प्राकृतिक वनस्पति
● भारत में वनों के विकास के लिए सर्वप्रथम लॉर्ड डलहौजी ने 1854 ई. में वन विभाग की स्थापना की।
● वनों के विकास के लिए ब्रिटिश काल में 1894 ई. में प्रथम वन नीति की घोषणा की गई, जिसका उद्देश्य वन संरक्षण एवं राजस्व की प्राप्ति था।
● प्रथम वन संरक्षण कानून वर्ष 1927 में ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाया गया।
स्वतंत्रता के पश्चात् :-
● वर्ष 1949-50 में राजस्थान में वन विभाग की स्थापना की गई।
● भारत सरकार द्वारा वर्ष 1952 में प्रथम राष्ट्रीय वन नीति की घोषणा की गई। इस वन नीति के अनुसार देश के कुल क्षेत्र के 33 प्रतिशत भाग पर वन होने आवश्यक है।
● नवीन राष्ट्रीय वन नीति वर्ष 1988 को घोषित की गई, इस नीति के अनुसार कुल भू-भाग के लगभग 33 प्रतिशत वन क्षेत्र होना आवश्यक है। इसके लक्ष्य वनस्पति, जीव-जन्तु व पर्यावरण स्थिरता जैसी प्राकृतिक धरोहरों को सुरक्षित रखना।
● राजस्थान राज्य वन नीति वर्ष 2010 के अनुसार राज्य के सम्पूर्ण क्षेत्र का 20 प्रतिशत क्षेत्र वृक्षाच्छादित करने का लक्ष्य रखा गया है।
● राजस्थान की नवीन वन नीति वर्ष 2023 को जारी की गई है।
● राजस्थान के वनावरण में 2017 से 2021 तक लगभग 82 वर्ग किमी. वृद्धि हुई है।
● भारतीय वन संरक्षण अधिनियम-1980 (जम्मू-कश्मीर को छोड़कर) सम्पूर्ण देश में 25 अक्टूबर, 1980 को लागू हुआ था।
● भारतीय वन सर्वेक्षण विभाग (देहरादून) की स्थापना 1 जून, 1981 को की गई थी।
● भारतीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान, लखनऊ में है।
● भारतीय वन सर्वेक्षण विभाग (देहरादून) द्वि-वार्षिक आधार पर भारतीय वन रिपोर्ट तैयार करता है।
18वीं भारतीय वन रिपोर्ट (21 दिसम्बर, 2024 जारी की गई)
राजस्थान में वनों को कैनोपी घनत्व (वृक्ष घनत्व) के आधार पर तीन भागों में विभाजित किया गया है :-
1. अत्यन्त सघन वन-
● वह वन क्षेत्र, जिसमें वृक्ष घनत्व 75 प्रतिशत से अधिक है।
● ये राजस्थान के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 0.07 प्रतिशत हैं।
● राजस्थान में 223.20 वर्ग किलोमीटर भाग पर फैले हुए हैं।
2. सामान्य सघन वन-
● वह वन क्षेत्र, जिसमें वृक्ष घनत्व 40 से 75 प्रतिशत तक होता है।
● ये राजस्थान के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 1.24 प्रतिशत हैं।
● ये वन राजस्थान के 4,237.41 वर्ग किलोमीटर भाग पर फैले हुए हैं।
3. खुले वन-
● वह क्षेत्र, जिसमें वृक्ष घनत्व 10 से 40 तक प्रतिशत होता है।
● ये राजस्थान के भौगोलिक वन क्षेत्र का 3.53 प्रतिशत हैं।
● ये वन राजस्थान में 12,087.60 वर्ग किलोमीटर भाग पर फैले हुए हैं।
वृक्षावरण क्षेत्र :-
● राजस्थान में वृक्षावरण क्षेत्र 10,841 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र है। यह राजस्थान के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 3.16 प्रतिशत है।
● राजस्थान में वनावरण एवं वृक्षावरण क्षेत्र 16,548 + 10,841 वर्ग किलोमीटर = 27,389 वर्ग किलोमीटर (राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 8 प्रतिशत) है।
● राज्य का कुल वनावरण 16,548 है जो राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 4.84 प्रतिशत है।
● राजस्थान में झाड़ी क्षेत्र 5,476 वर्ग किलोमीटर है जो राजस्थान के कुल क्षेत्रफल का 1.60 प्रतिशत है।
18वीं भारतीय वन रिपोर्ट-2023 :-
● राजस्थान में सर्वाधिक वन वृद्धि वाले जिले–
1. सीकर (19.14 वर्ग किमी की वृद्धि)
2. बाड़मेर (19.00 वर्ग किमी की
3. अलवर (16.39 वर्ग किमी की वृद्धि)
4. उदयपुर (12.46 वर्ग किमी वृद्धि)
● राजस्थान में सर्वाधिक वन क्षेत्र में कमी वाले क्षेत्र–
1. बाराँ (-33.29 वर्ग किमी की कमी)
2. प्रतापगढ़ (-30.79 वर्ग किमी की कमी)
3. अजमेर (-18.34 वर्ग किमी की कमी)
4. बीकानेर (-14.85 वर्ग किमी की कमी)
● राजस्थान में सर्वाधिक वन विस्तार वाले जिले–
1. उदयपुर (2766.30 वर्ग किमी)
2. अलवर (1198.74 वर्ग किमी)
3. प्रतापगढ़ (996.86 वर्ग किमी)
4. चितौड़गढ़ (988.08 वर्ग किमी)
● राजस्थान में न्यूनतम वन विस्तार वाले जिले–
1. चुरू (62.73 वर्ग किमी)
2. हनुमानगढ़ (92.29 वर्ग किमी)
3. जोधपुर (111.23 वर्ग किमी)
4. श्रीगंगानगर (113.46 वर्ग किमी)
● राजस्थान में सर्वाधिक वन प्रतिशत वाले जिले–
1. उदयपुर (23.60%)
2. प्रतापगढ़ (22.48%)
3. सिरोही (17.50%)
4. करौली (15.18%)
● राजस्थान में न्यूनतम वन प्रतिशत वाले जिले–
1. चुरू (0.45%)
2. जोधपुर (0.49%)
3. बीकानेर (0.86%)
4. जैसलमेर (0.89%)
● राजस्थान में सर्वाधिक झाड़ी वन वाले जिले–
1. पाली (453.45 वर्ग किमी)
2. अलवर (320.99 वर्ग किमी)
3. जयपुर (318.60 वर्ग किमी)
● राजस्थान में न्यूनतम झाड़ी वन वाले जिले–
1. हनुमानगढ़ (8.92 वर्ग किमी)
2. श्रीगंगानगर (16.38 वर्ग किमी)
3. चुरू (36.36 वर्ग किमी)
प्रशासनिक प्रतिवेदन 2023-24 (वन विभाग राजस्थान)
● राज्य में कुल अभिलेखित वन 32,921.01 वर्ग किलोमीटर है जो राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 9.61 प्रतिशत है।
● राज्य का अभिलेखित वन क्षेत्र की दृष्टि से देश में 15वाँ स्थान है।
● राजस्थान में 16 वन्य जीव मण्डल हैं।
● राजस्थान राज्य वन संरक्षण अधिनियम, 1953 के तहत वनों को प्रशासनिक दृष्टि से तीन भागों में विभाजित किया गया है–
1. आरक्षित वन (पूर्णत: प्रतिबंधित वन) –
● ये कुल वन क्षेत्र का 36.99 प्रतिशत हैं।
● राजस्थान में आरक्षित वन 12,178.03 वर्ग किलोमीटर हैं।
● सर्वाधिक आरक्षित वन उदयपुर जिले में हैं।
2. रक्षित वन (आंशिक प्रतिबंधित वन) –
● ये वन कुल प्रशासनिक वन क्षेत्र का 56.51 प्रतिशत है।
● राजस्थान में संरक्षित वन 18,605.18 वर्ग किलोमीटर हैं।
● सर्वाधिक संरक्षित वन बाराँ जिले में हैं।
3. अवर्गीकृत वन (अप्रतिबंधित वन) –
● ये वन कुल प्रशासनिक कुल वन क्षेत्र का 6.50 प्रतिशत हैं।
● अवर्गीकृत वन राजस्थान में 2,137.79 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर फैले हुए हैं।
● सर्वाधिक अवर्गीकृत वन बीकानेर में हैं।
राजस्थान में प्रमुख वनस्म्पदा/घास
1. खैर
● खैर के वनों का विस्तार राज्य में सवाई माधोपुर, चित्तौड़गढ़, झालावाड़, कोटा व बाराँ में हैं।
● कथौड़ी जनजाति खैर के वृक्ष की छाल से ‘कत्था’ तैयार करती है।
2. महुआ (आदिवासियों का कल्पवृक्ष)
● महुआ के वृक्ष डूँगरपुर, बाँसवाड़ा, उदयपुर, चित्तौड़गढ़, जयपुर, अलवर, सीकर और झालावाड़ में मिलते हैं। इस वृक्ष से प्राप्त फल का उपयोग शराब व तेल बनाने के लिए किया जाता है।
3. सालर वन
● इन वनों का विस्तार उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, सिरोही, अजमेर व पाली में हैं। यह वृक्ष गोंद का अच्छा स्रोत है।
4. धोकड़ा वन
● यह वन कोटा, बूँदी, सवाई माधोपुर, अलवर, जयपुर, उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़ व अजमेर में पाए जाते हैं।
● राजस्थान में धोकड़ा के वनों का विस्तार सर्वाधिक है।
5. पलाश
● इन वनों का विस्तार अलवर, राजसमंद, अजमेर, सिरोही, उदयपुर, पाली व चित्तौड़गढ़ में हैं। पलाश को ‘जंगल की ज्वाला’ कहते हैं।
6. शुष्क सागवान वन
● सागवान वनों का विस्तार डूँगरपुर, बाँसवाड़ा, उदयपुर, झालावाड़, चित्तौड़गढ़ व बाराँ में हैं।
● यह वृक्ष पाला व अधिक सर्दी सहन नहीं कर पाता है।
7. खेजड़ी/शमी/जांटी
● इसे थार का ‘कल्पवृक्ष’ कहते हैं।
● खेजड़ी को राज्यवृक्ष का दर्जा वर्ष 1983 को दिया गया था।
● 12 सितम्बर को राजस्थान में प्रतिवर्ष ‘खेजड़ली दिवस’ मनाया जाता है।
● अमृता देवी मृग वन खेजड़ली में है।
● अमृता देवी के नेतृत्व में वर्ष 1730 को जोधपुर (मारवाड़) राज्य की सेना के विरुद्ध वन संरक्षण के लिए आंदोलन हुआ था।
● पर्यावरण चेतना व संरक्षण के लिए राजस्थान सरकार अमृता देवी स्मृति पुरस्कार भी देती है।
● विश्व का एकमात्र वृक्ष मेला खेजड़ली में प्रतिवर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की दशमी को लगता है।
● दशहरा (विजयादशमी) के अवसर पर खेजड़ी कीपूजा की जाती है।
8. रोहिड़ा
● इसे मरुस्थल का ‘सागवान’ कहते हैं।
● इसे राज्य वृक्ष दर्जा वर्ष 1983 को दिया गया था।,
● यह पश्चिमी राजस्थान में सर्वाधिक पाया जाता है।
9. बाँस
● राजस्थान में बाँस के वनों का विस्तार बाँसवाड़ा, उदयपुर, सिरोही, चित्तौड़गढ़ व भरतपुर में हैं।
● बाँस का उपयोग झोपड़ी, टोकरी व चारपाई को बनाने में किया जाता है।
● इसे आदिवासियों के ‘हरे सोने’ के नाम से भी जाना जाता है।
10. खस
● यह घास भरतपुर, सवाई माधोपुर और टोंक जिले में उत्पादित होती है।
● यह सुगंधित घास है।
● इस घास का उपयोग कमरों को ठण्डा करने के लिए किया जाता है।
11. सेवण/लीलोण
● यह घास पशुओं के लिए पौष्टिक होती है।
● इसे घासों का राजा कहा जाता है।
● इसका सूखा सारा प्रचलित है।
● इस घास का विस्तार राष्ट्रीय मरु उद्यान (जैसलमेर-बाड़मेर) में है।
● यह पश्चिमी राजस्थान की मरुस्थलीय घास है, जो कम वर्षा वाले क्षेत्र में उगती है।
● भारत में मुखत: पश्चिमी राजस्थान, पंजाब व हरियाणा में पाई जाती हैं।
12. तेंदू
● तेंदू के पत्ते बीड़ी बनाने के लिए उपयुक्त है।
● झालावाड़, कोटा, उदयपुर व चित्तौड़गढ में पाए जाते हैं।
राजस्थान में भौगोलिक दृष्टि से तीन प्रकार के प्रमुख वन पाए जाते हैं :-
1. उष्ण कटिबंधीय कंटीले वन –
● ये वन राजस्थान के शुष्क एवं अर्द्धशुष्क भागों में पाए जाते हैं।
● यह बीकानेर, चूरू, नागौर, जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, सीकर, झुंझुनूँ तथा जालोर में पाए जाते हैं।
· इन वनों में झाड़ियाँ एवं कँटीले वृक्ष पाए जाते हैं। यहाँ मुख्य रूप से वृक्ष रोहिड़ा, खेजड़ी, धौकड़ा, बेर, बबूल, कैर व नीम मिलते हैं। इस मरुस्थलीय वनस्पति को मरुद्भिद भी कहा जाता है।
· राजस्थान के पश्चिमी क्षेत्र (मरुस्थली) में खेजड़ी की अधिकता के कारण खेजड़ी को ‘मरुस्थल का कल्पवृक्ष’ कहा जाता है।
● इस क्षेत्र में धामण व सेवण घास प्रसिद्ध है।
2. उष्ण कटिबंधीय शुष्क पतझड़ वन –
● इन वनों को ‘मानसूनी वन’ भी कहते हैं। ये वन मुख्यत: बाँसवाड़ा, डूँगरपुर, उदयपुर, चित्तौड़गढ़, बाराँ, झालावाड़, अजमेर, कोटा, जयपुर, सवाई माधोपुर, करौली, बूँदी एवं टोंक जिलों में पाए जाते हैं।
● यह वन 50 से 100 सेमी. वर्षा वाले क्षेत्र में पाए जाते हैं।
(i) शुष्क सागवान वन – इन वनों का विस्तार उदयपुर, डूँगरपुर, झालावाड़, चित्तौड़गढ़ व बाराँ जिलों में हैं। ये वन 250 से 450 मीटर ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं। इनके अलावा इन वनों में धावड़ा, गुरजन, तेंदू, गोंदल, हल्दू, सीरिस, सेमल, रीठा, इमली व बहेड़ा के वृक्ष भी पाए जाते हैं।
(ii) सालर वन – इन वनों का विस्तार राजसमंद, उदयपुर, चित्तौड़गढ़, सिरोही, पाली, अजमेर, अलवर, जयपुर व सीकर जिले में हैं। ये वन 450 मीटर से अधिक ऊँचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों में पाए जाते हैं। इन वनों में प्रमुख वन सालर, धोक, धावड़ व कठीरा हैं।
(iii) बाँस के वन – इन वनों का विस्तार चित्तौड़गढ़, बाँसवाड़ा, कोटा, बाराँ, उदयपुर व सिरोही जिले में हैं। बाँस के वृक्ष के साथ सागवान, धावड़ा व धोकड़ा के वृक्ष भी पाए जाते हैं।
(iv) धोकड़ा वन – इन वनों का विस्तार कोटा, बूँदी, जयपुर, अलवर, सवाई माधोपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़ व उदयपुर जिलों में हैं। रेगिस्तान को छोड़कर सभी क्षेत्रों का भौगोलिक पर्यावरण इनके अनुकूल है। राजस्थान में ये वन सर्वाधिक पाए जाते हैं। राजस्थान में धोकड़ा को धोक के नाम से भी जाना जाता है। इन वनों के साथ अरुन्ज, खिरनी, खैर, गोंदल व सालर के वृक्ष भी पाए जाते हैं।
(v) पलास वन – अलवर, अजमेर, सिरोही, पाली, राजसमंद, उदयपुर व चित्तौड़गढ़ में इनका विस्तार हैं। इन वनों का विस्तार उन क्षेत्रों में है, जहाँ धरातल कठोर व पथरीला है। पलास के वनों के साथ हिंगोटा, हर्जन, अंरुज, कंकेरी व झड़बेर हैं।
(vi) खैर के वन – इन वनों का विस्तार झालावाड़, कोटा, चित्तौड़गढ़, बाराँ व सवाई माधोपुर जिलों के क्षेत्रों में हैं। इनका फैलाव राजस्थान के दक्षिणी पठारी भाग में है। खैर के साथ बेर, अरुन्ज व धोकड़ा के वन मिलते हैं।
(vii) बबूल के वन – इन वनों का विस्तार बीकानेर, श्रीगंगानगर, नागौर, जालोर, भरतपुर व अलवर जिलों में हैं। इन वनों की अधिक नमी वाले क्षेत्रों में सघनता बढ़ जाती है जबकि धरातल में नमी वाले क्षेत्रों में वृक्षों की मात्रा कम होती है। बबूल के वनों के साथ अरुंज, कैर, नीम, हिंगोटा व झड़बेर हैं।
(viii) मिश्रित पर्णपाती वन – सिरोही, उदयपुर, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, कोटा व बाराँ जिलों में इनका विस्तार हैं। ये वन राज्य के दक्षिणी पहाड़ी क्षेत्रों में पाए जाते हैं। इन वनों में पाए जाने वाले प्रमुख वृक्ष शीशम, सालर, तेंदू, आँवला, रोहन, बुलर, अमलताश, करंज, अर्जुन व जामुन हैं।
3. अर्द्ध शुष्क कटिबंधीय सदाबहार वन –
● ये वन सदैव हरे-भरे दिखते हैं इसलिए इन्हें सदाबहार वन कहते हैं।
● ये आबू पर्वतीय क्षेत्र में ही पाए जाते हैं।
● इन वनों में मुख्यत: आम, बाँस, सागवान वृक्ष पाए जाते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें