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माध्यम अवधि का परिदृश्य : गैर-विनिमय से विकास को बढ़ावा

माध्यम अवधि का परिदृश्य : गैर-विनिमय से विकास को बढ़ावा

• भारतीय अर्थव्यवस्था बदलाव के मध्य में है, जो अभूतपूर्व आर्थिक चुनौती और अवसर को प्रतिबिंबित करता है। भू-आर्थिक विखंडन (जीईएफ) वैश्वीकरण को प्रतिस्थापित कर रहा है, जो नए जोड़-तोड़ को प्रेरित करेगा। 
• अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के विश्व आर्थिक परिदृश्य (WEO) का अनुमान है कि भारत वित्त वर्ष 2028 तक 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा और वित्त वर्ष 2030 तक 6.307 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था हो जाएगा।

वैश्विक जनसंख्या और शहरीकरणः 

• वैश्विक जनसंख्या- वर्ष 1980 में 4.4 बिलियन से बढ़कर 2022 में 8 बिलियन हो गई, शहरीकरण दर 1980 में 39% से बढ़कर 2022 में 57% हो गई, जिससे आर्थिक गतिविधियों और कनेक्टिविटी को बढ़ावा मिला। 

• इंटरनेट का प्रसारः 1980 में इंटरनेट कनेक्टिविटी लगभग न के बराबर थी। 2022 तक, 5.3 बिलियन से ज्यादा लोगों या वैश्विक आबादी के 66% लोगों के पास इंटरनेट की पहुँच थी, जिससे संचार, व्यापार और नवाचार में क्रांति की गई। 

• ये आँकड़े दर्शाते हैं कि वैश्वीकरण ने आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा दिया है और वैश्विक आर्थिक परिदृश्य को बदला है। लेकिन, अगले दो दशकों में आर्थिक विखंडन की संभावना अधिक है। 

भारत की विकास संभावनाओं के निहितार्थ 
• वर्ष 2047 तक विकसित भारत के विज़न को प्राप्त करने के लिए भारत को अगले एक दशक या दो दशकों तक औसतन स्थिर मूल्य पर लगभग 8 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल करने की जरूरत है। 

• इस वृद्धि को प्राप्त करने के लिए, निवेश दर को सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 35 प्रतिशत तक बढ़ाना होगा, जो वर्तमान में 31 प्रतिशत है।

• इसके अतिरिक्त, विनिर्माण क्षेत्र को और विकसित करना और एआई, रोबोटिक्स और जैव प्रौद्योगिकी जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों में निवेश करना आवश्यक होगा। 

• भारत को वर्ष 2030 तक सालाना 78.5 लाख नए गैर कृषि संबंधी रोजगार सृजन करने, 100 प्रतिशत साक्षरता प्राप्त करने, हमारे शिक्षा संस्थानों की गुणवत्ता विकसित करने और उच्च गुणवत्ता, भविष्य के लिए तैयार अवसंरचना को बड़े पैमाने पर और गति से विकसित करने की आवश्यकता होगी। 

गैर-विनियम से विकास को बढ़ावा
• भारत घरेलू विकास को बढ़ावा देने के लिए प्रणालीगत विनियमन में कमी पर ध्यान केन्द्रित करेगा तथा लोगों और संगठनों को वैध आर्थिक गतिविधि को आसानी से संचालित करने के लिए सशक्त बनाएगा। 

• भारत की मध्य अवधि विकास संभावनाओं को प्रोत्साहन देने के लिए प्रणालीगत विनियमन में कमी तथा व्यक्तिगत और छोटे व्यवसायों की आर्थिक आजादी को बेहतर बनाना सबसे प्रमुख नीतिगत प्राथमिकता है। 

• ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस (EODB) 2.0  के तहत् सुधारों व आर्थिक नीति का विशेष ध्यान प्रणालीगत विनियमन में कमी लाने तथा एक व्यावहारिक मिटेलस्टैंड अर्थात् भारत का एसएमई की क्षेत्र का निर्माण करने पर होना चाहिए। 

• अगले कदम के रूप में राज्यों को मानकों तथा नियंत्रणों पर ढील देने पर काम करना चाहिए, लागू करने के लिए कानूनी सुरक्षा उपाय निर्धारित करना, टैरिफ और शुल्कों में कमी लाना, जोखिम आधारित विनियम को लागू करना।

• भारत के लिए मध्य अवधि विकास दृष्टि को नई वैश्विक वास्तविकताओं पर विचार करना चाहिए- जीईएफ, चीन की विनिर्माण ताकत और ऊर्जा स्रोतों में बदलाव के प्रयासों के लिए चीन पर निर्भरता।

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