मृदा
● पृथ्वी की भू-पर्पटी/क्रस्ट पर पाए जाने वाले असंगठित कणों के आवरण को मृदा कहते हैं।
● मृदा भूमि की ऊपरी सतह होती है, जो चट्टानों के टूटने-फूटने, जलवायु, वनस्पति तथा अन्य जैविक प्रभावों से निर्मित होती है।
● मृदा शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के ‘सोलम’ शब्द से हुई है, जिसका अर्थ होता है ’फर्श’।
● मृदा के वैज्ञानिक अध्ययन को ‘पेडोलॉजी’ कहते हैं तथा मृदा के निर्माण की प्रक्रिया को ‘पेडोजिनेसिस’ कहते हैं।
● राजस्थान की मृदा में अत्यधिक विविधता पाई जाती है। अरावली की ढालों पर पथरीली व कंकड़ युक्त मृदा, मरुस्थलीय प्रदेश में रेतीली बलुई मृदा, दक्षिण-पूर्व में काली मृदा तथा चम्बल, बनास व माही नदियों के किनारे उपजाऊ जलोढ़ मृदा पाई जाती है।
राजस्थान में मृदा का वर्गीकरण :-
वैज्ञानिक वर्गीकरण–
● मृदा की उत्पत्ति, रासायनिक संरचना तथा अन्य गुणों के आधार पर (USA) मृदा सर्वेक्षण विभाग ने वर्ष 1975 में मृदा का वैज्ञानिक वर्गीकरण प्रस्तुत किया।
● वैज्ञानिक वर्गीकरण के आधार पर पाँच प्रकार की मृदा पाई जाती है–
(1) एरिडीसोल्स (शुष्क मृदा)
● यह मृदा शुष्क जलवायु क्षेत्र अर्थात् मरुस्थलीय क्षेत्र में पाई जाती है, जहाँ तापमान तो ज्यादा होता है पर नमी कम होती है अत: यह शुष्क मृदा होती है।
● इसमें जैविक तत्त्वों का अभाव पाया जाता है।
● यह मुख्यत: पश्चिमी राजस्थान में पाई जाती है।
● इस मृदा में जल धारण क्षमता कम होती है।
● इसका उपमृदा कण ऑरथिड है, जैसे- कैल्सीऑरथिड, केम्बोऑरथिड, सेलोऑॅरथिड तथा पेलिऑरथिड।
(2) एन्टीसोल्स (रेतीली-बलुई मृदा/ पीली-भूरी मिट्टी)
● राजस्थान में सर्वाधिक विस्तार एन्टीसोल्स मृदा का है।
● यह मृदा पश्चिमी राजस्थान के भागों में विस्तृत है।
● इसके दो उपमृदाकण हैं- सामेन्ट्स और फ्लूवेन्ट्स।
● इस मृदा की जलधारण क्षमता न्यूनतम होती है।
● यह एक ऐसी मिट्टी है, जिसमें विभिन्न प्रकार की जलवायु में स्थित मृदाओं का समावेश मिलता है।
(3) इन्सेप्टीसोल्स (लाल मिट्टी)
● यह मृदा अर्द्ध शुष्क/आर्द्र जलवायु प्रदेश, अरावली पर्वतीय प्रदेश में पाई जाती है।
● यह राज्य के उदयपुर, राजसमंद, भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, सिरोही, पाली जिलों तथा झालावाड़, सवाई माधोपुर, जयपुर में कहीं-कहीं पाई जाती है।
● लौह ऑक्साइड की प्रधानता होती है। यह मक्का की खेती हेतु उपयोगी होती है।
● यह मृदा शुष्क जलवायु में कभी नहीं पाई जाती है। इसका उपमृदाकण है- उस्टोक्रेप्ट्स।
(4) एल्फीसोल्स (जलोढ़ मृदा)
● राजस्थान के पूर्वी मैदानी प्रदेशों में एल्फीसोल्स मृदा पाई जाती है।
● यह मृदा सर्वाधिक उपजाऊ मृदा होती है।
● इसमें कैल्सियम तथा फॉस्फोरस की अधिकता होती है।
● एल्फीसोल मृदा में नाइट्रोजन स्थिरीकरण तीव्र होता है।
● यह मृदा अलवर, भरतपुर, सवाई माधोपुर, जयपुर, दौसा, भीलवाड़ा, टोंक, बाँसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, उदयपुर, कोटा, डूँगरपुर, बूँदी, बाराँ, झालावाड़ जिलों में पाई जाती है।
● इसका उपमृदाकण ‘हेप्लुस्ताल्फस’ है।
(5) वर्टीसोल्स (काली मिट्टी)
● इस मृदा में अत्यधिक क्ले उपस्थित होती है। यह मृदा कोटा, बाराँ, बूँदी, झालावाड़ में प्रधान रूप से (हाडौ़ती क्षेत्र) व सवाई माधोपुर, डूँगरपुर, भरतपुर व बाँसवाड़ा के सीमित क्षेत्र में पाई जाती है।
● यह काले रंग की मृदा होती है, जो कपास हेतु उपयोगी होती है क्योंकि इसके कण बारीक होने से इसमें सर्वाधिक जलधारण क्षमता होती है।
● इस मृदा में लोहा तथा एल्युमिनियम की प्रधानता पाई जाती है।
मृदा के प्रकार एवं वितरण (Type of soil and distribution) :-
● राजस्थान की मृदा को कृषि के लिए उपयुक्ता, उपजाऊपन और अन्य विशेषताओं के आधार पर निम्न भागों में बाँटा गया हैं–
1. जलोढ़/कछारी मृदा
● यह मृदा राजस्थान के पूर्वी क्षेत्र के जिलों धौलपुर, दौसा, जयपुर, भरतपुर, सवाई माधोपुर तथा टोंक में विस्तृत हैं।
● यह मृदा राजस्थान के पूर्वी भागों में प्रधानता से पाई जाती है।
● इस मृदा में ह्यूमस, चूना और फास्फोरस अम्ल की कमी होती है।
● उत्पादकता के रूप में यह मिट्टी उत्तम होती है।
● इसका रंग कही भूरा और कही लाल होता है।
● भूरी कछारी मृदा श्रीगंगानगर के घग्घर प्रदेश, अलवर व भरतपुर में पाई जाती है।
2. लाल-लोमी मृदा
● यह मृदा डूँगरपुर तथा उदयपुर के मध्य एवं दक्षिणी भाग में पाई जाती है।
● इस मृदा का लौह अंश की उपस्थिति के कारण लाल रंग दिखाई देता है।
● इस मृदा में लौह-ऑक्साइड, चूना, पोटाश और फास्फोरस की मात्रा की कमी पाई जाती है।
● यह मृदा उपजाऊपन की दृष्टि से सामान्य होती है।
● इस मृदा में चावल, गन्ना और मक्का सामान्य रूप से उत्पादित होता है।
3. लाल-पीली मृदा
● यह मृदा अजमेर, सिरोही, सवाई माधोपुर के पश्चिमी भाग और पश्चिमी भीलवाड़ा में पाई जाती हैं। इन भागों में दोमट प्रकार की मृदा पाई जाती हैं।
● इस मृदा में अधिक समय तक मिट्टी धारण करने की क्षमता होती है।
● पीला और लाल रंग लौह अंश की प्रधानता दर्शाता है।
● इस मृदा में जैविक कार्बनिक यौगिकों की मात्रा और नाइट्रोजन की मात्रा कम होती है।
4. मध्यम प्रकार की काली मृदा
● यह मृदा राज्य में दक्षिणी-पूर्वी पठारी प्रदेश (कोटा-बूँदी-बाराँ-झालावाड़) में विस्तारित हैं।
● इस मृदा का रंग गहरे भूरे रंग से काले रंग तक होता हैं।
● कछारी मृदा मिश्रित रूप से नदियों व घाटियों में पाई जाती है।
● इस मृदा में कैल्सियम और पोटाश, पर्याप्त मात्रा में होता है तथा नाइट्रोजन, फॉस्फेट और जैविक पदार्थ कम होता है।
● यह मृदा व्यापारिक फसलें मूँगफली, कपास आदि के लिए उपयुक्त हैं।
5. लाल-काली मृदा
● यह मृदा चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, डूँगरपुर, बाँसवाड़ा और उदयपुर के पूर्वी भाग में पाई जाती हैं।
● यह मृदा लाल मालवा की काली मृदा का ही विस्तार है।
● इस मृदा में नाइट्रोजन, फॉस्फेट, कैल्सियम और कार्बनिक पदार्थों की कमी होती है। उत्पादकता में भिन्नता होती है।
● इस मृदा में सामान्यत: मक्का व कपास का उत्पादन किया जाता है।
6. भूरी रेतीली मृदा
● यह मृदा पश्चिमी राजस्थान के जालोर, बाड़मेर, पाली, जोधपुर, सिरोही, नागौर, झुंझुनूँ तथा सीकर तक फैली हैं।
● इस मृदा में रेत की प्रधानता पाई जाती है।
● इस मृदा में फॉस्फेट की मात्रा पर्याप्त रूप में होती है।
7. रेतीली मृदा
● राज्य का सम्पूर्ण/पूरा पश्चिमी भाग रेत के टीलों व रेतीली मृदा से युक्त है।
● यह मृदा थार के मरुस्थल में विस्तारित है।
● यह मृदा वायु प्रवाह द्वारा जमा हुई और वर्तमान में हवाओं के साथ स्थानान्तरित होती रहती है।
● इस मृदा में बलुई-चीका मृदा व पीली-भूरी मृदा भी उपस्थित होती हैं।
● इस मृदा के चार वर्ग–
(i) रेतीली बालू मृदा – बीकानेर, श्रीगंगानगर, जोधपुर, चूरू, जैसलमेर, बाड़मेर व झुंझुनूँ।
(ii) लाल-रेतीली मृदा – जोधपुर, नागौर, जालोर,पाली, चूरू व झुंझुनूँ।
(iii) पीली-भूरी रेतीली मृदा – पाली और नागौर।
(iv) खारी मृदा – जैसलमेर, बीकानेर, बाड़मेर व नागौर की निम्न भूमियों या गर्तों में पाई जाती है।
राजस्थान के कृषि विभाग द्वारा मृदा का वर्गीकरण :-
1. साई रोजेक्स – श्रीगंगानगर
2. रेवेरिना – श्रीगंगानगर
3. मरुस्थली मृदा – जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर, जोधपुर, सीकर, नागौर, चूरू, झुंझुनूँ, श्रीगंगानगर
4. जिप्सीफेरस – बीकानेर
5. धूसर-भूरी जलोढ़ मृदा – नागौर, पाली, सिरोही, जालोर, अजमेर
6. गैर चूना युक्त भूरी मृदा – नागौर, सीकर, झुंझुनूँ, जयपुर, अजमेर, अलवर
7. नवीन जलोढ़ मृदा – जयपुर, सवाई माधोपुर, भरतपुर, अलवर
8. पीली-भूरी मृदा – भीलवाड़ा, उदयपुर, चित्तौड़गढ़, टोंक, जयपुर, सवाई माधोपुर
9. नवीन भूरी मृदा – अजमेर एवं भीलवाड़ा
10. पर्वतीय मृदा – कोटा एवं उदयपुर
11. लाल-लोमी मृदा – बाँसवाड़ा एवं डूँगरपुर
12. काली गहरी मध्यम मृदा – भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, झालावाड़, कोटा, बूँदी, भरतपुर
13. केल्सी ब्राउन मरुस्थली मृदा – जैसलमेर एवं बीकानेर
14. मरुस्थल एवं बालुका-स्तूप – बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर, बीकानेर
नोट : रेवेरिना मृदा-
● राजस्थान में घग्घर और सतलज के मध्य के मैदान में रेवेरिना मृदा पाई जाती है, जो गेहूँ की फसल हेतु उपयोगी होती है। रेवेरिना मृदा में जब लवणता बढ़ जाती है, तो वह साईरोजेक्स कहलाती है।
● रेवेरिना और साई रोजेक्स दोनों प्रकार की मृदा श्रीगंगानगर में पाई जाती है।
मृदा की समस्याएँ :-
(A) मृदा अपरदन
● राज्य में मृदा अपरदन गंभीर समस्या है, मृदा की उर्वरता के विनाश को देखते हुए इसे रेंगती मृत्यु कहते हैं।
● वायु और जल के द्वारा मृदा की ऊपरी परत के बह जाने/उड़ जाने को मृदा अपरदन कहते हैं।
● राजस्थान में हाड़ौती के पठार में सर्वाधिक जलीय अपरदन होता है।
● राज्य के पश्चिमी क्षेत्र में वायु द्वारा मृदा का अपरदन होता है।
● मृदा अपरदन, नालीनुमा अपरदन और परत अपरदन के रूप में होता हैं।
(B) मृदा उर्वरता के ह्रास की समस्या
● फसलों के लिए मिट्टी के निरन्तर उपयोग और कृषि की विनाशकारी पद्धति को अपनाने से मिट्टी की उत्पादन क्षमता का ह्रास होता है, जिससे क्षारीयता व लवणीयता की समस्याएँ उत्पन्न होती है।
● नहरी क्षेत्रों में मृदा जलाक्रांति की समस्या से प्रभावित है।
(C) मिट्टी की लवणीयता एवं क्षारीयता की समस्याएँ
● मिट्टी में लवणीयता व क्षारीयता के कारण भूमि के उपजाऊपन में लगातार कमी आ रही है। यह एक प्रमुख समस्या है।
Note :-
● राजस्थान में सेम की समस्या से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र (हनुमानगढ़, श्रीगंगानगर) हैं।
● सेम की समस्या के निवारण हेतु अधिकाधिक वृक्षारोपण, फव्वारा सिंचाई पद्धति को बढ़ावा देना, जिससे भूमि उपजाऊपन को पुन: हासिल कर सके।
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य :-
●मृदा की लवणीयता एवं क्षारीयता की समस्या के समाधान हेतु जिप्सम का प्रयोग किया जाता है।
● काली मृदा में स्वयं जुताई का गुण पाया जाता है।
● राजस्थान में सर्वाधिक बेकार भूमि क्रमश: जैसलमेर (68.34%), बीकानेर तथा उदयपुर में है।
● राजस्थान में सर्वाधिक ‘सेम’(जलभराव) की समस्या से प्रभावित जिले – श्री गंगानगर और हनुमानगढ़ हैं।
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