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मुख्यमंत्री एवं मंत्रिपरिषद्

मुख्यमंत्री एवं मंत्रिपरिषद्

मुख्यमंत्री

● भारत में केन्द्र स्तर पर राष्ट्रपति औपचारिक रूप से मुख्य कार्यपालिका है जबकि प्रधानमंत्री एवं मंत्रिपरिषद् वास्तविक कार्यपालिका होती है, ठीक इसी प्रकार राज्य स्तर पर राज्यपाल औपचारिक रूप से मुख्य कार्यपालिका तथा मुख्यमंत्री एवं उसकी मंत्रिपरिषद् वास्तविक कार्यपालिका के रूप में शासन का संचालन करती है।

● मुख्यमंत्री राज्य प्रशासन की धुरी होता है। भारतीय संविधान के प्रावधानानुसार मुख्यमंत्री राज्य सरकार का वास्तविक प्रधान होता है।

● भारतीय संविधान के भाग-6 के अनुच्छेद-163, 164 में मंत्रिपरिषद् जिसका नेतृत्व मुख्यमंत्री करता है, के गठन का प्रावधान किया गया है।

► मुख्यमंत्री की नियुक्ति (अनुच्छेद-164)

● अनुच्छेद-164 के तहत मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल करेगा तथा अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल, मुख्यमंत्री की सलाह पर करेगा तथा मंत्री, राज्यपाल के प्रसादपर्यंत अपना पद धारण करेंगे।

● राज्यपाल उसी व्यक्ति को मुख्यमंत्री नियुक्त करता है, जिसे विधानसभा में उसके दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हो। 

● ऐसा व्यक्ति जो राज्य विधानमण्डल का सदस्य नहीं हो तो भी 6 माह के लिए मुख्यमंत्री नियुक्त किया जा सकता है। इसी दौरान उसे विधानमण्डल के लिए निर्वाचित होना होगा नहीं तो उसका मुख्यमंत्री पद समाप्त हो जाएगा। 

● संविधान के अनुसार मुख्यमंत्री को विधानमण्डल के दो सदनों में से किसी एक का सदस्य होना अनिवार्य है। सामान्यत: मुख्यमंत्री निचले सदन (विधानसभा) से चुना जाता है। 

● राज्य कार्यपालिका का वास्तविक प्रधान मुख्यमंत्री होता है।

नोट : 

  • संविधान द्वारा राज्यपाल की मुख्यमंत्री को नियुक्त करने संबंधी शक्ति पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है, परन्तु वास्तविक स्थिति यह है कि राज्यपाल मुख्यमंत्री की नियुक्ति में स्वतंत्र नहीं है। 

  • अनुच्छेद-164(2) के अनुसार मंत्रिपरिषद् विधानसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होती है तथा मुख्यमंत्री के बिना मंत्रिपरिषद् का अस्तित्व नहीं होता है। इसलिए व्यावहारिक तौर पर राज्यपाल को उस व्यक्ति को मुख्यमंत्री नियुक्त करना पड़ता है जिसे विधानसभा में बहुमत प्राप्त हो।

► शपथ –

● राज्यपाल के द्वारा मुख्यमंत्री को तीसरी अनुसूची के प्रारूप के अनुसार पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई जाती है। 

► कार्यकाल 

● मंत्रिपरिषद् के प्रमुख के रूप में मुख्यमंत्री का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। हालाँकि राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त अपने पद पर रहता है। लेकिन राज्यपाल द्वारा उसे तब तक बर्खास्त नहीं किया जा सकता, जब तक कि उसे विधानसभा में बहुमत प्राप्त है।

नोट :    मुख्यमंत्री का त्याग-पत्र समस्त मंत्रिपरिषद् का त्याग-पत्र माना जाता है।

► वेतन –

● मुख्यमंत्री के वेतन एवं भत्तों का निर्धारण राज्य विधानमंडल द्वारा किया जाता है। 

नोट :   

-  मुख्यमंत्री को विधानसभा के सदस्य को मिलने वाले वेतन एवं भत्तों सहित व्यय भत्ते, नि:शुल्क आवास, यात्रा भत्ता और चिकित्सा सुविधाएँ आदि मिलती हैं।

- मुख्यमंत्री की योग्यता के संदर्भ में संविधान मौन है लेकिन उसे विधानसभा में बहुमत दल का नेता होना चाहिए।  

► मुख्यमंत्री की शक्तियाँ एवं कार्य –

1. मंत्रिपरिषद् संबंधित शक्तियाँ 

● राज्यपाल उन्हीं लोगों को मंत्री नियुक्त करता है, जिनकी सिफारिश मुख्यमंत्री ने की हो। (अनुच्छेद- 164) 

● मंत्रियों के विभागों का वितरण मुख्यमंत्री करता है। 

● मतभेद की स्थिति में किसी भी मंत्री से त्याग-पत्र देने के लिए कह सकता है या राज्यपाल को उसे बर्खास्त करने का परामर्श दे सकता है। 

● मंत्रिपरिषद् की बैठकों की अध्यक्षता करता है। 

● सभी मंत्रियों के मध्य समन्वय स्थापित करता है तथा उन्हें सहयोग एवं मार्गदर्शन प्रदान करता है। 

● अपना त्याग-पत्र देकर मंत्रिपरिषद् को समाप्त कर सकता है।

नोट :   मुख्यमंत्री के द्वारा जिन नामों की सूची राज्यपाल को मंत्रियों की नियुक्ति के संबंध में दी जाती है। राज्यपाल उनको मंत्री बनाने से इनकार नहीं कर सकता है।

2. मंत्रियों को पद से हटाने संबंधी शक्ति 

● संविधान के अन्तर्गत राज्य सरकार के मंत्री राज्यपाल के प्रसाद पर्यन्त तक अपने पद पर बने रहते हैं। किन्तु वास्तव में मंत्री तब तक अपने पद पर रह सकते हैं, जब तक मुख्यमंत्री चाहे। उसकी इच्छा के विरुद्ध कोई व्यक्ति मंत्रिपरिषद् में नहीं रह सकता। यदि कोई मुख्यमंत्री के कहने के अनुसार त्याग-पत्र न दे, तो वह राज्यपाल को परामर्श देकर उसे बर्खास्त करवा सकता है।

3. मंत्रिपरिषद् के विभागों के बँटवारे संबंधी शक्ति –

● मुख्यमंत्री के द्वारा मंत्रियों के विभागों का बँटवारा भी किया जाता है। मुख्यमंत्री के द्वारा किसी भी मंत्री को कोई भी विभाग सौंपा जा सकता हैं। 

● सामान्यत: मंत्रिपरिषद् में तीन श्रेणी के मंत्री होते हैं – 

i. कैबिनेट मंत्री 

ii. राज्यमंत्री 

iii. उपमंत्री 

● यह मुख्यमंत्री पर निर्भर है कि वह किसे कैबिनेट मंत्री, राज्यमंत्री या उपमंत्री बनाए। लेकिन इसके संदर्भ में मुख्यमंत्री नेताओं की वरिष्ठता, प्रभाव एवं जनाधार का ध्यान रखता है। आमतौर पर वरिष्ठ एवं प्रभावशाली नेताओं को कैबिनेट मंत्री बनाया जाता है तथा उनकी तुलना में कनिष्ठ एवं कम प्रभावशाली नेताओं को राज्यमंत्री एवं उपमंत्री बनाया जाता है।

4. मंत्रिपरिषद् की अध्यक्षता का कार्य –

● मुख्यमंत्री के द्वारा मंत्रिपरिषद् की अध्यक्षता की जाती है। 

● मुख्यमंत्री के द्वारा ही इस बात का निर्णय किया जाता है कि मंत्रिपरिषद् की बैठक कब होगी तथा कहाँ होगी और उसमें किस विषय पर विचार किया जाएगा। यद्यपि मंत्रिपरिषद् के भीतर सभी निर्णय प्राय: बहुमत से होते हैं, लेकिन कभी ऐसा निर्णय नहीं हो सकता जिसे मुख्यमंत्री की सहमति न हो। 

5. राज्यपाल व मंत्रिपरिषद् के बीच संवाद का पुल –

● राज्यपाल एवं मंत्रिपरिषद् के बीच संवाद की प्रमुख कड़ी मुख्यमंत्री होता है। 

● अनुच्छेद-167 के तहत् प्रत्येक राज्य के मुख्यमंत्री का यहकर्तव्य होगा कि वह– 

-  राज्य के कार्यों के प्रशासन संबंधी मंत्रिपरिषद् के सभी विनिश्चय और विधान विषयक प्रस्थापनाएँ राज्यपाल को संसूचित करें।

-  राज्य के कार्यों के प्रशासन संबंधी और विधान विषयक प्रस्थापनाओं संबंधी जो जानकारी राज्यपाल माँगे, वह दे, तथा

-  किसी विषय को जिस पर किसी मंत्री ने निश्चय कर दिया है, किन्तु मंत्रिपरिषद्  ने विचार नहीं किया है, राज्यपाल द्वारा अपेक्षा किए जाने पर परिषद् के समक्ष विचार के लिए रखे।

-  वह महाधिवक्ता, राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों, राज्य निर्वाचन आयुक्त आदि की नियुक्ति के संबंध में राज्यपाल को सलाह देता है। 

6. राज्यपाल के मुख्य सलाहकार –

● मुख्यमंत्री राज्यपाल के मुख्य सलाहकार के रूप में भी भूमिका निभाता है। वह शासन की प्रत्येक समस्या पर राज्यपाल से परामर्श करता है।  

● संवैधानिक तौर पर मुख्यमंत्री के परामर्श को मानना अथवा न मानना राज्यपाल की इच्छा पर निर्भर है।

7. राज्य विधानमण्डल के संबंधी शक्ति – 

● जब मुख्यमंत्री को सदन में बहुमत प्राप्त न रहे, तब वह निम्नलिखित कदम उठा सकता है–

प्रथम – वह त्याग-पत्र दे सकता है।

द्वितीय – वह राज्यपाल को परामर्श देकर सदन का विघटन करवा सकता है। (कभी कभार बहुमत खो देने वाले मुख्यमंत्री की सलाह को राज्यपाल के द्वारा नहीं माना जाता है तथा नई सरकार बनाने का प्रयास किया जाता है।)

● जब बहुमत प्राप्त मुख्यमंत्री राज्यपाल को विधानसभा का विघटन कर नए चुनाव करवाने की सिफारिश करें तो राज्यपाल को उस सिफारिश को मानना पड़ता है।

● राज्यपाल को विधानसभा का सत्र बुलाने एवं उसे स्थगित करने के संबंध में सलाह देता है। (अनुच्छेद-174)

● किसी भी समय राज्यपाल को विधानसभा विघटित करने की सिफारिश कर सकता है। 

● सरकारी नीतियों की घोषणा करता है। 

8. अन्य –

● वह नीति आयोग की “शासी परिषद्” (Governing Council) का सदस्य होता है। 

● राज्य सरकार का मुख्य प्रवक्ता होता है। 

● आपात स्थिति में राजनीतिक स्तर पर वह मुख्य प्रबंधक होता है। 

● मुख्यमंत्री “मुख्यमंत्री सलाहकार परिषद्” का अध्यक्ष होता है एवं राज्य की समस्त सेवाओं का राजनीतिक प्रमुख होता है। 

► मुख्यमंत्री के अन्य कार्य 

● राज्य में शांति व्यवस्था और विकास के लिए योजनाएँ एवं कार्यक्रम तैयार करना। 

● राज्य विधानसभा का सत्र बुलवाना। 

● राज्यपाल का भाषण तैयार करवाना। 

● राज्यपाल एवं मंत्रिपरिषद् के मध्य सम्पर्क सूत्र का काम करना। 

● राज्य के विकास के लिए नीति एवं योजना बनाना। 

● केन्द्र एवं विभिन्न अभिकरणों से संधि एवं समझौते करना। 

● राज्य की जनता से सम्पर्क स्थापित करना। 

● राज्य प्रशासन से सम्पर्क स्थापित करना एवं नेतृत्व प्रदान करना। 

● जनता की शिकायतों को सुनना और उनकी समस्याओं का निराकरण करना। 

● राज्य विधानसभा में विपक्षी सदस्यों द्वारा पूछे गए प्रश्नों का जवाब देना और सरकार तथा मंत्रिपरिषद् का पक्ष स्पष्ट करना।  

► विशेष तथ्य –

● राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री- हीरालाल शास्त्री (7 अप्रैल, 1949)

● सी.एस. वेंकटाचारी ICS अधिकारी थे जिन्हें केन्द्र सरकार ने मुख्यमंत्री नियुक्त किया। 

► राज्य के तीन मनोनीत मुख्यमंत्री –

i. श्री हीरालाल शास्त्री 

ii. सी. एस. वेंकटाचारी

iii. जयनारायण व्यास 

● राजस्थान के प्रथम निर्वाचित मुख्यमंत्री:- टीकाराम पालीवाल (3 मार्च, 1952) 

● जयनारायण व्यास मनोनीत एवं निर्वाचित होने वाले एकमात्र मुख्यमंत्री रहे।  

● टीकाराम पालीवाल एकमात्र ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो बाद में उप-मुख्यमंत्री बने।         

● मोहनलाल सुखाड़िया (उदयपुर) सर्वाधिक लम्बी अवधि लगभग 17 वर्ष (13 नवम्बर, 1954 – 9 जुलाई, 1971) एवं सर्वाधिक चार बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे। राजस्थान के सबसे युवा मुख्यमंत्री (38 वर्ष) यही हैं।  

● राज्य के एकमात्र अल्पसंख्यक मुख्यमंत्री: - बरकतुल्लाह खाँ (जोधपुर)

● राज्य के प्रथम गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री: - भैरोंसिंह शेखावत (1977 में) (सीकर)

● राज्य के अनुसूचित जाति से बने प्रथम मुख्यमंत्री: - जगन्नाथ पहाड़िया। (भरतपुर)

● राज्य के सबसे कम अवधि के लिए मुख्यमंत्री: - हीरालाल देवपुरा (16 दिन)

● हरिदेव जोशी तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री बने लेकिन कभी 5 वर्ष का कार्यकाल पूर्ण नहीं किया। 

1. 1973-77  

2. 1985-88  

3. 1989-90  

● राज्य की प्रथम महिला मुख्यमंत्री: - श्रीमती वसुंधरा राजे (2003) 

(झालरापाटन)

● अभी तक 5 बार राजस्थान विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया। (1990, 1990, 1993, 2009, 2020)

● राजस्थान में अभी तक 4 व्यक्तियों ने तीन या तीन से अधिक बार मुख्यमंत्री का पद संभाला है–

i. मोहनलाल सुखाड़िया – (4 बार)      

ii. हरिदेव जोशी – (3 बार)

iii. भैरोंसिंह शेखावत – (3 बार)  

iv. अशोक गहलोत – (3 बार)

● राज्य के प्रथम मध्यावधि चुनाव, 1980 में हुए, जबकि छठी विधानसभा 5 वर्ष से पहले ही भंग कर दी गई। 

● पाँचवीं विधानसभा की अवधि 5 वर्ष से अधिक (आपातकाल के कारण) बढ़ाई गई। यह एकमात्र विधानसभा थी जिसकी अवधि 5 वर्ष से अधिक थी।    

● हीरालाल देवपुरा एकमात्र ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो विधानसभा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। 

● बरकतुल्लाह खाँ एकमात्र मुख्यमंत्री हैं जिनका निधन पद पर रहते हुए हुआ है। 

● हरिदेव जोशी, भैरोंसिंह शेखावत तथा वसुंधरा राजे तीन ऐसे मुख्यमंत्री थे जो राजस्थान विधानसभा में विपक्ष के नेता भी रह चुके हैं।

राजस्थान के मुख्यमंत्री – एक नजर में

क्र.सं.

मुख्यमंत्री

कार्यकाल

विवरण

1.

हीरालालशास्त्री (जयपुर)

7 -04-1949 से 5-01-1951

राज्य के प्रथममुख्यमंत्री।

वनस्थली में जीवन कुटीर की स्थापना। 

1947 में संविधान सभा के सदस्य चुने गए। 

30 मार्च, 1949 राजस्थान राज्य की स्थापना पर प्रथम मुख्यमंत्री

लोकसभा सदस्य भी रहे। 

इनके ऊपर डाक टिकट भी जारी किया। 

2.

सी.एस. वेंकटाचारी

6-01-1951 से 25-04-1951

केन्द्र सरकार द्वारा नियुक्त।

उत्तर प्रदेश में नौकरशाह के बतौर सेवाएँ दी। 

बीकानेर राज्य के प्रधानमंत्री रहे। 

राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद के सचिव रहे। 

कनाडा में भारत के उच्चायुक्त रहे। 

3.

जयनारायण व्यास (जोधपुर)

26-04-1951 से 03-03-1952

निर्वाचित और मनोनीत मुख्यमंत्री

यूथ लीग मारवाड़ लोक परिषद् के संस्थापक। 

1952 में प्रथम विधानसभा चुनाव जालोर व जोधपुर से हारने पर 

टीकाराम पालीवाल मुख्यमंत्री बने। 

'किशनगढ़' के उपचुनाव में जीतने पर पुनः मुख्यमंत्री बने 

(1 नवम्बर,1952) 

राज्यसभा के 2 बार सदस्य चुने गए। 

4.

टीकाराम पालीवाल (दौसा)

03-03-1952 से 31-10-1952

प्रथम निर्वाचित मुख्यमंत्री बने।

जयनारायण व्यास की सरकार में मंत्री रहे। फिर मुख्यमंत्री बने। 

2 बार एम.एल.ए. तथा एक बार लोकसभा सदस्य रहे। 

5.

जयनारायण व्यास

01-11-1952 से 12-11-1954

 प्रथम मनोनीत एवं निर्वाचित मुख्यमंत्री रहे।

6.

मोहनलाल सुखाड़िया 

(उदयपुर)

13-11-1954 से 09-07-1971

4 बार मुख्यमंत्री एवं सर्वाधिक अवधि तक मुख्यमंत्री रहे।

मेवाड़ प्रजामण्डल में शामिल हुए। 

राजस्थान संघ के समय सिंचाई व श्रम मंत्री रहे।

तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक के राज्यपाल भी रहे। 

इन्हें "आधुनिक राजस्थान का निर्माता" भी कहा जाता है।

7.

बरकतुल्लाह खाँ (जोधपुर)

09-07-1971 से 11-10-1973

प्रथम अल्पसंख्यक मुख्यमंत्री रहे।

भारत-पाक युद्ध (1971), कार्यकाल के दौरान ही मृत्यु हुई।

बरकतुल्लाह खाँ का संबंध जोधपुर से था।

अलवर के तिजारा से विधायक रहे।

8.

हरिदेव जोशी (बाँसवाड़ा)

11-10-1973 से 29-04-1977

बाँसवाड़ा से लगातार 8 बार विधायक रहे।

तीन बार मुख्यमंत्री रहे। 

विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे। 

असम, मेघालय और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहे। 

9.

भैरोंसिंह शेखावत (सीकर)

22-06-1977 से 16-02-1980

पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री रहे।

उपराष्ट्रपति रहे। 

मध्यप्रदेश से राज्यसभा सदस्य रहे। 

3 बार मुख्यमंत्री रहने वाले एकमात्र गैर कांग्रेसी। 

2002 में उपराष्ट्रपति के चुनाव में सुशील कुमार शिंदे को हराया।

2 बार विपक्ष के नेता रहे।

10.

जगन्नाथ पहाड़िया 

(भरतपुर)

06-06-1980 से 13-07-1981

पहले अनुसूचित जाति के मुख्यमंत्री रहे।

हरियाणा व बिहार के राज्यपाल रहे। 

राजस्थान के पहले दलित मुख्यमंत्री रहे। 

इंदिरा गाँधी सरकार में वित्त व संचार मंत्रालय में उपमंत्री रहे।

11.

शिवचरण माथुर

14-07-1981 से 23-02-1985

शिवचरण माथुर का संबंध मध्य प्रदेश से था।

2 बार मुख्यमंत्री रहे। 

असम के राज्यपाल रहे। 

लोकसभा सदस्य रहे। 

राजस्थान प्रशासनिक सुधार आयोग के अध्यक्ष रहे।

12.

हीरालाल देवपुरा

23-02-1985 से 10-03-1985

सबसे कम अवधि (16 दिन) के मुख्यमंत्री।

विधानसभा अध्यक्ष भी रहे।

13.

हरिदेव जोशी

10-03-1985 से 20-01-1988

दूसरी बार मुख्यमंत्री

14.

शिवचरण माथुर

20-01-1988 से 04-12-1989

दूसरी बार मुख्यमंत्री

15.

हरिदेव जोशी

04-12-1989 से 04-03-1990

तीसरी बार मुख्यमंत्री

16.

भैरोंसिंह शेखावत

04-03-1990 से 15-12-1992

दूसरी बार मुख्यमंत्री

17.

भैरोंसिंह शेखावत

04-12-1993 से 01-12-1998

तीसरी बार मुख्यमंत्री

18.

अशोक गहलोत (जोधपुर)

01-12-1998 से 08-12-2003

3 बार मुख्यमंत्री। 

AICC के महासचिव रहे। 

5 बार लोकसभा सदस्य रहे। 

NSUI के अध्यक्ष रहे। राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे।

19.

वसुंधरा राजे सिंधिया 

(झालरापाटन)

08-12-2003 से 13-12-2008

पहली महिला मुख्यमंत्री रही।

केंद्र सरकार में विदेश राज्य मंत्री रही। 

5 बार विधानसभा सदस्य और 5 बार लोकसभा सदस्य रही। 

राजस्थान विधानसभा में विपक्ष की नेता रही। 

वर्तमान में भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष है।

20.

अशोक गहलोत (जोधपुर)

13-12-2008 से 13-12-2013

दूसरी बार मुख्यमंत्री

21.

वसुंधरा राजे सिंधिया

13-12-2013 से 17-12-2018

दूसरी बार मुख्यमंत्री

22.

अशोक गहलोत

17-12-2018 से 15-12-2023

तीसरी बार मुख्यमंत्री 

23.

भजनलाल शर्मा

15-12-2023 से वर्तमान

वर्तमान मुख्यमंत्री

राजस्थान के उपमुख्यमंत्री

क्र. सं.

उपमुख्यमंत्री का नाम

पार्टी

कार्यकाल

तत्कालीन मुख्यमंत्री

1

टीकाराम पालीवाल

कांग्रेस

01 नवम्बर, 1952

13 नवम्बर, 1954

जयनारायण व्यास

2

हरिशंकर भाभड़ा

भाजपा

1993-1998

भैरोंसिंह शेखावत

3

बनवारी लाल बैरवा

कांग्रेस

2002-2003

अशोक गहलोत

4

कमला बेनीवाल

कांग्रेस

2003-2003

अशोक गहलोत

5

सचिन पायलट

कांग्रेस

17-12-2018 से 14-07-2020

अशोक गहलोत

6

1. दीया कुमारी 

2. प्रेम चन्द बैरवा

भाजपा

15-12-2023 से लगातार

भजनलाल शर्मा

राज्य मंत्रिपरिषद्

► संवैधानिक प्रावधान 

● अनुच्छेद- 163 के अनुसार राज्यपाल को सलाह एवं सहायता देने के लिए एक मंत्रिपरिषद् होगी जिसका प्रमुख मुख्यमंत्री होता है। राज्यपाल अपने स्वविवेक शक्तियों के अलावा सभी कृत्यों का प्रयोग मंत्रिपरिषद् की सलाह पर करता है। 

नोट :   इस प्रश्न की किसी न्यायालय में जाँच नहीं की जाएगी कि क्या मंत्रियों ने राज्यपाल को कोई सलाह दी, और दी तो क्या दी।  

► अनुच्छेद- 164 मंत्रियों से संबंधित प्रावधान 

● मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है तथा अन्य मंत्रियों की नियुक्ति मुख्यमंत्री की सलाह पर राज्यपाल ही करता है। 

● 91वें संविधान संशोधन (2003) के तहत् राज्यों में मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की अधिकतम संख्या विधानसभा की कुल संख्या के 15% से अधिक नहीं होगी लेकिन न्यूनतम संख्या मुख्यमंत्री समेत 12 से कम नहीं होनी चाहिए। 

● मंत्री राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त पद धारण करते हैं। 

● सभी मंत्री व्यक्तिगत रूप से राज्यपाल के प्रति उत्तरदायी होते हैं। 

● मंत्रिपरिषद् सामूहिक रूप से राज्य विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होती है। 

● मंत्रियों के वेतन एवं भत्ते राज्य विधानमंडल द्वारा निर्धारित किए जाते हैं। 

● अनुच्छेद- 166 के तहत राज्य के समस्त कार्य राज्यपाल के नाम से किए जाते हैं। राज्यपाल कार्यभार ग्रहण करने से पहले मंत्रियों को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाते हैं। 

● कोई व्यक्ति यदि विधानमंडल का सदस्य नहीं भी है तो उसे मंत्री नियुक्त किया जा सकता है लेकिन 6 महीने के अंदर उसका सदस्य बनना अनिवार्य है अन्यथा उसका मंत्री पद समाप्त हो जाएगा। 

● मंत्री अपना त्याग-पत्र राज्यपाल को देता है। 

● अनुच्छेद- 177 में यह उल्लिखित है कि मंत्री चाहे किसी भी सदन का सदस्य हो वह दोनों सदनों की बैठकों में भाग ले सकता है। लेकिन मत उसी सदन में देगा जिस सदन का वह सदस्य है। 

► मंत्रिपरिषद् का गठन –

● मंत्रिपरिषद् में तीन प्रकार के मंत्री होते हैं- कैबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री, उपमंत्री। 

1. कैबिनेट मंत्री  यह मंत्रिपरिषद् का छोटा-सा भाग होता है। यह सभी अपने-अपने विभागों के मुखिया होते हैं। इनके पास राज्य के महत्त्वपूर्ण विभाग गृह, वित्त, कृषि, उद्योग आदि होते हैं। 

2. राज्यमंत्री  राज्य मंत्रियों को या तो स्वतंत्र प्रभार दिया जाता है या उन्हें कैबिनेट मंत्रियों के साथ संबद्ध किया जा सकता है।

3. उपमंत्री  इन्हें स्वतंत्र प्रभार नहीं दिया जाता है।   

नोट :    

-  मंत्रियों की एक और श्रेणी भी है, जिन्हें संसदीय सचिव कहा जाता है। वे वरिष्ठ मंत्रियों के साथ उनके संसदीय कार्यों में सहायता के लिए नियुक्त होते हैं। इनकी नियुक्ति मुख्यमंत्री द्वारा की जाती है। इनकी संख्या निश्चित नहीं होती है, इन्हें राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त होता है। यह मंत्रिपरिषद् के सदस्य नहीं होते हैं। मुख्यमंत्री इन्हें शपथ दिलाते हैं। यह मुख्यमंत्री के प्रति उत्तरदायी होते हैं। मुख्यमंत्री इन्हें कभी भी बर्खास्त कर सकते हैं।  

- राजस्थान में संसदीय सचिव का पद लाभ के पद के दायरे में नहीं आता है। 

-  राजस्थान में पहली बार 1967 में मोहनलाल सुखाड़िया के समय संसदीय सचिवों को नियुक्त किया गया। 

मंत्रिपरिषद् औरमंत्रिमण्डल में अंतर

मंत्रिपरिषद्

मंत्रिमण्डल

मंत्रिपरिषद् का आकार बड़ा होता है।

मंत्रिमण्डल का आकार छोटा होता है। 

मंत्रिपरिषद् में कैबिनेट, राज्य, उपमंत्री स्तर के मंत्री होते हैं। 

मंत्रिमण्डल में केवल कैबिनेट स्तर के मंत्री ही होते हैं। 

मंत्रिपरिषद् मंत्रिमण्डल के निर्णयों को लागू करती है।

यह मंत्रिपरिषद् द्वारा अपने निर्णयों के अनुपालन की देख-रेख करती है।

यह सामूहिक रूप से विधानसभा के प्रति उत्तरदायी है। 

यह मंत्रिपरिषद् की विधानसभा के प्रति सामूहिक जिम्मेदारी को लागू करती है। 

► मंत्रिपरिषद् के कार्य 

● अनुच्छेद- 163 के तहत राज्यपाल को अपने कृत्यों के लिए सलाह एवं सहायता देना। 

● मंत्रिपरिषद् का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य है शासन के लिए नीतियों का निर्धारण करना। प्रत्येक विभाग का मंत्री अपने विभाग के सचिव और लोक सेवकों की सहायता से नीतियों का प्रारूप तैयार करता है। 

● राज्य की मंत्रिपरिषद् राज्य सूची से संबंधित विषयों पर कानूनों का निर्माण करती है। 

● राज्य सरकार का बजट मंत्रिपरिषद् के द्वारा बनवाया जाता है। 

● राज्य की मंत्रिपरिषद् का यह एक प्रमुख कार्य है कि केन्द्र सरकार की विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों का राज्य में सफलतापूर्वक क्रियान्वयन करवाएँ। 

● राज्य की मंत्रिपरिषद् राज्य में विभिन्न महत्त्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति करने की सिफारिश राज्यपाल को करती है।

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