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सिंधु घाटी सभ्यता नोट्स

♦ पाषाण युग की समाप्ति के बाद धातुओं का युग प्रारम्भ हुआ। इसी युग को आद्य ऐतिहासिक काल या धातु काल कहा जाता है। 

♦ हड़प्पा संस्कृति की गणना इस काल से की जाती है। 

♦ चार्ल्स मैसन ने 1826 में पंजाब के साहीवाल जिले में हड़प्पीय टीले काउल्लेख अपने लेख ‘नैरेटिव ऑफ जर्नीज’ में किया।

♦ 1834 ई. में अलेक्जेण्डर बर्न ने किसी नदी के किनारे ध्वस्त किले के होने की बात कही।

♦ 1851 ई. में अलेक्जेण्डर कनिंघम ने हड़प्पा के टीले का सर्वेक्षण किया।

♦ 1856 ई. में पहली बार ए. कनिंघम ने हड़प्पा का मानचित्र जारी कियाथा।

♦ 1861 ई. में भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना हुई जिसके प्रथमनिदेशक कनिंघम बने, 1872 ई. में कनिंघम ने पुन: हड़प्पा की यात्रा कीतथा यहाँ से पाषाण औजार व मुहरें प्राप्त की थी।

♦ हड़प्पा सभ्यता के अंतर्गत पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान, अफगानिस्तान, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के भाग आते हैं।
♦ जॉन मार्शल ’सिंधु सभ्यता’ नाम का प्रयोग करने वाले पहले पुरातत्वविद् थे।

♦ अमलानन्द घोष ने ’सौंथी संस्कृति‘ का हड़प्पा के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान माना है।

♦ 1856 ईमें कराची से लाहौर रेलवे लाइन बिछाते समय जॉन बर्टन विलियम बर्टन के आदेशों से पहली बार हड़प्पा के टीले से कुछ ईंटें निकाली गई।

♦ 1881 ई. में एक बार पुन: अलेक्जेंडर कनिंघम हड़प्पा के टीले पर गएतथा वहाँ से कुछ मुहरें प्राप्त की।

♦ 1899-1905 ई. के दौरान लॉर्ड कर्जन भारत में वायसराय बनकर आएतथा इन्होंने भारतीय पुरातत्व एवं सर्वेक्षण विभाग के अधीन भारत में प्राचीनइमारतों व नगरों के संरक्षण व सर्वेक्षण का आदेश पारित किया।

♦ इसी के शासनकाल में जॉन मार्शल नए निदेशक के रूप में भारत आए।

♦ वर्ष 1924 में लंदन में जॉन मार्शल ने हड़प्पा सभ्यता की खोज की  घोषणा की थी।

♦ जॉन मार्शल ने ‘मोहनजोदड़ो एण्ड द इंडस वैली सिविलाइजेशन’ नामकपुस्तक लिखी थी।

♦ हड़प्पा सभ्यता काँस्ययुगीन सभ्यता है।

♦ मोहनजोदड़ो की बहुसंख्यक जनता भूमध्यसागरीय प्रजाति की थी।

♦ वर्तमान में हड़प्पा सभ्यता के अधिकांश स्थल सरस्वती  दृषद्वती नदियोंके क्षेत्रों से प्राप्त हो रहे हैं।

♦ सिन्धु सभ्यता के नवीनतम स्थल थार का मरुस्थल, वैंगीकोट  गुजरातमें करीमशाही खोजे गए हैं।

नोट:- हाल ही में कोटड़ा भादली (गुजरात) की भी खोज हुई है, जहाँ से डेयरी उत्पादन के साक्ष्य मिले हैं।

 

 

हड़प्पा सभ्यता का विस्तार :-

♦ सैंधव सभ्यता का भौगोलिक विस्तार उत्तर में मांडा चिनाब नदी (जम्मू-कश्मीर) से लेकर दक्षिण दैमाबाद (महाराष्ट्र) तक तथा पश्चिम में सुत्कागेंडोर से लेकर पूर्व में आलमगीरपुर हिण्डन नदी (उत्तरप्रदेश) तक था। 

♦ वह उत्तर से दक्षिण लगभग 1400 कि.मी. तक तथा पूर्व से पश्चिम लगभग 1600 कि.मी. तक फैली हुई थी। 

क्षेत्र

पुरास्थल

अफगानिस्तान

शोर्तगोई वमुण्डीगाक

बलूचिस्तान (पाक)

सुत्कागेण्डोर, सुत्काकोह, बालाकोट,

मेहरगढ़

सिन्ध (पाक)

मोहनजोदड़ो, चन्हूदड़ो, कोटदीजी, 

जुदीरजोदड़ा

पंजाब (पाक)

हड़प्पा, गनेरीवाल, रहमानढेरी, सरायखोला, 

जलीलपुर

पंजाब

रोपड़, संघोल, बाड़ा

हरियाणा

बनवाली, मित्ताथल, राखीगढ़ी, बालू,

कुणाल

राजस्थान

कालीबंगा, पीलीबंगा

उत्तरप्रदेश

आलमगीरपुर, हुलास

गुजरात

कच्छ का रण-धौलावीरा, सुरकोटड़ा, 

देसलपुर

खंभात की खाड़ी- रंगपुर, लोथल, रोजदी, 

कुन्तासी, नागेश्वर, प्रभासपाटन, तेलोद, 

नगवाडा, शिकारपुर, मेघम, भगतराव,

जुनीकुरन

महाराष्ट्र

दैमाबाद

♦ वर्तमान में नवीन स्थल प्रकाश में आने के कारण अब इसका आकार

विषमकोणीय चतुर्भुजाकार (वास्तविक स्वरूप त्रिभुजाकार था)

रेडियो कार्बन पद्धति:-

♦ इसी आधार पर किसी भी वस्तु की आयु ज्ञात कर ली जाती है।

♦ रेडियो कार्बन (C-14) तिथि के अनुसार डॉ. डी. पी. अग्रवाल ने हड़प्पा सभ्यता का काल 2300 ई. पू. से 1750 ई. पू. को माना जाता है।

प्रमुख स्थल तथा विशेषताएँ :-

  हड़प्पा :-

♦ स्टुअर्ट पिग्गट के अनुसार यह अर्द्ध-औद्योगिक नगर था। 

♦ इसकी खोज दयाराम साहनी ने वर्ष 1921 में की थी। तब ASI के निदेशक जॉन मार्शल थे।

♦ यह मोंटगोमरी (पाक, पंजाब) वर्तमान में साहीवाल में स्थित है।

♦ रावी नदी के बाएँ तट पर स्थित इसका उत्खनन दो बार हुआ है।

हड़प्पा से संबंधित महत्त्वपूर्ण साक्ष्य:-

♦ हड़प्पा से स्त्री के गर्भ से निकलते हुए एक पौधे की मृण्मूर्ति (मातृ देवी की मूर्ति) प्राप्त हुई है, जिसे हड़प्पावासियों ने उर्वरा देवी या पृथ्वी देवीमाना है।

♦ यहाँ से बिना धड़ की एक पाषाण मूर्ति प्राप्त हुई।

♦ यह नगर लगभग 5 किमी. की परिधि में फैला हुआ था।

♦ हड़प्पा के सामान्य आवास क्षेत्र के दक्षिण में एक ऐसा कब्रिस्तान स्थितहै जिसे “समाधि R - 37” नाम दिया गया है। अन्य कब्र – H.R. भी प्राप्तहुई है।

♦ हड़प्पा का दुर्ग जिस टीले पर स्थित था उसे व्हीलर ने माउण्ड ए-बी कीसंज्ञा दी।

♦ प्रसाधन मंजूषा (शृंगार पेटी)

♦ सर्वाधिक अलंकृत मुहरें- हड़प्पा से जबकि सर्वाधिक मुहरें- मोहनजोदड़ोसे प्राप्त हुई हैं।

♦ सैंधव सभ्यता की मुहरें मुख्यत: सेलखड़ी (स्टेटाइड, टेराकोटा, ताँबा) सेनिर्मित होती थी।

♦ मुहरें 3 प्रकार की होती थी ̵

    1. आयताकार            

    2. वृत्ताकार

    3. वर्गाकार (सर्वाधिक)

♦ इन मुहरों पर एक शृंगी बैल या हरिण, कूबड़दार बैल, मातृदेवी, व्याघ्र, पशुपतिनाथ, भैंसा आदि का अंकन मिलता है।

  मोहनजोदड़ो :-

♦ मोहनजोदड़ो सिंधु नदी के दाहिने किनारे पर अवस्थित था, जो वर्तमान में पाकिस्तान के सिंध प्रान्त के लरकाना जिले में स्थित है।

♦ इसकी खोज राखालदास बनर्जी ने वर्ष 1922 में की थी। इसे सिंध कानखलिस्तान भी कहा जाता है।

♦ मोहनजोदड़ो का अर्थ होता है- 'मुर्दों का टीला‘ इस टीले की खुदाई से नौ बार बसने और नौ बार उजड़ने वाले एक व्यवस्थित नगर के अवशेष बाहर निकल आए।

♦ इसका उत्खनन 1922 – 30 के मध्य जॉन मार्शल के निर्देशन मेंकरवाया गया।

♦ मोहनजोदड़ो की सबसे बड़ी इमारत अन्नागार थी व्हीलर ने इसे अन्नागार (Grannary) की संज्ञा दी तथा सबसे बड़ा सार्वजनिक स्थल ’विशाल स्नानागार’ था, इस स्नानागार का धार्मिक महत्त्व था। इसके चारों ओर जलभण्डारण हेतु बड़े-बड़े टैंक मिले हैं। इसे जॉन मार्शल ने तत्कालीन विश्वका आश्चर्यजनक निर्माण कहा, साथ ही इसे विराट वस्तु की संज्ञा दी है।

♦ यह मोहनजोदड़ो का सर्वाधिक उल्लेखनीय स्मारक है।

♦ D.D. कौशाम्बी ने वृहत् स्नानागार की तुलना कालान्तर के संस्कृत ग्रन्थों में वर्णित पुष्कर तथा कमलताल से करते हैं।

मोहनजोदड़ो से संबंधित महत्त्वपूर्ण साक्ष्य:-

♦ मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मूर्ति पर तीन मुख वाले एक देवता का अंकनकिया गया है। जिसके चारों तरफ भैंसा, हाथी, गैंडा, व्याघ्र व निचले भागपर 2 हरिण व ऊपरी भाग पर मछली व 10 अक्षरों का अंकन मिलता है।

♦ जॉन मार्शल ने इसे पशुपतिनाथ की उपाधि प्रदान की, साथ ही इसे ‘आद्यतम शिव’ की उपमा दी है।

♦ इस स्थल से मानव कंकाल (शायद नरसंहार) के साक्ष्य मिले हैं।

♦ यहाँ से काँसे की नर्तकी की मूर्ति प्राप्त हुई है। इसका निर्माण द्रवी-मोम विधि से हुआ है। 

♦ हड़प्पावासी ताँबे और टिन को मिलाकर काँसे का निर्माण करते थे।

♦ मोहनजोदड़ो से प्राप्त मुहर पर एक योगी को ध्यान मुद्रा में एक टाँग पर दूसरी टाँग डाले बैठा दिखाया गया है।

  लोथल :-

♦ यह स्थल भोगवा नदी के किनारे स्थित है।

♦ इसकी खोज 1954-55 में की गई तथा इसका उत्खनन S. R. राव ने 1957-58 के मध्य करवाया।

♦ यह एक औद्योगिक नगर था।

♦ लोथल से मनके बनाने का कारखाना मिला है।

♦ बाट-माप-तौल के लिए पैमाना/हाथी दाँत पैमाना होता था।

♦ नाव के साक्ष्य से द. पूर्वी एशियाई देशों के साथ व्यापार का पता चलताहै।

♦ सम्पूर्ण सैन्धव सभ्यता का सबसे बड़ा सार्वजनिक स्थल लोथल कागोदीवाड़ा (डॉकयार्ड) था।

♦ यहाँ से बंदरगाह के प्रमाण प्राप्त हुए हैं। 

♦ एक छिद्रयुक्त बालक की खोपड़ी मिली।

♦ तीन युगल शवाधान (एक साथ दफनाए शव) जिनका सिर उत्तर दिशाकी तरफ तथा पैर दक्षिण दिशा की तरफ हैं।

♦ यहाँ से अग्निकुंड/अग्निवेदिकाएँ मिली हैं।

♦ ईरान की खाड़ी में मिली मुहरों के अनुरूप हैं, जिनसे मेसोपोटामिया और फारस (ईरान) के साथ व्यापारिक संबंधों का पता चलता है।

♦ S. R. राव ने इसे लघु हड़प्पा या लघु मोहनजोदड़ो कहा।

  कालीबंगा :-

♦ कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में घग्घर नदी के बाएँ तट पर स्थित है।

♦ कालीबंगा से हड़प्पा सभ्यता के साथ-साथ हड़प्पा पूर्व सभ्यता के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं अर्थात् यह प्राक् हड़प्पाकालीन स्थल है।

♦ कालीबंगा का शाब्दिक अर्थ है ̵  काले रंग की चूड़ियाँ।

♦ सर्वप्रथम 1952 में अमलानन्द घोष ने इसकी खोज की और तत्पश्चात् 1961-62 में बी. बी. लाल, बी. के. थापर द्वारा यहाँ उत्खनन कार्य करवाया गया।

♦ उत्खनन में इस सभ्यता के पाँच स्तर सामने आए हैं, प्रथम दो स्तर तो हड़प्पा सभ्यता से भी प्राचीन है, वहीं तीसरे, चौथे व पाँचवें स्तर की सामग्री हड़प्पा सभ्यता की सामग्री के समान और समकालीन है।

♦ इस आधार पर कालीबंगा की सभ्यता को दो भागों में बाँटा गया है- 

    (1) प्राक् हड़प्पा सभ्यता 

    (2) हड़प्पा सभ्यता।

♦ हल की आकृति व जुते हुए खेत के साक्ष्य मिले हैं।

♦ कालीबंगा के लोग एक साथ 2 फसलें बोते थे।

♦ ‘दीन-हीन’ बस्ती कहा जाता था।

♦ यहाँ से प्राप्त एक खोपड़ी में छेद किए हुए मिले हैं जो शल्य चिकित्सा

    का प्रमाण माना जाता है।

♦ कालीबंगा से तीन प्रकार के शवाधान के साक्ष्य मिले हैं ̵

    आंशिक शवाधान

    पूर्ण शवाधान

    दाह संस्कार

♦ कालीबंगा से विश्व के प्रथम भूकम्प के साक्ष्य मिले, जो कि लगभग 2100 ई. पू. के आसपास आया होगा।

♦ अलंकृत फर्श, ईँट तथा बेलनाकार मुहरें व हवनकुण्ड के साक्ष्य।

नोट:- डॉ. दशरथ शर्मा ने कालीबंगा को हड़प्पा सभ्यता की तीसरीराजधानी कहा।

♦ बेलनाकार मुहरें मेसोपोटामिया में भी प्रचलित थी, अत: यह कहा जासकता है, कि संभवत: कालीबंगा के व्यापारिक संबंध मेसोपोटामिया केसाथ रहे होंगे।

•  चन्हूदड़ो :-

♦ चन्हूदड़ो, मोहनजोदड़ो से 130 कि.मी. दक्षिण में स्थित है। 

♦ इसकी सर्वप्रथम खोज सन् 1930-31 में नानी गोपाल मजूमदार (NG मजूमदार) ने की थी।

♦ उत्खनन वर्ष 1935 में अर्नेस्ट मैके द्वारा किया गया।

♦ चन्हूदड़ो सिंधु घाटी सभ्यता का एकमात्र पुरास्थल है, जहाँ से वक्राकार ईंटें मिली हैं। 

♦ यह एक औद्योगिक केंद्र था। यहाँ से मनका बनाने का एक कारखाना प्राप्त हुआ है।

♦ एक मात्र स्थल जहाँ से मिट्टी की पक्की हुई पाइपनुमा नालियों  काप्रयोग किया गया।

चन्हूदड़ो साक्ष्य से संबंधित महत्त्वपूर्ण साक्ष्य:-

♦ मनके बनाने के कारखाने के साक्ष्य।

♦ सौंदर्य प्रसाधन सामग्री (जैसे- लिपिस्टिक) के अवशेष यहाँ मिले हैं।

♦ हाथी का खिलौना।

♦ चन्हूदड़ो से किसी भी प्रकार के दुर्ग के साक्ष्य नहीं मिलते हैं।

♦ यहाँ से बिल्ली के पीछे भागते हुए कुत्ते के पदचिह्न भी प्राप्त हुए हैं।

♦ सम्पूर्ण सिन्धु सभ्यता का एकमात्र सभ्यता स्थल जहाँ से झुकर-झांकरसंस्कृति के अवशेष प्राप्त होते हैं।

•  बनवाली :-

♦ बनवाली, हरियाणा के हिसार जिले में रंगोई नदी के किनारे स्थित है। 

♦ इसकी खोज 1973-74 में आर.एस. बिष्ट ने की।

♦ यहाँ से मिट्‌टी का हल प्राप्त हुआ।

♦ इस स्थल से जौ, तिल तथा सरसों के ढेर मिले हैं।

♦ बनवाली में जल निकास प्रणाली का अभाव था। 

♦ यहाँ से अग्निकुण्ड के साक्ष्य भी प्राप्त हुए।

•  रंगपुर :-

♦ रंगपुर, गुजरात के काठियावाड़ प्रायद्वीप में भादर नदी के समीप स्थित था।

♦ इसकी खोज माधोस्वरूप वत्स ने की थी।

♦ इसका उत्खनन 1953-54 में ए. रंगनाथ राव ने किया था।

♦ यहाँ पर पूर्वकालीन व उत्तरोत्तर हड़प्पा संस्कृति के अवशेष मिले हैं।

♦ इस स्थल से ‘धान की भूसी’ के प्रमाण मिले हैं।

•  सुरकोटड़ा :-

♦ गुजरात राज्य के कच्छ क्षेत्र में इस स्थल की खोज सन् 1964 में जगपति जोशी ने की थी।

♦ यहाँ से घोड़े की हड्डी के अवशेष मिले हैं। (घोड़े के अस्थि पंजर)

♦ कलश शवाधान के साक्ष्य यहाँ से मिले हैं।

♦ ऊपर से कब्र को पत्थर से ढँकने के साक्ष्य यहाँ से मिले हैं।

♦ नियमित आवास के साक्ष्य मिलते हैं।

धौलावीरा :-

♦ गुजरात राज्य के कच्छ जिले के भचाऊ तालुका में मनहर एवं मानसेहरा नदियों के बीच स्थित था।

♦ इसकी खोज वर्ष 1967- 68 में जे.पी. जोशी ने की तथा उत्खनन – वर्ष 1990-1991 R.S. बिष्ट ने किया।

♦ यहाँ से पॉलिशदार सफेद पाषाण खण्ड बड़ी संख्या में मिलते हैं।

♦ यहाँ से नेवले की पत्थर की मूर्ति भी मिली है।

♦ यह नगर हड़प्पा सभ्यता के सबसे बड़े नगरों में से हैं। 

♦ धौलावीरा में जल संरक्षण से संबंधित उत्कृष्ट तकनीक का पता चलता है। 

♦ यहाँ से सिंधु घाटी सभ्यता का एक मात्र स्टेडियम (खेल का मैदान) मिला है।

♦ यहाँ से सबसे लम्बा व बड़े अक्षरों वाला सूचना पट्‌ट (साइन बोर्ड)का अभिलेख मिला है। 

♦ घोड़े की कलाकृतियों के अवशेष भी मिले हैं।     

♦ अन्य हड़प्पाई स्थल के विपरीत धौलावीरा नगर तीन खंडों में विभाजित है अर्थात् “मध्यमा” के अवशेष केवल इसी स्थल से प्राप्त हुए हैं-

1. दुर्ग

2. मध्यम  नगर 

3. निचला नगर

नोट:- वर्ष 2015-16 के सम्पूर्ण उत्खनन के बाद राखीगढ़ी को भारत में सबसे बड़ा क्षेत्र माना गया है। (410 हैक्टेयर) 

  सुत्कागेंडोर :-

♦ पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त में दाश्क नदी पर सुत्कागेंडोर स्थित है। यह सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे पश्चिमी ज्ञात नगर है। 

♦ यहाँ से बंदरगाह के अस्तित्व का पता चला है।

  रोपड़  :-

♦ सन् 1950 में इसकी खोज बी.बी. लाल ने की तथा 1953-56 में यज्ञदत्त शर्मा ने उत्खनन करवाया।

♦ स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद उत्खनित पहला स्थल है।

♦ यहाँ हड़प्पा पूर्व एवं हड़प्पाकालीन संस्कृतियों के अवशेष मिले हैं।

♦ शवों को अंडाकार गड्‌ढों में दफनाया जाता था।

♦ यहाँ से मानवीय कब्र के नीचे से एक कुत्ते का शव (मानव के  साथ पालतू कुत्ते को दफनाने के अवशेष) मिला हैं।

  कोटदीजी :-

♦ यह स्थल सिंध, पाकिस्तान में स्थित था।

♦ उत्खनन वर्ष 1953 में फजल अहमद खान द्वारा किया गया था।

♦ यह स्थल हड़प्पा पूर्व और हड़प्पाकालीन दोनों से संबंधित है।

♦ यहाँ मकान कच्ची ईंटों से बने हैं परन्तु नींवों में पत्थर का प्रयोग हुआ है।

  राखीगढ़ी :-

♦ खोज- 1969, सूरजभान

♦ उत्खनन- 1997 में अमरेन्द्रनाथ द्वारा

♦ यह स्थल हरियाणा राज्य के हिसार जिले में घग्घर नदी पर स्थित है।

♦   यह भारत में स्थित सबसे बड़ा हड़प्पन पुरास्थल है।

♦   यहाँ से मातृदेवी अंकित लघु मुद्रा की चार मुहरें मिली हैं।

•   आलमगीरपुर  :-

♦ यह मेरठ जिले में हिण्डन नदी के तट पर स्थित है। इस स्थल की खोज 1958 में भारत सेवक समाज द्वारा की गई। 

♦ इसका उत्खनन कार्य वर्ष 1958 में यज्ञ दत्त शर्मा ने कराया।

♦ खुदाई में मृद्भाण्ड, मृत्पिण्ड (Cakes) तथा मनके मिले हैं।

♦ यहाँ से किसी भी प्रकार की कोई मुहरें नहीं मिली है।

♦ एक गर्त से रोटी बेलने की चौकी तथा कटोरे के बहुसंख्यक टुकड़े प्राप्त हुए।

•  हुलास  :- 

♦ यह उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में स्थित है।

♦ यहाँ से प्राप्त कुछ मृद्भाण्ड अन्य स्थलों से प्राप्त हुए सैन्धव भाण्डों से मिलते-जुलते हैं।

♦   काँचली मिट्टी के मनके, चूड़ियाँ, ठीकरे, खिलौना गाड़ी आदि मिले हैं।

♦ सैन्धव लिपि युक्त एक ठप्पा भी प्रकाश में आया है।

•  जूनीकूरन :-

♦ कच्छ की खाड़ी (गुजरात) में स्थित यहाँ से स्टेडियम या समारोह स्थल के साक्ष्य मिले हैं।

•    भगवानपुर :- 

♦ हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले में सरस्वती नदी के दक्षिणी किनारे पर स्थित इस स्थल का उत्खनन जे.पी.जोशी द्वारा किया गया था।

 ♦ यहाँ से ऋग्वैदिककालीन चित्रित धूसर मृद्भाण्ड (Painted Grey ware) भी प्राप्त हुए हैं।

•  कुन्तासी :-

♦ गुजरात के राजकोट जिले में स्थित इस स्थल की खुदाई एम.के.धावलिकर, एम.आर रावल तथा वाई.एम.चीतलवाल द्वारा करवाई गई।

♦ यहाँ से प्रमुख अवशेष– बंदरगाह, व्यापार -केन्द्र निगरानी स्तम्भ आदि।

हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थल:-

स्थल

नदी/सागर तट

       खोजकर्ता

वर्ष

हड़प्पा

रावी नदी

दयाराम साहनी

1921

मोहनजोदड़ो

सिंधु नदी

राखालदास बनर्जी

1922

लोथल

भोगवा नदी

एस. आर. राव

1954-55

कालीबंगा

घग्घर नदी

अमलानन्द घोष

1952

रोपड़

सतलज नदी

यज्ञदत्त शर्मा

1950

कोटदीजी

सिंधु नदी

फजल अहमद खाँ

1953

चन्हूदड़ो

सिंधु नदी

एन. जी. मजूमदार

1930-31

रंगपुर

भादर नदी

एम.एस. वत्स

1953-54

आलमगीरपुर

हिण्डन नदी

यज्ञदत्त शर्मा

1958

सुत्कागेंडोर

दाश्क नदी

ऑरेल स्टाइन

1927

बनवाली

रंगोई नदी

रवीन्द्र सिंह बिष्ट

1973-74

पुरास्थल

प्राप्त अवशेष

मोहनजोदड़ो

नर्तकी की काँस्य प्रतिमा, वृषभ की प्रतिमा, वृहत् स्नानागार, अन्नागार, पुरोहित आवास, सभा भवन, हाथी का कपालखण्ड, यूनिकॉर्न (एकशृंगी पशु), कुम्भकारों की बस्ती, पशुपति की मुहर।

हड़प्पा

R-37 एवं H.R. कब्रिस्तान, श्रमिक आवास, बारह इकाइयों में विभक्त अन्नागार, ताम्रदर्पण, शंख से निर्मित बैल, 16 ताम्र भटि्टयाँ।

कालीबंगा

ऊँट की हडि्डयाँ के साक्ष्य, लकड़ी कीनालियों के

साक्ष्य, एक युगल शवाधान, दो मृणपट्टिकाएँ।

चन्हूदड़ो

स्याही का दवात, खिलौना बनाने का कारखाना

लोथल

गोरिल्ला की मृणमूर्ति,  मिट्‌टी का साहुल, दिशा मापक उपकरण, घोड़े की लघु मृणमूर्ति।

धौलावीरा

नेवले की पत्थर की मूर्ति, जल निकास की व्यवस्था, घोड़े की कलाकृति के अवशेष, सूचना पट्ट अभिलेख।

सुरकोटड़ा

घोड़े की हड्‌डियाँ, कलश, शवाधान, पत्थर की चिनाई वाले भवनों के साक्ष्य।

दैमाबाद

सैंधव लिपि की एक मुहर, प्याले, तश्तरी, युवा पुरुष का शव।

बनावली

मकानों से अग्निवेदियाँ, मकान से धावन पात्र (wash-basin), कार्नेलियन की मनके।

बालाकोट

सीप उद्योग (Shell industry), सीप की बनी चूड़िया एवं टुकड़े।

लिपि :-

♦ सैन्धव सभ्यता की लिपि भावचित्रात्मक थी।

♦ हड़प्पाई लिपि को पढ़ने में अभी तक सफलता नहीं मिली है।

♦ इस लिपि की पहली लाइन दाएँ से बाएँ तथा दूसरी लाइन बाएँ से दाएँलिखी जाती है।

♦ लिपि के सर्वप्रथम नमूने – 1853 ई. में कनिंघम ने प्राप्त  किए।

♦ सर्पिलाकार लिपि

♦ गोमूत्राक्षर लिपि

♦ बुस्ट्रोफेदन/फेदस/फेदम (भावचित्रात्मक लिपि)

♦ सिन्धु घाटी सभ्यता की लिपि को सर्वप्रथम पढ़ने का प्रयास ‘वेडेनमहोदय’ ने किया था। इस लिपि को पढ़ने का प्रयास करने वाले प्रथमभारतीय व्यक्ति ‘नटवर झा’ थेपरन्तु पढ़ने में असफल रहे।

♦ सैन्धव लिपि का ज्ञान मुख्यतमुहरों पर मिलता है।

♦ सर्वाधिक चित्राक्षर उल्टे यू  के आकार के हैं।

♦ लिपि के साक्ष्य हड़प्पा के कब्रिस्तान H से मिलते हैं।

♦ लिपि के रूप में प्रयुक्त जीवों के चित्र में सर्वाधिक मछली के चित्र काप्रयोग हुआ हैं।

 

 

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