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संविधान के भाग, अनुसूचियाँ एवं प्रस्तावना

संविधान के भाग, अनुसूचियाँ एवं प्रस्तावना 

भाग

विषय

अनुच्छेद

1.

संघ और उसका राज्य क्षेत्र

1-4

2.

नागरिकता

5-11

3.

मौलिक अधिकार

12-35

4.

राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व

36-51

4 A

मूल कर्तव्य

51A

5.

संघ

52-151

6.

राज्य

152-237

7.

निरसित

238

8.

संघ राज्य क्षेत्र

239-242

9.

पंचायत

243-243O

9 A 

नगरपालिकाएँ

243P-243ZG

9 B

सहकारी समितियाँ

243ZH-243ZT

10.

अनुसूचित और जनजाति क्षेत्र

244-244A

11.

संघ और राज्यों के बीच संबंध

245-263

12.

वित्त, संपत्ति, संविदाएँ और वाद

264-300A

13.

भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य और समागम

301-307

14.

संघ और राज्यों के अधीन सेवाएँ

308-323

14 A

अधिकरण

323A-323B

15.

निर्वाचन

324-329

16.

कुछ वर्गों के लिए विशेष उपबंध

330-342

17.

राजभाषा

343-351

18.

आपात उपबंध

352-360

19.

प्रकीर्ण

361-367

20.

संविधान का संशोधन

368

21.

अस्थायी संक्रमणकालीन और विशेष उपबंध

369-392

22.

संक्षिप्त नाम, प्रारंभ हिंदी में प्राधिकृत पाठ और निरसन

393-395

संविधान की अनुसूचियाँ

(1) पहली अनुसूची :- 

 राज्यों के नाम और उनके राज्यक्षेत्र 

● संघ राज्यक्षेत्रों के नाम और उनकी सीमाएँ 

(2) दूसरी अनुसूची :- 

● वेतन-भत्तों और पेंशन से जुड़े प्रावधान।

● निम्नलिखित पदाधिकारियों के वेतन-भत्तों का उल्लेख दूसरी अनुसूची में किया गया है। 

(i) भारत का राष्ट्रपति

(ii) राज्यों के राज्यपाल 

(iii) लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष

(iv) राज्यसभा के सभापति और उपसभापति

(v) राज्य विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष

(vi) राज्य विधानपरिषद् के सभापति और उपसभापति

(vii) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश

(viii) उच्च न्यायालय के न्यायाधीश

(ix) नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक

(3) तीसरी अनुसूची :- 

● शपथ या प्रतिज्ञान का प्रारूप–

(i) संघ के मंत्री

(ii) सांसद प्रत्याशी

(iii) सांसद

(iv) सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश

(v) नियंत्रक व महालेखा परीक्षक

(vi) राज्यों के मंत्री

(vii) विधायक प्रत्याशी

(viii) विधायक

(ix) उच्च न्यायालय के न्यायाधीश

(4) चौथी अनुसूची :- 

● राज्यसभा में सीटों का बँटवारा।

(5) पाँचवीं अनुसूची :- 

● अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण संबंधि प्रावधान।

(6) छठी अनुसूची :- 

● असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों के जनजाति क्षेत्रों के प्रशासन संबंधि प्रावधान।

(7) सातवीं अनुसूची :- 

● संघ, राज्य और समवर्ती सूची में शामिल विषय। 

● मूल संविधान में संघ सूची में (97 विषय), राज्य सूची में (66 विषय) और समवर्ती सूची में (47 विषय) शामिल थे। 

नोट :  वर्तमान में संघ सूची में (100 विषय), राज्य सूची में (61 विषय) और समवर्ती सूची में (52 विषय) शामिल है।

(8) आठवीं अनुसूची :- 

● संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त भाषाएँ। 

● मूल संविधान में 14 भाषाएँ थी, जो निम्निलिखित है- 

1. असमिया 

2. बंगला 

3. गुजराती 

4. हिन्दी 

5. कन्नड़ 

6. कश्मीरी 

7. मलयालम 

8. मराठी 

9. ओडिया 

10. पंजाबी 

11. संस्कृत 

12. तमिल 

13. तेलुगु 

14. उर्दू 

(9) नौवीं अनुसूची :-  

● इस अनुसूची को प्रथम संविधान संशोधन, 1951 द्वारा जोड़ा गया था। 

● इसका उद्देश्य भूमि सुधारों तथा ज़मींदारी प्रथा का उन्मूलन करने के लिए बनाए जाने वाले अधिनियमों, नियमों, विनियमों आदि को न्यायिक पुनरवलोकन से संरक्षित रखना था अर्थात् जिन कानूनों को नौवीं अनुसूची में रख दिया जाता है तो न्यायपालिका उनका न्यायिक पुनरवलोकन नहीं कर सकती है। 

● मूलत: इसमें 13 अधिनियम थे लेकिन वर्तमान में इसमें 284 अधिनियम है। 

नोट :  कोएल्हो केस, 2007 में उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि 24 अप्रैल, 1973 के बाद इस अनुसूची में शामिल कानूनों का न्यायिक पुनरवलोकन किया जा सकता है।

(10) दसवीं अनुसूची :-  

● दल-बदल के आधार पर संसद और विधानसभा के सदस्यों की निरर्हताओं से संबंधित उपबंध।  

● इस अनुसूची को 52वें संविधान संशोधन, 1985 द्वारा जोड़ा गया।

(11) ग्यारहवीं अनुसूची :- 

● पंचायतीराज संस्थाएँ तथा उनकी शक्तियाँ, प्राधिकार और उत्तरदायित्व। 

● इस अनुसूची को 73वें संविधान संशोधन, 1992 द्वारा जोड़ा गया।

● इसमें पंचायतीराज संस्थाओं को 29 विषय दिए गए हैं।

ग्याहरवी अनुसूची के विषय – 

1. कृषि जिसके अन्तर्गत कृषि विस्तार है।

2. भूमि विकास, भूमि सुधार का कार्यान्वयन, चकबन्दी और भूमि संरक्षण। 

3. लघु सिंचाई, जल प्रबंध और जल विभाजक क्षेत्र का विकास।

4. पशुपालन, डेयरी उद्योग और कुक्कुट-पालन।

5. मत्स्य उद्योग।

6. सामाजिक वानिकी और फार्म वानिकी। 

7. लघु वन उपज। 

8. लघु उद्योग, जिनके अन्तर्गत खाद्य प्रसंस्करण उद्योग भी हैं।

9. खादी, ग्रामोद्योग और कुटीर उद्योग। 

10. ग्रामीण आवासन। 

11. पेयजल। 

12. ईंधन और चारा। 

13. सड़कें, पुलिया, पुल, फेरी, जलमार्ग और अन्य संचार साधन। 

14. ग्रामीण विद्युतीकरण जिसके अन्तर्गत विद्युत का वितरण है। 

15. अपांरपारिक ऊर्जा स्रोत। 

16. गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम। 

17. शिक्षा, जिसके अन्तर्गत प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय भी है। 

18. तकनीकी प्रशिक्षण और व्यावसायिक शिक्षा। 

19. प्रौढ़ और अनौपचारिक शिक्षा। 

20. पुस्तकालय। 

21. सांस्कृतिक क्रियाकलाप। 

22. बाजार और मेले। 

23. स्वास्थ्य और स्वच्छता, जिनके अन्तर्गत अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र और औषधालय भी है। 

24. परिवार कल्याण। 

25. महिला और बाल विकास। 

26. समाज कल्याण, जिसके अन्तर्गत विकलांगों और मानसिक रूप से मंद व्यक्तियों का कल्याण भी है। 

27. दुर्बल वर्गों का विशिष्टतया, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का कल्याण। 

28. सार्वजनिक वितरण प्रणाली। 

29. सामुदायिक आस्तियों का अनुरक्षण। 

(12) बारहवीं अनुसूची :-  

● नगरपालिकाएँ तथा उनकी शक्तियाँ, प्राधिकार और उत्तरदायित्व।

● इस अनुसूची को 74वें संविधान संशोधन, 1992 द्वारा जोड़ा गया।

  इसमें नगरपालिकाओं को 18 विषय दिए गए है।

 बाहरवीं अनुसूची के विषय –  

1. नगरीय योजना जिसके अन्तर्गत नगर योजना भी है। 

2. भूमि उपयोग का विनियमन और भवनों का निर्माण। 

3. आर्थिक और सामाजिक विकास योजना। 

4. सड़कें और पुल। 

5. घरेलू औद्योगिक और वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिए जल प्रदाय। 

6. लोक स्वास्थ्य, स्वच्छता, सफाई और कूड़ा- करकट प्रबन्ध। 

7. अग्निशमन सेवाएँ।

8. नगरीय वानिकी, पर्यावरण का संरक्षण और पारिस्थितिकी आयामों की अभिवृद्धि। 

9. समाज के दुर्बल वर्गों के, जिनके अन्तर्गत विकलांग और मानसिक रूप से मंद व्यक्ति भी है, हितों की रक्षा। 

10. गंदी- बस्ती सुधार और प्रौन्नयन। 

11. नगरीय निर्धनता उन्मूलन। 

12. नगरीय सुख-सुविधाओं और अन्य सुविधाओं, जैसे पार्क, उद्यान, खेल के मैदानों की व्यवस्था। 

13. सांस्कृतिक, शैक्षणिक और सौन्दर्यपरक आयामों की अभिवृद्धि। 

14. शव गाड़ना और कब्रिस्तान, शवदाह और श्मशान और विद्युत शवदाह गृह। 

15. कांजी हाउस, पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण। 

16. जन्म-मरण सांख्यिकी, जिनके अन्तर्गत जन्म और मृत्यु रजिस्ट्रीकरण भी है। 

17. सार्वजनिक सुख-सुविधाएँ, जिनके अन्तर्गत सड़कों पर प्रकाश, पार्किंग स्थल, बस स्टॉप और जन सुविधाएँ भी हैं। 

18. वधशालाओं और चर्मशोधनशालाओं का विनियमन। 

संविधान की प्रस्तावना

 ● प्रस्तावना, संविधान का सार मानी जाती है उसके लक्ष्य प्रकट करती है। संविधान का दर्शन भी इसके माध्यम से प्रकट होता है। 

● भारतीय संविधान की प्रस्तावना या उद्देशिका का स्रोत पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा संविधान सभा में 13 दिसंबर, 1946 को प्रस्तुत उद्देश्य प्रस्ताव है। 

● भारतीय संविधान की उद्देशिका संविधान निर्माताओं के विचारों को जानने की कुंजी है। 

● प्रस्तावना को 'संविधान की मार्गदर्शिका' भी कहा जाता है। 

● संविधान की प्रस्तावना में अब तक एक बार संशोधन किया गया है। यह संशोधन 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से किया गया। 42वें संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में तीन नए शब्द- समाजवादी, पंथनिरपेक्ष और अखण्डता जोड़े गए। 

● सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार उद्देशिका/प्रस्तावना का प्रयोग संविधान निर्माताओं के मस्तिष्क में झाँकने और उसके उद्देश्य को जानने में प्रयोग की जा सकती है। 

● प्रस्तावना यह घोषणा करती है कि संविधान अपनी शक्ति सीधे जनता से प्राप्त करता है। इसी कारण यह 'हम भारत के लोग' से प्रारंभ होती है। 

प्रस्तावना की प्रकृति :- 

1. यह संविधान का महत्त्वपूर्ण अंग नहीं है क्योंकि यह राज्य के तीनों अंगों की कोई शक्ति नहीं है। यह अपनी शक्तियाँ संविधान के अन्य अनुच्छेदों से प्राप्त करती है। इसी तरह यह उनकी शक्तियों पर कोई रोक भी नहीं लगाती है। 

2. संविधान के किसी भाग पर यह कोई विशेष बल नहीं देती है। संविधान के अनुच्छेद तथा इसमें विवाद होने पर, अनुच्छेद को वरीयता मिलेगी। 

3. न्यायालय में इसके आधार पर कोई वाद नहीं लाया जा सकता है, न ही वे इसे लागू कर सकते हैं। 

महत्त्वपूर्ण परिभाषाएँ :-

एन.ए.पालकीवाला ने प्रस्तावना को ‘संविधान का परिचय-पत्र’ कहा है। 

ठाकुरदास भार्गव के अनुसार, "प्रस्तावना संविधान का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग है। यह संविधान की आत्मा और संविधान की कुंजी है।"

के.एम.मुंशी ने प्रस्तावना को 'संविधान की राजनीतिक कुंडली कहा है।'

अल्लादी कृष्णा स्वामी अय्यर के अनुसार, "संविधान की प्रस्तावना हमारे दीर्घकालिक सपनों का विचार है।"

अर्नेस्ट बार्कर ने भारतीय संविधान की प्रस्तावना को संविधान का 'कुंजी नोट' कहा है।

बेरुबारी विवाद (1960) :-

● इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह माना कि प्रस्तावना  संविधान का भाग नहीं है।

● प्रस्तावना में संशोधन नहीं किया जा सकता है। 

● जहाँ संविधान की भाषा संदिग्ध या अस्पष्ट है, वहाँ प्रस्तावना संविधान निर्माताओं के आशय को समझने में सहायक है। अत: यह संविधान निर्माताओं के विचारों को जानने की कुंजी है।

केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) :-

● इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह माना कि प्रस्तावना संविधान का एक भाग है। संविधान में इसका वही स्थान है जो अन्य उपबंधों का है।

● प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता है (लेकिन मूलभूत ढाँचे में नहीं) 

● प्रस्तावना न्याय योग्य नहीं है, अर्थात् इसके आधार पर कोई निर्णय नहीं दिया जा सकता है।

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