प्राचीन काल में विदेशी आक्रमण
♦ प्राग्मौर्य युग में मगध सम्राटों का अधिकार क्षेत्र भारत के पश्चिमी प्रदेशोंतक विस्तृत नहीं हो पाया था। इसी कारण पश्चिमी प्रदेशों में घोरअराजकता तथा अव्यवस्था का वातावरण व्याप्त था।
♦ ऐसी स्थिति में विदेशी आक्रान्ताओं का ध्यान भारत के इस भू-भाग कीओर आकर्षित होना स्वाभाविक ही था। परिणामस्वरूप देश का यह प्रदेशदो विदेशी आक्रमणों का शिकार हुआ।
♦ इनमें पहले आने वाले पर्शिया के हखामनी नरेश थे।
ईरानी आक्रमण (हखामनी/पारसीक)
♦ छठी शताब्दी ई. पू. के मध्य साइरस द्वितीय नामक एक महत्त्वाकांक्षीव्यक्ति ने ईरान में हखामनी साम्राज्य की स्थापना की।
♦ उसके साम्राज्य की पूर्वी सीमा भारत को स्पर्श करने लगी।
♦ भारत पर प्रथम विदेशी आक्रमण ईरान (पर्शिया) के हखामनी वंश केराजाओं ने छठी शताब्दी ई. पू. में किया।
♦ भारत पर प्रथम सफल ईरानी आक्रमण साइरस के उत्तराधिकारी दारा (डेरियस) प्रथम (522-486 ई. पू.) ने किया।
♦ दारा प्रथम के तीन अभिलेखों क्रमश: बेहिस्तून, पर्सिपोलिस एवं नक्श-ए-रूस्तम से यह सिद्ध होता है कि दारा ने ही सर्वप्रथम सिंधु नदी के पश्चिममें पंजाब एवं सिंध के भू-भागों पर अधिकार किया।
♦ हेरोडोटस के अनुसार अधिकृत भारतीय भू-भाग ईरानी साम्राज्य काबीसवाँ प्रांत बना तथा भारत से 360 टेलेन्ट स्वर्णराजस्व के रूप में ईरानको मिलता था।
♦ दारा की मृत्यु के बाद क्षयार्ष या जरसिस पारसीक राज्य का राजा बना।
♦ हेरोडोटस के अनुसार भारतीय सैनिकों के वस्त्र सूती थे।
♦ दारा तृतीय अन्तिम ईरानी सम्राट था, जिसे सिकन्दर ने 331 ई. पू. मेंआरबेला के युद्ध में पराजित किया। इस युद्ध को एरियन ने गोगा मेला कायुद्ध कहा था।
♦ दारा तृतीय को सिकन्दर द्वारा पराजित किए जाने से भारत से ईरानीआधिपत्य समाप्त हो गया।
♦ राजनीतिक दृष्टिकोण से भारत-ईरान संबंध का भारत पर कोई स्थायीप्रभाव नहीं हुआ इस संपर्क के सांस्कृतिक प्रभाव दीर्घकालीन रहे।
ईरानी आक्रमण का भारत पर प्रभाव
♦ समुद्री मार्ग की खोज से विदेशी व्यापार को प्रोत्साहन मिला।
♦ पश्चिमोत्तर भारत में खरोष्ठी लिपि का प्रचार, जो दाएँ से बाएँ तरफलिखी जाती है।
♦ ईरानियों की अरमाइक लिपि का प्रचार-प्रसार।
♦ अभिलेख उत्कीर्ण करने की प्रथा प्रारम्भ।
यूनानी आक्रमण
♦ ईरानी आक्रमण के बाद भारत को यूनानी आक्रमण अर्थात् मकदूनियाईशासक सिकन्दर के आक्रमण का सामना करना पड़ा।
♦ मेसिडोनिया (मकदूनिया) के शासक फिलिप द्वितीय के पुत्र सिकन्दर ने 326 ई. पू. में बैक्ट्रिया एवं काबुल जीतते हुए हिन्दूकुश पर्वत को पार करभारत पर आक्रमण किया।
♦ सिकन्दर अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् 20 वर्ष की अल्प आयु में राजाबना।
♦ तक्षशिला शासक आम्भी ने आत्म समर्पण के साथ सिकन्दर का स्वागतकरते हुए उसे सहयोग का वचन दिया।
♦ 326 ई. पू. में सिकन्दर ने सिन्धु नदी पार करके भारत की धरती परकदम रखा। उसका सबसे प्रसिद्ध युद्ध झेलम नदी के तट पर राजा पोरस केसाथ हुआ, जो वितस्ता के युद्ध (हाईडेस्पीज का युद्ध) के नाम से जानाजाता है। इस युद्ध में पोरस की हार हुई।
♦ सिकन्दर ने दो नगरों की स्थापना की। पहला नगर ‘निकैया’ (विजयनगर) और दूसरा अपने प्रिय घोड़े के नाम पर ‘बउकेफला’ रखा।
♦ सिकन्दर ने जीते हुए भारतीय प्रान्तों को अपने सेनापति फिलिप कोसौंपकर विश्व विजय का सपना त्याग कर 325 ई. पू. में सिकन्दर नेवापस अपनी जन्म भूमि की ओर प्रस्थान किया क्योंकि सिकन्दर की सेना ने व्यास नदी को पार करने से मना कर दिया।
♦ यूनान पहुँचने से पहले ही 323 ई. पू. में बेबिलोनिया में सिकन्दर कीमृत्यु हो गई।
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