जैन धर्म
♦ जैन शब्द : ‘जिन’ से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ – विजेता है।
♦ जैन धर्म के संस्थापक ऋषभदेव (आदिनाथ) थे जिन्हें पहले तीर्थंकर के रूप में जाना जाता है।
♦ जैन संतों को तीर्थंकर कहा गया है।
♦ पार्श्वनाथ जैन धर्म के तेईसवें तीर्थंकर थे। ये काशी नरेश अश्वसेन के पुत्र थे इन्हें जैन ग्रन्थों में “पुरुषादनीयम निर्ग्रन्थ” (सांसारिक बन्धनों से मुक्त) कहा गया है।
♦ जैन तीर्थंकरों के प्रतीक चिह्न
क्र.सं. | तीर्थंकरोंका नाम | प्रतीक |
1. | आदिनाथ/ऋषभदेव | वृषभ |
2. | अजितनाथ | गज |
3. | संभवनाथ | अश्व |
4. | अभिनन्दन | बन्दर |
5. | सुमतिनाथ | क्रौंच |
6. | पद्मप्रभु | पद्म |
7. | सुपार्श्वनाथ | स्वस्तिक |
8. | चन्द्रप्रभु | अर्द्धचन्द्रमा |
9. | पुष्पदन्त | मकर |
10. | शीतलनाथ | श्रीवत्स |
11. | श्रेयांसनाथ | खङग |
12. | वासुपूज्य | भैंसा |
13. | विमलनाथ | वाराह |
14. | अनन्तनाथ | सेही |
15. | धर्मनाथ | वज्र |
16. | शान्तिनाथ | हरिण |
17. | कंथुनाथ | छाग |
18. | अरहनाथ | मत्स्य |
19. | मल्लिनाथ | कलश |
20. | मुनि सुव्रतनाथ | कूर्म |
21. | नेमिनाथ | नीलोत्पल |
22. | अरिष्टनेमि | शंख |
23. | पार्श्वनाथ | सर्प |
24. | महावीर | सिंह |
महावीर स्वामी :-
♦ जैन धर्म के वास्तविक संस्थापक महावीर स्वामी थे।
♦ जन्म -वैशाली के निकट कुंडग्राम में 540 ई. पू. में हुआ।
नोट:- कुछ ऐतिहासिक ग्रंथों के अनुसार महावीर का जन्म 599 ई. पू. व मृत्यु 527 ई. पू. माना जाता है।
♦ पिता- सिद्धार्थ (ज्ञातृक कुल के मुखिया थे)
♦ माता- त्रिशला( लिच्छवी गणराज्य प्रमुख चेटक की बहन थी)
♦ बचपन का नाम- वर्द्धमान
♦ पत्नी - यशोदा
♦ पुत्री - प्रियदर्शना
♦ महावीर ने 30 वर्ष की अवस्था में बड़े भाई नंदिवर्द्धन की आज्ञा लेकर गृह त्याग कर दिया।
♦ 12 वर्ष की कठोर तपस्या के पश्चात् जृम्भिक ग्राम (साल वृक्ष के नीचे) के समीप ऋजुपालिका नदी के तट पर वर्द्धमान को कैवल्य प्राप्त हुआ।
♦ कैवल्य प्राप्त होने के पश्चात् ये केवलिन, इन्द्रियों को जीत लेने के कारण जितेन्द्रिय तथा अतुल पराक्रम दिखाने के कारण ये महावीर कहलाए।
♦ 72 वर्ष की उम्र में राजगृह के निकट पावापुरी (मल्ल राज्य) में 468 ई. पू. में निर्वाण प्राप्त किया।
♦ महावीर की मृत्यु के बाद केवल एक गणधर सुधर्मन जीवित बचा, जो जैन संघ का उनके बाद प्रथम अध्यक्ष बना।
♦ सालवृक्ष के नीचे महावीर को कैवल्य की प्राप्ति हुई थी। पूर्व में ये'निग्रन्थ' कहलाते थे।
♦ जैन मठों को दक्षिण भारत में बसादि के नाम से जाना गया है।
जैन धर्म की शिक्षाएँ :
♦ जैन साहित्य प्राकृत (अर्द्धमागधी) भाषा में लिखा गया।
♦ जैन साहित्य को आगम कहा जाता है जिसमें 12 अंग, 12 उपांग, प्रकीर्ण, छन्दसूत्र आदि सम्मिलित हैं।
♦ पार्श्वनाथ ने भिक्षुओं के लिए चार व्रतों का विधान किया था, अहिंसा, सत्य, अस्तेय तथा अपरिग्रह।
♦ महावीर स्वामी ने ब्रह्मचर्य को जोड़कर पंचमहाव्रत धर्म का प्रतिपादन किया।
♦ सृष्टिकर्ता के रूप में ईश्वर को नहीं मानना। (अनीश्वरवादी)
♦ देवताओं के अस्तित्व को स्वीकार किया है परन्तु इनका स्थान 'जिन' से नीचे है।
♦ जैन धर्म कर्मवादी है तथा इसमें पुनर्जन्म की मान्यता है।
त्रिरत्न :
1. सम्यक् दर्शन - सत में विश्वास।
2. सम्यक् ज्ञान - वास्तविक ज्ञान।
3. सम्यक् आचरण - सांसारिक विषयों में उत्पन्न सुख - दु:ख के प्रति समभाव।
♦ स्याद्वाद : जैन धर्म में ज्ञान को 7 विभिन्न दृष्टिकोणों से देखा गया है जो स्यादवाद कहलाता है। इसे अनेकान्तवाद अथवा सप्तभंगीनय का सिद्धान्त भी कहते हैं।
♦ अनेकात्मवाद : आत्मा संसार की सभी वस्तुओं में है। जीव भिन्न - भिन्न होते हैं उसी प्रकार आत्माएँ भी भिन्न - भिन्न होती हैं।
♦ निर्वाण : आत्मा को कर्मों के बंधन से छुटकारा दिलाना 'निर्वाण' कहा गया है।
♦ अनन्त चतुष्टय की अवधारणा जैन धर्म से सम्बन्धित है।
♦ “शलाका पुरुष” अवधारणा का संबंध जैन धर्म से है।
♦ जैन धर्म में ज्ञान प्राप्ति के तीन स्रोत माने गए हैं :-
प्रत्यक्ष, अनुमान तथा तीर्थंकरों के वचन
♦ जैन धर्म में विद्रोह जामालि व तीसगुप्त ने किया था।
♦ जमालि महावीर के प्रथम शिष्य तथा उनकी पुत्री प्रियदर्शना के पति थे।
♦ महावीर ने अपना प्रथम उपदेश राजगृह की विपुलाचल की पहाड़ी परदिया।
♦ महावीर की मृत्यु के बाद जैन संघ का प्रथम अध्यक्ष सुधर्मन बना।
सम्मेलन :
प्रथम जैन सम्मेलन
स्थान | पाटलिपुत्र |
समय | 300 ई. पू. |
अध्यक्ष | स्थूलभद्र (शासक चन्द्रगुप्त मौर्य) |
कार्य | जैन धर्म के 12 अंगों का संकलन, जैन धर्म का श्वेतांबर एवं दिगम्बर में विभाजन |
द्वितीय जैन सम्मेलन
स्थान | वल्लभी (गुजरात) |
समय | 512-13 ई. पू. में मैत्रक वंश के शासक श्रवसेन प्रथम के काल में हुई। |
अध्यक्ष | देवऋद्धिगण (क्षमाश्रमण) |
कार्य | जैन ग्रंथों का अंतिम संकलन कर लिपिबद्ध किया गया। |
जैन धर्म के सम्प्रदाय :
♦ मगध में निवास करने वाले जैन भिक्षु स्थूलभद्र के नेतृत्व में श्वेताम्बर कहलाए। ये श्वेत वस्त्र धारण करते थे।
♦ जैन आचार्य भद्रबाहु के नेतृत्व में जैन भिक्षु दिगम्बर कहलाए। ये अपने को शुद्ध बताते थे और नग्न रहने में विश्वास करते थे।
♦ जैन ग्रन्थ ‘कल्पसूत्र’ की रचना भद्रबाहु ने की थी।
♦ पुजेरा, ढुंढिया आदि श्वेताम्बर के उपसंप्रदाय थे।
♦ बीस पंथी, तेरापंथी तथा तारणपंथी दिगम्बर के उपसम्प्रदाय थे।
♦ जैनियों के स्थापत्य कला में देलवाड़ा मंदिर, माउंट आबू, खजुराहो में स्थित पार्श्वनाथ, आदिनाथ मंदिर प्रमुख हैं।
बौद्ध धर्म
♦ इस धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध थे।
♦ जन्म - नेपाल की तराई में अवस्थित कपिलवस्तु राज्य में स्थित लुम्बिनी वन में 563 ई. पू. में हुआ था।
♦ बचपन का नाम- सिद्धार्थ
♦ पिता - शुद्धोधन (शाक्य गण के मुखिया )
♦ माता - महामाया (कोलिय वंशीय )
♦ पत्नी - यशोधरा
♦ पुत्र -राहुल
♦ बुद्ध का अन्य नाम शाक्य मुनि भी है।
♦ इनका पालन-पोषण इनकी मौसी महाप्रजापति गौतमी ने किया।
♦ कालदेवल, कौण्डिन्य एवं ऋषि अतिश की भविष्यवाणी के कारण सिद्धार्थ का विवाह 16 वर्ष की आयु में कर दिया गया।
♦ गौतम बुद्ध ने निम्न चार दृश्य देखे, जिनके कारण उनको वैराग्य उत्पन्नहुआ :-
(1) वृद्ध व्यक्ति (2) बीमार व्यक्ति
(3) मृत व्यक्ति (4) प्रसन्न मुद्रा में संन्यासी
♦ सिद्धार्थ ने 29 वर्ष की अवस्था में सत्य की खोज में गृह त्याग दिया।
♦ गृह त्याग के समय सिद्धार्थ अपने साथ अपने घोड़े कन्थक व सारथी छन्दक को लेकर गए। गृह त्याग की इस घटना को बौद्ध ग्रंथों में महाभिनिष्क्रमण कहा गया।
♦ गृहत्याग के पश्चात् सर्वप्रथम वे आलार कालाम (सांख्य दर्शन के आचार्य) नामक तपस्वी के सम्पर्क में आए तत्पश्चात् वे रामपुत्त नामक आचार्य के पास गए।
♦ बुद्ध के प्रथम गुरु आलार कालाम तथा द्वितीय गुरु उद्रक रामपुत्त थे।
♦ सात वर्ष तक जगह - जगह भटकने के पश्चात् वे गया पहुँचे जहाँ उन्होंने निरंजना नदी के किनारे पीपल वृक्ष के नीचे समाधि लगाई।
♦ वैशाख पूर्णिमा पर सिद्धार्थ को ज्ञान प्राप्त हुआ। इस समय उनकी उम्र 35 वर्ष थी। उस समय से वे बुद्ध कहलाए।
♦ गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश वाराणसी के समीप सारनाथ में दिया इसे ‘धर्मचक्रप्रवर्तन’ कहते हैं।
♦ 483 ई. पू. में गौतम बुद्ध की मृत्यु कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) में हुई। इसे बौद्ध धर्म में ‘महापरिनिर्वाण’ कहते हैं।
♦ बौद्ध धर्म अनीश्वरवादी है।
♦ बौद्ध धर्म में आत्मा की परिकल्पना नहीं है। (अनात्मवादी) पुनर्जन्म को माना गया है।
♦ अपने प्रिय शिष्य आनंद के अनुरोध पर बुद्ध ने महिलाओं को संघ में प्रवेश की अनुमति दी।
♦ संघ में प्रवेश पाने वाली प्रथम महिला बुद्ध की सौतेली माँ प्रजापति गौतमी थी।
♦ उदयन बौद्ध भिक्षु पिन्डोला भारद्वाज के प्रभाव से बौद्ध बन गया था।
♦ कौसल नरेश प्रसेनजित ने संघ के लिए ‘पुब्बाराम (पूर्वा-राम)’ नामक विहार बनवाया था।
♦ बिम्बिसार ने संघ को वेणुवन विहार तथा उदयन ने घोषिताराम विहारभिक्षु संघ को प्रदान किया।
♦ बौद्ध धर्म को राजाश्रय प्रदान करने वाले शासक मगधराज बिम्बिसार और अजातशत्रु, कौसल नरेश प्रसेनजित तथा वत्सराज उदयन, पाल शासकों ने बौद्ध धर्म को विशेष रूप से संरक्षण दिया।
♦ बुद्ध की प्रथम मानव के रूप में मूर्ति प्रथम शताब्दी ई. में “मथुरा शैली” मेंनिर्मित की गई।
बौद्ध धर्म की शिक्षाएँ एवं सिद्धान्त :
♦ बौद्ध धर्म के त्रिरत्न-बुद्ध, धम्म, संघ।
♦ बौद्ध धर्म का विशद ज्ञान हमें त्रिपिटक से होता है जो पालि भाषा में लिखे गए हैं।
♦ महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं का मूल आधार चार आर्य सत्य हैं -
(i) दु:ख
(ii) दु:ख समुदाय
(iii) दु:ख निरोध
(iv) दु:ख निरोध गामिनी प्रतिपदा।
♦ प्रतीत्यसमुत्पाद (द्वादश निदान कारणवाद) बुद्ध के उपदेशों का सार है जिसका अर्थ है कि सभी वस्तुएँ कार्य और कारण पर निर्भर करती है। (कार्य-करण सिद्धान्त)
♦ प्रतीत्यसमुत्पाद : किसी वस्तु के होने पर अन्य वस्तु की उत्पत्ति होना। यह सिद्धांत दूसरे आर्य सत्य में निहित है।
♦ अष्टांगिक मार्ग -
1. सम्यक् दृष्टि 2. सम्यक् संकल्प
3. सम्यक् वाक् 4. सम्यक् कर्म
5. सम्यक् आजीव 6. सम्यक् स्मृति
7. सम्यक् समाधि 8. सम्यक् व्यायाम
♦ दु:ख के निवारण के लिए बुद्ध ने जो आठ उपाय या मार्ग बतलाए हैं, अष्टांगिक मार्ग कहलाते हैं।
पंचशील तथा दसशील
♦ दस शील : बुद्ध ने निर्वाण प्राप्ति के लिए सदाचार तथा नैतिक जीवन पर बल दिया। इसके लिए उन्होंने दस शील का पालन अनिवार्य बताया।
♦ दीघनिकाय के भाग सिंगालोवाद में पंचशील व दसशील का वर्णन मिलता है।
♦ इसमें प्रथम पाँच ‘पंचशील’ बौद्ध उपासक गृहस्थ के लिए है। सम्पूर्ण दसशील भिक्षुओं के लिए हैं-
(1) सत्य (2) अहिंसा
(3) अस्तेय (4) ब्रह्मचर्य
(5) मादक पदार्थों का त्याग (6) असमय भोजन का त्याग
(7) कोमल शैय्या का त्याग (8) कंचन कामिनी का त्याग
(9) नृत्य संगीत का त्याग (10) सुगन्धित द्रव्यों का त्याग
बौद्ध संघ
♦ महात्मा बुद्ध के समस्त अनुयायी चार भागों में विभक्त थे-
(1) भिक्षु (2) भिक्षुणी
(3) उपासक (4) उपासिका
♦ “बौद्ध संघ” ही बौद्ध धर्म की केन्द्रीय संस्था के रूप में विकसित हुआ।
♦ बुद्ध ने ‘बौद्धसंघ’ की स्थापना वैशाली गणतंत्र की प्रणाली पर की थी जबकि उनका भिक्षु संघ वस्तुत: एक धार्मिक गणतंत्र था।
♦ बुद्ध ने धर्मचक्रप्रवर्तन के बाद अपने प्रथम पाँच ब्राह्मण शिष्यों के साथ बुद्ध ने संघ की स्थापना की।
♦ बौद्ध ग्रन्थ ‘विनयपिटक’ में संघ की स्थापना तथा संघ के नियमों की विवेचना की गई है।
♦ बौद्ध संघ का संगठन गणतान्त्रिक प्रणाली पर आधारित था।
♦ बौद्ध संघ में प्रविष्ट होने को “उपसम्पदा” कहा जाता था।
♦ गृहस्थ जीवन के बौद्ध अनुयायी “उपासक” तथा संघ में निवास करनेवाले भिक्षु कहलाते थे।
♦ बौद्ध संघ सम्बन्धी नियमों के निम्न उद्देश्य हैं-
(1) भिक्षुओं के आचरण पर नियंत्रण करना।
(2) संघ की एकता व अखण्डता का संरक्षण।
(3) एक निगमित निकाय के रूप में संघ का संचालन।
(4) संघ एवं सामान्य बौद्ध उपासकों के मध्य संबंधों को परिभाषित करना।
त्रिपिटक :-
♦ सुत्तपिटक- बौद्ध धर्म के सिद्धांत।
♦ विनयपिटक- इसमें बौद्ध धर्म के व्यवहार व आचार के नियमों का उल्लेख हैं।
♦ अभिधम्म पिटक- बौद्ध धर्म के सिद्धांतों की दार्शनिक व्याख्या मिलती है।
♦ त्रिपिटकों पर लिखे गए भाष्यों को ‘विभाषाशास्त्र’ कहा जाता है।
♦ जातक ग्रन्थों में बुद्ध के पूर्व जन्मों की कथाओं का वर्णन है।
प्रथम बौद्ध संगीति
समय | 483 ई. पू. |
स्थान | सप्तपर्णि गुफा (राजगृह, बिहार) |
शासनकाल | अजातशत्रु (मगध के हर्यक वंश का शासक) |
अध्यक्ष | पुरन महाकश्यप |
कार्य | बुद्ध के उपदेशों का सुत्तपिटक तथा विनयपिटक में अलग - अलग संकलन किया गया। |
द्वितीय बौद्ध संगीति
समय | 383 ई. पू. |
स्थान | चुल्लवग्ग (वैशाली) बालुकाराम विहार |
शासनकाल | कालाशोक (शिशुनाग वंश) |
अध्यक्ष | सर्वकामी (साबकमीर) |
कार्य | भिक्षुओं में मतभेद के कारण स्थविर एवं महासांघिक में विभाजन। |
तृतीय बौद्ध संगीति
समय | 251 ई. पू. |
स्थान | पाटलिपुत्र (अशोकाराम विहार) |
शासनकाल | अशोक (मौर्य) |
अध्यक्ष | मोग्गलिपुत्ततिस्स |
कार्य | अभिधम्मपिटक का संकलन |
चतुर्थ बौद्ध संगीति
समय | प्रथम शताब्दी ई. |
स्थान | कुंडलवन (कश्मीर) |
शासनकाल | कनिष्क (कुषाण) |
अध्यक्ष | वसुमित्र (अश्वघोष उपाध्यक्ष) |
कार्य | 'विभाषाशास्त्र' टीका का संस्कृत में संकलन। बौद्ध संघ का हीनयान एवं महायान सम्प्रदायों में विभाजन |
बौद्ध धर्म के सम्प्रदाय :
♦ कनिष्क के समय बौद्ध धर्म स्पष्टतः दो सम्प्रदाय महायान तथा हीनयान में विभक्त हो गया। (चतुर्थ बौद्ध संगीति के दौरान)
♦ हीनयान : रूढ़िवादी प्रकृति के थे। ये बुद्ध के मौलिक सिद्धान्त पर विश्वास करते थे। हीनयान एक व्यक्तिवादी धर्म था, इनका कहना है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने प्रयत्नों से ही मोक्ष प्राप्ति का प्रयास करना चाहिए। ये बुद्ध को मार्गदर्शक या आचार्य मानते थे, भगवान नहीं। ये मूर्तिपूजा एवं भक्ति में विश्वास नहीं करते थे।
♦ हीनयान के दो सम्प्रदाय – वैभाषिक, सौत्रान्तिक है।
♦ महायान : सुधारवादी प्रकृति के थे। बुद्ध को भगवान मानते थे और मूर्ति पूजा पर विश्वास करते थे। अवतारवाद तथा भक्ति से संबंधित हिन्दू धर्म के सिद्धान्त को अंगीकार किया। महायान साहित्य संस्कृत में है। यह सम्प्रदाय चीन, जापान, तिब्बत, कोरिया एवं मंगोलिया में प्रचलित हैं।
♦ शून्यवाद (माध्यमिक) मत का प्रवर्तक नागार्जुन ने किया तथा विज्ञानवाद (योगाचार) के संस्थापक मैत्रेयनाथ थे।
♦ नागार्जुन की प्रसिद्ध रचना है- माध्यमिककारिका।
♦ असंग तथा वसुबंधु द्वारा विज्ञानवाद का विकास किया गया।
♦ वज्रयान : सातवीं शताब्दी के दौरान बौद्ध धर्म में तंत्र - मंत्र के प्रभाव के फलस्वरूप वज्रयान सम्प्रदाय का उदय हुआ।
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