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हिंदी: संज्ञा

संज्ञा

 

●  संज्ञा  शब्द –   संज्ञा =   सम्  +   ज्ञा 

                                      ↓        ↓                        

                                  सम्यक्    ज्ञान

●  इस प्रकार संज्ञा का शाब्दिक अर्थ है – सम्यक् ज्ञान कराने वाला/सम्यक् रूप से जानना।

●  संज्ञा का अर्थ होता है – ‘नाम’। (कोई भी वस्तु, स्थान, प्राणी, पदार्थ इत्यादि संज्ञा नहीं है; अपितु इनके 'नाम' जिससे उस वस्तु की पहचान हो रही है, वह संज्ञा हैं।)

●  परिभाषा – किसी प्राणी, वस्तु, स्थान, भाव, अवस्था, गुण या दशा के नाम को संज्ञा कहते हैं; जैसे – मोहन, जयपुर, कुर्सी, पेन, नदी, अमीरी, गरीबी, बुढ़ापा, बचपन इत्यादि। 

●  संज्ञा के भेद – संज्ञा के मुख्यत: तीन भेद होते हैं –   

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व्यक्तिवाचक संज्ञा

●  किसी व्यक्ति विशेष, वस्तु विशेष, स्थान विशेष इत्यादि के नाम का बोध कराने वाले शब्द व्यक्तिवाचक संज्ञा शब्द कहलाते हैं; जैसे – 

स्त्री-पुरुषों के नाम – राधा, गोविंद, रमेश, पार्वती इत्यादि। 

देवी-देवताओं के नाम – शिव, विष्णु, पार्वती, लक्ष्मी इत्यादि। 

देशों के नाम – भारत, पाकिस्तान, चीन, नेपाल इत्यादि। 

राज्यों के नाम – राजस्थान, गुजरात, पंजाब इत्यादि। 

खाड़ी एवं झीलों के नाम – बंगाल की खाड़ी, नक्की झील आदि। 

महाद्वीपों के नाम – एशिया, यूरोप आदि। 

ऐतिहासिक दरवाजे एवं खिड़कियों के नाम – इंडिया गेट, अजमेरी गेट, सांगानेरी गेट, बीचली खिड़की इत्यादि। 

दुर्ग एवं किलों के नाम – रणथम्भौर दुर्ग, चित्तौड़ दुर्ग, चूरू का किला आदि। 

उपाधि एवं पुरस्कारों के नाम – गार्गी, अर्जुन आदि। 

सरकारी योजनाओं के नाम – जन-धन योजना आदि। 

खेलों के नाम – क्रिकेट, हॉकी, फुटबॉल इत्यादि। 

जिले, तहसील, गाँव के नाम – जयपुर, टोंक, मालपुरा इत्यादि। 

पठार एवं मैदानों के नाम – हाड़ौती का पठार, छप्पन का मैदान आदि।

दिशाओं के नाम – पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण इत्यादि। 

नदियों के नाम – गंगा, यमुना, चम्बल इत्यादि। 

पहाड़ों के नाम – अरावली, हिमालय आदि। 

समाचार-पत्रों के नाम – दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका आदि। 

चौकों के नाम – चाँदनी चौक आदि।

त्योहारों के नाम – दीपावली, होली आदि। 

ऐतिहासिक युद्धों के नाम – बक्सर का युद्ध, हल्दीघाटी का युद्ध आदि।

ग्रंथों/पुस्तकों के नाम – महाभारत, रामायण, भगवद्‌गीता, बाइबल, कुरान इत्यादि।

दिनों के नाम – रविवार से शनिवार।

ग्रह – नक्षत्रों के नाम – सूर्य, चन्द्रमा, पृथ्वी, राहू, केतु, शनि, बृहस्पति इत्यादि।

महीनों के नाम – जनवरी से दिसम्बर।

जानवरों के नाम – चेतक (घोड़ा), ऐरावत (हाथी) इत्यादि। 

विशेष – परमात्मा, प्रकृति एवं ईश्वर व्यक्तिवाचक संज्ञा शब्द हैं।

व्यक्तिवाचक संज्ञा की विशेषताएँ

1. व्यक्तिवाचक संज्ञा किसी विशेष प्राणी, विशेष वस्तु अथवा विशेष पदार्थ के नाम का बोध कराती है।

2. व्यक्तिवाचक संज्ञा दुनिया में एक ही होती है; जैसे – ‘गंगा’ एक नदी का नाम है तो वह एक ही है और ‘गंगा’ को किसी स्त्री विशेष का नाम माने तब भी ‘गंगा’ एक ही स्त्री है। (‘गंगा’ नाम की स्त्रियाँ कई हो सकती है; परन्तु प्रत्येक ‘गंगा’ एक विशेष व्यक्ति ही होंगी।)  

3. इनका वचन, लिंग तथा कारकीय (परसर्ग) रूपान्तरण नहीं होता है।    चक संज्ञा का जातिवाचक संज्ञा के रूप में प्रयोग

●  जब कोई व्यक्तिवाचक संज्ञा शब्द किसी व्यक्ति विशेष का बोध न कराकर उसी व्यक्ति जैसे गुणों से युक्त अनेक व्यक्तियों के वर्ग (जाति) का बोध कराता है, तब वह व्यक्तिवाचक संज्ञा न होकर जातिवाचक संज्ञा बन जाता है; जैसे – 

- आज हर शहर में रावण घूम रहे हैं। इस वाक्य में ‘रावण’ शब्द अधर्मी (बुरे) लोगों के वर्ग के रूप में प्रयुक्त हुआ है। अत: यहाँ ‘रावण’ शब्द व्यक्तिवाचक संज्ञा न होकर जातिवाचक संज्ञा के रूप में प्रयुक्त हुआ है। 

इसी प्रकार अन्य उदाहरण – 

- आज देश में अनेक जयचंद पैदा हो गए हैं। (जयचंद – देशद्रोही व्यक्ति)

- वह हमारे परिवार में विभीषण निकला। (विभीषण – घर का भेदी)

●  व्यक्तिवाचक संज्ञा का प्रयोग (आदरार्थक को छोड़कर) एकवचन में हीं होता है; परन्तु जब व्यक्तिवाचक संज्ञा का प्रयोग बहुवचन में किया जाता है, तब व्यक्तिवाचक संज्ञा जातिवाचक संज्ञा बन जाती है; जैसे

- इन्हीं जयचंदों के कारण देश गुलाम हुआ। (जयचंद का बहुवचन रूप ‘जयचंदों’ जातिवाचक संज्ञा)

●  व्यक्तिवाचक संज्ञा का कोई शब्द जब अपने साथ अन्य नाम का बोध कराता है, तो उस अन्य नाम में जातिवाचक संज्ञा होगी। (कुछ लोगों के जीवन में प्राय: अन्य लोगों के जीवन से अलग कोई ऐसा गुण, अवगुण तथा विशेषताएँ होती है, जिसके कारण उनका नाम उस विशेष गुण या अवगुण का प्रतिनिधित्व करने लगता है। ऐसी स्थिति में वह नाम, व्यक्ति विशेष का नाम होते हुए भी जातिवाचक शब्द बन जाता है।)

विशेष – यहाँ तुलना का भाव होना आवश्यक है।     

- आज के जमाने में कोई शेक्सपीयर नहीं है। (यहाँ 'शेक्सपीयर' व्यक्तिवाचक संज्ञा शब्द न होकर जातिवाचक संज्ञा शब्द है।)

- शेक्सपीयर महान् कवि था (यहाँ 'शेक्सपीयर' व्यक्तिवाचक संज्ञा शब्द है; क्योंकि यहाँ तुलना या समानता का भाव प्रकट नहीं हो रहा है।)

इसी प्रकार अन्य उदाहरण – 

सीता हमारे घर की लक्ष्मी है। (‘सीता’ व्यक्तिवाचक संज्ञा और ‘लक्ष्मी’ जातिवाचक संज्ञा)

कालिदास को भारत का शेक्सपियर कहते हैं। (‘कालिदास‘ व्यक्तिवाचक संज्ञा और ‘शेक्सपियर’ जातिवाचक संज्ञा) 

जातिवाचक संज्ञा

●  जिन संज्ञाओं में एक जाति के अन्तर्गत आने वाले सभी व्यक्तियों, वस्तुओं, स्थानों के नामों का बोध होता है, जातिवाचक संज्ञा कहलाती है; जैसे – 

पशु-पक्षियों की जाति – तोता, चिड़िया, कबूतर इत्यादि। 

पेड़ों एवं फलों की जाति – आम, पपीता, केला, पीपल इत्यादि। 

मनुष्यों की जाति – छात्र, छात्रा, लड़का, लड़की, बालक, बालिका, औरत, स्त्री, महिला, पुरुष, आदमी इत्यादि। 

दैनिक उपयोगी वस्तुओं के नाम – कुर्सी, घड़ी, कलम इत्यादि। 

प्राकृतिक आपदाओं के नाम – आँधी, तूफान, ज्वालामुखी, भूकम्प, बाढ़ इत्यादि। (रोशनी, वर्षा, बिजली, तारा, किरण इत्यादि प्राकृतिक घटनाएँ जो महिलाओं के नाम भी है; परन्तु ये सभी जातिवाचक संज्ञा शब्द के उदाहरण हैं।)

शारीरिक अंगों के नाम – नाक, कान, मुँह, पेट, गला इत्यादि। 

सामाजिक संबंधों के नाम – भाई-बहन, माता-पिता, चाचा-चाची, नाना-नानी इत्यादि। 

पदों/व्यवसायों के नाम – मंत्री, प्रोफेसर, व्याख्याता, वकील, डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक, विधायक, कृषक, जुलाहा इत्यादि। 

संपूर्ण वर्ग या जाति का नाम – नगर, देश, पहाड़, घर, मुहल्ला, गाँव, शहर, प्रांत, तहसील, ज़िला, राज्य, देश, महाद्वीप इत्यादि। 

स्थानों के नाम – घर, भवन, दुर्ग, किला, विद्यालय, बगीचा, महाविद्यालय, संसद, कचहरी, विधानसभा, लोकसभा इत्यादि।

जातिवाचक संज्ञा की विशेषताएँ

1. जातिवाचक संज्ञा किसी प्राणी, पदार्थ अथवा समुदाय की सम्पूर्ण जाति का बोध करवाती है।

2. जातिवाचक संज्ञा को वस्तु के समान गुण के आधार पर पहचान सकते हैं।

3. जातिवाचक संज्ञा का वचन, लिंग तथा कारकीय (परसर्ग) रूपान्तरण होता है।चसंज्ञा का व्यक्तिवाचक संज्ञा के रूप में प्रयोग

●  जातिवाचक संज्ञा का कोई शब्द जब सम्पूर्ण जाति का बोध न कराकर  किसी व्यक्ति विशेष के अर्थ में रूढ़ हो जाता है, तो वहाँ व्यक्तिवाचक संज्ञा होती है; जैसे – 

- गाँधीजी ने देश को सत्य और अहिंसा का पाठ पढ़ाया। इस वाक्य में ‘गाँधी’ के अंतर्गत इन्दिरा गाँधी, राजीव गाँधी, राहुल गाँधी, महात्मा गाँधी इत्यादि शब्द आते हैं अर्थात् जातिवाचक संज्ञा है, परन्तु यहाँ ‘गाँधी’ का प्रयोग महात्मा गाँधी (व्यक्ति विशेष) हेतु हुआ है। अत: यहाँ ‘गाँधी’ शब्द जातिवाचक संज्ञा न होकर व्यक्तिवाचक संज्ञा के रूप में प्रयुक्त हुआ है। इसी प्रकार अन्य उदाहरण – 

- नेता जी ने आजाद हिन्द फौज का गठन किया। (नेताजी – सुभाष चन्द्र बोस)

- गोस्वामी जी ने रामचरितमानस की रचना की। (गोस्वामी – तुलसीदास)

●  गुणवाचक विशेषण का प्रयोग यदि बहुवचन रूप में किया जाए तो वह जातिवाचक संज्ञा बन जाती है; जैसे – 

बड़ों की सेवा करनी चाहिए।

दीनों को मत सताओ।

●  विशेषण का प्रयोग यदि संज्ञा के स्थान पर किया जाए तो वह जातिवाचक संज्ञा बन जाता है; जैसे –   

बूढ़ा जा रहा है।

घर के बाहर कोई जवान खड़ा है।

व्यक्तिवाचक संज्ञा एवं जातिवाचक संज्ञा में अंतर

1. व्यक्तिवाचक संज्ञा को बदला जा सकता हैं; परन्तु जातिवाचक संज्ञा को बदला नहीं जा सकता है।

2. व्यक्तिवाचक संज्ञा अनित्य होती है; परन्तु जातिवाचक संज्ञा नित्य होती है।

3. व्यक्तिवाचक संज्ञा (तत्सम शब्दों से निर्मित व ईश्वर, प्रकृति, परमात्मा, परमेश्वर, ब्रह्म इत्यादि को छोड़कर) अर्थहीन होती है; परन्तु जातिवाचक संज्ञा अर्थवान् होती है।

जातिवाचक संज्ञा के दो उपभेद

(i) समूहवाचक/समुदायवाचक संज्ञा – जिस संज्ञा शब्द से किसी झुंड, समूह या समुदाय का बोध हो, उसे समूहवाचक या समुदायवाचक संज्ञा कहते हैं (जिन्हें गिना जाता हो; परंतु मापा एवं तौला नहीं जाता हो); जैसे – 

●  व्यक्तियों का समूह – दरबार, सभा, समिति, मण्डली, भीड़, जुलूस, जत्था, पुलिस, सेना, दल, आयोग, कक्षा, परिवार, झुण्ड, टोली, संसद, राज्यसभा, लोकसभा, विधानसभा, परिषद्, वर्ग, कुंज इत्यादि।

●  वस्तुओं/पदार्थों का समूह – गुच्छा, पुंज, ढेर, शृंखला, गुरूस, दर्जन, गट्‌ठर इत्यादि।    

विशेष – 

1. समूहवाचक संज्ञा शब्द किसी व्यक्ति के वाचक न होकर समूह या समुदाय के वाचक होते हैं; जैसे – कक्षा, परिवार, सेना आदि।

2. समूहवाचक संज्ञा अनेक गणनीय संज्ञाओं के समूह से बनती है।

(ii)  द्रव्यवाचक संज्ञा – जिस संज्ञा शब्द से किसी ठोस, तरल, पदार्थ, धातु, अधातु इत्यादि का बोध हो, द्रव्यवाचक संज्ञा कहलाती हैं। 

●  नाप – तौल के पदार्थों अथवा वस्तुओं (जिसे हम माप या तौल सकते है; परन्तु गिन नहीं सकते) का बोध कराने वाले संज्ञा शब्द द्रव्यवाचक संज्ञा के उदाहरण माने जाते हैं; जैसे – लोहा, सोना, चाँदी, पानी, घी, तेल, डालडा, दूध, दही, छाछ, मिट्‌टी, सब्जी, फल, अन्न, आटा, चीनी, चूना, गेहूँ, सरसों, गुड़, लकड़ी, पत्थर, प्लास्टिक इत्यादि।

विशेष – 

1. द्रव्यवाचक संज्ञाओं को हम माप या तौल सकते हैं अर्थात् ये मात्रात्मक या परिमाणात्मक होती है।

2. द्रव्यवाचक संज्ञाओं को हम गिन नहीं सकते हैं अर्थात् ये अगणनीय होती है।

3. द्रव्यवाचक संज्ञाओं का प्रयोग सदैव 'एकवचन' में किया जाता है; क्योंकि ये अगणनिय होती हैं।

भाववाचक संज्ञा

●  जिन संज्ञा शब्दों से पदार्थों की अवस्था, गुण, दोष, धर्म, दशा, स्वभाव, चेष्टा, विचार, व्यापार इत्यादि का बोध हो, वे भाववाचक संज्ञा शब्द कहलाते हैं; जैसे – 

उष्णता, शीतलता, ठंडक, उदारता, सज्जनता, सुंदरता, माधुर्य, यौवन, बचपन, बुढ़ापा, कृत्रिमता, निद्रा, अंधेरा, रोग, पीड़ा, निर्धनता, दरिद्रता, स्वच्छता, सजावट, मेहनत, धुलाई, दौड़धूप, लिखाई, पढ़ाई, बनावट, प्रेम, सुख, दु:ख, क्रोध, मोह, प्यार, ईर्ष्या, रोग, शोक, जन्म, मृत्यु, क्षमा, घृणा, दया, सत्य इत्यादि। 

विशेष – 

1. व्यक्तिवाचक एवं जातिवाचक संज्ञाओं को हम देख सकते है, स्पर्श कर सकते हैं तथा चित्र बना सकते है; परन्तु भाववाचक संज्ञाओं को हम केवल अनुभव एवं महसूस कर सकते हैं। (भाववाचक संज्ञाओं को हम देख एवं स्पर्श नहीं कर सकते हैं और न ही चित्र बना सकते हैं)  

2. भाववाचक संज्ञा अमूर्त होती है अर्थात् उन्हें हम देख नहीं सकते; परन्तु इन संज्ञाओं में अन्तर्निहित भावों को महसूस कर सकते हैं।        

3. भाववाचक संज्ञाएँ अर्थवान् होती है; क्योंकि इनसे वस्तु अथवा पदार्थ के धर्म का बोध होता है; जैसे – लोहे से भारीपन, जल से शीतलता आदि।

भाववाचक संज्ञाओं की रचना

●  भाववाचक संज्ञाएँ 5 प्रकार के शब्दों से बनती हैं।जातिवाचक संज्ञा शब्दों से भाववाचक संज्ञा शब्दों का निर्माण

जातिवाचक

भाववाचक

जातिवाचक

भाववाचक

दानव

दानवता

नारी

नारीत्व

कलाकार

कलाकारी

भक्त

भक्ति

शिशु

शैशव/शिशुता

नवाब

नवाबी

पशु

पशुता/पशुत्व

पुरोहित

पौरोहित्य

नौकर

नौकरी

लड़का

लड़कपन

इन्सान

इन्सानियत

अतिथि

आतिथ्य

विद्वान्

विद्वता/वैदुष्य

मर्द

मर्दानगी

पंडित

पांडित्य

आदमी

आदमीयत

मानव

मानवता

युवक

यौवन

खादिम

खिदमत

किशोर

कैशोर्य

वक्ता

वक्तृत्व

वकील

वकालत

ठाकुर

ठकुराई/ठाकुरी

दास

दासता

चिकित्सक

चिकित्सा

तरुण

तारुण्य/तरुणाई

बूढ़ा

बुढ़ापा

मित्र

मित्रता

भ्राता

भ्रातृत्व

बालक

बालकपन

मनुष्य

मनुष्यता

ब्राह्मण

ब्राह्मणत्व

जामाता

जामातृत्व

गुरु

गौरव

चोर

चोरी

माता

मातृत्व

किसान

किसानी

बच्चा

बचपन

डाकू

डकैती

स्त्री

स्त्रीत्व

विशेषण शब्दों से भाववाचक संज्ञा शब्दों का निर्माण

विशेषण

वाचक

भाववाचक

विशेषण वाचक

भाववाचक

रक्त

रक्तिमा

भाग्यवान्

भाग्य/भाग्यवत्ता

गरीब

गरीबी

प्रतापी

प्रताप

पीला

पीलापन

मर्यादित

मर्यादा

नास्तिक

नास्तिकता

अम्ल

अम्लता

लज्जित

लज्जा

मधु

मधुत्व/मधुता

धीर

धैर्य/धीरजता/

धीरता

खट्‌टा

खट्‌टाई/

खट्‌टास

अरुण

अरुणिमा/

अरुणता

सरल

सरलता/

सारल्य

लाल

लालिमा

उन्नत

उन्नति

भारी

भारीपन

पतला

पतलापन

हरा

हरापन/

हरीतिमा

मधुर

मधुरता/मधुराई

/माधुर्य

खारा

खारापन/

खारास

चतुर

चतुरता/चतुराई

/चातुर्य

कुपात्र

कुपात्रता

परिष्कृत

परिष्कार

उदासीन

उदासीनता

कुटिल

कुटिलता/

कौटिल्य

नीरव

नीरवता

अकेला

अकेलापन

प्रसन्न

प्रसन्नता

अजर

अजरता

भावुक

भावुकता

उचित

औचित्य/

उचितता

भूरा

भूरापन

अस्थिर

अस्थिरता

बह्मचारी

बह्मचर्य

अधिक

अधिकता/

आधिक्य

परतन्त्र

परतन्त्रता

सौभाग्यवान्

सौभाग्यवत्ता

मौलिक

मौलिकता

अजनबी

अजनबीपन

गंदा

गंदगी/गंदापन

कुँआरा

कुँआरापन

ऊँचा

ऊँचाई

उपयोगी

उपयोगिता

बुरा

बुराई

अनिवार्य

अनिवार्यता

नश्वर

नश्वरता

उदार

उदारता/औदार्य

मीठा

मिठास

गंभीर

गंभीरता/गांभीर्य

धीमान्

धीमत्ता

उपयुक्त

उपयुक्तता

तीखा

तीखापन

कृत्रिम

कृत्रिमता

विनम्र

विनम्रता

कुशल

कुशलता/कौशल

कषाय

कषायता

नकटा

नकटापन

गोरा

गोरापन

प्रपंची

प्रपंच

सुभाग

सौभाग्य

धीर

धीरुता

अच्छा

अच्छाई

वीर

वीरता

काला

कालापन

गँवार

गँवारूपन

कृतघ्न

कृतघ्नता

गहरा

गहराई

सफ़ेद

सफ़ेदी

एक

एकता/एकत्व

बुरा

बुराई

कटु

कटुता

नास्तिक

नास्तिकता

असाध्य

असाध्यता

मीठा

मिठास

कातर

कातरता

प्रतिष्ठित

प्रतिष्ठा

कायर

कायरता

तीखा

तीखापन

नवीन

नवीनता

भिन्न

भिन्नता

निर्भर

निर्भरता

चंचल

चंचलता/

चांचल्य

बुद्धिमान्

बुद्धिमत्ता

अरुण

अरुणता/

अरुणिमा

महान्

महत्ता

कठोर

कठोरता

आयुष्मान्

आयुष्मता

कुशाग्र

कुशाग्रता

श्रीमान्

श्रीमत्ता

संभाव्य

संभाव्यता

विद्वान्

विद्वत्ता

मंथर

मंथरता

हनुमान्

हनुमत्ता

कृश

कृशता

धैर्यवान

धैर्यवत्ता

पराधीन

पराधीनता

असार

असारता

परतंत्र

परतंत्रता

मौलिक

मौलिकता

मंद

मंदता

ग्रामीण

ग्रामीणता

नवल

नवलता

नीच

नीचता

निपुण

निपुणता/

नैपुण्य

आस्तिक

आस्तिकता

अवसरवदी

अवसरवादिता

मादक

मादकता

आलसी

आलस्यता/

आलस्य

अमर

अमरता/अमरत्व

भव्य

भव्यता

असह्य

असह्यता

चपल

चपलता/

चापल्य

सभ्य

सभ्यता

चारु

चारुता

ऋजु

ऋजुता

ग्राह्य

ग्राह्यता

सुन्दर

सुन्दरता/सौंदर्य

अतिशय

अतिशयता

आधुनिक

आधुनिकता

     सर्वनाम शब्दों से भाववाचक संज्ञा शब्दों का निर्माण      

सर्वनाम

भाववाचक

सर्वनाम

भाववाचक

अपना

अपनत्व/अपनापन

स्व

स्वत्व

निज

निजता/निजत्व

आत्मन्

आत्मीयता

मम

ममता/ममत्व

अहं

अहंकार

तेरा

तेरापन

मेरा

मेरापन

क्रियापदों से भाववाचक संज्ञा शब्दों का निर्माण

क्रियापद

भाववाचक

क्रियापद

भाववाचक

चिल्लाना

चिल्लाहट

घबराना

घबराहट

पढ़ना

पढ़ाई

चढ़ना

चढ़ाई/चढ़ाव

धोना

धुलाई

खुजलाना

खुजलाहट

उतरना

उतराई/उतार

कमाना

कमाई

पहुँचना

पहुँच

घुर्राना

घुर्राहट

उबालना

उबाल

खींचना

खिंचाव

लिखना

लिखावट

सजाना

सजावट

sखेलना

खेल

गिड़गिड़ाना

गिड़गिड़ाहट

बहना

बहाव

झुँझलाना

झुँझलाहट

उड़ना

उड़ान

बनाना

बनावट

बोलना

बहाव

कसना

कसावट

खीजना

खीज

पीसना

पिसाई

दौड़ना

दौड़

हड़बड़ाना

हड़बड़ाहट

लिखना

लिखाई

फैलना

फैलाव

गरजना

गर्जन

खोजना

खोज

पूजना

पूजा

बचना

बचाव

थकना

थकावट

गिनना

गिनती

अविकारी शब्दों से भाववाचक संज्ञा शब्दों का निर्माण

अविकारी

भाववाचक

अविकारी

भाववाचक

बहुल

बहुलता/बाहुल्य

परस्पर

पारस्परिक

देर

देरी

हाहा

हाहाकार

समीप

समीपता/सामीप्य

निकट

निकटता/नैकट्य

जल्दी

जल्दबाजी

वाहवाह

वाहवाही

धिक्

धिक्कार

तेज़

तेज़ी

शीघ्र

शीघ्रता

मना

मनाही

नीचे

निचाई

ऊपर

ऊपरी

दूर

दूरी

बाहर

बाहरी

●  व्युत्पति के आधार पर संज्ञा के दो भेद हैं – रूढ़ संज्ञा और यौगिक संज्ञा। 

(1) रूढ़ संज्ञा – जो संज्ञाएँ अलग-अलग निरर्थक खंडों से मिलकर बनी हों और जो केवल एक अर्थ को प्रकट करें, उन्हें ‘रूढ़ संज्ञा’ कहते हैं; जैसे – बल, घर, काम इत्यादि।

(2) यौगिक संज्ञा – ऐसी संज्ञाएँ जो अलग-अलग सार्थक खंडों से मिलकर बनी हों, उन्हें ‘यौगिक संज्ञा’ कहते हैं; जैसे – विद‌्यालय (विद‌्या + आलय), देवालय (देव + आलय), धर्मशाला (धर्म + शाला) इत्यादि।

अन्य विशेष नियम

1. जातिवाचक संज्ञा एकवचन तथा बहुवचन दोनों रूप में प्रयुक्त होती हैं। 

2. व्यक्तिवाचक संज्ञा से भाववाचक संज्ञा का निर्माण नहीं किया जाता बल्कि विशेषण का निर्माण किया जाता है; जैसे – 

भारत से भारतीय, जोधपुर से जोधपुरी, 

बीकानेर से बीकानेरी, नागौर से नागौरी 

3. संज्ञा शब्दों में लिंग, वचन तथा कारक द्वारा रूपान्तरण होता है तथा लिंग, वचन तथा कारक संज्ञा के रूपान्तरक या विकारक तत्त्व कहलाते हैं।

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