मौर्य काल
♦ मगध के विकास के साथ मौर्य साम्राज्य का उदय हुआ। मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य का शासन पश्चिम में अफगानिस्तान और बलूचिस्तान तक विस्तृत था।
मौर्यकालीन इतिहास जानने के स्रोत :
1. साहित्य :-
♦ ब्राह्मण साहित्य में पुराण,कौटिल्य का‘अर्थशास्त्र’,विशाखदत्त का‘मुद्राराक्षस’ नाटक प्रमुख हैं।
♦ बौद्ध ग्रन्थों में दीपवंश, महावंश, महावंश टीका, महाबोधिवंश, दिव्यावदान आदि से प्रमुख जानकारी मिलती है।
♦ जैन ग्रन्थों में प्रमुख भद्रबाहु का ‘कल्पसूत्र’ तथा हेमचन्द्र का‘परिशिष्ट पर्वन’ है।
अर्थशास्त्र :-
♦ इसके रचनाकार का व्यक्तिनाम विष्णुगुप्त, गोत्रनाम कौटिल्य (कुटिल से व्युत्पन्न) और स्थानीय नाम चाणक्य (पिता का नाम चणक होने से) था।
♦ कौटिल्य को ‘भारत के मैकियावली’ की संज्ञा दी गई है।
सप्तांग सिद्धांत :-
♦ राज्य को सुव्यवस्थित रूप से संचालित करने हेतु राज्य के सात अंग बताए गए हैं-
इण्डिका:-
♦ रचयिता - मैगस्थनीज
♦ मैगस्थनीज सेल्युकस निकेटर द्वारा चंद्रगुप्त मौर्य की राज्य सभा में भेजा गया था। यह यूनानी राजदूत था। इसके पूर्व वह आरकोसिया के क्षत्रप के दरबार में सेल्युकस का राजदूत रह चुका था।
मुद्राराक्षस:-
♦ चन्द्रगुप्त मौर्य को वृषल कहा गया है।
♦ रचयिता- विशाखदत्त
♦ हिंदी में सर्वप्रथम अनूदित करने का श्रेय भारतेंदु हरिश्चंद्र को है।
♦ मुद्राराक्षस से नंद वंश, मौर्यवंश एवं गुप्तकाल की जानकारी मिलती है।
राजतरंगिणी :-
♦ रचयिता- कल्हण
♦ यह भारत का प्रथम ऐतिहासिक ग्रंथ माना जाता है।
♦ इसमें कश्मीर का इतिहास वर्णित है जो महाभारत काल से आरम्भ होता है। इसका रचना काल 1148 ई. से 1150 ई. तक बताया जाता है।
2. विदेशी विवरण :-
♦ क्लासिकल (यूनानी-रोमन) लेखकों के विवरण से मौर्यकालीन कलाएवं संस्कृति का ज्ञान प्राप्त होता है। यूनानी लेखकों ने चन्द्रगुप्त मौर्यके लिए ‘सैन्ड्रोकोटस’ (जस्टिन) व ’एन्ड्रोकोटस’ (प्लूटार्क) के नाम काप्रयोग किया है।
3. पुरातत्व :-
♦ मौर्य कालीन पुरातात्विक साक्ष्यों में सर्वाधिक महत्त्व अशोक केलेखों का है।
♦ शक महाक्षत्रप व रुद्रदामन की जूनागढ़ (गिरनार) शिलालेख सेमौर्यकाल की जानकारी मिलती है।
♦ सोहगौरा लेख – गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) जिले में है। यह सम्पूर्ण मौर्यकाल का एकमात्र अभिलेख है जो ताम्रपत्र पर है। इस लेख पर दो अन्नागारों के चित्र सहित कुल 7 आकृतियाँ बनी हैं।
♦ महास्थान पाषाण लेख – 1931 ई. में बांग्लादेश के बोगरा जिले से यह शिलालेख प्राप्त हुआ था। यह लेख भी अन्नागार का उल्लेख करता है।
मौर्य साम्राज्य की स्थापना :-
मौर्यों की उत्पत्ति :
♦ ब्राह्मण परम्परा के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य की माता शूद्र जाति की मुरा नामक स्त्री थी।
♦ बौद्ध परम्परा के अनुसार मौर्य 'क्षत्रिय कुल' से संबंधित थे। महापरिनिब्बानसुत्त के अनुसार मौर्य पिप्पलिवन का शासक तथा क्षत्रिय वंश से संबंधित थे।
चद्रगुप्त मौर्य : (322 - 298 ई. पू.) :
♦ चाणक्य की सहायता से अंतिम नन्द शासक घनानन्द को पराजित कर चन्द्रगुप्त मौर्य पाटलिपुत्र के सिंहासन पर बैठा।
♦ विलियम जोन्स पहले विद्वान थे, जिन्होंने 'सैंड्रोकोटस' की पहचान भारतीय ग्रंथों में वर्णित चन्द्रगुप्त से की।
♦ सर्वप्रथम ग्रुनवेडेल महोदय ने बताया कि “मयूर मौर्यों का राजचिह्नथा।“
♦ 305 ई. पू. या उसके आसपास बैक्ट्रिया के शासक सेल्युकस तथा चन्द्रगुप्त के बीच उत्तर - पश्चिमी भारत पर आधिपत्य के लिए एक भीषण युद्ध हुआ जिसमें सेल्युकस की हार हुई। युद्ध की समाप्ति के बाद दोनों के मध्य एक संधि हुई।
♦ संधि की शर्तों का उल्लेख स्ट्रेबो ने किया है। सेल्युकस ने चन्द्रगुप्त को चार प्रान्त एरिया (हेरात), अराकोसिया (कंधार), जेड्रोसिया (मकरान), बलूचिस्तान तथा पेरिपेमिसडाई (काबुल) दिए।
♦ सेल्युकस की पुत्री हेलना का विवाह चन्द्रगुप्त मौर्य से हुआ।
♦ चन्द्रगुप्त ने सेल्युकस को 500 हाथी उपहार में दिए।
♦ सेल्युकस ने चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में अपना एक राजदूत मेगस्थनीज को भेजा।
♦ चन्द्रगुप्त मौर्य के समय सौराष्ट्र के गवर्नर पुष्यगुप्त वैश्य ने सुदर्शन झील का निर्माण करवाया।
♦ अंतिम दिनों में चन्द्रगुप्त ने जैन धर्म स्वीकार कर लिया और अपने पुत्र बिन्दुसार के पक्ष में सिंहासन छोड़ दिया।
♦ जैन संत भद्रबाहु के साथ वह मैसूर के निकट श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) चला गया जहाँ एक सच्चे जैन मुनि की तरह उपवास द्वारा शरीर त्याग दिया (संल्लेखना विधि)।
♦ चन्द्रगुप्त मौर्य के जीवन के अंतिम समय में मगध में 12 वर्षों तक भीषण अकाल पड़ा। चन्द्रगुप्त मौर्य के महास्थान एवं सौहगौरा अभिलेख में अकाल का उल्लेख मिलता है।
बिन्दुसार : (298 - 273 ई. पू.)
♦ चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र बिन्दुसार उसका उत्तराधिकारी बना।
♦ यूनानियों ने बिन्दुसार को “अमित्रचेट्स” कहा है।
♦ जैन ग्रन्थों में “सिंहसेन” कहा गया।
♦ वायुपुराण में ‘भद्रसार’ तथा पतंजलि के महाभाष्य ने अमित्रघात का उल्लेख मिलता है।
♦ बिन्दुसार ने अपने बड़े पुत्र सुसीम को तक्षशिला का तथा अशोक को उज्जयिनी का राज्यपाल नियुक्त किया था।
♦ 'दिव्यावदान' तक्षशिला में हुए विद्रोह को दबाने के लिए बिन्दुसार नेअपने पुत्र अशोक को भेजा।
♦ यूनानी शासक एण्टियोकस (सीरिया) ने बिन्दुसार के दरबार में डाइमेकस नामक राजदूत भेजा था।
♦ मिस्र के राजा टॉलेमी द्वितीय (फिलाडेल्फस द्वितीय) ने डाइनोसियस को बिन्दुसार के दरबार में भेजा था।
♦ थेरवाद परम्परा के अनुसार बिन्दुसार ब्राह्मण धर्म का अनुयायी था।
♦ दिव्यावदान के अनुसार उसकी राज्यसभा में आजीवक सम्प्रदाय का एक ज्योतिषी निवास करता था।
अशोक (273 - 236 ई. पू.):
♦ अशोक के प्रारम्भिक जीवन के बारे में अभिलेखों से कोई जानकारी नहीं मिलती है।
♦ बौद्ध ग्रंथों के अनुसार उसकी माता का नाम सुभद्रांगी था।
♦ जैन ग्रंथों के अनुसार अशोक ने बिन्दुसार की इच्छा के विरुद्ध मगध के शासन पर अधिकार किया था, पुराणों में अशोक को ‘अशोकवर्द्धन’ तथा दीपवंश में ‘करमोली’ कहा गया है।
♦ अशोक को भाब्रू अभिलेख में “प्रियदर्शी” तथा मास्की अभिलेख में “बुद्धशाक्य” कहा गया है।
♦ कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ के अनुसार अशोक का राज्य कश्मीर तक फैला था।
♦ अशोक की रानियों में महादेवी, तिष्यरक्षिता तथा कारूवाकी का नाम आता है।
♦ सिंहली परम्परा के अनुसार अशोक के पुत्र महेन्द्र एवं पुत्री संघमित्रा विदिशा के श्रेष्ठी पुत्री महादेवी से उत्पन्न हुए थे।
♦ अशोक के अभिलेख में उसकी एकमात्र पत्नी कारूवाकी का उल्लेख मिलता है।
♦ सिंहली अनुश्रुति के अनुसार अशोक ने अपने 99 भाइयों की हत्या कर गद्दी प्राप्त की थी।
♦ अशोक का वास्तविक राज्याभिषेक 269 ई. पू. में हुआ, हालाँकि उसने 273 ई. पू. में सत्ता पर कब्जा कर लिया था।
♦ कल्हण के अनुसार अशोक ने कश्मीर में 'श्रीनगर' नामक नगर की स्थापना की।
अशोक के विभिन्न नाम एवं उपाधियाँ
अशोक | व्यक्तिगत नाम, उल्लेख - मास्की, गुर्जरा, नेतुर एवं उडेगोलन अभिलेख में |
देवनांप्रिय प्रियदर्शी | राजकीय उपाधि आधिकारिक नाम |
अशोकवर्द्धन | विष्णु पुराण |
कलिंग युद्ध
♦ अशोक के शासनकाल की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना 261 ई. पू. में कलिंग युद्ध था।
♦ कलिंग युद्ध के भीषण नरसंहार को देखकर अशोक इतना द्रवित हुआ कि उसने भविष्य में कभी युद्ध न करने का संकल्प लिया और भैरीघोष की जगह धम्मघोष की नीति को अपनाया।
♦ कलिंग युद्ध तथा उसके परिणामों के विषय में अशोक के तेरहवें अभिलेख से विस्तृत सूचना प्राप्त होती है।
अशोक की धम्म नीति:-
♦ अभिलेखों के अनुसार अशोक के बौद्ध धर्म में दीक्षित करने का श्रेय उपगुप्त को जाता है।
♦ भाब्रू शिलालेख में अशोक ने बौद्ध, संघ और धम्म में विश्वास व्यक्त किया है। (अशोक के बौद्ध होने का प्रमाण)
♦ अशोक का ‘धम्म’ बौद्ध धर्म नहीं था।
♦ तीसरे एवं सातवें स्तम्भ लेख में अशोक ने युक्त, रज्जुक तथा प्रादेशिक नामक पदाधिकारी को जनता के बीच धर्म एवं प्रचार का उपदेश करने का आदेश दिया।
♦ अनुश्रुतियों के अनुसार अशोक ने 84000 स्तूपों का निर्माण करवाया था।
♦ अशोक ने प्रजा के नैतिक उत्थान हेतु राजत्व के नए नियमों की संहिता बनाई थी जिसे इसके अभिलेखों में ‘धम्म’ कहा गया है।
♦ अशोक के पाँचवें अभिलेख से पता चलता है कि उसने धम्म के प्रचार हेतु रज्जुकों, प्रादेशिकों, युक्तों एवं धम्म महामात्रों की नियुक्ति की थी।
अशोक के अभिलेख
♦ अभिलेख उन्हें कहते हैं जो पत्थर, धातु या मिट्टी के बर्तन जैसी कठोर सतह पर खुदे होते हैं।
♦ अभिलेखों में उन लोगों की उपलब्धियाँ, क्रियाकलाप या विचार लिखे जाते हैं जो उन्हें बनवाते हैं।
♦ अशोक ने भारतीय उपमहाद्वीप में सर्वप्रथम शिलालेख का प्रचलन किया था। शिलालेखों के माध्यम से राज्यादेशों तथा उपलब्धियों को संकलित किया गया था जिनमें वह जनता को संबोधित करता है।
♦ सर्वप्रथम 1750 ई. में टी. फेन्थैलर महोदय ने अशोक के दिल्ली - मेरठ स्तम्भ का पता लगाया था।
♦ सर्वप्रथम जेम्स प्रिंसेप को 1837 ई. में अशोक के अभिलेखों की खोज को पढ़ने में सफलता प्राप्त हुई सर्वप्रथम दिल्ली-टोपरा लेख को पढ़ा।
♦ अशोक के अभिलेखों की भाषा प्राकृत है।
♦ अशोक के अभिलेख अरमाइक, खरोष्ठी, यूनानी एवं ब्राह्मी चार लिपियों में पाए गए हैं।
♦ लघमान लेख अरमाइक लिपि में हैं।
♦ मानसेहरा एवं शाहबाजगढ़ी से खरोष्ठी लिपि के शिलालेख प्राप्त हुए हैं।
♦ द्वि-भाषिक लिपि- कंधार का शर-ए-कुना अभिलेख। इसमें यूनानी एवं अरमाइक लिपियों का एक साथ प्रयोग हुआ है।
♦ अशोक के अभिलेख को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है- शिलालेख, स्तम्भलेख एवं गुहालेख।
♦ वृहद शिलालेखों की संख्या 14 हैं, जो आठ भिन्न - भिन्न स्थानों से प्राप्त किए गए हैं-
अशोक के प्रमुख वृहद शिलालेख
शिलालेख | स्थान | लिपि |
शाहबाजगढ़ी | पेशावर (पाक.) | खरोष्ठी |
मानसेहरा | हाजरा (पाक.) | खरोष्ठी |
कालसी | देहरादून (उत्तरांचल) | ब्राह्मी |
गिरनार | जूनागढ़ (गुजरात) | ब्राह्मी |
एर्रगुडि | कुर्नूल (आंध्र प्रदेश) | ब्रुस्टोफेदन |
धौली | पुरी (ओडिशा) | ब्राह्मी |
जौगढ़ | गंजाम (ओडिशा) | ब्राह्मी |
सोपारा | थाणे (महाराष्ट्र) | ब्राह्मी |
अशोक के शिलालेखों में वर्णित विषय :-
शिलालेख विषय
1. पहला शिलालेख पशुबलि व सामाजिक उत्सवों-समारोहों परप्रतिबंध, सभी मानव मेरी संतान की तरह है।
2. दूसरा शिलालेख पशु चिकित्सा, मानव चिकित्सा एवं लोककल्याणकारी कार्य, चोल पांड्य, सत्तियपुत्र एवंकेरलपुत्र (चेर) का उल्लेख।
3. तीसरा शिलालेख माता-पिता का सम्मान करना, राजकीयअधिकारियों (युक्त, रज्जुक व प्रादेशिक) कोप्रत्येक पाँचवें वर्ष दौरा करने का आदेश।
4. चौथा शिलालेख धम्म की नीति के द्वारा अनैतिकता तथा ब्राह्मणोंएवं श्रवणों के प्रति निरादर की प्रवृत्ति, हिंसा आदिको रोका जा सके। भेरीनाद (रणघोष) के स्थान पर धम्म घोष का उद्घोष।
5. पाँचवाँ शिलालेख इसमें प्रथम बार अशोक के शासन के 13वें वर्षमें धम्म महामात्रों की नियुक्ति की चर्चा। मौर्यकालीन समाज व वर्णव्यवस्था की जानकारी।
6. छठा शिलालेख धम्म महामात्रों के लिए आदेश लिखे हैं। अशोकने इसमें कहा है कि “राज्य कर्मचारी-अधिकारीउससे किसी भी समय राज्य के कार्य के संबंध मेंमिल सकते हैं।“ आत्मनियंत्रण की शिक्षा दी गईहै, आम जनता किसी भी समय राजा से मिलसकते हैं।
7. सातवाँ शिलालेख सभी संप्रदायों के लिए सहिष्णुता की बात।
8. आठवाँ शिलालेख अशोक की धर्मयात्राओं की जानकारी, सार्वजनिक निर्माण कार्यों का वर्णन है। बोधगयाके भ्रमण का उल्लेख।
9. नौवाँ शिलालेख धम्म समारोह की जानकारी, नैतिकता पर बलदिया गया है तथा इसमें ‘धम्म मंगल’ को श्रेष्ठ बताया गया है।
10. दसवाँ शिलालेख धम्मनीति की श्रेष्ठता पर बल दिया गया है, राजा औरउच्च अधिकारियों को आदेश है कि हर क्षण प्रजाके हित में सोचें।
11. ग्यारहवाँ शिलालेख इसमें धम्म दान को श्रेष्ठ बताया गया है।
12. बारहवाँ शिलालेख सम्प्रदायों के मध्य सहिष्णुता रखने का निर्देश है।सभी सम्प्रदायों को सम्मान देने की बात है। स्त्रीमहामात्र की चर्चा तथा इसमें बृजभूमिक व धम्म महामात्र का भी उल्लेख आता है।
13. तेरहवाँ शिलालेख इसमें युद्धके स्थान पर धम्म विजय का आह्वान है, कलिंगयुद्ध की जानकारी, अपराध करने वाली आटविकजातियों का उल्लेख तथा पड़ोसी राज्यों कावर्णन।
14. चौदहवाँ शिलालेख अशोक नेजनता को धार्मिक जीवन जीने के लिए प्रेरितकिया है यह दो पृथक् शिलालेख है जो कलिंग मेंलगाए गए है इसमें कलिंग की समस्त जनता कोपुत्र-पुत्रियों के समान कहा है।
अशोक के लघु शिलालेख :-
1. ब्रह्मगिरि ® यह कर्नाटक में स्थित है।
2. भाब्रू (बैराठ) ® यह राजस्थान के जयपुर जिले में है। इसकी खोजकैप्टन बर्ट के द्वारा 1840 ई. में की गई। यह शिलालेख अशोक के बौद्धहोने का सबसे बड़ा प्रमाण है। वर्तमान में यह शिलालेख कलकत्ता संग्रहालय में रखा हुआ है।
3. सहसाराम ®यह बिहार में है, इसे वेगलर ने खोजा है।
4. गुर्जरा ® मध्य प्रदेश के दतिया जिले में है, वर्ष 1954 में बहादुर चन्द्रदावड़ा ने खोजा।
5. रूपनाथ ® मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में है, 1872 ई. में कर्नलएलिस के भारतीय सेवक ने इसकी खोज की।
6. मास्की ® कर्नाटक के रायचूर जिले में हैं। 1915 में बीडन ने खोजा।
7. एर्रगुडि ® आन्ध्र प्रदेश के कूर्नूल जिले में स्थित है।
8. राजुल मंडगिरि ® आन्ध्रप्रदेश के कर्नूल जिले में स्थित है।
9. अहरौरा ® उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर में है। वर्ष 1961 में प्रो. शर्मा नेखोजा।
10. गोविमठ ® मैसूर के कोपबल नामक स्थान के समीप स्थित है, वर्ष 1931 में बी.एन. शास्त्री ने खोजा।
11. जटिंगरामेश्वर ® कर्नाटक के ब्रह्मगिरी के तीन मील उत्तर-पश्चिम मेंस्थित है।
12. सिद्धपुर ® ब्रह्मगिरी के एक मील पश्चिम में स्थित है।
13. पालकिगुण्डु ® गोविमठ से चार मील की दूरी पर स्थित है, वर्ष 1931 में बी.एन. शास्त्री ने खोजा।
14. सारोमारो ® शहडोल, मध्य प्रदेश में हैं।
15. उडेगोलन ® बेलारी कर्नाटक में हैं।
स्तम्भ लेख:-
स्तम्भ लेख की संख्या 7 हैं जो 6 अलग-अलग स्थानों से मिले हैं।
स्तम्भलेख: I | अशोक के राज्याभिषेक के 26 वर्ष बाद लिखित। धम्म के पालन, सम्मान, उत्साह और आत्मनिरीक्षण द्वारा आनंद प्राप्ति का उल्लेख। |
स्तम्भलेख: II | धम्म की विशेषताओं यथा-शुभ, करुणा, उदारता, सत्यता, पुण्यवर्धक, पापनाशक आदि का उल्लेख। |
स्तम्भलेख: III | मनुष्य को आत्मचिंतन करने, दुर्गुणों का निदान करने और सद्गुणों को अपनाने की शिक्षा का उल्लेख। |
स्तम्भलेख:- IV | रज्जुकों के कर्तव्यों का उल्लेख। |
स्तम्भलेख:- V | कुछ पशु-पक्षियों का वध निषिद्ध एवं 25 कैदियों को मुक्त करने का वर्णन। |
स्तम्भलेख:- VI | प्रजा के कल्याण एवं लाभ के लिए धम्मलिपि लिखवाने एवं धम्म का वर्णन। |
स्तम्भलेख:- VII | अशोक द्वारा धम्म के अनुपालन में किए गए कार्यों का वर्णन। |
♦ अशोक के 7 स्तंभलेख टोपरा (दिल्ली), मेरठ, इलाहाबाद, रामपुरवा, लौरिया अरराज (चंपारण), लौरिया नन्दनगढ़ (चंपारण) में पाया गया है।
♦ लघु स्तंभलेख साँची, सारनाथ, रुम्मिनदेई, कौशाम्बी और निगाली सागर में पाया गया है।
अशोक के वृहद् स्तम्भ-लेख :-
1. लौरिया नन्दनगढ़ यह बिहार के चम्पारन जिले में स्थित है इस स्तंभ परमोर का चित्र बना हुआ है।
2. लौरिया अरराज यह बिहार के चम्पारन जिले में स्थित है।
3. दिल्ली-टोपरा यह सर्वाधिक प्रसिद्ध स्तम्भ लेख है। यह मूलत: अम्बाला (हरियाणा) में था, किन्तु इसे फिरोज तुगलक द्वारा दिल्ली में गड़वा दिया था। ये स्तम्भ फिरोजशाह की लाट, भीमसेन की लाट, दिल्लीशिवालिक लाट, सुनहरी लाट आदि नामों से भी जाने जाते हैं। इस परअशोक के सातों अभिलेख उत्कीर्ण हैं, जबकि शेष स्तंभों पर केवल 6 लेखही उत्कीर्ण मिलते हैं।
4. दिल्ली-मेरठ यह पहले मेरठ में स्थित था बाद में फिरोजशाह तुगलकइस स्तंभ को दिल्ली लाए।
5. रामपुरवा यह बिहार के चम्पारन में स्थित है।
6. प्रयाग यह पहले कौशाम्बी में था बाद में अकबर ने इलाहाबाद के किलेमें रखवाया।
लघु स्तम्भ लेख :-
♦ लघु स्तम्भ लेख पर अशोक की “राजकीय घोषणाओं” का उल्लेख है।
1. साँची (रायसेन, मध्य प्रदेश) ®संघ भेद रोकने संबंधी आदेश।
2. सारनाथ (वाराणसी, उत्तर प्रदेश)® संघ भेद रोकने संबंधी आदेश।
3. कौशाम्बी (इलाहाबाद/प्रयागराज, उत्तर प्रदेश)® कौशाम्बी(प्रयागराज) के स्तम्भों में अशोक की रानी कारुवाकी द्वारा दान दिए जानेका उल्लेख है, इसे रानी का अभिलेख भी कहा गया है। कौशाम्बी स्तंभलेख को अकबर के शासन काल में जहाँगीर द्वारा इलाहाबाद के किले मेंरखा गया।
4. रुम्मिनदेई स्तंभलेख ® नेपाल की तराई में है। इसमें अशोक कीधर्मयात्रा का वर्णन है। इस स्तंभलेख में अशोक की लुम्बिनी यात्रा और लुम्बिनी के लोगों को कर में दी गई छूट का वर्णन उसने कर की दर को घटाकर 1/8 कर दिया। अशोक का सर्वाधिक छोटा अभिलेख रुम्मिनदेईहै, विषय आर्थिक है।
5. निगालीसागर स्तंभलेख ® यह स्तंभलेख मूलतः “कपिलवस्तु” में स्थित था। इस स्तंभलेख में कहा गया है कि अशोक ने “कनकमुनि बुद्ध” के स्तूप की ऊँचाई को बढ़ाकर दुगुना कर दिया था।
अशोक के उत्तराधिकारी :-
♦ कुणाल (सुयश)- यह अंधा था। इसकी उपाधि धर्मविवर्धन थी। दिव्यावदान के अनुसार वह तक्षशिला का राज्यपाल था।
♦ सम्प्रति- यह जैनी था। सुहस्तिन ने उसे जैन धर्म में दीक्षित किया था। जैन स्रोतों के अनुसार सम्प्रति ने दो राजधानियों पाटलिपुत्र एवं उज्जैन से शासन किया। उसकी उपाधि त्रिखण्डाधिपति थी। सम्प्रति को मौर्य वंश का चन्द्रगुप्त द्वितीय भी कहा जाता है।
♦ शालिशूक (बृहस्पति)- यह अपने बड़े भाई को मारकर गद्दी पर बैठा था। गार्गी संहिता में इसे 'अधार्मिक' कहा गया है।
♦ जालौक- कल्हण इसे कश्मीर में अशोक का उत्तराधिकारी बताते हैं। जालौक को शैव धर्मानुयायी एवं बौद्ध विरोधी बताया है।
♦ वीरसेन- तारानाथ के अनुसार गान्धार का शासक अशोक का पुत्र वीरसेन बना।
♦ दशरथ- आजीवक मत का समर्थक था। इसकी भी उपाधि देवनांप्रिय थी।
♦ वृहद्रथ- यह अन्तिम मौर्य शासक था। इसी का सेनापति पुष्यमित्र शुंग था। हर्षचरित के अनुसार, “185-184 ई. पू. में वृहद्रथ की हत्या पुष्यमित्र शुंग ने उस समय कर दी जब वह सेना का निरीक्षण कर रहा था।” इसी कर्म के लिए बाणभट्ट ने पुष्यमित्र शुंग को अनार्य कहा था।”
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