़ राजस्थान का एकमात्र किला है, जिस पर कभी बाह्य आक्रमण नहीं हुआ।

● श्रीमती इन्दिरा गाँधी के प्रधानमंत्रित्व काल में गुप्त खजाने की खोज में इस किले के भीतर हुई व्यापक खुदाई की घटना ने जयगढ़ को देश–विदेश में चर्चित बना दिया।

● जयगढ़ के भीतर एक लघु अन्त: दुर्ग भी बना है जिसमें महाराजा सवाई जयसिंह ने अपने छोटे भाई विजयसिंह को कैद रखा था। विजयसिंह के नाम पर यह ‘विजयगढ़ी’ कहलाया। विजयगढ़ी के पार्श्व में एक सात मंजिला प्रकाश स्तम्भ है जो ‘दीया बुर्ज’ कहलाता है।

● जयगढ़ में तोपें ढालने का विशाल कारखाना था जो राजस्थान के अन्य किसी किले में नहीं मिलता है।

● इस किले में रखी ‘जयबाण’ तोप एशिया की सबसे बड़ी तोप है। जिसका निर्माण महाराजा सवाई जयसिंह ने करवाया था। 

● जयगढ़ में मध्यकालीन शस्त्राशस्त्रों का विशाल संग्रहालय बना हुआ है।

● जयगढ़ अपने विशाल पानी के टाँकों के लिए भी जाना जाता है। 

● जयगढ़ को रहस्यमय दुर्ग भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें कई गुप्त सुरंगें हैं।

●  जयगढ़ के भवनों में जलेब चौक, दीवान–ए–आम (सुभट निवास), दीवान–ए–खास (खिलबत निवास), ललित मन्दिर, विलास मन्दिर, लक्ष्मी निवास, सूर्य मन्दिर, आराम मन्दिर, राणावतजी का चौक आदि मुख्य हैं।

●  किले में राम, हरिहर व काल भैरव के प्राचीन मन्दिर भी बने हुए हैं। आराम मन्दिर के सामने मुगल उद्यान शैली (चार–बाग शैली) पर निर्मित एक मन्दिर हैं। 

सिवाणा दुर्ग (बाड़मेर)

● यह दुर्ग संकटकाल में मारवाड़ (जोधपुर) के राजाओं की शरणस्थली रहा है।,

● इस दुर्ग का निर्माण 954 ई. में वीरनारायण पँवार ने करवाया था। 

● बाड़मेर में छप्पन के पहाड़ पर स्थित सिवाणा का दुर्ग इतिहास प्रसिद्ध है। इसे ‘अणखलो सिवाणो’ दुर्ग भी कहते हैं। 

● अलाउद्दीन खिलजी के काल में यह दुर्ग जालोर के राजा कान्हड़दे के भतीजे शीतलदेव के अधिकार में था। 

● अलाउद्दीन खिलजी ने 1310 ई. के लगभग सिवाणा के किले पर आक्रमण किया, जिसमें वीर शीतलदेव वीरगति को प्राप्त हुए तथा दुर्ग पर खिलजी का अधिकार हो गया।

● अलाउद्दीन खिलजी ने इसका नाम खैराबाद रखा। 

● राव मालदेव ने गिरी सुमेल के युद्ध के बाद शेरशाह की सेना द्वारा पीछा किए जाने पर सिवाणा दुर्ग में आश्रय लिया था। 

● चन्द्रसेन ने सिवाणा के दुर्ग को केन्द्र बनाकर मुगलों के विरुद्ध संघर्ष किया था।

तारागढ़ का किला (बूँदी) 

● यह गिरि दुर्ग है। 

● यह किला पर्वत की ऊँची चोटी पर तारे के समान दिखाई देने के कारण तारागढ़ के नाम से प्रसिद्ध है।  

● इस किले का निर्माण चौदहवीं शताब्दी में राव बरसिंह ने मेवाड़, मालवा और गुजरात की ओर से संभावित आक्रमणों से बूँदी की रक्षा करने के लिए करवाया था।

● वीर विनोद के अनुसार महाराणा क्षेत्रसिंह (1364–1382 ई.) बूँदी विजय करने के प्रयास में मारे गए थे। उनके पुत्र महाराणा लाखा काफी प्रयत्नों के बावजूद भी बूँदी पर अधिकार न कर सके तो उन्होंने मिट्‌टी का नकली दुर्ग बनवा उसे ध्वस्त कर अपनी प्रतिज्ञा पूरी की, लेकिन नकली दुर्ग की रक्षा के लिए भी कुम्भा हाड़ा ने अपने प्राणों की बाजी लगा दी।

● दर्शनीय स्थल – छत्र महल, अनिरुद्ध महल, फूल महल, बादल महल, चौरासी खम्भों की छतरी, फूल सागर व नवल सागर सरोवर आदि। 

● इस किले में शिकार बुर्ज व गंर्भ गुंजन तोप है।

नाहरगढ़ का किला (जयपुर)

● इस किले को ‘सुदर्शनगढ़’ भी कहते हैं। 

● यह किला जयपुर में अरावली पर्वतमाला की पहाड़ी पर स्थित है। 

● इसका निर्माण सवाई जयसिंह ने मराठा आक्रमणों से बचाव के लिए करवाया था। 

● इस किले का नाम नाहरसिंह भोमिया के नाम पर पड़ा। 

● ऐसी मान्यता है कि नाहरगढ़ के निर्माण के समय जुंझार नाहरसिंह ने किले के निर्माण में विघ्न उपस्थित किया, तब तान्त्रिक रत्नाकर पुण्डरीक ने नाहरसिंह बाबा को अन्यत्र जाने के लिए राजी कर लिया और उनका स्थान ‘अम्बागढ़’ के निकट एक चौबुर्जी गढ़ी में स्थापित कर दिया, जहाँ वे आज भी लोकदेवता के रूप में पूजे जाते हैं। 

● इस किले में सवाई माधोसिंह ने अपनी नौ पासवानों के लिए एक जैसे नौ महलों का निर्माण करवाया था।

तारागढ़ (अजमेर)

● इसे ‘गढ़ बीठली’ तथा ‘अजयमेरु’ के नाम से भी जाना जाता है। 

● कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार इस दुर्ग का निर्माण चौहान शासक अजयपाल ने करवाया। 

● शाहजहाँ के शासनकाल में विट्‌ठलदास गौड़ यहाँ का दुर्गाध्यक्ष था और संभव है कि उस पराक्रमी योद्धा के नाम पर ही इस किले का नाम गढ़बीठली पड़ा हो। 

● तारागढ़ के भीतर 14 विशाल बुर्जें हैं जिनमें घूंघट, गूगड़ी, फूटी बुर्ज, बाँदरा बुर्ज, इमली बुर्ज, खिड़की बुर्ज और फतेह बुर्ज प्रमुख हैं। 

● तारागढ़ दुर्ग को 1832 ई. में भारत के गवर्नर जनरल विलियम बैंटिक ने देखा तो उनके मुँह से निकल पड़ा– “ओह! दुनिया का दूसरा जिब्राल्टर”।

मेहरानगढ़ (जोधपुर)

● इस दुर्ग को मयूरध्वजगढ़ व गढ़चिंतामणि भी कहा जाता है। 

● यह दुर्ग चिड़ियाटूँक पहाड़ी पर बना हुआ है। 

● यह गिरि दुर्ग की श्रेणी में आता है। 

 इस दुर्ग का निर्माण 1459 ई. में राव जोधा ने करवाया था।

● मेहरानगढ़ दुर्ग में लम्बी दूरी तक मार करने वाली अनेक प्राचीन तोपें हैं, जैसे– किलकिला, शंभुबाण, गजनीखान, जमजमा, कड़क बिजली, नुसरत, गुब्बार, धूड़धाणीद, बिच्छू बाण, मीर बख्श, रहस्य कला तथा गजक। 

● लाल बलुआ पत्थर से निर्मित मेहरानगढ़ के महल राजपूत स्थापत्य कला के श्रेष्ठ उदाहरण हैं। 

● दर्शनीय स्थल - मोती महल, फतह महल, फूल महल, सिणगार महल, चामुण्डा माता, मुरली मनोहर व आनंदघन के प्राचीन मंदिर स्थित है। 

● यहाँ पर तखत विलास, चोखेलाव महल, बिचला महल, सिणगार चौकी (शृंगार चौकी) जैसी शानदार इमारतें भी दुर्ग की शोभा बढ़ाती है।

● महाराजा मानसिंह द्वारा स्थापित ‘पुस्तक प्रकाश’ नामक पुस्तकालय वर्तमान में भी कार्यरत है। 

चूरू का किला 

● इस दुर्ग का निर्माण ठाकुर कुशाल सिंह ने 1739 ई. में करवाया था। 

● 1814 ई. में बीकानेर राज्य की सेना ने चूरू दुर्ग को चारों ओर से घेर कर तोपों से गोलों की बरसात कर दी। 

● जवाब में दुर्ग से भी गोले बरसाए गए। कुछ समय बाद गोले बनाने के लिए शीशा समाप्त हो गया।

 ●इस पर सेठ–साहूकारों और जनसामान्य ने अपने घरों से चाँदी लाकर ठाकुर के सामने रख दी।

● जब तोपों से छूटे चाँदी के गोले शत्रु सेना पर जाकर गिरे तो शत्रु सेना हैरान रह गई और उसने जनता की भावनाओं का सम्मान करते हुए दुर्ग पर से घेरा उठा लिया। 

जूनागढ़ दुर्ग (बीकानेर)

● इस दुर्ग को लालगढ़ भी कहा जाता है।

● इस दुर्ग का निर्माण महाराजा रायसिंह ने 1589 ई. में करवाया था। 

● जूनागढ़ के आंतरिक प्रवेशद्वार सूरजपोल के दोनों तरफ जयमल मेड़तिया और फत्ता सिसोदिया की गजारूढ़ मूर्तियाँ स्थापित है। 

● सूरजपोल दरवाजे पर इस दुर्ग के संस्थापक राजा रायसिंह की प्रशस्ति उत्कीर्ण है। 

● इस किले में 37 बुर्ज हैं। 

● राजस्थान का यह एकमात्र ऐसा किला है जिसकी दीवारें, महल इत्यादि में शिल्प सौंदर्य का अद्भुत मिश्रण है। 

● दर्शनीय स्थल – गज मंदिर, रतन निवास, रंग महल, कर्ण महल, अनूप महल, छत्र निवास, लाल निवास, सरदार निवास, चीनी बुर्ज, विक्रम विलास आदि इस किले के प्रमुख वास्तु हैं। 

भैंसरोड़गढ़ का किला (चित्तौड़गढ़) 

● इसे ‘राजस्थान का वेल्लोर’ कहा जाता है।

● यह किला जल दुर्ग की श्रेणी में आता है। 

● यह दुर्ग चम्बल और बामनी नदियों के संगम स्थल पर स्थित है।

● कर्नल टॉड के अनुसार इस किले का निर्माण भैंसाशाह नामक व्यापारी तथा रोड़ा चारण ने पर्वतीय लुटेरों से अपने व्यापारिक काफिले की रक्षा हेतु करवाया था। 

● इस किले की सुंदरता से अभिभूत होकर ब्रिटिश इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने कहा था कि, “यदि उन्हें राजस्थान में एक जागीर (सम्पत्ति) की पेशकश की जाए तो वह भैंसरोड़गढ़ को ही चुनेंगे।“

● यह किला अधिकांशत: मेवाड़ के अधिकार में ही रहा।

● मराठाओं ने इस किले का घेरा डाला मगर आदिवासियों के प्रबल प्रतिरोध के कारण उन्हें पीछे हटाना पड़ा। 

अकबर का दुर्ग (अजमेर)

● इस दुर्ग को ‘अकबर का दौलतखाना’ और ‘अकबर की मैगजीन’ भी कहते हैं।

● अजमेर में स्थित इस किले का निर्माण 1570 ई. में अकबर ने करवाया था।

● इस दुर्ग का निर्माण अकबर ने ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने हेतु करवाया था। 

● यह राजस्थान का एकमात्र दुर्ग है जो मुस्लिम दुर्ग स्थापत्य पद्धति से बनवाया गया है। 

● 1576 ई. में महाराणा प्रताप के विरुद्ध हल्दीघाटी युद्ध की योजना को अन्तिम रूप इसी दुर्ग में दिया गया था। 

● ब्रिटिश राजदूत सर टॉमस रो जब भारत आया तो मुगल सम्राट जहाँगीर को अपना परिचय इसी दुर्ग में दिया। 

● 1801 ई. में अंग्रेजों ने इस किले पर अधिकार कर इसे अपना शस्त्रागार (मैगजीन) बना लिया। 

● वर्तमान में यहाँ राजकीय संग्रहालय स्थित है। 

शेरगढ़ का किला (बाराँ)

·   यह किला कोशवर्द्धन पर्वत शिखर पर निर्मित है। 

·   इस किले को शेरशाह ने (1542 ई.) ‘शेरगढ़’ नाम दिया। 

·   अकबर के शासनकाल से 1713 ई. तक यह किला मुगलों के अधिकार में रहा। 

·   मुगल सम्राट फर्रुखसियर ने इस दुर्ग को कोटा महाराव भीमसिंह को पुरस्कार स्वरूप प्रदान किया। 

·   झाला जालिमसिंह ने शेरगढ़ का जीर्णोद्धार करवाया तथा किले में महल एवं अन्य भवन बनवाए। 

·   झाला जालिमसिंह ने अपने रहने के लिए इस किले में एक भवन बनवाया जो ‘झालाओं की हवेली’ के नाम से प्रसिद्ध है।

·   जालिमसिंह ने इस किले में अमीर खाँ पिण्डारी को भी आश्रय दिया था। 

·   शेरगढ़ किले में सोमनाथ महादेव, लक्ष्मीनारायण मन्दिर, दुर्गा मन्दिर एवं चारभुजा मन्दिर बने हुए हैं। 

·   भव्य राजप्रासाद, झालाओं की हवेली, अमीर खाँ के महल, सैनिकों के आवास गृह , अन्न भंडार आदि शेरगढ़ के वैभव का बखान करते हैं। 

लोहागढ़ (भरतपुर)

● इसे ‘राजस्थान का सिंहद्वार’ कहा जाता है। 

● इसका निर्माण 1733 ई. में जाट शासक महाराजा सूरजमल द्वारा करवाया गया था। 

● भरतपुर के जाट राजाओं की वीरता एवं शौर्य गाथाओं को अपने में समेटे लोहागढ़ का किला अजेयता एवं सुदृढ़ता के लिए विख्यात है। 

● लोहागढ़ को पूर्वस्थित में कच्ची गढ़ी को विकसित कर वर्तमान रूप दिया गया। 

● किले के प्रवेशद्वार पर अष्टधातु से निर्मित कलात्मक और मजबूत दरवाजा आज भी वीरता की कहानी कहता है। इस दरवाजे को महाराजा जवाहरसिंह 1765 ई. में दिल्ली से विजय करके लाए थे। 

● इस किले की अभेद्यता का कारण इसकी चौड़ी दीवारें हैं। 

● किले की बाहरी दीवारें मिट्‌टी की बनी है तथा इसके चारों ओर एक गहरी खाई है। इस खाई में मोती झील से सुजान गंगा नहर का पानी भरा जाता था। 

● अंग्रेज जनरल लॉर्ड लेक ने 1805 ई. में अपनी विशाल सेना और तोपखाने के साथ पाँच बार इस किले पर चढ़ाई की परन्तु हर बार वह असफल रहा।

● दर्शनीय स्थल – किशोरी महल, जवाहर बुर्ज, कोठी खास, वजीर की कोठी, दादी माँ का महल, गंगा मंदिर, लक्ष्मण मंदिर आदि प्रमुख हैं।

जालोर का किला, जालोर

● इस किले का निर्माण प्रतिहार शासकों द्वारा आठवीं सदी में करवाया गया था। 

● सोनगिरि पहाड़ी पर स्थित यह किला सूकड़ी नदी के किनारे बना हुआ है। 

● शिलालेखों में जालोर का नाम जाबालिपुर और किले का नाम सुवर्णगिरि मिलता है। 

● किले के भीतर बनी तोपखाना मस्जिद, जो पूर्व में परमार शासक भोज द्वारा निर्मित संस्कृत पाठशाला थी, बहुत आकर्षक है। 

● यहाँ का प्रसिद्ध शासक कान्हड़दे चौहान (1305-1311 ई.) था, जो अलाउद्दीन खिलजी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्ति हुआ।

भटनेर का किला, हनुमानगढ़

·   इसे ‘उत्तरी सीमा का प्रहरी’ कहा जाता है।

·  यह दुर्ग ‘धान्वन दुर्ग’ की श्रेणी में आता है।

·   यह किला घग्घर नदी के मुहाने पर अवस्थित है। 

·   दिल्ली–मुल्तान मार्ग पर स्थित होने के कारण इसका सामरिक महत्त्व था।

·   जनश्रुति के इस किले का निर्माण भाटी राजा भूपत ने तीसरी शताब्दी के अन्तिम चरण में करवाया था।

·   यह किला 52 बीघा भूमि में विस्तृत है। 

·   इसमें 52 विशाल बुर्जें हैं। 

·   इस किले का निर्माण पकी हुई ईंटों और चूने से हुआ है। 

·   बीकानेर के महाराजा सूरतसिंह द्वारा 1805 ई. में मंगलवार के दिन इस किले पर अधिकार किए जाने के कारण भटनेर का नाम हनुमानगढ़ रखा तथा किले में हनुमानजी के एक मन्दिर का निर्माण भी करवाया। 

·  महमूद गजनवी ने 1001 ई. में भटनेर पर अधिकार किया था। बलबन के शासनकाल में शेरखाँ यहाँ का हाकिम था, जिसने यहीं से मंगोल आक्रमणकारियों का सफलतापूर्वक प्रतिरोध किया। 

·  शेर खाँ की कब्र आज भी किले के भीतर विद्यमान है। 

·  1398 ई. में तैमूर ने भटनेर पर आक्रमण कर लूटमार मचाई। 

·  1527 ई. में पहली बार राव जैतसी ने किले पर राठौड़ आधिपत्य स्थापित किया। हुमायूँ के भाई कामरान के आक्रमण (1534 ई.) के समय राव ने दुर्ग की रक्षार्थ अप्रतिम वीरता दिखाई, जिससे कामरान को पीछे हटना पड़ा। 

·  1549 ई. में भटनेर पर राठौड़ ठाकुरसी ने अधिकार कर लिया। 

·  1570 ई. अकबर ने भटनेर पर अधिकार कर लिया, लेकिन ठाकुरसी के पुत्र बाघा की सेवा से प्रसन्न होकर भटनेर उसको सौंप दिया। 

·  तत्पश्चात् यह किला बीकानेर के शासकों के अधिकार में रहा। भटनेर को लेकर भाटियों और जोहियों के मध्य संघर्ष चला और किले के स्वामित्व में परिवर्तन होता रहा। अंतत: 1805 ई. में यह बीकानेर के आधिपत्य में चला गया। 

नागौर का किला    

·  यह किला ‘धान्वन दुर्ग’ की श्रेणी में आता है। 

·  इस किले का निर्माता चौहान शासक सोमेश्वर के सामंत कैमास को माना जाता है।

·  इस किले की नींव 1154 ई. में रखी गई। किले का परकोटा लगभग 5000 फीट लम्बा है।

·  इस किले की प्राचीर में 28 विशाल बुर्जें बनी हुई हैं। किले के चारों ओर दोहरी प्राचीर निर्मित है। 

·  इस किले में 6 विशाल दरवाजे - सिराईपोल, बिचलीपोल, कचहरीपोल, सूरजपोल, धूपीपोल और राजपोल हैं। 

·  यह किला 2100 गज के घेरे में फैला हुआ है।

·  किले में 1570 ई. में अकबर ने प्रसिद्ध ‘नागौर दरबार’ का आयोजन किया, जहाँ अनेक राजपूत शासकों ने मुगल आधिपत्य स्वीकार किया। महाराजा गजसिंह के अनुरोध पर मुगल सम्राट शाहजहाँ ने नागौर का किला अमरसिंह को दे दिया। 

·  अमरसिंह की शूरवीरता के कारण नागौर प्रसिद्ध हो गया। 

·  जोधपुर के महाराजा अभयसिंह (1724–1748 ई.) ने इसे अपने भाई बखतसिंह को जागीर में दे दिया। इसके बाद नागौर पर अधिकांशत: राठौड़ों का ही अधिकार रहा। 

·  नागौर के किले के भीतर सुंदर भित्तिचित्र बने हुए हैं। इनमें बादल महल और शीश महल के चित्र दर्शनीय हैं। 

·  इन चित्रों में राजसी वैभव और लोक जीवन का सुंदर समन्वय दिखलाई पड़ता है। पेड़ के नीचे संगीत सुनते प्रेमी युगल, उद्यान में हास–परिहास करती रमणियाँ, राजदरबार के दृश्य, विविध नस्लों के चुस्त घोड़े, बेलबूँटों और पुष्पलताओं का चित्रण, नृत्य और गायन में तल्लीन एवं उद्यान में विहार करती नायिकाओं का चित्रण सुन्दर और कलापूर्ण हैं। 

·  मुगल बादशाह अकबर ने किले के भीतर एक सुन्दर फव्वारा बनवाया। 

·  नागौर का किला इतिहास और संस्कृति की एक अमूल्य धरोहर संजोये हुए हैं। 

बाला किला, अलवर 

·  इसे 'कुँवारा किला' कहा जाता है। 

·      बाला किला अरावली पर्वतमाला की ऊँची पहाड़ी पर बना हुआ है। 

·  इस किले का निर्माण आमेर नरेश कोकिलदेव के पुत्र अलघुराय ने 1049 ई. में करवाया था। 

·  ऐसा माना जाता है कि अलावल खाँ ने आक्रमण कर निकुम्भों को मार भगाया और 1492 ई. में कब्जा कर अरावली पर्वतमाला पर विशाल परकोटा वाला किला बनवाया। 

·  अलावल खाँ के पुत्र हसनखाँ मेवाती ने 1524 ई. में बाला किला (कुँवारा किला) और अलवर शहर का विकास किया। 

·  1527 ई. में बाबर एक सप्ताह तक अलवर के बाला किला में ठहरा था। बाबर ने अपने बेटे हुमायूँ को मत्स्य का खजाना यहीं प्रदान किया। 

·  किले की प्राचीर लगभग 9 किमी. की परिधि में है जिसमें 15 बड़ी बुर्जें बनी हुई हैं। प्राचीर में शत्रु पर गोले बरसाने के लिए छिद्र बने हुए हैं। 

·  किले की दूसरी रक्षापंक्ति के रूप में आठ बुर्जें हैं, जिनमें काबुल, खुर्द और नौगुजा बुर्ज प्रमुख हैं। 

·  किले के प्रमुख प्रवेश द्वार पश्चिम में चाँदपोल, पूर्व में सूरजपोल, दक्षिण की ओर लक्ष्मणपोल और जयपोल हैं। उत्तर की ओर अंधेरी दरवाजा है जहाँ दो पहाड़ियाँ होने के कारण सूर्य का प्रकाश नहीं पहुँचने से अन्धेरा रहता है। 

·  खानवा के युद्ध में राणा सांगा की ओर से लड़ने वाला हसन खाँ मेवाती यहीं का प्रभारी था। 

·  खानवा विजय के बाद यह किला बाबर ने अपने पुत्र हिन्दाल को दे दिया। 

·  1775 ई. से भारत की स्वाधीनता तक इस किले पर कच्छवाहों की नरूका शाखा का अधिकार रहा। 

·  किले के भीतर निकुंभ शासकों द्वारा निर्मित महल परंपरागत हिन्दू स्थापत्य के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। 

·  सलीम सागर तालाब तथा सूरजकुण्ड किले के प्रमुख जलस्रोत हैं। 

·  इस किले में सीतारामजी का मन्दिर दर्शनीय है।

विजय मन्दिर का किला (बयाना–भरतपुर)

·  इस किले का निर्माण यादववंशी राजा विजयपाल द्वारा 1040 ई. में करवाया गया था तथा इनके नाम पर विजय मन्दिर कहलाया।

·  इल्तुतमिश, बलबन, फिरोज तुगलक, राणा सांगा, मुगल एवं जाट शासक इस किले के स्वामी रहे। 

·  विजय मन्दिर किले के भीतर बने भवन हिन्दू–मुस्लिम स्थापत्य कला के समन्वय को प्रकट करते हैं। उषा मन्दिर, भीमलाट, राजप्रासाद, सैनिक आवासगृह तथा अन्य देवमन्दिर हिन्दू स्थापत्य के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। 

·  इब्राहिम लोदी के शासनकाल में बनी लोदी मीनार, बारहदरी, सराय सादुल्ला, अकबरी छतरी तथा जहाँगीरी दरवाजा आदि मुस्लिम वास्तुकला के उदाहरण हैं।

III. राजस्थान के प्रमुख महल


जयपुर के महल

आमेर का महल                                             

● आमेर की मावठा झील के पास की पहाड़ी पर स्थित महलजिसेकच्छवाहा नरेश मानसिंह प्रथम द्वारा 1592 ई. में बनाया गया था।
● यह महल हिन्दू-मुस्लिम स्थापत्य शैली का समन्वित रूप है।
● महल के मुख्य प्रवेश द्वार में प्रवेश करते ही राजपूत-मुगल शैली में बनादीवान--आम’ है जो चारों ओर से लाल पत्थरों के खम्भों की दोहरीपंक्तियों से युक्त बरामदों से घिरा है। इस विशाल द्वार को फर्ग्यूसन नेसंसार का सर्वोत्कृष्ट प्रवेश द्वार बताया है।

शीशमहल
● निर्माता - मिर्जा राजा जयसिंह।
● अन्य नाम - ‘दीवान-ए-खास’, ‘जयमन्दिर
● यह भीतरी दीवारों पर शीशे की जड़ाई के सुन्दर  बारीक काम केकारण यह ‘शीशमहल के नाम से प्रसिद्ध है।
● यह भवन दो मंजिला है भूतल पर बना जयमंदिर कहलाता है तथा प्रथममंजिल पर बने भवन को जसमंदिर कहा जाता है।
● दीवान--खास (शीश महलमें राजा अपने खास मेहमानों तथा दूसरेदेशों के राजदूतों से मिलते थे।
● कवि बिहारी ने शीशमहल को दर्पण धाम कहा।
● इसके सामने ‘बुखारा उद्यान स्थित है।
● 12 रानियों का महल शीशमहल के निकट ही आमेर दुर्ग में स्थित है।

सिटी पैलेस
● निर्माता - सवाई जयसिंह-द्वितीय
● निर्देशनकर्ता - विद्याधर भट्टाचार्य
● निर्माण वर्ष - 1729-32
● अन्य नाम – चन्द्रमहलसतखण महलराजमहलसरबता
● यह जयपुर राजपरिवार का निवास स्थान था।
● गंगोज कलश या गंगाजलि - चन्द्र महल के दीवान-ए-खास में रखे चाँदीके दो बड़े कलश।
● उदयपोल - सिटी पैलेस में प्रवेश के लिए बने 7 द्वारों में से एक द्वारजिसका निर्माण 1900 वर्ष में महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय नेकरवाया था।
● सिरह-ड्योढ़ी - सिटी पैलेस का पूर्वी मुख्य प्रवेश द्वार।
● इस महल में स्थित दीवान--आम में महाराजा का निजी पुस्तकालय(पोथीखाना) एवं शस्त्रागार है।
● इस पैलेस में रखे विश्व के सबसे बड़े चाँदी के पात्र और बीछावत परबारीक काम (सूई से बना चित्रविश्व प्रसिद्ध है। इस महल को सन् 1959में सवाई मानसिंह द्वितीय द्वारा संग्रहालय का रूप दिया गया।
● सर्वतोभद्र महल - सिटी पैलेस परिसर में स्थित इस महल को दीवाने-ए-खास भी कहा जाता है। इसी के पास तालकटोरा झील के किनारे बादलमहल स्थित है।

मुबारक महल
● निर्माता - सवाई माधोसिंह द्वितीय द्वारा।
● निर्देशनकर्ता - सर स्वींटन जैकब।
● समय – (1880 से 1922)
● स्थित - सिटी पैलेस में महल।
● इसका निर्माण रियासत के मेहमानों के ठहरने के लिए किया गया।
● यह महल मुगलयूरोपीय और राजपूत स्थापत्य कला का अद्भुतसमन्वय है।

हवामहल (जयपुर)  
● इस महल का निर्माण महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने 1799 ई. में वास्तुकार लालचंद उस्ता की देखरेख में करवाया। 
● आकार - श्रीकृष्ण के मुकुट के समान या पिरामिडनुमा।
● खिड़कियों की संख्या – 953
● आनन्द पोल - हवामहल का प्रवेश द्वार।
 पाँच मंजिला – 1. हवा मंदिर (सबसे ऊपरी), 2. प्रकाश मंदिर, 3. विचित्र मंदिर, 4. रतन मंदिर, 5. शरद मंदिर (सबसे निचली) 
● हवा महल को वर्ष 1968 में संरक्षित स्मारक घोषित किया गया।  

जलमहल
● अवस्थिति - जयपुर-आमेर मार्ग पर मानसागर झील में स्थित।
● निर्माता - सवाई जयसिंह-द्वितीय
● यह पानीप्रकृति और प्राचीनता का अनूठा संगम है।
● कहा जाता है कि सवाई जयसिंह ने अश्वमेध यज्ञ में आमंत्रित ब्राह्मणोंके भोजन  विश्राम की व्यवस्था इसी महल में कराई थी।
● सवाई प्रतापसिंह ने इन महलों को आधुनिक रूप दिया।

सिसोदिया रानी का महल
● निर्माता - सवाई जयसिंह (द्वितीय)।
● स्थित - जयपुर
● यह 1728 में ‘सिसोदिया रानी चन्द्र कुँवरी’ के लिए बनाया गया।
● महल की भीतरी दीवारों पर म्यूरल पेंटिंग में शिकार के दृश्य औरराधा-कृष्ण के चित्र बने हुए हैं।
● इसी महल में सिसोदिया रानी ने माधोसिंह प्रथम को जन्म दिया।

सामोद महल
● जयपुर से 40 किमीपूर्व में स्थित इस महल का निर्माण राजाबिहारीदास ने 1645 से 1652 ई. के मध्य करवाया।
● महल का मुख्य आकर्षण शीशमहल है। शीशमहल का निर्माण रावलशिवसिंह ने 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में करवाया।
● सामोद में कलात्मक एवं विशाल महलों में चित्रकारी के अलावा काँचऔर मीनाकारी का बेमिसाल काम है।
● यहाँ सुल्तान महल भी दर्शनीय है।
● सामोद में सात बहनों का मंदिर भी है।

एक समान नौ महल
● स्थित - नाहरगढ़ दुर्गजयपुर
● निर्माण - सवाई माधोसिंह द्वितीय

मोती डूँगरी महल
● निर्माता - सवाई माधोसिंह द्वारा।
● स्थित - जयपुर
● यह प्राचीन स्कॉटलैण्ड किले के रूप में निर्मित करवाया गयाइसे सवाईमानसिंह की तीसरी पत्नी गायत्री देवी ने सुसज्जित करवाया।
● यहाँ का तख्तेशाही महल प्रसिद्ध है। मोती की भाँति दिखाई देता हैतख्तेशाही महल का निर्माता सवाई माधोसिंह था।
● इसकी तलहटी में गणेशजी का सुप्रसिद्ध मंदिर है।

रामबाग पैलेस
● इसे केसर बड़ारण का बाग भी कहा जाता है।
● महाराजा रामसिंह द्वारा इसे शाही मेहमानों, अतिथि राजाओं के ठहरने के लिए 1836 ई. में इसका निर्माण करवाया।

24 रानियों का महल
● स्थित - आमेर (जयपुर)

बादल महल
● स्थित - जयपुर
● निर्माण - सवाई जयसिंह-द्वितीय

अलवर के महल

विजय मंदिर पैलेस
● वर्ष 1918 में अलवर महाराजा जयसिंह द्वारा विजयसागर झील के तटपर निर्मित।
● इस महल में सीताराम का भव्य मंदिर है।
● झील के निकट बने इस मनोहारी भवन की दीवारें धार्मिक एवं पौराणिकसंदर्भों पर आधारित भित्ति चित्रों से अलंकृत हैं।

सरिस्का पैलेस
● स्थित - अलवर-जयपुर सड़क मार्ग पर अलवर से 35 किमी. दूर स्थित।
● निर्माण - अलवर के महाराजा जयसिंह द्वारा।
● जयसिंह ने इसका निर्माण ड्यूक ऑफ एडिनबर्ग की शिकार यात्रा केउपलक्ष्य में करवाया था।
● अब इसे होटल-सरिस्का पैलेस में परिवर्तित किया गया।

सिटी पैलेस (अलवर)
● इसका निर्माण राजा बख्तावरसिंह द्वारा 1793 ई. में करवाया गया था।
● इस पैलेस के एक ओर मूसी महारानी की छतरी है तथा उसके पास हीसागर झील है।
● इस महल के निर्माण में मुगल  राजपूत स्थापत्य शैली का मिश्रण देखनेको मिलता हैं। इस महल का चतुष्कोणीय प्रांगण बहुत ही भव्य है। इस महल में मुहम्मद गौरी, अकबर, जहाँगीर व औरंगजेब की तलवारें मुख्य आकर्षण है।
● इस महल में एक ऐसी म्यान है जिसमें दो तलवारें रखी जा सकती हैं।

ईटाराणा की कोठी
● स्थित - अलवर
● निर्माण - महाराजा जयसिंह द्वारा 1882 ईमें
● उत्कृष्ट जाली-झरोखों  तोरणनुमा टोडे से युक्त मनोहारी महल।

मोती की डूँगरी (अलवर)
● 1928 तक अलवर शासकों का शाही निवास स्थान।
● 1928 में महाराजा जयसिंह द्वारा इसका जीर्णोद्धार करवाया गया।

सिलीसेढ़ महल
● स्थित - सिलीसेढ़ झील, अलवर
● निर्माण - महाराजा विनयसिंह
● वर्ष - 1844
● वर्तमान में राजस्थान पर्यटन विकास निगम (RTDC) ने होटल का रूपदे दिया है।
● ध्यातव्य है कि सिलीसेढ़ झील को ‘राजस्थान का नन्दन कानन’ कहा जाता है।

अजमेर के महल

रूठी रानी का महल
● स्थित - अजमेर
● यह रानी उमादे का महल है जो राव मालदेव से रूठकर यहाँ रही।
● मुगल सम्राट जहाँगीर की बेगम नूरजहाँ जब रूठकर यहाँ चली आई तोजहाँगीर उसे मनाने इस महल में आया। इसलिए यह रूठी रानी का महलनाम से प्रसिद्ध हो गया।
● ध्यातव्य है कि रूठी रानी के अन्य महल जयसमन्द (उदयपुर) एवंमांडलगढ़ (भीलवाड़ा) में भी हैं।
● उदयपुर के रूठी रानी महल का निर्माता महाराणा जयसिंह था।

मानमहल
● स्थित - पुष्कर
● निर्माण - आमेर के मिर्जा राजा मानसिंह
● वर्तमान में ‘होटल सरोवर’ के रूप में प्रसिद्ध।

झुंझुनूँ के महल

खेतड़ी महल
● स्थित - झुंझुनूँ
● निर्माता - भोपालसिंह (खेतड़ी महाराजा)
● उपनाम – ‘राजस्थान का दूसरा हवामहल’ (खिड़कियों व झरोखों से सुसज्जित होने के कारण)
● महाराजा ने इस महल का निर्माण अपने ग्रीष्मकालीन विश्राम हेतुकरवाया गया था।
● इस बहुमंजिलें महल में लखनऊ जैसी भूल-भूलैया एवं जयपुर केहवामहल की झलक देखने को मिलती है।

जोधपुर के महल

उम्मेद भवन
● निर्माण - महाराजा उम्मेदसिंह
● इस महल की नींव 18 नवम्बर1929 को रखी गई और यह 16 वर्षोँ मेंबनकर पूरा हुआ।
● इंजीनियर - हेनरी वॉगन लेंचेस्टर।
● यह विश्व का सबसे बड़ा रिहायशी महल है।
● यह महल छीतर पत्थर से निर्मित होने के कारण छीतर पैलेस भीकहलाता है।
● इस महल का निर्माण अकाल राहत कार्यों के तहत सम्पन्न हुआ था।
● यह भवन ‘इंडो-डेको स्टाइल’ (Beaux Arts Style) में निर्मित कियागया।
● वर्तमान में उम्मेद भवन में संग्रहालयथियेटरकेन्द्रीय हॉल  उद्यानदर्शनीय हैं।
● इस भवन में घड़ियों का एक संग्रहालय भी है।

अजीत भवन
● स्थित - जोधपुर
● देश का पहला हैरिटेज होटल।

बीजोलाई के महल
● जोधपुर में कायलाना की पहाड़ियों के मध्य महाराजा तख्तसिंह द्वारानिर्मित महल।

एक थम्बा महल
● स्थित - मंडोर (जोधपुर
● यह महाराजा अजीत सिंह (1707 ई.  1724 ई.) के शासनकाल मेंलाल  बलुआ पत्थरों से निर्मित तीन मंजिला महल है।
● अन्य नाम - प्रहरी मीनार।

जनाना  मर्दाना महल
● जोधपुर में महाराजा सूरसिंह द्वारा निर्मित महल।

राईका बाग पैलेस 
● जोधपुर में महाराजा जसवंत सिंह प्रथम की रानी हाड़ी जी ने 1663 ई.में राईका बाग पैलेस का निर्माण करवाया।
● 1883 ई. में दयानंद सरस्वती ने इसी महल में बैठकर राजा को उपदेश दिया था।
● मेहरानगढ़ दुर्ग (जोधपुरमें स्थित - मोतीमहल, फूलमहल, फतेहमहल, खबका महल, बिचला महल, जनाना महल, चोखेलाव महल।

उदयपुर के महल

राजमहल
● पिछोला झील के तट पर स्थित राजमहल का निर्माण राणा उदयसिंह नेकरवाया था।
● प्रसिद्ध इतिहासकार फर्ग्यूसन ने इन्हें ‘राजस्थान के विंडसर महलों’ कीसंज्ञा दी।
● यह महल दो हिस्सों (मर्दाना महल एवं जनाना महलमें विभाजित है।
● राजमहल में मयूर चौक पर बने 5 मयूरों का सौन्दर्य अनूठा है।
● इसी महल में महाराणा प्रताप का वह ऐतिहासिक भाला रखा है जिससेहल्दीघाटी युद्ध में आमेर के मानसिंह पर प्रताप ने वार किया था।

जगनिवास पैलेस
● पिछोला झील के मध्य स्थित।
● इसका निर्माण 1746 ई. में महाराणा जगतसिंह द्वितीय द्वारा करवायागया।
● एक टापू पर बने इस महल के चारों ओर पानी है।
● प्राचीन महलों में संगमरमर का बना हुआ ‘धोला महल’ देखने योग्य है।

जगमंदिर पैलेस
● स्थित - पिछोला झील के मध्य महाराणा कर्णसिंह द्वारा इस महल कोबनाना प्रारम्भ किया गया थाइसे महाराणा जगतसिंह प्रथम ने पूर्णकरवाया था।
● जहाँगीर के विरुद्ध विद्रोह करने के बाद शहजादा खुर्रम (शाहजहाँ) नेइसी महल में शरण ली थी।
● माना जाता है कि इसी महल की भव्यता को देखकर ताजमहल कास्मारक बनाने की प्रेरणा मिली।
● इसी महल में ‘बाबा गफूर की मजार’ भी है।

सज्जनगढ़ पैलेस
● उदयपुर में फतेहसागर सागर के पीछे एक ऊँची बांसदरा पहाड़ी की चोटीपर स्थित सज्जनगढ़ पैलेस का निर्माण महाराणा सज्जनसिंह ने करवाया।
● इस महल का निर्माण महाराणा फतेहसिंह ने पूरा करवाया। इस पैलेसको ‘मानसून पैलेस’ भी कहा जाता है।
● उपनाम – उदयपुर का मुकुटमणि 

खुश महल
● उदयपुर में महाराणा सज्जनसिंह द्वारा निर्मित।
● महाराजा या राजकुमार के महल

● उदयपुर में जयसमन्द झील के किनारे महाराजा फतेहसिंह द्वारा निर्मितमहल।
● उदयपुर में स्थित अन्य महल - मोतीमहलधोलामहलसात मंजिलाप्रासाद।

झालावाड़ के महल

काष्ठ प्रासाद                                                   
● झालावाड़ में स्थित महल।
● लकड़ी से निर्मित यह महल राव राजेन्द्रसिंह द्वारा वर्ष 1936 में बनवायागया।
● यह महल लगभग 3500 वर्ग फुट में फैला हुआ है।

गढ़ पैलेस भवन
● 1838 में झाला मदनसिंह द्वारा निर्मित। गढ़ पैलेस चौकोर है तथाइसके तीन द्वार हैं।

टोंक के महल

सुनहरी कोठी
● टोंक की सुनहरी कोठी का निर्माण 1824 ई. में नवाब अमीर खाँ द्वाराप्रारम्भ किया गया जो 1834 ई. में टोंक नवाब वजीरुद्दौला खाँ के समयपूर्ण हुआ। इस कोठी की दूसरी मंजिल का निर्माण नवाब इब्राहिम अली खाँ ने 1870 ईमें करवाया था।
● 7 मार्च, 1996 को राज्य सरकार द्वारा सुनहरी कोठी को एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्मारक घोषित किया गया।
● सुनहरी कोठी में स्वर्ण की नक्काशी  चित्रकारी का कार्य नवाबइब्राहिम अली खाँ ने करवाया था। नवाब इब्राहिम अली खाँ ही सुनहरीकोठी के वास्तविक निर्माता माने जाते हैं।
● सुनहरी कोठी की दीवार एवं छतों में काँचरत्न जड़ित सोने की बेलबूटियाँफूलपच्चीकारी एवं मीनाकारी का कलात्मक स्वरूप आज भीआकर्षक है।
● पहले यह ‘शीशमहल’ के नाम से जानी जाती थी।

मुबारक महल
● इसका प्रारम्भिक नाम जरगिनार था।
● टोंक जिले में सुनहरी कोठी के दायरे में स्थित हैजिसमें बकरा ईद केअवसर पर ऊँट की कुर्बानी दी जाती थी।
● यह महल ऊँट की कुर्बानी के लिए प्रसिद्ध है।

राजमहल
● देवली (टोंक) के 12 किमी. दूर स्थित महल। यह महल बनास, खारी एवं डाई के त्रिवेणी संगम पर स्थित है।

कोटा के महल

अभेड़ा महल
● कोटा के पास चम्बल नदी के किनारे स्थित ऐतिहासिक महल अब राज्यसरकार पर्यटक केन्द्र के रूप में विकसित कर रही है।

अबली (अमलीमीणी का महल
● मुकुन्दसिंह द्वारा अपनी चहेती पासवान अबली (अमली) मीणी के लिए बनवाया गया महल।
● कर्नल जेम्स टॉड ने इस महल को राजस्थान का दूसरा या छोटाताजमहल’ की संज्ञा दी थी।

कोटा का हवामहल
● कोटा दुर्ग के मुख्य प्रवेश द्वार के पास ही महाराव रामसिंह द्वितीय द्वारानिर्मित महल।

गुलाब महल
● निर्माता - महाराव जैत्रसिंह हाड़ा

छत्रविलास महल
● निर्माता महाराव दुर्जनशाल

जगमंदिर महल 
● कोटा के किशोरसागर तालाब के बीच स्थित महल।

बूँदी के महल

राजमहल (गढ़ पैलेस)
● राजमहल में छतरमहल, दीवान-ए-आम, रंगविलास, अनिरुद्ध महल दर्शनीय हैं।

सुखमहल
● बूँदी में जैतसागर झील के निकट स्थित सुखमहल का निर्माण राजाविष्णुसिंह ने करवाया।

रतनदौलत दरीखाना
● बूँदी राजप्रासाद में स्थित महल, जिसमें बूँदी नरेशों का राजतिलक होता था।
● इसी महल के पास में चित्रशाला  अनिरुद्ध महल बने हुए हैं।

रंगमहल
● बूँदी महाराव छत्रशाल द्वारा निर्मित।
● भित्ति चित्रों के लिए प्रसिद्ध महल।
● इस महल के भित्ति चित्रों में धार्मिक, ऐतिहासिक एवं शिकार संबंधी दृश्य चित्रित किए गए हैं।
● बूँदी के अन्य महलों में दुर्गमहलउम्मेद महलछत्रमहलरंगविलासमहल आदि प्रमुख हैं।

जैसलमेर के महल

बादल विलास महल
● जैसलमेर के महारावलों के निवास हेतु सिलावटों द्वारा 1844 . मेंबादल विलास महल का निर्माण किया गया जिसे उन्होंने तत्कालीनमहारावल वैरीशाल को भेंट कर दिया। बादल विलास में बना पाँच मंजिलाताजिया टॉवर’ दर्शनीय है।
● जैसलमेर के अन्य महलों में सर्वोत्तम विलास महलराजविलास महलजवाहर विलास महल तथा रंगमहल प्रमुख हैं।

डूँगरपुर के महल

एकथम्बिया महल                                          
● डूँगरपुर के गैबसागर झील के तट पर उदयविलास राजप्रासाद में स्थितशिवालय।
● इसका निर्माण महारावल शिवसिंह द्वारा अपनी माता राजमहिषीज्ञानकुंवरी की स्मृति में करवाया।
● इसे ‘कृष्ण प्रकाश भी कहा जाता है।

जूना महल
● डूँगरपुर में धन माता पहाड़ी पर निर्मित इस महल की नींव 12वीं सदी केअंत में महारावल वीर सिंह ने रखी।
● यह महल आकर्षक भित्ति चित्रों एवं शीशे के कार्यों से अलंकृत हैं।
● 7 मंजिला महल के चौकोर खम्भेछज्जेझरोखे  बारीक काम वालीजालियाँ राजपूत स्थापत्य कला का सुन्दर नमूना पेश करती है।

बादल महल
● गैब सागर झील के किनारे स्थित इस महल का निर्माण दो चरणों मेंकिया गया था। बरामदा और जमीन तल का निर्माण महारावल गोपीनाथ नेकरवाया था। दूसरे चरण में महारावल पुंजराज ने कुछ नवीनीकरण केसाथ पहली मंजिल और गुंबद के सामने बरामदा बनवाया था। इस दोमंजिलें बादल महल में 6 गोखड़े  प्रवेश द्वार हैं।

उदयविलास पैलेस
● डूँगरपुर में गैब सागर के तट पर स्थित इस महल का निर्माण महारावलउदयसिंह ने करवाया।
● सफेद संगमरमर और नीले पत्थर से बना यह महल पाषाण कारीगरी कानायाब नमूना है।

बाँसवाड़ा के महल 

सरिता निवास
● महारावल पृथ्वीसिंह द्वारा विट्ठलदेव गाँव (बाँसवाड़ा) में निर्मित महल

नृपति निवास
● महारावल पृथ्वीसिंह द्वारा बाँसवाड़ा में कागदी नदी के तट पर स्थितमहल।

कुशलबाग महल
● स्थित - बाँसवाड़ा

राजमंदिर
● अन्य नाम - सिटी पैलेस।
● यह बाँसवाड़ा के राजाओं का शाही निवास था।

भरतपुर के महल

डीग के महल
● डीगभरतपुर जिले का महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक नगर है।
● यह नगर भव्य जल महलों के लिए प्रसिद्ध है।
● इसे जलमहलों की नगरी कहा जाता है।
● जलमहल का निर्माण सर्वप्रथम 1725 ई. में राजा बदनसिंह ने करवायाथा।
● डीग के महलों में गोपाल भवनकेशव-भवनकिशन भवननंदभवनसूरज भवन तथा सावन-भादो महल प्रमुख हैं।

मृगया महल
● स्थित - बयाना (भरतपुर)
● किशोरी महल

● स्थित – भरतपुर

चित्तौड़गढ़ के महल

पद्मिनी महल                                                     
● चित्तौड़गढ़ में रावल रतनसिंह द्वारा निर्मित।

खातड़ रानी का महल
● चित्तौड़गढ़ दुर्ग में पद्मिनी के महलों के पीछे महाराणा क्षेत्रसिंह कीपासवान कर्मा खाती के महल हैंजिसे खातड़ रानी का महल कहते हैं।
● फतेह प्रकाश महल एवं गोरा-बादल महल चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित है।

सिरोही के महल

स्वरूप निवास महल
● महाराजा स्वरूपसिंह द्वारा निर्मित।

केसर विलास महल  
● महाराजा केसरसिंह द्वारा निर्मित।

बीकानेर के महल

लालगढ़ पैलेस                                               
● इस इमारत का निर्माण वर्ष 1902 में महाराजा गंगासिंह द्वारा अपनेपिता लालसिंह की स्मृति में करवाया गया।
● डिजाइनर - सर स्विंटन जैकब
● उद्‌घाटन - ‘लालगढ़ पैलेस’ का 24 नवम्बर, 1915 को भारत के वायसराय लॉर्ड हार्डिंग्स द्वारा उद्‌घाटन किया गया था।
● इस महल में ‘अनूप संस्कृत लाइब्रेरी’ एवं ‘सार्दूल संग्रहालय’ है।
● यह पैलेस दुलमेरा की खानों से लाए गए लाल पत्थर से बनाया गया है।
● यहाँ वर्ष 1974 से ‘लालगढ़ पैलेस’ होटल प्रारम्भ किया गया।

सरदार निवास महल
● बनेड़ा (भीलवाड़ामें राजा सरदार सिंह द्वारा निर्मित।

झाली रानी का मालिया
● स्थित - राजसमन्द
● कुम्भलगढ़ में राणा कुम्भा द्वारा निर्मित।

खानपुर महल
● धौलपुर में स्थित यह महल मुगल बादशाह शाहजहाँ का आरामगाह था।
● इस महल के पास ही तालाब--शाही झील है।
● इस महल का निर्माण 1622 में जहाँगीर के मनसबदार सुलेह खान नेशाहजहाँ हेतु करवाया।

रावत पैलेस
● 
करौली में लाल  सफेद पत्थरों से निर्मित राजमहल।

 

IV. राजस्थान की प्रमुख हवेलियाँ


● राजस्थान में सेठ-साहूकारों तथा धन्ना सेठों ने अपने निवास के लिए भव्य व विशाल हवेलियों का निर्माण करवाया। 
● इन हवेलियों के द्वारों पर कलात्मक गवाक्ष, बड़ा चौक, लम्बी पोल, चौबारे और बगल में कमरे होते हैं।
● ये हवेलियाँ कई मंजिली तथा दो-दो चौक वाली होती हैं।
● शेखावाटी, ढूँढाड़, मारवाड़ तथा मेवाड़ राज्यों की हवेलियों में स्थापत्य की दृष्टि से भिन्नता है। 
● हवेलियाँ राजस्थान की विरासत में अहम भूमिका निभा रही है। इनकी स्थापत्य कला प्रदेश का प्रतिनिधित्व करती है। 
● राजस्थान सरकार भी, 1991 की भारत सरकार की हवेली होटल हेरिटेज की तर्ज पर प्राचीन हवेलियों को हेरिटेज होटल का दर्जा दे रही है। इससे राजस्थान की धरोहर के रूप में हवेलियों की पहचान बन पायेगी।

शेखावाटी क्षेत्र की हवेलियाँ
● शेखावाटी की हवेलियाँ अपने भित्तिचित्रों के लिए प्रसिद्ध है।
● शेखावाटी क्षेत्र की हवेलियाँ अधिक भव्य व कलात्मक हैं।
● नवलगढ़ की हवेलियों में रूप निवास, भगत, जालान, पोद्दार और भगेरिया की हवेलियाँ प्रसिद्ध हैं।  

झुंझुनूँ की हवेलियाँ
● बिसाऊ (झुंझूनूँ)- नाथूराम पोद्दार की हवेली, सेठ जयदयाल केड़िया की हवेली, सीताराम सिंगतिया की हवेली। 
● डूँडलोद (झुंझुनूँ)- सेठ लालचन्द गोयनका की हवेली।
● मुकुन्दगढ़ (झुंझुनूँ)- सेठ राधाकृष्ण की हवेली, केसरदेव कानेड़िया की हवेली। 
● चिड़ावा (झुंझुनूँ)- बगड़ियां की हवेली। 
● महनसर (झुंझुनूँ)- सोने-चाँदी की हवेली। 

सीकर की हवेलियाँ
● श्रीमाधोपुर (सीकर)- पंसारी की हवेली। 
● लक्ष्मणगढ़ (सीकर)- चार चौक की हवेली, चेतराम की हवेली।
● रामगढ़ (सीकर)- ताराचन्द रूइया की हवेली। 
● फतेहपुर (सीकर)- नन्दलाल देवड़ा की हवेली। 
● सीकर- गौरीलाल बियाणी की हवेली। 

जैसलमेर की हवेलियाँ
● पटवों की हवेली - इसका निर्माण गुमानचंद पटवा ने करवाया था। यह हवेली पत्थर की जाली एवं कटाई के कारण आज दुनिया भर में प्रसिद्ध हो गई हैं।
● सालिमसिंह की हवेली, नथमल की हवेली। 

बीकानेर की हवेलियाँ
● बीकानेर की हवेलियाँ लाल पत्थर से बनी है। 
● इनकी सजावट में मुगल, किशनगढ़ एवं यूरोपीय चित्रशैली प्रयुक्त की गई है। 
● बच्छावतों की हवेली- बीकानेर की प्रसिद्ध हवेली जिसका निर्माण सोलहवीं सदी के उत्तरार्द्ध में कर्णसिंह बच्छावत द्वारा करवाया गया था।  
● बीकानेर में मोहता, मूंदड़ा, रामपुरिया आदि की हवेलियाँ अपने शिल्प वैभव के कारण प्रसिद्ध है। 

जोधपुर की हवेलियाँ
● बड़े मियां की हवेली, पोकरण की हवेली, राखी हवेली। 

चूरू की हवेलियाँ
● मंत्रियों की हवेली, मालजी का कमरा, रामनिवास गोयनका की हवेली।

जयपुर की हवेलियाँ
● पुरोहित प्रतापनारायण जी की हवेली, नाटाणियों की हवेली, रत्नाकर पुण्डरीक की हवेली। 

उदयपुर की हवेलियाँ
● बागोर की हवेली- यह हवेली पिछोला झील के किनारे स्थित है। 
● इस हवेली का निर्माण ठाकुर अमरचंद बड़वा ने 18वीं शताब्दी में करवाया था। 

टोंक की हवेलियाँ
 सुनहरी कोठी– 7 मार्च, 1996 को राजस्थान सरकार द्वारा सुनहरी कोठी को एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्मारक घोषित किया गया है।
 

V. राजस्थान की प्रमुख बावड़ियाँ

 

● राजस्थान के जन-जीवन में बावड़ियाँ बहुत महत्त्वपूर्ण है।
● राजस्थान में बावड़ियाँ अपने स्थापत्य शिल्प के लिए जानी जाती हैं। 
● बावड़ियाँ गहरी, चौकोर तथा कई मंजिला होती हैं। 
● बावड़ियाँ सामूहिक रूप से धार्मिक उत्सवों पर स्नान के लिए भी प्रयोग में आती थी।  

चाँद बावड़ी/आभानेरी बावड़ी
● यह बावड़ी बाँदीकुई के निकट आभानेरी (दौसा) में स्थित है। 
 यह राजस्थान की सबसे कलात्मक बावड़ी है। 
 इसका निर्माण चाँद नामक राजा ने करवाया था। 

नौलखा बावड़ी 
 यह डूँगरपुर जिले में स्थित है। 
● इसका निर्माण महारावल आसकरण की पत्नी प्रीमल देवी ने करवाया था। 

रानीजी की बावड़ी
● यह बूँदी जिले में स्थित है। 
● इस बावड़ी का निर्माण अनिरुद्ध सिंह की पत्नी नाथावती ने 1699 ई. में करवाया था। 
 उपनाम – बावड़ियों का सिरमौर

त्रिमुखी बावड़ी
● यह उदयपुर जिले में स्थित है। 
● इसका निर्माण महाराणा राजसिंह की रानी रामरसदे ने करवाया था।

नीमराणा की बावड़ी 
● यह अलवर जिले में स्थित है। 
● इसका निर्माण राजा टोडरमल ने करवाया था। 
● यह बावड़ी नौ मंजिला है। 

बाटाडू का कुआँ 
● यह बाड़मेर जिले में स्थित है। 
 इसका निर्माण रावल गुलाबसिंह द्वारा करवाया गया था।
● उपनाम – रेगिस्तान का जलमहल 

भावलदेवी की बावड़ी 
● यह बूँदी जिले में स्थित है। 
 इसका निर्माण महाराव भावसिंह की पत्नी भावलदेवी ने करवाया था।

अन्य बावड़ियाँ

● घोसुंडी की बावड़ी – चित्तौड़गढ़      
● चाँद बावड़ी  जोधपुर    
● गुल्ला की बावड़ी – बूँदी        
● श्याम बावड़ी  बूँदी     
● व्यास जी बावड़ी – बूँदी
● फूलसागर – बूँदी
● जैत सागर – बूँदी   
● चमना बावड़ी – भीलवाड़ा     
● मेड़तणी जी की बावड़ी – झुंझुनूँ  
● तापी बावड़ी – जोधपुर  
● गोराधाय बावड़ी – जोधपुर   
● औस्ती जी की बावड़ी  शाहबाद (बाराँ)
● पन्ना मीणा की बावड़ी  आमेर (जयपुर)
● तुअरजी का झालरा – जोधपुर

 

VI. राजस्थान की प्रमुख छतरियाँ

राजपरिवार

छतरियाँ

जैसलमेर के भाटी वंश

बड़ा बाग की छतरियाँ

जोधपुर के राठौड़ वंश

मण्डोर की छतरियाँ

बीकानेर के राठौड़ वंश

देवीकुण्ड की छतरियाँ

बूँदी के हाड़ा चौहान वंश

क्षारबाग या केसर बाग की छतरियाँ

कोटा के हाड़ा चौहान वंश

क्षारबाग या केसर बाग की छतरियाँ

उदयपुर के गुहिल वंश

आहड़ की छतरियाँ

जयपुर के कच्छवाहा वंश

गैटोर की छतरियाँ

जसवंतथड़ा

● उपनाम - राजस्थान का ताजमहल।
● महाराजा जसवंतसिंह-द्वितीय की स्मृति में उनके पुत्र महाराजा सरदारसिंह द्वारा 1906 ई. में सफेद संगमरमर से निर्मित भव्य स्मारक। 
● यहाँ जोधपुर के शासकों की छतरियाँ हैं।

गोराधाय की छतरी
● स्थान - जोधपुर 
● निर्माता - महाराजा अजीतसिंह
● अपनी धायमाता गोराधाय (मारवाड़ की पन्नाधाय) की स्मृति में निर्मित छह खम्भों की छतरी।
● मारवाड़ का राष्ट्रगीत ‘धूसां’ में गोराधाय को समर्पित पंक्तियाँ जोड़ी गई।

मामा भान्जा की छतरी
● स्थान - जोधपुर दुर्ग 
● निर्माता - महाराजा अजीतसिंह 
● इसे ‘धन्ना-भीयां की छतरी’ भी कहा जाता है।

प्रधानमंत्री की छतरी
● स्थान - जोधपुर
● निर्माता - महाराजा जसवंतसिंह 
● प्रधानमंत्री राजसिंह कूंपावत की स्मृति में इस छतरी का निर्माण करवाया गया। 

बड़ाबाग की छतरियाँ
● स्थान – जैसलमेर 
● जैसलमेर के भाटी राजपरिवार की छतरियाँ हैं।
● जैसलमेर से लगभग 5 किलोमीटर दूर रामगढ़ सड़क पर महारावल जैतसिंह द्वारा आरंभ करवाया गया एवं महारावल लूणकर्ण द्वारा पूर्ण करवाया गया।

शृंगार चँवरी की छतरी
● स्थान - चित्तौड़ दुर्ग 
● यहाँ चार खम्भों की छतरी है।
● जनश्रुति के अनुसार इसी स्थान पर राणा कुम्भा की पुत्री का विवाह हुआ था।

रैदास की छतरी
● स्थान - चित्तौड़गढ़ दुर्ग 
● संत रैदास जी मीराबाई के आध्यात्मिक गुरु थे।

महासतियाँ की छतरियाँ
● स्थान – आहड़, उदयपुर
● यहाँ पर मेवाड़ के गुहिल राजपरिवार की छतरियाँ हैं। 
● यहाँ पर अमरसिंह प्रथम से मेवाड़ के महाराणाओं तक की छतरियाँ हैं। 
● महाराणा अमरसिंह प्रथम की छतरी यहाँ स्थित छतरियों में सबसे पुरानी हैं। 

राणा सांगा की छतरी
● स्थान - माण्डलगढ़ (भीलवाड़ा)। 
● निर्माता - अशोक परमार द्वारा 8 खम्भों पर निर्मित है।

जगन्नाथ कच्छवाहा की छतरी (32 खम्भों की छतरी)
● स्थान - मांडलगढ़ (भीलवाड़ा) 
● निर्माता - शाहजहाँ 
● यह छतरी हिन्दू व मुस्लिम स्थापत्य का अनूठा उदाहरण है।

राणा प्रताप की छतरी या 8 खम्भों की छतरी
● स्थान - बाण्डोली (उदयपुर)
● निर्माता - महाराणा अमरसिंह प्रथम 

गफूरबाबा की छतरी
● स्थान - जगमंदिर के समीप, उदयपुर 
● निर्माता - शाहजहाँ 

उड़ना राजकुमार (पृथ्वीराज) की छतरी (12 खम्भों की छतरी)
● स्थान - कुम्भलगढ़ दुर्ग, राजसमंद  
● इस छतरी के खम्भों पर विभिन्न प्रकार से नारियों के चित्र अंकित हैं।

नैड़ा की छतरियाँ  या मिश्रजी की छतरी
● स्थान – सरिस्का, अलवर 
● इन छतरियों की भित्तियों पर दसों अवतारों के साथ सहस्त्रबाहु का परशुराम द्वारा वध, अर्द्धनारीश्वर, समुद्र मंथन, रामलीला के प्रसंग चित्रित किए गए हैं। 
● यहाँ चित्रकारी ‘कड़ा लिपाई’ विधि के तहत की गई है। 
● छतरी की स्थापत्य राजपूत शैली के अनुसार है।

टहला की छतरियाँ
● यह छतरियाँ विशेषत: भित्ति चित्रकला की जीती-जागती प्रतिमाएँ हैं। 
● अत: यह छतरियाँ मध्यकालीन स्थापत्य कला का बेजोड़ उदाहरण है।

मूसी महारानी की छतरी (80 खम्भों की छतरी)
● स्थान - अलवर 
● निर्माता - महाराजा विनयसिंह।
● यह इंडो-इस्लामिक शैली से निर्मित दो मंजिला छतरी है।
● इस छतरी की पहली मंजिल लाल पत्थर से निर्मित है।
● दूसरी मंजिल श्वेत संगमरमर से निर्मित है। 
● इस छतरी की ऊपरी मंजिल में मुख्य छतरी के अन्दर बने रामायण और महाभारत के भित्ति चित्र संगमरमर पर उत्कीर्ण है।
● इसके आंतरिक भाग में भगवान श्रीकृष्ण, श्री रामचंद्र जी, लक्ष्मी जी और सीता माता की छवियाँ चित्रित है।
● महाराजा बख्तावर सिंह के जीवन से संबंधित चित्रण इस छतरी में विद्यमान है।

जैत्रसिंह की छतरी (32 खम्भों की छतरी)
● स्थान – रणथम्भौर, सवाई माधोपुर  
● निर्माता  हम्मीरदेव चौहान 
● अन्य नाम  न्याय की छतरी।
● यह छतरी धौलपुर के लाल पत्थर से निर्मित तथा 32 खम्भों पर टिकी है।

केसरबाग की छतरियाँ
● स्थान - बूँदी 
● बूँदी के हाड़ा राजपरिवार की 66 छतरियों का समूह है।
● इनमें से सबसे प्राचीन छतरी ‘राव दूदा’ की एवं सबसे नवीन छतरी ‘महाराव विष्णुसिंह’ की है। 
● राव राजा शत्रुशाल की मृत्यु होने पर उनकी 64 रानियों ने यहीं उनकी चिता में आहुति दी थी। 

84 खम्भों की छतरी
● स्थान – देवपुरा, बूँदी  
● निर्माता - राव राजा अनिरुद्ध सिंह
● धायभाई देवा गुर्जर की स्मृति में वर्ष 1683 ई. में निर्मित तीन मंजिला छतरी 84 खम्भों पर टिकी हुई हैं।

क्षारबाग (छत्रविलास)
● स्थान - कोटा 
● कोटा के हाड़ा राजपरिवार की छतरियाँ हैं।

गुसाइयों की छतरियाँ
● स्थान - मेड़ गाँव, विराटनगर, जयपुर 
● 16वीं व 18वीं सदी में निर्मित तीन छतरियाँ।

राजा मानसिंह की छतरी
● स्थान – आमेर, जयपुर  
● इस छतरी के चित्र राजस्थान में पाए गए भित्ति चित्रों में से प्राचीनतम (जहाँगीर कालीन) हैं।

गैटोर की छतरियाँ
● स्थान - नाहरगढ़ दुर्ग, जयपुर 
● यह छतरियाँ जयपुर के कच्छवाह शासकों की है।
● यहाँ पर सवाई राजा जयसिंह द्वितीय से लेकर सवाई राजा माधोसिंह द्वितीय तक के राजाओं और उनके पुत्रों की स्मृति में ये छतरियाँ पंचायतन शैली में निर्मित हैं। 

सवाई ईश्वरीसिंह की छतरी
● स्थान - सिटी पैलेस, जयपुर
● निर्माता - सवाई माधोसिंह प्रथम

आँतेड़ की छतरियाँ
● स्थान – अजमेर
● यह दिगम्बर जैन सम्प्रदाय की छतरियाँ हैं।

रामगोपाल पोद्दार की छतरी
● स्थान – रामगढ़, शेखावाटी
● यह छतरी शेखावाटी संभाग की सबसे बड़ी छतरी है।

जोगीदास की छतरी
● स्थान – उदयपुरवाटी, झुंझुनूँ  
● इस छतरी में चित्रकार देवा द्वारा चित्रित भित्ति चित्र शेखावाटी के प्राचीनतम भित्ति चित्र है।

शेखावाटी की अन्य छतरियाँ
● सेठ हरदयाल की छतरी 
● कल्याणसिंह की छतरी
● माधोसिंह की छतरी

महाराव बैरिसाल की छतरी
● स्थान - दूधिया तालाब, सिरोही 
● इस तालाब के किनारे सिरोही के राजाओं तथा राजपरिवार के सदस्यों की छतरियाँ बनी हुई हैं।

थानेदार नाथूसिंह की छतरी
● स्थान – शाहबाद, बाराँ 
● निर्माता - महाराव उम्मेदसिंह, कोटा 

NOTE:- फतेहपुर, सीकर- द्वारकाधीश मंदिर, सिंघानिया हवेली, नादिन ल प्रिंस कल्चर सेंटर, फतेहचंद की हवेली

अन्य छतरियाँ
● ब्राह्मण देवता की छतरी – पंचकुण्ड (मण्डोर, जोधपुर) में।
● कीरतसिंह सोढ़ा की छतरी – मेहरानगढ़ दुर्ग (जोधपुर) में।
● सेनापति की छतरी – नागौरी गेट, जोधपुर
● अजीतसिंह का देवल – जोधपुर 
● वीर दुर्गादास की छतरी – उज्जैन, मध्यप्रदेश 
● राव जैतसी की छतरी – हनुमानगढ़
● अमरसिंह की छतरी (16 खम्भों की छतरी) – नागौर दुर्ग 
● अप्पाजी सिंधिया की छतरी – ताउसर, नागौर 
● जोधसिंह की छतरी – बदनौर, भीलवाड़ा 
● चेतक की छतरी – बलीचा गाँव, राजसमन्द
● बख्तावर सिंह की छतरी – अलवर
● कुत्ते की छतरी – रणथम्भौर दुर्ग, सवाई माधोपुर
● एक खम्भे की छतरी – रणथम्भौर, सवाई माधोपुर 
● पद्मापीर की छतरी – कोटा 
● महारानी की छतरी – रामगढ़, जयपुर
● सन्तोष बावला की छतरी – पुष्कर, अजमेर
● राव शेखा की छतरी – परशुरामपुरा, झुंझुनूँ
● देवीसिंह की छतरी – सीकर
● लक्ष्मणसिंह की छतरी – सीकर
● रसिया की छतरी – टोंक
● अकबर की छतरी – बयाना दुर्ग के समीप, भरतपुर
● बंजारों की छतरी – लालसोट, दौसा    
● गंगाबाई की छतरी – गंगापुर, भीलवाड़ा
● गोपालसिंह की छतरी – करौली
● सेठों की छतरी – रामगढ़, जयपुर 
● पालीवालों की छतरियाँ – जैसलमेर
● बड़े पीर की दरगाह – नागौर

मकबरे
● अब्दुल्ला खाँ का मकबरा – अजमेर 
● गुलाब खाँ का मकबरा – जोधपुर

दरगाह
 ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह – अजमेर 
 अकबरी मस्जिद – आमेर 
 बड़े पीर की दरगाह – नागौर
● अलाउद्दीन मस्जिद – जालोर 
 नरहड़ शरीफ की दरगाह – चिड़ावा, झुंझुनूँ
 इक मीनार मस्जिद – जोधपुर
 मीठ्ठेशाह की दरगाह – गागरोन, झालावाड़ 
 गुलाम कलंदर – जोधपुर
 पीर हाजी निजामुद्दीन की दरगाह – फतेहपुर,सीकर 
 उषा मस्जिद – बयाना, भरतपुर  
 गैबी पीर की दरगाह – जहाजपुर, भीलवाड़ा 
 मीरान साहब की दरगाह – बूँदी 
 फखरुद्दीन की मस्जिद – गलियाकोट, डूँगरपुर 
 फतहजंग गुम्बद – अलवर
● जामा मस्जिद – शाहबाद, बाराँ
 शाहपीर की मजार – जालोर  
● पीर दुल्लेशाह की मीनार – केरला, पाली 
● नालियासर मस्जिद – सांभर
● शक्करबाबा शाह की दरगाह – नरहड़, झुंझुनूँ
● कबीर शाह की दरगाह – करौली
● दीवानशाह की दरगाह – कपासन
● अब्दुला पीर की मजार – भवानपुरा
● ख्वाजा फखरुद्दीन की दरगाह – सरवाड़   


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