पाबू, हरभू, रामदे, मांगलिया मेहा।
पाँचू पीर पधारज्यो, गोगाजी जेहा।।
पंच पीर |
1. पाबूजी |
2. हड़बूजी |
3. रामदेवजी |
4. मेहाजी मांगलिया |
5. गोगाजी |
पाबूजी
● जन्म– इनका जन्म 1239 ई. में फलोदी तहसील के कोलू गाँव में हुआ था।
● मुहणोत नैणसी तथा महाकवि मोडजी आशिया के अनुसार इनका जन्म वर्तमान बाड़मेर से आठ कोस आगे खारी खाबड़ के जूना नामक गाँव में अप्सरा के गर्भ से हुआ।
● इनके पिता का नाम धांधलजी राठौड़ था।
● पाबूजी को ‘लक्ष्मण का अवतार’ माना जाता है।
● पाबूजी की ‘ऊँटों के देवता’ के रूप में पूजा की जाती है।
● मारवाड़ में सर्वप्रथम ऊँट लाने का श्रेय पाबूजी को दिया जाता है।
● पाबूजी का विवाह अमरकोट के सूरजमल सोढ़ा की पुत्री सोढ़ी के साथहुआ था। विवाह के मध्य उनके प्रतिद्वंद्वी बहनोई जायल (नागौर) नरेशजींदराव खींची ने पूर्व वैर के कारण देवल चारणी की गायों को घेर लिया।
● देवल ने पाबूजी से गायों को छुड़ाने की प्रार्थना की। तीन फेरे लेने केपश्चात् चौथे फेरे से पूर्व ही देवल चारणी की केसर कालमी घोड़ी परसवार होकर गायों की रक्षार्थ रवाना हो गए।
● कड़े संघर्ष में 1276 ई. में पाबूजी अनेक साथियों के साथ वीरगति कोप्राप्त हुए।
● वीरता, प्रतिज्ञापन, त्याग, शरणागत वत्सलता एवं गौ-रक्षा हेतु बलिदान होने के कारण जनमानस इन्हें लोक देवता के रूप में पूजता है।
● पाबूजी का मुख्य पूजा स्थल कोलू (फलोदी) में है। जहाँ प्रतिवर्ष इनकीस्मृति में मेला लगता है।
● इनके प्रतीक चिह्न हाथ में भाला लिए और अश्वारोही के रूप में प्रचलितहै।
● ऊँट के बीमार होने पर पाबूजी की पूजा की जाती है।
● ऊँटों के स्वस्थ होने पर भोपे-भोपियों द्वारा पाबूजी की फड़ बाँची जातीहै।
हड़बूजी
● हड़बूजी भूंडेल (नागौर) के महाराज साँखला के पुत्र थे।
● हड़बूजी रामदेवजी के मौसेरे भाई थे।
● ये जोधपुर के शासक राव जोधा (1438-89) के समकालीन थे।
● इन्होंने राव जोधा को एक कटार भेंट की थी।
● राव जोधा ने इन्हें बेंगटी गाँव (फलोदी) भेंट किया।
● अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् भूंडेल छोड़कर हरभमजाल में आकर रहने लगे। यहाँ रामदेवजी की प्रेरणा से इन्होंने अस्त्र-शस्त्र त्यागकर गुरु बालीनाथजी से दीक्षा ले ली।
● हड़बूजी को बहुत बड़ा शकुन शास्त्री, वचनसिद्ध और चमत्कारी महापुरुष माना जाता था।
● हड़बूजी का प्रमुख स्थान बेंगटी (फलोदी) में स्थित है।
● श्रद्धालुओं द्वारा मनौती पूर्ण होने पर हड़बूजी के मंदिर में संस्थापित हड़बूजी की गाड़ी की पूजा अर्चना करते हैं।
● हड़बूजी के पुजारी साँखला राजपूत होते हैं।
रामदेवजी
● इनका जन्म बाड़मेर जिले की शिव तहसील के उण्डूकाश्मीर गाँव में हुआथा। इसके पिता का नाम अजमालजी व माता का नाम मैणादे था।
● रामदेवजी तँवर वंशीय थे।
● रामदेवजी को हिन्दू ‘विष्णु का अवतार’ और मुस्लिम ‘रामसा-पीर’ मानतेहैं।
● रामदेवजी ने कामड़िया पंथ की स्थापना की।
● इनको मल्लीनाथ जी के समकालीन माना जाता है। इन्होंने पोकरण क्षेत्र मल्लीनाथजी से प्राप्त करने के पश्चात् वहाँ भैरव नामक क्रूर व्यक्ति का अंत करके अराजकता एवं आतंक खत्म किया।
● इनका विवाह अमरकोट के दलजी सोढ़ा की पुत्री नेतलदे से हुआ था।
● रामदेवजी ने अपनी भतीजी को पोकरण दहेज में देने के बाद ‘रामदेवरा’ (रुणेचा) गाँव बसाया तथा वहीं 1458 ई. में भाद्रपद शुक्ल एकादशी को जीवित समाधि ले ली। यहाँ भाद्रपद शुक्ल द्वितीया को विशाल मेला लगता है। सांप्रदायिक सद्भाव इस मेले की मुख्य विशेषता है।
● सामान्यत: गाँवों में किसी वृक्ष के नीचे ऊँचे चबूतरे पर रामदेवजी के प्रतीक चिह्न ‘पगलिये’ स्थापित किए जाते हैं। ये स्थान ‘थान’ कहलाता है।
● कामड़िया पंथ के अनुयायियों द्वारा रामदेवजी के मेले में तेरहताली नृत्य का प्रदर्शन किया जाता है।
● रामदेवजी वीर होने के साथ-साथ समाज-सुधारक भी थे। इन्होंने जाति प्रथा, मूर्तिपूजा और तीर्थयात्रा का विरोध किया।
●इनके मेघवाल भक्तों को ‘रिखिया’ कहा जाता है।
●राजस्थान और गुजरात में रामदेवजी की विशेष रूप से पूजा की जाती है।
● नेजा – रामदेवजी की पचरंगी व सफेद ध्वजा।
● जम्मा – रामदेवजी की आराधना में किए जाने वाले रात्रि जागरण को जम्मा कहा जाता है।
● फड़ – रामदेवजी की फड़ कामड़ जाति के भोपे रावणहत्था वाद्य यंत्र के साथ बाँचते हैं।
● चौबीस बाणियाँ – रामदेवजी एकमात्र ऐसे लोकदेवता थे, जो कवि भी थे उनकी प्रसिद्ध रचना चौबीस बाणियाँ है।
● अन्य पूजा स्थल - मसूरिया (जोधपुर), बिराँठिया (पाली), सूरताखेड़ा (चित्तौड़गढ़), छोटा रामदेवरा (जूनागढ़, गुजरात)।
मेहाजी मांगळिया
● मेहाजी मांगळिया राजस्थान के पंचपीरों में गिने जाते हैं।
● ये राव चूण्डा के समकालीन थे।
● इनका जन्म पंवार क्षत्रिय परिवार में हुआ था किंतु पालन-पोषण अपनेननिहाल में मांगळिया गौत्र में हुआ था इसलिए ये मेहाजी मांगळिया के नामसे प्रसिद्ध हुए।
● इनके स्वाभिमानी स्वभाव के कारण इनके अनेक शत्रु हो गए।
● अंत में जैसलमेर के राव राणंगदेव भाटी से युद्ध करते हुए वे वीरगति कोप्राप्त हुए।
● वे अच्छे शकुन शास्त्री थे। लोगों की सेवा, सहायता करने एवं उन्हेंसंरक्षण देने के कारण वे लोक देवता के रूप में पूजे गए।
● बापणी में इनका मंदिर है, जहाँ भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को मेला भरता है।
गोगाजी
● जन्म– इनका जन्म चूरू जिले के ददरेवा गाँव में हुआ था।
● गोगाजी का जन्म स्थल ददरेवा (शीर्षमेड़ी) तथा इनका समाधि स्थलधुरमेड़ी कहलाता है।
● इनके पिता का नाम जेवर जी और माता का नाम बाछल था।
● हिंदू ‘नागराज’ तो मुस्लिम ‘गोगापीर’ के रूप में इनकी पूजा करते हैं।
● इन्हें गोरखनाथ व महमूद गजनवी के समकालीन माना जाता है।
● गोगाजी का अपने मौसेरे भाइयों अरजन-सुर्जन के साथ सम्पत्ति काविवाद चल रहा था।
● अरजन-सुर्जन द्वारा मुसलमानों की फौज लाकर गोगाजी की गायों कोघेर लेने के कारण इनका गोगाजी के साथ भीषण युद्ध हुआ। इसमेंअरजन-सुर्जन के साथ गोगाजी भी वीरगति को प्राप्त हुए।
● इस युद्ध में गोगाजी की वीरता का सुंदर वर्णन कवि मेह ने गोगाजी का रसावला में किया है।
● गोगाजी की स्मृति में प्रतिवर्ष गोगामेड़ी (हनुमानगढ़) में भाद्रपद कृष्णनवमी, जिसे ‘गोगा नवमी’ भी कहते हैं, को विशाल मेला लगता है। इसदिन गोगाजी की अश्वारोही भाला लिए योद्धा के प्रतीक रूप में अथवा सर्पके प्रतीक रूप में पूजा की जाती है।
● इनका पत्थर पर उत्कीर्ण सर्प मूर्तियुक्त पूजा स्थल प्राय: गाँवों मेंखेजड़ी के वृक्ष के नीचे होता है।
● मारवाड़ में कहावत है कि “गाँव-गाँव खेजड़ी ने, गाँव-गाँव गोगाजी।“
● मान्यता है कि गोगाजी को ‘जाहिर पीर’ कहकर पूजने से सर्प-दंश काविष प्रभावहीन हो जाता है।
तेजाजी
● तेजाजी को ‘काला व बाला का देवता’ तथा कृषि कार्यों के उपासक देवता के रूप में पूजा जाता हैं।
● जन्म– इनका जन्म खड़नाल (नागौर) में माघ शुक्ल चतुर्दशी को 1073ई. में हुआ था।
● तेजाजी जाट वंशीय थे।
● इसके पिता का नाम ताहड़जी व माता का नाम रामकुँवरी था।
● इनका विवाह रामचन्द्र की पुत्री पेमल के साथ हुआ था।
●लोकगीतों के अनुसार जब वे अपनी पत्नी पेमल को लेने पनेर गए, तब उसी दिन मेर लाछा गूजरी की गायों को चुरा ले गए। इस संघर्ष में वे अत्यधिक घायल हो गए। पूरे शरीर पर घाव होने के कारण इन्होंने सर्प को पूर्व में दिए गए वचनानुसार डसने के लिए जिह्वा आगे कर दी।
● सुरसुरा (किशनगढ़) में साँप के काटने से भाद्रपद शुक्ल दशमी को इनकी मृत्यु हो गई।
● मेला - प्रतिवर्ष तेजादशमी (भाद्रपद शुक्ल दशमी) को परबतसर (नागौर) में भव्य पशु मेला लगता है।
● इनकी पत्नी पेमल भी इनके साथ सती हो गई।
● तेजाजी को तलवार धारण किये घोड़े पर सवार योद्धा के रूप में दर्शायाजाता है, जिनकी जिह्वा को सर्प डस रहा है।
● तेजाजी का मुख्य स्थल परबतसर (नागौर) में स्थित है।
● मुख्य थान - सेदरिया, भाँवता, सुरसुरा (अजमेर), परबतसर, खड़नाल (नागौर) बासी दुगारी (बूँदी) में।
● इनके मुख्य थान सुरसुरा, ब्यावर, सेदरिया और भाँवता में हैं।
देवनारायणजी
● देवनारायणजी बगड़ावत का जन्म 1243 ई. के लगभग हुआ।
● इनके पिता का नाम भोजा और माता का नाम सेढू / साढू /सेंदू गूजरी था।
● इनके जन्म से पूर्व ही इनके पिता भिनाय के शासक के साथ संघर्ष मेंअपने तेइस भाइयों सहित मारे गए। भिनाय शासक के कोप से बचाने केलिए सेदू गूजरी इन्हें अपने ननिहाल मालवा ले गई।
● कुछ समय बाद देवनारायणजी बदला लेने हेतु भिनाय पहुँचे। जहाँ गायोंको लेकर भिनाय ठाकुर से हुए संघर्ष में देवजी ने उसे मौत के घाट उतारदिया।
● अत: इन्हें गौरक्षक लोकदेवता के रूप में भी स्मरण किया जाता है।
● इनका विवाह जयसिंह देव परमार की पुत्री पीपलदे से हुआ।
● देवनारायणजी के मुख्य अनुयायी गुर्जर जाति के लोग होते हैं।
● गुर्जर जाति द्वारा देवनारायणजी की फड़ का गायन किया जाता है।
● देवनारायणजी का प्रमुख पूज्य स्थल आसींद (भीलवाड़ा) में है। यहाँभाद्रपद शुक्ल सप्तमी को मेला लगता है।
● देवनारायणजी के अन्य मंदिर - देवमाली (अजमेर), देवधाम जोधपुरिया।
● फड़ - गुर्जर जाति के भोपे जंतर वाद्य यंत्र के साथ बाँचते हैं।
● देवनारायणजी की फड़ राजस्थान की फड़ों में सर्वाधिक लोकप्रिय एवं सबसे बड़ी है।
● देवनारायणजी की फड़ में 335 गीत है। जिनका लगभग 1200 पृष्ठों में संग्रह किया गया है एवं लगभग 15000 पंक्तियाँ है।
● 2 सितम्बर, 1992 को भारतीय डाक विभाग ने देवनारायण जी की फड़ पर सर्वप्रथम 5 रु. का डाक टिकट जारी किया गया।
● भारतीय डाक विभाग द्वारा वर्ष 2011 में देवनारायण जी पर भी डाक टिकट जारी किया गया।
कल्लाजी
● कल्लाजी का जन्म 1544 ई. में मेड़ता के निकट सामियाना गाँव (नागौर) में हुआ था।
● कल्लाजी मेड़ता के आससिंह के पुत्र थे। मीरा इनकी बुआ थी।
● ये अस्त्र-शस्त्र चलाने और औषधि विज्ञान में भी निपुण थे।
● कल्लाजी की पूजा नागरूप में भी की जाती है। वे शेषनाग के अवतार थे।
● बाल्यकाल से ही कल्लाजी अपनी कुलदेवी नागणेची की आराधना करते थे।
● वर्ष 1567 – 68 में अकबर द्वारा चित्तौड़ आक्रमण के दौरान कल्लाजी ने युद्ध में घायल जयमल को अपने कँधे पर बिठा लिया और दो तलवारें जयमल के हाथों में तथा दो तलवारें स्वयं लेकर युद्ध करने लगे इसी वीरता के कारण उनकी ख्याति चार हाथ (चतुर्भुज देवता), दो सिर वाले देवता के रूप में हुई।
● सिर कटने के बाद कल्लाजी का धड़ मुगलों से लड़ता हुआ रुण्डेला तक जा पहुँचा।
● डूँगरपुर जिले के सामलिया गाँव में कल्लाजी की काले पत्थर की मूर्ति स्थापित है। इस मूर्ति पर प्रतिदिन केसर तथा अफीम चढ़ाई जाती है।
● केहर, कमधण, कमधज, योगी, बाल ब्रह्मचारी, कल्याण आदि नामों से पूजनीय कल्लाजी के मध्य प्रदेश, मारवाड़, बाँसवाड़ा, डूँगरपुर और मेवाड़ में करीब पाँच सौ मंदिर हैं।
● इनके मंदिरों के पुजारी सर्पदंश से पीड़ित लोगों का उपचार करते हैं।
बिग्गाजी
● जाखड़ जाति के जाट इन्हें अपना कुलदेवता मानते हैं।
● गौ-सेवक एवं गौ-रक्षक देवता।
● बिग्गाजी का जन्म बीकानेर जिले के रीड़ी गाँव में हुआ था।
● इसके पिता का नाम राव महन तथा माता का नाम सुल्तानी था।
● इनको गायों से विशेष लगाव था और उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन गायोंकी सेवा में लगा दिया। गायों की रक्षार्थ ही लुटेरों से संघर्ष करते हुए वे वीरगति को प्राप्त हुए।
● बिग्गाजी का मंदिर रीड़ी गाँव में बना हुआ है।
मल्लीनाथजी
● मल्लीनाथजी का जन्म मारवाड़ के रावल सलखा और जाणीदे के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में 1358 ई. में हुआ।
● पिता की मृत्यु के पश्चात् वे कान्हड़दे (चाचा) के यहाँ महेवा में शासन प्रबंध देखने लगे।
● कान्हड़देव की मृत्यु के बाद वे 1374 ई. में महेवा के स्वामी बन गए।
● राज्य विस्तार के क्रम में 1378 ई. में फिरोज तुगलक के मालवा के सूबेदार निजामुद्दीन की सेना को इन्होंने मार भगाया।
● यह अपनी पत्नी रानी रूपादे की प्रेरणा से वे 1389 ई. में उगमसी भाटी के शिष्य बन गये और योग-साधना की दीक्षा प्राप्त की।
● मल्लीनाथ जी को मारवाड़ में सिद्ध पुरुष माना जाता है।
● किंवदन्तियों के अनुसार वे भविष्यद्रष्टा एवं देवताओं की तरह चमत्कार-प्राप्त सिद्ध पुरुष बन गए थे।
● 1399 ई. में मल्लीनाथजी ने मारवाड़ के सारे संतों को एकत्र करके एक वृहत् हरि-कीर्तन आयोजित करवाया। इसी वर्ष चैत्र शुक्ल द्वितीया को इनका स्वर्गवास हो गया।
● तिलवाड़ा (बाड़मेर) में लूनी नदी के तट पर इनका मंदिर बना हुआ है, जहाँ चैत्र कृष्ण एकादशी से चैत्र शुक्ल एकादशी तक विशाल पशु मेलाआयोजित किया जाता है।
● जोधपुर के पश्चिमी परगने का नामकरण मल्लीनाथजी के नाम पर मालाणी किया गया था।
● मल्लीनाथजी निर्गुण और निराकार ईश्वर में विश्वास करते थे। ईश्वर केनाम स्मरण से सांसारिक दु:खों से मुक्ति मिल सकती हैं।
● मल्लीनाथजी ने अज्ञान को छोड़कर सत्य को भजने, सत्संगति करने, ऋषियों के मार्ग का अनुसरण करने तथा जाति -पाँति के बंधनों को त्यागकर केवल सर्वशक्तिमान ईश्वर की उपासना का उपदेश दिया।
तल्लीनाथजी
● तल्लीनाथजी का प्रारंभिक नाम गांगदेव था।
● तल्लीनाथ मण्डोर के वीरमदेव के पुत्र थे।
● तल्लीनाथजी की पूजा जालोर जिले में अधिक की जाती है।
● पाँचोटा गाँव (जालोर) में पंचमुखी पहाड़ी पर इनका मुख्य पूजा स्थलहै।
● तल्लीनाथजी ने संन्यास ग्रहण करने के बाद गुरु जलन्धर राव से दीक्षाली।
● जहरीले कीड़ों के काटने पर तल्लीनाथजी की पूजा की जाती है।
वीर फत्ताजी
● इनका जन्म जालोर जिले के साथूँ गाँव में हुआ था।
● साथूँ गाँव (जालोर) में वीर फत्ताजी का विशाल मंदिर है, जहाँ भाद्रपदशुक्ल नवमी को मेला लगता है।
● फत्ताजी ने लुटेरों से गाँव की रक्षा करते हुए अपने प्राणों का बलिदान दिया।
केसरिया कुँवर
● यह गोगाजी के पुत्र थे।
● यह लोक देवता के रूप में पूजे जाते हैं।
● इनके थान पर सफेद रंग की ध्वजा फहराते हैं।
● इनके भोपे सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति का जहर मुँह से चूसकर बाहर निकाल देते हैं।
भूरिया बाबा (गौतमेश्वर)
● मीणा जाति के इष्टदेवता हैं।
● मीणा जाति के लोग इनकी झूठी कसम नहीं खाते हैं।
● भूरिया बाबा का प्रमुख स्थान गौतमेश्वर महादेव मंदिर गौडवाड़ (सिरोही)के पर्वतों में स्थित है।
मामादेव
● ये ‘बरसात के देवता’ के रूप में पूजे जाते हैं।
● ये राजस्थान के ऐसे लोक देवता हैं, जिनकी मिट्टी-पत्थर की मूर्तियाँ नहीं बनती बल्कि लकड़ी का एक विशिष्ट व कलात्मक तोरण होता है, जो गाँव के बाहर मुख्य सड़क पर प्रतिष्ठापित किया जाता है।
बाबा झूँझारजी
● इनका जन्म इमलोहा गाँव, सीकर में हुआ था।
● इनका मुख्य मंदिर स्यालोदड़ा गाँव, सीकर में है।
● इनका मेला रामनवमी को भरता है।
● वे गायों व महिलाओं की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
● बाबा झूँझारजी का स्थान सामान्यतः खेजड़ी के पेड़ के नीचे होता है।
डूँगजी-जवाहरजी
● 1857 ई. के स्वतन्त्रता संग्राम में सीकर क्षेत्र के काका-भतीजा डूँगजी-जवाहरजी प्रसिद्ध देशभक्त हुए।
● डूँगजी शेखावाटी ब्रिगेड में रिसालेदार थे।
● सहयोगी – करणा मीणा व लोहट जाट
● सीकर जिले के लुटेरे लोकदेवता, जो धनवानों व अंग्रेजों से धन लूटकर गरीबों में बाँट देते थे इसलिए उन्हें ‘गरीबों के देवता’ कहते हैं।
इलोजी
● ये ‘छेड़छाड़ वाले अनोखे देवता’ के रूप में प्रसिद्ध है।
● इलोजी की पूजा मारवाड़ में होली के अवसर पर की जाती है तथा इनकी मूर्ति आदमकद व नग्न अवस्था में होती है।
● बाड़मेर की पत्थरमार होली में इलोजी की बरात निकाली जाती है।
बुझ देवता
● ये मीणा जाति के लोकदेवता है।
भोमियाजी
● गाँव-गाँव में भूमि रक्षक देवता के रूप में प्रसिद्ध।
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