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सामान्य विज्ञान: कोशिका

कोशिका

1665 ईमें सर्वप्रथम ‘रॉबर्ट हुक’ ने कोशिका को देखाहालाँकि रॉबर्ट हुकने मृत कोशिकाओं को देखाजिनमें उन्हें ‘कोशिका भित्ति’ दिखाई दीफिर भीकोशिका की खोज का श्रेय रॉबर्ट हुक को ही जाता है।

रॉबर्ट हुक ने अपनी पुस्तक ‘माइक्रोग्राफिया’ में कोशिका के बारे में बताया।

- 1855 ईमें ‘रुडोल्फ विर्चो’ ने सर्वप्रथम बताया कि नई कोशिकाओं कानिर्माण पूर्ववर्ती कोशिकाओं से होता है।

रुडोल्फ विर्चो का कथन – Omnis Cellula e Cellala

कोशिका की संरचना

संगठन (Composition), संरचना (Structure) के आधार पर कोशिका दोप्रकार की होती हैं-

(i) प्रोकैरियोटिक/असीमकेन्द्रकी कोशिका

(ii) यूकैरियोटिक/समीमकेन्द्रकी कोशिका

प्रोकैरियोटिक/असीमकेन्द्रकी

यूकैरियोटिक/समीमकेन्द्रकी

इनमें केन्द्रक अल्प-विकसिततथा केन्द्रक के चारों ओरकेन्द्रक झिल्ली (Nucleus Membrane) अनुपस्थितहोती है।

इनमें केन्द्रक सुविकसित(Well Developed) तथाकेन्द्रक के चारों ओर दोहराकेन्द्रक आवरण पाया जाताहै।

DNA नग्न अवस्था में होताहै।

- DNA आवरण युक्त होताहै।

इसमें वृत्ताकार DNA जिसेप्लाज्मिड कहते हैं तथा येकेन्द्रकाभ (Nucleoid) केबाहर पाया जाता है। (70S राइबोसोम)

इसमें सर्पिलाकार (Spiral) तथा द्वि-रज्जुकी (Double Stranded DNA) केन्द्रकके अंदर पाया जाता है।(80S राइबोसोम)

कोशिकाद्रव्य(Cytoplasm)  केन्द्रकद्रव्य (Nucleoplasm) मेंकोई विभेदन(Differentiation) नहींहोता है।

कोशिकाद्रव्य एवंकेन्द्रकद्रव्य एक-दूसरे सेस्पष्ट रूप से विभेदित होताहै।

 

इनमें विभिन्न प्रकार केकोशिकांग (Cell-Organelles) नहीं पाएजाते हैं।

इनमें सुविकसित कोशिकांगजैसे माइटोकॉन्ड्रियालवक (Plastid),लाइसोसोमराइबोसोमअंतप्रद्रव्यी जालिका(E.R.), सेंट्रोसोम,गॉल्जीकाय आदि पाए जाते हैं।

जन्तु कोशिका एवं पादप कोशिका में अन्तर :-

पादप कोशिका

(Plant Cell)

जन्तु कोशिका

(Animal Cell)

इनमें कोशिका झिल्ली केचारों ओर मुख्यतया सेल्यूलोजसे बनी कोशिका भित्ति (Cell-Wall) होती है।

इनमें कोशिका भित्तिअनुपस्थित होती है।

इनमें केन्द्रक तुलनात्मक रूपसे छोटा  परिधि की ओरहोता है।

इनमें केन्द्रक बड़े आकार का केन्द्रीय भाग में स्थितहोता है।

इनमें रिक्तिकाएँ बड़े आकारकी होती हैं।

इनमें रिक्तिकाएँ छोटी-छोटीतथा कोशिकाद्रव्य में बिखरीहोती है।

गॉल्जीकाय (Golgi bodies) अल्प विकसित  छोटे कारके होते हैं, जिन्हेंडिक्टियोसोम’ कहते हैं।

इनमें गॉल्जीकायसुविकसित  बड़े आकारके होते हैं।

इनमें तारककाय(Centrosome) अनुपस्थितहोता है।

इनमें तारककाय उपस्थितहोता है।

कोशिका आवरण (Cell Coat) :-

कोशिका भित्ति (Cell Wall) :-

ये कोशिका का बाह्यतम आवरण है जो पादप कोशिकाओंकवक औरबैक्टीरिया में पाया जाता है।

कोशिका भित्ति जंतु कोशिका में अनुपस्थित होती है।

ये कोशिका द्वारा स्रावित तथा ये मृत/निर्जीव (Dead) लेकिन उपापचयी रूपसे सक्रिय (Metabolically Active) होती है।

औसत मोटाई = 0.1(माइक्रोमीटर) = 10­-6 मीटर

कोशिका भित्ति (Cell Wall) कई परतों/संस्तर से मिलकर बनी होती है–

(i) प्राथमिक संस्तर (Primary Lamella)

पौधों में ये संस्तर मुख्यतया सेल्यूलोज से बना होता है।

बैक्टीरिया में इसका निर्माण ‘पेप्टिडोग्लाइकेन’ से होता है।

प्राथमिक संस्तर (Primary Lamella) में पेक्टिन पाया जाता है।

(ii) मध्य संस्तर (Middle Lamella)

ये दो कोशिकाओं के बीच पाया जाने वाला कोशिकीय संस्तर है।

ये कैल्सियम (Ca) और मैग्नीशियम (Mg) के पेक्टेट लवणों से बना है जो दोकोशिका को आपस में जोड़े रखने का कार्य भी करता है। अतइसेकोशिकीय सीमेंट’ (Cellular Cement) भी कहते हैं।

फलों के पकने के समय लवण जल में घुलने लगते हैं जिससे फल नरम होनेलगते हैं।

(iii) द्वितीयक संस्तर (Secondary Lamella)

ये प्राथमिक भित्ति के अंदर की ओर परिपक्व कोशिकाओं में पाई जाती है। यह संरचना में लगभग प्राथमिक भित्ति जैसी ही होती है।

द्वितीयक भित्ति में लिग्निनसुबेरिन  क्यूटिन पदार्थों का जमाव पाया जाताहै।

कोशिका झिल्ली (Cell Membrane) :-

कोशिका झिल्ली की खोज ‘श्वान ने की।

कोशिका झिल्ली को ‘प्लाज़्मा’ (Plasma Membrane) नाम ‘प्लोव’ नेदिया।

 ‘नगेली  क्रेमर’ ने इसे ‘कोशिका झिल्ली’ कहा।

कोशिका झिल्ली सभी कोशिकाओं में पाई जाती है।

इसकी औसत मोटाई 75 Å (एंगस्ट्रॉम) है।

यह जल के लिए अर्द्धपारगम्य (semi permeable)विलेयों (Solutes) केलिए चयनात्मक पारगम्य (Selective Permeable) होती है।

कोशिका झिल्ली मुख्यतया वसा (फॉस्कोलिपिड्सएवं प्रोटीन से बनी होतीहै।

कोशिका झिल्ली की संरचना को समझाने हेतु ‘सिंगर एवं निकोल्सन’ नेतरल-मोजेक मॉडल’ प्रस्तुत किया।

कोशिकांग (Cell Organelles) :-

कोशिका द्रव में उपस्थित सजीव पदार्थ।

कोशिका के विभिन्न कार्य करने के लिए कोशिका में विभिन्न कोशिकांग पाएजाते हैंजो इस प्रकार हैं-

1. माइटोकॉण्ड्रिया (सूत्रकणिका) ‑

सर्वप्रथम इसे ‘कॉलिकर’ ने कीटों की रेखित पेशियों में देखा तथा इसेसार्कोसोम’ कहा।

फ्लेमिंग ने इसे ‘फिला’ कहा।

अल्टमान ने इसे ‘बायोप्लास्ट’ कहा।

माइटोकॉण्ड्रिया नाम ‘सीबेण्डा’ ने दिया।

माइटोकॉण्ड्रिया की खोज ‘अल्टमान’ ने की।

सभी प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं तथा अवायवीय श्वसन (Anaerobic respiration) करने वाली कोशिकाओं में माइटोकॉण्ड्रिया नहीं पाया जाताहै।

माइटोकॉण्ड्रिया को ‘सीकेविट्ज’ ने ‘कोशिका का शक्ति-गृह’ (Power House of the Cell) भी कहा क्योंकि यहाँ पर श्वसन के दौरान A.T.P. (एडिनोसिन ट्राई फॉस्फेट) के रूप में ऊर्जा मुक्त होती है। (क्रेब्स चक्र के दौरान)

उपापचयी रूप से सक्रिय कोशिकाओं (Metabolically Active Cells) मेंमाइटोकॉण्ड्रिया की संख्या भी अधिक होती हैंजैसे – पेशी कोशिकाओं एवंयकृत की कोशिकाओं में।

माइटोकॉण्ड्रिया दोहरी झिल्ली युक्त कोशिकांग है।

माइटोकॉण्ड्रिया की आंतरिक झिल्ली में कई अँगुलीनुमा उभार पाए जाते हैंजिन्हें ‘क्रिस्टी’ कहते हैं। इन क्रिस्टी पर ‘ऑक्सीसोम कण’ पाए जाते हैं।

ऑक्सीसोम कणों का गोलाकार शीर्ष – F-1 कण जबकि आधारी भाग – F-0 कण।

- F कणों पर श्वसन (Respiration) के दौरान E.T.S. (इलेक्ट्रॉन ट्रांसपोर्टसिस्टमचलता है।

माइटोकॉण्ड्रिया में स्वयं का वृत्ताकार DNA, राइबोसोम तथा RNA भी पायाजाता हैअतइसे अर्द्धस्वायत्त कोशिकांग (Semiautonomous Cell Organelle) भी कहते हैं।

स्वयं का DNA होने के कारण माइटोकॉण्ड्रिया की वंशागति मादा जनक सेहोती है।

- ‘थ्री-पेरेंट बेबी तकनीक’ माइटोकॉण्ड्रिया वंशागति पर ही आधारित है।

2. लवक (Plastid) -

ये केवल पादप कोशिका में पाए जाने वाले कोशिकांग हैंये भीमाइटोकॉण्ड्रिया के समान अर्द्धस्वायत्त कोशिकांग हैं तथा ये भी दोहरीझिल्ली युक्त हैं।

लवक ऊर्जा संग्रहण से संबंधित है।

- ‘हेकल’ ने सर्वप्रथम लवकों का वर्णन किया तथा खोज का श्रेय भी हेकलको जाता है।

कार्य के आधार पर शिम्पर ने लवकों के तीन प्रकार बताए-

(i) हरित लवक (Chloroplast)

ये हरे रंग के लवक होते हैंइनमें हरित वर्णक (Pigment) क्लोरोफिल पायाजाता है।

हरित लवक का मुख्य कार्य सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में CO2  जलकी सहायता से प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) कर सरल भोज्यपदार्थों का निर्माण करना है। इस क्रिया में O2 भी मुक्त होती है।

हरित लवक में आंतरिक झिल्ली में वलन (Folds) बनने से थायलेकॉइड कानिर्माण होता है।

ये थायलेकॉइड एक के ऊपर एक सिक्कों के रूप में व्यवस्थित रहते हैं जिन्हें'ग्रेना' कहते हैं।

ग्रेना पर छोटे-छोटे कणों के समान ‘क्वाण्टासोम्स’ पाए जाते हैं जो प्रकाशसंश्लेषण के दौरान ऊर्जा अवशोषित करते हैं।

दो ग्रेना आपस में इन्टर ग्रेना द्वारा जुड़े रहते हैं।

ग्रेना  इन्टर ग्रेना आंतरिक झिल्ली से घिरे मैट्रिक्स/स्ट्रोमा/अधात्री में धँसेरहते हैं।

ग्रेना पर प्रकाश संश्लेषण की प्रकाशिक अभिक्रिया होती है जबकि स्ट्रोमा मेंअप्रकाशिक अभिक्रिया (Dark Reaction) होती है।

(ii) वर्णी लवक (Chromoplast)

ये विभिन्न रंगों युक्त लवक हैं।

फलफूल एवं पत्तियों में हरे रंग के अलावा अन्य रंगों का पाया जाना इसीके कारण होता है।

जब फल पकने लगते हैं तो उनमें हरित लवक वर्णी लवक में बदलने लगतेहैंजिससे फल रंगीन दिखाई देते हैं।

(iii) अवर्णी लवक (Leucoplast)

ये रंगहीन लवक हैंजिनका मुख्य कार्य भोजन संग्रहण करना होता हैं।

ये सामान्यतया जड़ों में पाए जाते हैं।

उदाहरण –

वसा संग्रहण से संबंधित अवर्णीलवक – इलियोप्लास्ट

स्टार्च संग्रहण से संबंधित अवर्णीलवक – एमायलोप्लास्ट

प्रोटीन संग्रहण से संबंधित अवर्णीलवक प्रोटीयोप्लास्ट

3. अंत:प्रद्रव्यी जालिका

(E.R. – Endoplasmic Reticulum) -

इसे ‘गार्नियर’ ने सर्वप्रथम देखा तथा ‘इर्गेस्टोप्लाज़्म (Ergatoplasm)’ कहा।

पोर्टर ने इसका विस्तृत अध्ययन कर E.R. नाम दिया। (खोजकर्ता)

ये कोशिका के आंतरिक कंकाल का निर्माण करती है।

- E.R. कोशिका के अंदर पदार्थों के परिवहन में सहायक है।

- E.R. दो प्रकार की होती हैं-

(i) खुरदरी अंतप्रद्रव्यी जालिका

(R.E.R. – Rough Endoplasmic Reticulum) –

इस E.R. पर राइबोसोम पाए जाते हैंअतयह खुरदरी है।

- R.E.R. प्रोटीन संश्लेषण से संबंधित है। (इस पर पाए जाने वालेराइबोसोम प्रोटीन संश्लेषण करते हैं।)

(ii) चिकनी अंत:प्रद्रव्यी जालिका

(S.E.R. – Smooth Endoplasmic Reticulum) –

इस E.R. पर राइबोसोम नहीं पाए जाते हैं अतये चिकनी होती है।

ये कोशिका में ग्लायकोजन संग्रहण तथा स्टीरॉइड के संश्लेषण से संबंधित हैं।

4. गॉल्जीकाय (Golgy Body) -

- ‘केमिलियो गॉल्जी’ ने गॉल्जीकाय की खोज की तथा इसके बारे में विस्तारसे बताया।

अन्य नाम – डॉल्टन कॉम्प्लेक्सबेकर्स बॉडी, लाइपोकॉण्ड्रिया।

पौधों में अल्पविकसितबिखरे हुए गॉल्जीकाय – डिक्टियोसोम

यह जंतुओं में सुविकसित होते हैं।

गॉल्जीकाय कोशिका में झिल्लियों के रूपांतरण का कार्य करता है।

कार्बोहाइड्रेट  प्रोटीन युक्त पदार्थों के कोशिका से बाहर परिवहन मेंसहायक।

इसे कोशिका का ‘ट्रैफिक पुलिस’ (Transportation Manager of Cell) भी कहते हैं।

ये लाइसोसोम तथा शुक्राणु के एक्रोसोम का निर्माण करता है।

5. राइबोसोम (पैलाडे कण) -

क्लाउडे ने सर्वप्रथम देखा।

रॉबिन्सन एवं ब्राउन ने पादप कोशिकाओं में देखा।

खोजकर्ता – पैलाडे (जंतु कोशिका में)

ये कोशिका में कोशिकाद्रव्य, R.E.R. पर, माइटोकॉण्ड्रिया  लवक में भीपाए जाते हैं।

इनका मुख्य कार्य कोशिका में ‘प्रोटीन संश्लेषण’ करना होता है।

6. लाइसोसोम (Lysosome) -

खोज – क्रिश्चियन डी डुवे ने की।

नाम – नोविकॉफ़ ने दिया।

इसे ‘कोशिका की आत्मघाती थैलियाँ’ (Suicidal Bags of Cell) कहते हैं। इनमें कई जल-अपघटनीय एंजाइम्स पाए जाते हैं जो पाचनअपशिष्टपदार्थों के अपघटन में सहायक हैं तथा कोशिका का जीवनकाल पूरा होने परये लाइसोसोम फट जाते हैं तथा संपूर्ण कोशिका का पाचन कर देते हैं।

निर्माण – गॉल्जीकाय

7. तारककाय (Centrosome) -

वर्णन एवं खोज का श्रेय – बोवेरी को।

ये उच्चतर पौधों (Higher Plants) में नहीं पाया जाता है।

ये जंतु कोशिकाओं  निम्न पादपों (Lower Plants) में पाया जाता है।

ये कोशिकांग अपनी स्वयं की प्रतिकृति (Copy) बना सकता है।

ये तारककाय कोशिका विभाजन (Cell-Division) के समय तर्कु(Spindle) का निर्माण करता है।

8. रिक्तिका/रसधानी/Vacuoles -

ये कोशिका द्रव्यविहीन (Non-Cytoplasmic) संरचनाएँ हैंजोकोशिकाद्रव्य से एक झिल्लीनुमा संरचना ‘टोनोप्लास्ट’ (Tonoplast) से घिरीहुई रहती हैं।

रिक्तिका पादप कोशिकाओं  कवक (Fungus) में बड़े आकार की जबकिजंतु कोशिकाओं में छोटे आकार की होती है।

ये रिक्तिकाएँ भोजन एवं अन्य तरल पदार्थों का संग्रहण कर सकती हैं।

यह कोशिका में जल की मात्रा का नियमन करने में सहायक है।

यह लाइसोसोम के साथ उत्सर्जी पदार्थों के कोशिका से बाहर उत्सर्जन में भीसहायक है।

9. केन्द्रक (Nucleus) -

केन्द्रक की खोज ‘रॉबर्ट ब्राउन’ ने ऑर्किड पौधे की जड़ों की कोशिकाओं मेंकी। सामान्यतया प्रत्येक कोशिका में एक केन्द्रक जो लगभग गोलाकार होताहै।

पादप  जन्तु कोशिकाओं में अस्थि मज्जा (Bone Marrow) तथा रेखितपेशियों में बहुकेन्द्रकी अवस्था होती है।

केन्द्रक (Nucleus) में चार प्रमुख संरचनाएँ-

(i) केन्द्रक आवरण (Nuclear Membrane/Kargo-Theca)

(ii) केन्द्रक द्रव्य (Nucleoplasm)

(iii) क्रोमेटिन (Chromatin)

(iv) केन्द्रिका (Nucleolus)

(i) केन्द्रक आवरण (Nuclear Membrane) – वसा+प्रोटीन

केन्द्रक के चारों ओर दोहरी झिल्ली पाई जाती है। (यूकैरियोटिककोशिकाओं में)

प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में अनुपस्थित।

इस आवरण में छोटे-छोटे छिद्र (Pores) पाए जाते हैंजिनसे केन्द्रक कोशिकाद्रव्य के बीच पदार्थों का परिवहन होता है।

(ii) केन्द्रक द्रव्य (Nucleoplasm) 

केन्द्रक में गाढ़ाजैलीनुमाअर्द्धठोस (Semi-Solid) पदार्थ केन्द्रकद्रव्यकहलाता है।

इसमें क्रोमेटिनकेन्द्रिका के अलावा विभिन्न एंज़ाइम पाए जाते हैं जोप्रोटीन-संश्लेषण  अन्य उपापचयी क्रियाओं से संबंधित हैं।

(iii) क्रोमेटिन 

ये DNA  प्रोटीन से मिलकर बने तथा इनके बारे में सर्वप्रथम ‘फ़्लेमिंग’ नेबताया।

जब कोशिका विभाजित होती है तो इन क्रोमेटिन तंतुओं (Fibres) में संघनन(Condensation) की क्रिया होती है तथा ये गुणसूत्रों (Chromosomes) के रूप में दिखाई देते हैं।

(iv) केन्द्रिका (Nucleolus)

खोज – फोण्टाना

वर्णन – वैगनर

नाम दिया – बौमेन ने

झिल्ली रहित संरचना (Membrane-Less)

यह क्रोमेटिन तंतुओं से जुड़ी हुई रहती है।

यह प्रोटीन संश्लेषण  RNA निर्माण से संबंधित हैं।

केन्द्रक के कार्य –

यह अन्य कोशिकांगों तथा संपूर्ण कोशिका का नियंत्रण करता है।

प्रोटीन-संश्लेषणकोशिका विभाजन (Cell Division) जैसी
क्रियाएँ इसी के नियंत्रण में होती है।

आनुवंशिक सूचनाएँ (Genetic Informations) भी केन्द्रक में होती है।

Note –

दोहरी झिल्लीयुक्त संरचनाएँ – माइटोकॉण्ड्रियालवक, केन्द्रक

झिल्ली रहित संरचनाएँ – तारककायराइबोसोम, केन्द्रिका

एकल झिल्ली युक्त संरचनाएँ – गॉल्जीकायअंत:प्रद्रव्यी जालिकालाइसोसोमसूक्ष्मकाय (Microbodies) 

कोशिका विभाजन (Cell Divison) :-

हमारे शरीर में दो प्रकार की कोशिकाएँ पाई जाती है –

कोशिका चक्र (Cell Cycle) :-

हॉवर्ड एवं पेल्क ने सबसे पहले Cell-Cycle के बारे में बताया।

कोशिकाओं में सामान्यतया विभाजन अवस्था (M-Phase) के आधार परतीन प्रकार के विभाजन देखे जाते हैं-

(A) असूत्री विभाजन (Amitosis Division)

(B) समसूत्री विभाजन (Mitosis Division)

(C) अर्द्धसूत्री विभाजन (Mieosis Division)

[a] असूत्री विभाजन (Amitosis)

इसके बारे में सर्वप्रथम ‘रॉबर्ट रेमेक’ ने बताया।

ये सबसे सरल कोशिका विभाजन है जिसमें केन्द्रक (Nucleus) तथाकोशिकाद्रव्य (Cytoplasm) दोनों का विभाजन साथ-साथ होता है।

ये विभाजन प्रोकैरियोटिक कोशिकाओंभ्रूणीय झिल्लियों में (Embryonic Membranes) में कुछ अल्पविकसित पौधों एवं जंतुओं में होता है।

[b] समसूत्री विभाजन (Mitosis)

बोवेरी एवं फ़्लेमिंग ने इसका अध्ययन किया।

- Mitosis शब्द फ़्लेमिंग ने दिया।

समसूत्री विभाजन कायिक कोशिकाओं (Somatic Cells) में होता है।

इस विभाजन में कोशिका में गुणसूत्रों की संख्या (Chromosome) एकसमान बनी रहती है।

(1) केन्द्रक विभाजन (Karyokinesis)

समसूत्री विभाजन (Mitosis) में केन्द्रक विभाजन चार चरणों में पूरा होता है-

(i) प्रोफेज़

(ii) मेटाफेज़

(iii) एनाफेज़

(iv) टीलोफेज़

(i) प्रोफेज –

क्रोमेटिन धागों के संघनन (Condensation) होने से इस अवस्था के अंत मेंगुणसूत्र (Chromosomes) दिखाई देने लगते हैं।

केन्द्रक झिल्लीकेन्द्रिका विलुप्त/गायब हो जाते हैं।

तर्कु निर्माण लगभग पूरा हो जाता है।

(ii) मेटाफेज़ –

गुणसूत्र कोशिका के बीच स्थित तथा तर्कु तंतुओं (Spindle Fibres) सेजुड़े होते हैं। (मेटाफेजिक प्लेट)

गुणसूत्री आकारिकी (Morphology) का अध्ययन इसी अवस्था में कियाजाता है।

इस अवस्था में तर्कु (Spindle) का निर्माण पूरा हो जाता हैतर्कु में 97% प्रोटीन तथा 3% RNA पाया जाता है।

(iii) एनाफेज़ –

तर्कु तंतुओं में संकुचन (Contraction) होने से गुणसूत्रों की भुजाएँ(Chromatids) एक-दूसरे से अलग होकर ध्रुवों (Poles) पर पहुँचने लगतीहैं। (एनाफेज़िक गति)

इस अवस्था में गुणसूत्रों की आकृति का अध्ययन किया जाता है।

(iv) टीलोफेज़ –

इसे ‘रिवर्स प्रोफेज़’ भी कहते हैं।

केन्द्रक आवरणकेन्द्रिका पुन: प्रकट।

केन्द्रीय में दो स्पष्ट केन्द्रक दिखते हैं।

गुणसूत्र पुनविकुण्डलित होकर क्रोमेटिन में परिवर्तित।

(2) कोशिकाद्रव्य विभाजन (Cytokinesis)

केन्द्रक विभाजन पूरा होने के बाद अब कोशिकाद्रव्य (Cytokinesis) विभाजन होता है।

- Cytokinesis शब्द ‘व्हाइटमैन’ ने दिया।

जंतु कोशिकाओं में केवल लचीली झिल्ली (Flaxible Membrane) होने सेइनमें कोशिकाद्रव्य विभाजन ‘खाँच निर्माण’ (Furrow Formation) द्वाराहोता है। जिसमें बाहर से अंदर की ओर खाँच (Furrow) बनने लगती है।

पाइप कोशिकाओं (Plants Cells) में Cytokinesis की क्रिया कोशिकापट्टी निर्माण’ (Cell Plate Formation) द्वारा होता है।

इस कोशिका पट्टी का निर्माण केन्द्र से परिधि की ओर गॉल्जीकाय सेउत्पन्न फ्रेग्मोप्लास्ट के द्वारा होता है।

[c] अर्द्धसूत्री विभाजन (Meiosis)

इसका अध्ययन ‘विनिवार्टरवॉन बेण्डनस्ट्रॉसबर्गर तथा फ़्लेमिंग’ ने किया।

मियोसिस शब्द ‘फार्मर एवं मूर’ ने दिया।

मियोसिस के दौरान दो बार विभाजन होता है।

मियोसिस Ist के बाद दो नई कोशिकाओं का निर्माण होता है जिनमें आधेगुणसूत्र होते हैं।

मियोसिस IInd के अंत में चार नई कोशिका बनती हैं जिनमें जनक कोशिकाकी तुलना में आधे गुणसूत्र ही पाए जाते हैं।

- Meiosis-I की प्रोफेज (प्रोफेज़ Istअर्द्धसूत्री विभाजन की सबसे लंबीअवस्था है।

यह लैंगिक जनन कोशिकाओं में पाया जाता है।

यह विभाजन जनन कोशिकाओं में युग्मक निर्माण के समय देखा जाता है।(शुक्राणु  अण्डाणु के निर्माण हेतु)

इस विभाजन में गुणसूत्रों की संख्या आधी हो जाती है। इस कारण इसेअर्द्धसूत्री विभाजन कहते हैं।

विभाजन के द्वारा निर्मित युग्मक आनुवंशिक रूप से भिन्न होते हैंइसकाकारण जीन विनिमय होता हैं।

अर्द्धसूत्री विभाजन का महत्त्व

1. इस विभाजन के कारण ही पीढ़ी दर पीढ़ी जीवों की कोशिकाओं मेंगुणसूत्रों की संख्या समान बनी रहती है।

2. इस विभाजन के द्वारा जीवों में नए गुण पैदा होने की संभावना होती है।

3. यह विभाजन जैव विकास में सहायता करता है।

समसूत्री विभाजन (माइटोसिस) एवं अर्द्धसूत्री विभाजन (मियोसिस) में अन्तर :–

समसूत्री विभाजन

(माइटोसिस)

अर्द्धसूत्री विभाजन

(मियोसिस)

यह शरीर की कायिक कोशिकाओं में ही होता है।

यह लैंगिक कोशिका में होता है।

संतति कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या पैतृक (जनक) कोशिका के समान रहती है।

इसमें संतति कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या जनक कोशिका से आधी रह जाती है।

गुणसूत्रों के मध्य आनुवंशिक पदार्थों का आदान-प्रदान नहीं होता है।

जीन विनिमय की क्रिया होती है जिससे संतति कोशिका के गुणसूत्र जनकों के गुणसूत्र से भिन्न होते हैं।

आनुवंशिक विविधता नहीं आती है।

संतति में आनुवंशिक विविधता आती है।

एक जनक से दो संतति कोशिकाएँ बनती हैं।

एक जनक से चार संतति कोशिकाएँ बनती हैं।

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