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सामान्य विज्ञान: आनुवंशिकता

आनुवंशिकता

वंशागति :- माता-पिता से लक्षणों/Characteristics का संतानों में प्रकट होना वंशागति कहलाता है।

आनुवंशिकी (Genetics) :-

 1. वंशागति 

 2. विविधता

- विज्ञान की वह शाखा जिसमें वंशागति एवं विविधता का अध्ययन किया जाता है, आनुवंशिकी कहलाती है।

-  आनुवंशिकी शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम डब्ल्यू. बेटसन (1905) ने किया, इन्हें आधुनिक आनुवंशिकी का जनक कहा जाता है।

- आनुवंशिकता के आधारभूत सिद्धान्त ग्रेगर जॉन मेण्डल ने 1866 में प्रकाशित किए थे। 

- मेण्डल ने उद्यान मटर (Garden Pea) पर प्रयोग किये, इन प्रयोगों के आधार पर उन्होंने सिद्ध किया कि आनुवंशिकता का आधार कुछ निश्चित आनुवंशिक तत्त्व (Hereditary elements) होते हैं, जिन्हें कोरेन्स (Correns) ने कारक (Factors) नाम दिया।

-  मेण्डल ने अपने प्रयोग में पाइसम सेटाइवम (उद्यान मटर) पादप को इसलिए चुना क्योंकि इसमें निम्नलिखित लक्षण मौजूद थे -

i.  मटर एक वर्षीय पौधा है जिसको आसानी से उगाया जा सकता है।

ii.  पौधों को छोटे स्थान पर उगाना संभव है। पौधे में अधिक फल व फूल लगते हैं, जिससे बीजों को सुगमता से प्राप्त कर सकते हैं।

iii.  मटर में स्वपरागण संभव है क्योंकि इनके पुष्प तितलीदार, द्विलिंगी तथा बंद होते हैं।

iv.  मटर के पुष्पों में कृत्रिम विधि से पर परागण (Cross-pollination) आसानी से किया जा सकता है।

v.  मटर के पौधों में अनेक विपर्यासी लक्षण मौजूद थे जो निम्नलिखित हैं -  

 

लक्षण

प्रभावी एलील

अप्रभावी एलील

(i)

पौधे की लंबाई

लंबापन

बौनापन

(ii)

पुष्प का रंग

बैंगनी

सफेद

(iii)

पुष्प की स्थिति

कक्षीय

अंतस्थ

(iv)

बीज का रंग

पीला

हरा

(v)

बीज की आकृति

गोल (R)

झुर्रीदार (r)

(vi)

फली का रंग

हरा

पीला

(vii)

फली की आकृति

फुली हुई

सिकुड़ी हुई

उत्परिवर्तन (Mutation) :- 

- जीवों की आनुवंशिक संरचना में अचानक होने वाले परिवर्तन जो कि उनकी संतानों में भी वंशानुगत (Inheritate) होते हैं, उत्परिवर्तन कहलाते हैं।

- उत्परिवर्तन की खोज – ह्यूगो-डी व्रीज ने आइनोथेरा लैमार्कियाना (इवनिंग प्रिमरोज) नामक पादप में की।

जीन :-

- DNA के खण्ड जिनके द्वारा हमारे लक्षणों का निर्धारण होता है।

- मेण्डल ने इन्हें कारक (Factor) कहा।

- जीन शब्द जॉनसन ने दिया। 

- यह वंशागति की इकाई होती है।

- लक्षण – जीनों की अभिव्यक्ति लक्षण के रूप में होती है।

 उदाहरण – मटर के पादप की लंबाई, मटर के पादप में बीज का रंग

विकल्पी (Allele) – किसी लक्षण के 2 या 2 से अधिक प्रकार उस लक्षण के विकल्पी कहलाते हैं।

 उदाहरण – मटर के पौधे में लंबाई के लक्षण के लिए 2 एलील लंबा एवं बौना

समयुग्मजी (Homozygous) :-

- यदि किसी जीव में किसी लक्षण के दोनों एलील्स समान हों (TT या tt) तो वह जीव उस लक्षण के लिए समयुग्मजी कहलाता है।

 Ex – TT :- समयुग्मजी लंबा

  tt :- समयुग्मजी बौना

विषमयुग्मजी (Heterozygous) :-

- यदि लक्षण के विपरीत एलील उपस्थित हों, (Tt) तो वह जीव उस लक्षण के लिए विषमयुग्मजी कहलाता है। 

 उदाहरण – (Tt) विषमयुग्मजी लंबा 

प्रभावी एलील (Dominant Allele) :-

- वह एलील जो समयुग्मजी (TT) एवं विषमयुग्मजी (Tt) दोनों स्थितियों में अपना प्रभाव प्रकट करे, प्रभावी एलील कहलाता है। 

 उदाहरण – मटर के पौधे में लंबाई के लिए लंबेपन (T) का एलील प्रभावी है।

अप्रभावी एलील (Recessive Allele) :-

- वह एलील जो केवल समयुग्मजी अवस्था (tt) में अपना प्रभाव प्रकट करें, अप्रभावी एलील कहलाता है।

 उदाहरण – मटर में बौनेपन (t) का एलील अप्रभावी है।

- विषमयुग्मजी अवस्था में प्रभावी एलील के द्वारा अप्रभावी एलील के प्रभाव को प्रकट नहीं होने दिया जाता है।

लक्षणप्रारूप (Phenotype) :- 

- किसी जीव के दिखाई देने वाले बाहरी लक्षण, लक्षणप्रारूप (Phenotype) कहलाते हैं।

जीनप्रारूप (genotype) :-

- जीव में जीवों की व्यवस्था उसका जीन प्रारूप (genotype) कहलाती है।

एक संकर प्रयोग (Monohybrid Cross) :- 

- एक जोड़ी विपर्यासी लक्षणों को लेकर करवाया गया क्रॉस एक संकर प्रयोग कहलाता है। 

- मेण्डल को इस प्रयोग में F2 पीढ़ी में लक्षण प्रारूप का अनुपात 3:1 तथा जीन प्रारूप अनुपात 1:2:1 प्राप्त हुआ। 

द्वि-संकर प्रयोग (dihybrid cross) :-

- दो जोड़ी विपर्यासी लक्षणों को लेकर करवाया गया क्रॉस द्वि-संकर प्रयोग कहलाता है।

- इस संकरण प्रयोग में एक साथ 2 लक्षणों / Traits की वंशागति का अध्ययन किया गया।

- इस प्रयोग में मेण्डल को लक्षण प्रारूप का अनुपात F2 पीढ़ी में 9:3:3:1 तथा जीन प्रारूप अनुपात 1:2:2:4:1:2:1:2:1 प्राप्त हुआ।

लक्षण

प्रभावी एलील

अप्रभावी एलील

बीज की आकृति

गोल (R)

झुर्रीदार (r)

बीज का रंग

पीला (Y)

हरा (y)

परीक्षण संकरण (Test-cross) :-

- प्रभावी लक्षण वाला पौधा समयुग्मजी/शुद्ध (TT) है या विषमयुग्मजी/अशुद्ध (Tt) ये पता करने के लिए मेण्डल ने परीक्षण संकरण किए।

- इसमें वह अज्ञात प्रभावी लक्षण वाले पौधे का संकरण (Cross) अप्रभावी जनक (tt) के साथ कराते यदि संकरण में सभी पौधे प्रभावी लक्षण (लंबे) वाले प्राप्त हो तो अज्ञात पौधा समयुग्मजी (TT) व यदि अप्रभावी व प्रभावी दोनों पौधे प्राप्त हो तो अज्ञात पौधा विषमयुग्मजी (Tt) होगा।

व्युत्क्रम संकरण (Reciprocal cross) :-

- वंशागति में लिंग की भूमिका (Role of sex) का पता लगाने के लिए मेण्डल ने व्युत्क्रम संकरण किया, जिसमें एक बार तो प्रभावी जनक के रूप में नर व दूसरी बार मादा जनक को लिया। 

- दोनों ही प्रयोगों में मेण्डल को समान परिणाम प्राप्त हुए। अत: मेण्डल के अनुसार वंशागति (inheritance) लिंग से प्रभावित नहीं होती है।

- हालाँकि बाद में पता चला कि कुछ लक्षणों की वंशागति लिंग पर निर्भर करती हैं; जैसे – हीमोफिलिया एवं वर्णान्धता की वंशागति। 

मेण्डल एवं मेण्डलवाद :-

- मेण्डल का पूरा नाम – ग्रेगर जॉन मेण्डल

- जन्म – वर्ष 1822 – ऑस्ट्रिया के हेजनडॉर्फ प्रांत के सिलिसियन गाँव में।

- भौतिक शास्त्र (Physics), वनस्पति शास्त्र (Botany) एवं दर्शन शास्त्र (Philosophy) का अध्ययन

- 1856-1863 तक 7 वर्षों में उद्यान-मटर/पाइसम सेटाइवम पर संकरण प्रयोग किए।

- 1866 में मेण्डल ने अपने प्रयोगों व निष्कर्षों को “Experiments in plants hybridisation” शीर्षक से प्रकाशित करवाया लेकिन मेण्डल के कार्यों को पहचान नहीं मिली।

- वर्ष 1900 में मेण्डल के कार्यों की पुन: खोज तीन वैज्ञानिकों जर्मनी के कार्ल कॉरेन्स, ऑस्ट्रिया के वॉन शेरमेक तथा नीदरलैण्ड के ह्यूगो-डी-व्रीज द्वारा की गई।

- इन तीनों वैज्ञानिकों ने मेण्डल के कार्यों को सही पाया तथा कार्ल कॉरेन्स ने इन्हें नियमों का रूप दिया।

- मेण्डल ने मटर के अलावा राजमा/फेसियोलिस वल्गेरिस एवं हॉकवीड/हेराइशियस पर भी संकरण प्रयोग किए।

वंशागति के नियम (Laws of inheritance) :-

1. प्रथम नियम/प्रभाविता का नियम (Law of dominance)–

- जब किसी जीव में किसी लक्षण के दो विपरीत एलील उपस्थित हो तो उनमें से केवल एक ही एलील का प्रभाव प्रकट होता है, जिसे प्रभावी एलील कहते हैं तथा अन्य एलील जिसका प्रभाव प्रकट न हो अप्रभावी एलील कहलाता है।

- IA IB – AB – मेण्डल के प्रभाविता नियम का अपवाद।

- इस नियम के अनुसार संतानों में उपस्थित कारकों के जोड़े में से एक कारक नर तथा दूसरा मादा से आता है।

- इन कारकों में से एक कारक का गुण दूसरे कारक के गुण को दबा देता है, उसे प्रभावी लक्षण (Dominant character) तथा दब जाने वाले गुण को अप्रभावी लक्षण (Recessive character) कहते हैं।

- प्रथम पीढ़ी (F1 generation) में केवल प्रभावी लक्षण ही दिखायी देता है, लेकिन अप्रभावी गुण उपस्थित अवश्य रहता है, जो दूसरी पीढ़ी (F2generation) में दिखायी देता है।

उदाहरण –

- मनुष्य की काली आँख का रंग नीली आँख पर प्रभावी है।

- काले बाल, लाल बाल पर प्रभावी है, वर्णीत्वचा, अवर्णीत्वचा पर प्रभावी होती है।

- खरगोश में बालों का काला रंग सफेद रंग पर प्रभावी होता है।

- चूहों का सामान्य आकार बौने आकार पर प्रभावी होता है।

2. वंशागति का द्वितीय नियम/विसंयोजन का नियम/पृथक्करण कानियम –

- जब जीवों में युग्मक निर्माण होता है तो लक्षण का प्रत्येक एलील अलग-अलग युग्मकों में चला जाता है अर्थात् युग्मक किसी भी लक्षण के लिए हमेशा शुद्ध होता है। (युग्मकों की शुद्धता का नियम)

- युग्मक अगुणित (n) होता है अत: एक ही युग्म विकल्पी जीन प्राप्त होता है। अत: प्रत्येक युग्मक शुद्ध होता है, इस नियम को युग्मकों की शुद्धता का नियम (law of purity of gametes) भी कहते हैं।

3. वंशागति का तृतीय नियम/स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम –

- इस नियम के अनुसार जब दो या दो से अधिक जोड़ी विपरीत लक्षणों वाले पौधे में क्रॉस (संकरण) करवाया जाता है, तो समस्त लक्षणों की वंशागति स्वतन्त्र रूप से होती है, अर्थात् एक लक्षण की वंशागति पर दूसरे लक्षण की उपस्थिति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है अत: इसे स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम कहते हैं।

मेण्डलवाद के विचलन :-

- जब मिराबिलिस जलापा (Mirabilis jalapa) के लाल पुष्प वाले पौधों का संकरण सफेद पुष्प वाले पौधे से कराया गया तो पहली पीढ़ी में सभी गुलाबी पुष्प वाले पौधे 1:2:1 के अनुपात में प्राप्त हुए।

- ऐसा लाल पुष्प के गुण के पूर्णरूपेण प्रभावी न होने के कारण हुआ। इस प्रकार जब कोई प्रभावी गुण जोड़े के दूसरे गुण को पूरी तरह से दबा नहीं पाता तो उसे अपूर्ण प्रभाविता कहते हैं। ऐसा ही उदाहरण स्नेपड्रेगन, एंटीराइनम मेजस (Anirhinum majus) में भी देखने को मिलते हैं।

- सहलग्नता वंशागति के तृतीय नियम का अपवाद है।

- प्रभावी व अप्रभावी दोनों एलील जब स्वतन्त्र रूप से अपनी अभिव्यक्ति प्रदर्शित करते हैं, तो उसे सहप्रभाविता कहते हैं। F1 पीढ़ी में प्रभावी एवं अप्रभावी जीनों की बराबर अभिव्यक्ति होती है।

- मनुष्यों में रुधिर वर्ग एक सहप्रभाविता का उदाहरण है। 

नोट : टी. एच. मॉर्गन ने ड्रोसोफिला (फल मक्खी) में सहलग्नता की खोज की। 

- सहलग्न जीन संतानों में साथ-साथ वंशानुगत होते हैं।

लिंग निर्धारण (Sex Determination) :-

- मनुष्य की एक कोशिका में 46 या 23 जोड़े गुणसूत्र पाये जाते हैं। इन 23 गुणसूत्रों में से नर तथा मादा दोनों के 22 जोड़े गुणसूत्र एक समान होते हैं, इन्हें ऑटोसोम्स (Autosomes) कहते हैं।

- मादा के 23वें जोड़े के दोनों गुणसूत्र एक समान लेकिन नर के ये दोनों गुणसूत्र असमान होते हैं। इनमें से एक लम्बा तथा एक छोटा होता है। लम्बे को X तथा छोटे को Y से व्यक्त करते हैं अर्थात् नर के 23वें जोडे़ को लिंग गुणसूत्र कहते हैं। ये ही संतान के लिंग को निर्धारित करते हैं।

- लैंगिक प्रजनन (Sexual Reproduction) के लिए जनन अंगों (Gonads) में युग्मकों का निर्माण होता है तथा नर में वृषण (Testis) में शुक्राणु (Sperms) एवं मादा में अण्डाशय (Ovary) में अण्डाणु (Ovum) बनते हैं।

- नर तथा मादा युग्मक के आपस में निषेचित होने पर नर तथा मादा युग्मकों के केन्द्रकों (Nucleus) का सम्मिश्रण (Fusion) हो जाता है तथा युग्मनज का निर्माण होता है। नर युग्मक (Male gamete) में X तथा Y लिंग गुणसूत्र (Sex Chromosome) होते हैं जबकि मादा युग्मक (Female gamete) में XX प्रकार के लिंग गुणसूत्र होते हैं।

- मानव में X गुणसूत्र मादा लिंग (Female Sex) का निर्धारण करता है, जबकि Y गुणसूत्र नर लिंग (Male sex) का निर्धारण करता है।

- केंचुआ (Earthworm) में एक ही जीवधारी में नर तथा मादा दोनों प्रकार के युग्मक (Gametes) बनते हैं। अत: ये उभयलिंगाश्रयी (monoecious) होते हैं।

गुणसूत्रीय आधार पर लिंग निर्धारण के प्रकार :-

(i)  XX-XY प्रकार – 

नर में 44 + XY तथा मादा में 44 + XX प्रकार के गुणसूत्र पाए जाते हैं। 

- नर तथा मादा दोनों में 44 गुणसूत्र ऑटोसोम्स (Autosomes) तथा XY (नर में) एवं XX (मादा में) लिंग गुणसूत्र (Sex Chromosomes) होते हैं।

- नर का Y गुणसूत्र लिंग का नियंत्रण करता है तथा मादा में XX गुणसूत्रों में एक X गुणसूत्र अक्रिय (Innert) होता है जिसे बार बॉडी (Bar Body) कहते हैं। यह मादा में लिंग निर्धारण के लिए मुख्य कारक (Factor) होता है। 

(ii)  XX-X0 प्रकार –

- बहुत-सी मादा कीटों (Insects) में दो लिंग गुणसूत्र (XX) तथा नर में केवल एक लिंग गुणसूत्र (X0) होता है। 

- मादा में दोनों गुणसूत्र 'X' होते हैं इसलिए इनमें एक ही प्रकार के युग्मक बनते हैं जबकि नर में दो प्रकार के युग्मक (Gemete) बनते हैं।

- ड्रोसोफिला (Drosiophila) पर अध्ययन किया था, जिसके अनुसार नर तथा मादा दोनों लिंगों से सम्बन्धित जीन्स शरीर की सभी कोशिकाओं में पाए जाते हैं। लिंग निर्धारण के समय इनका उत्प्रेरण (Stimulation) होता है एवं विभिन्न स्थितियाँ पाई जाती हैं।

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