प्रकाश
प्रकाश ऊर्जा का वह रूप है, जो हमें वस्तुओं को देखने में मदद करता है।
- प्रकाश एक प्रकार की विकिरण ऊर्जा है, जो अन्य ऊर्जाओं की तरह नजरनहीं आती। अत: हम केवल उन वस्तुओं को ही देख पाते हैं, जिन पर प्रकाशऊर्जा पड़ती है।
- प्रकाश की प्रकृति के बारे में सर्वप्रथम ‘डेकार्ट’ ने बताया कि ‘प्रकाशछोटी-छोटी द्रव्यमान विहीन कणिकाओं से मिलकर बना होता है’।
- डेकार्ट के बाद ‘न्यूटन’ ने भी प्रकाश को द्रव्यमान विहीन कणिकाओं सेमिलकर बना माना तथा इसे सिद्धांत के रूप में प्रस्तुत किया, जिसे ‘प्रकाशका कणिका सिद्धांत (Particle theory of light)’ कहा गया।
- यंग तथा हाइगेन्स जैसे वैज्ञानिकों ने माना कि प्रकाश तरंगों के रूप में पायाजाता है, इसे प्रकाश का तरंग सिद्धांत (Wave theory of light) कहा गया।
प्रकाश का परावर्तन :–
- जब कोई प्रकाश किरण किसी माध्यम में गति करते हुए अपारदर्शकअवरोध (परावर्तक पृष्ठ) से टकराती है तो टकराने के बाद वह प्रकाश किरणउसी माध्यम में लौट जाती है, इसे प्रकाश का परावर्तन कहते हैं।
- माध्यम में परिवर्तन न होने से परावर्तन के बाद प्रकाश की चाल अपरिवर्तितरहती है।
Note : समतल दर्पण प्रकाश का सबसे अच्छा परावर्तक होता है।
परावर्तन के नियम :–
- प्रकाश का परावर्तन दो नियमों पर आधारित होता है-
(i) आपतित प्रकाश किरण, अभिलम्ब तथा परावर्तित किरण (r) तीनों एकही तल में पाए जाते हैं।
(ii) आपतन कोण (\(\angle\)i) एवं परावर्तन कोण (\(\angle\)r) कामान सदैव बराबर होता है।
\(\angle\)i = \(\angle\)r
(iii) परावर्तित किरण की आवृत्ति एवं चाल अपरिवर्तित रहती है।
प्रकाश के परावर्तन के प्रकार (Type of Reflection of light) :-
- प्रकाश का परावर्तन दो प्रकार का होता है।
(1) नियमित परावर्तन
(2) विसरित परावर्तन
(1) नियमित परावर्तन (Regular Reflection):-
- समतल परावर्तक पृष्ठ से परावर्तन के बाद परावर्तित प्रकाश किरणें समानदिशा में ही गति करती है।
- परावर्तित प्रकाश किरणें समान दिशा में ही गति करती हैं।
- परावर्तित प्रकाश किरणों की तीव्रता में कमी नहीं आती है।
(2) विसरित परावर्तन (Diffused Reflection):–
- खुरदरी पृष्ठ से परावर्तन के बाद परावर्तित प्रकाश किरणें अलग-अलगदिशाओं में विसरित अथवा फैल जाती हैं।
- परावर्तित प्रकाश किरणों की तीव्रता में कमी नहीं आती है।
Note :
- सामान्यत: काँच अथवा पारदर्शी पदार्थ के पीछे वाले भाग पर परावर्तकआवरण (चाँदी या एल्युमिनियम) की परत लगाकर उन्हें दर्पण या परावर्तकपृष्ठ की तरह उपयोग में लिया जाता है।
दर्पण :-
- जब किसी काँच की पट्टिका पर परावर्तक पदार्थ जैसे चाँदी अथवा निकल की पॉलिश कर दी जाती है तो वह दर्पण बन जाता है।
- दर्पण दो प्रकार के होते हैं –
(1) समतल दर्पण
(2) गोलीय दर्पण
(1) समतल दर्पण (Plane Mirror) :-
- जब समतल काँच की प्लेट के किसी एक पृष्ठ पर परावर्तक कर देते हैं तो उसे समतल दर्पण कहते हैं।
समतल दर्पण में प्रतिबिम्ब का निर्माण –
- समतल काँच की पटि्टका की एक सतह पर सिल्वर नाइट्रेट (AgNO3) कालेपन करके इसे समतल दर्पण में बदला जा सकता है।
- समतल दर्पण में वस्तु का प्रतिबिम्ब सीधा आभासी एवं वस्तु के बराबर होताहै।
- समतल दर्पण से वस्तु जितनी दूरी पर होती है, दर्पण में प्रतिबिम्ब भी उतनीही दूरी पर बनता है।
- समतल दर्पण में अपना पूरा प्रतिबिम्ब देखने हेतु समतल दर्पण की ऊँचाईन्यूनतम व्यक्ति की लम्बाई की आधी होनी चाहिए।
- सामने रखे दर्पण में पीठ के पीछे की ओर दीवार को पूरा रखने हेतु दर्पणकी न्यूनतम लम्बाई दीवार की एक तिहाई \(\left(\frac{1}{3}\right)\) होनीचाहिए।
- यदि दो समतल दर्पण किसी कोण पर रखे हों तो उनके मध्य स्थित वस्तु केएक से अधिक प्रतिबिम्ब बनते हैं, जिसकी संख्या दर्पणों के बीच कोण परनिर्भर करती है।
- यदि वस्तु समतल दर्पण की ओर \(u\)वेग से गति करे तो प्रतिबिम्ब भीदर्पण के सापेक्ष \(u\)वेग से गति करता है, लेकिन वस्तु के सापेक्ष प्रतिबिम्बका वेग 2\(u\) होता है।
- समतल दर्पण के लिए वक्रता त्रिज्या (R) तथा फोकस दूरी का मान \(\infty\) होता है।
- समतल दर्पण के लिए आवर्धन क्षमता का मान +1 होता है।
- पनडुब्बियों में प्रयुक्त किए जाने वाले पेरिस्कोप में दो समतल दर्पणों काप्रयोग किया जाता है जो कि तल के सापेक्ष एक समान कोण बनाते हुएसमानान्तर स्थित होते हैं।
- पेरिस्कोप परावर्तन के सिद्धांत पर कार्य करता है।
झुके हुए दो समतल दर्पणों द्वारा बने प्रतिबिम्ब –
- जब दो समतल दर्पण एक-दूसरे से कोण पर झुके हो तो उनके मध्य रखीहुई वस्तु के बनने वाले प्रतिबिम्बों की संख्या (n) = \(\frac{360}{\theta}\)
(i) जब प्रतिबिम्बों की संख्या (n) का मान विषम हो तो–
n = \(\frac{360}{\theta}\)
(ii) जब प्रतिबिम्बों की संख्या (n) का मान सम हो तो–
n = \(\frac{360}{\theta}\)–1
Note :
- यदि दो समतल दर्पणों को एक-दूसरे के समान्तर रख दिया जाए तो अनन्त प्रतिबिंब प्राप्त होते हैं।
- प्रतिबिंबों की संख्या = \(\frac{360}{\theta}-1\)
\(\frac{360}{0}-1=\infty-1=\infty \) प्रतिबिंब
(2) गोलीय दर्पण (Spherical Mirror) :-
- जब काँच के खोखले गोले के किसी भाग के एक पृष्ठ पर परावर्तक पॉलिश कर देते हैं तो उसे गोलीय दर्पण कहते हैं।
गोलीय दर्पण से संबंधित परिभाषाएँ
(Definitions Related to Spherical Mirror) –
- ध्रुव (Pole) – गोलीय दर्पण के परावर्तक तल का मध्य बिन्दु दर्पण का ध्रुव कहलाता है।
- वक्रता केन्द्र व वक्रता त्रिज्या (Centre of Curvature and Radius of Curvature) – गोलीय दर्पण को एक खोखले गोले का भाग माना जाता है। इस खोखले गोले के केन्द्र को वक्रता केन्द्र कहते हैं। इसे C से व्यक्त करते हैं।
- मुख्य अक्ष (Principle Axis) – दर्पण के ध्रुव व वक्रता केन्द्र को मिलाने वाली रेखा को मुख्य अक्ष कहते हैं।
- फोकस बिन्दु व फोकस दूरी (Focal Point and Focal Length) –यदि मुख्य अक्ष के समान्तर प्रकाश की किरणें गोलीय दर्पण पर आपतित होती हैं तो परावर्तन के पश्चात् ये किरणें मुख्य अक्ष पर जिस बिन्दु पर जाकर मिलती हैं या मिलती हुई प्रतीत होती है, उसे फोकस बिन्दु कहते हैं। फोकस बिन्दु की ध्रुव से दूरी फोकस दूरी कहलाती है।
विशिष्ट किरणों का गोलीय दर्पण द्वारा परावर्तन
(Reflection of Specific Rays by Spherical Mirror) –
- मुख्य अक्ष के समान्तर कोई भी प्रकाश की किरण गोलीय दर्पण पर आपतित होती है तो परावर्तन के पश्चात् मुख्य फोकस से जाती है या जाती हुई प्रतीत होती है।
- गोलीय दर्पण पर कोई किरण वक्रता केन्द्र से गुजरती हुई आपतित होती है तो परावर्तन के पश्चात् अपने ही मार्ग पर लौट जाती है।
- गोलीय दर्पण पर फोकस से होती हुई कोई किरण आपतित होती है तो परावर्तन के पश्चात् वह मुख्य अक्ष के समान्तर हो जाती है।
गोलीय दर्पण दो प्रकार के होते हैं–
(i) अवतल दर्पण –
- ऐसे दर्पण जिनके परावर्तक पृष्ठ अन्दर की ओर वक्रित होते है, अवतल दर्पण कहलाते है।
- इस दर्पण के पश्च भाग पर परावर्तक आवरण (चाँदी या एल्युमिनियम) लगाने के बाद इन पर रंग कर दिया जाता है।
अवतल दर्पण
अवतल दर्पण द्वारा प्रतिबिम्ब का बनना–
- अवतल दर्पण द्वारा बिंब की विभिन्न स्थितियों के लिए बने प्रतिबिंब
बिंब की स्थिति | प्रतिबिंब कीस्थिति | प्रतिबिंब काआकार | प्रतिबिंब कीप्रकृति |
1. अनंत पर | फोकस F परबिंदु साइज | अत्यधिक छोटा | वास्तविक तथाउल्टा |
2. वक्रता केन्द्र (c) तथा अनन्त के बीच | फोकस (F) तथाC के बीच | छोटा | वास्तविक तथाउल्टा |
3. वक्रता केन्द्र (C) पर | वक्रता केन्द्र (C) पर | समान आकार | वास्तविक तथाउल्टा |
4. वक्रता केन्द्र (c) तथा फोकस (F) केबीच | वक्रता केन्द्र (c) व अनन्त के बीच | बड़ा | वास्तविक तथा उल्टा |
5. F पर | अनंत पर | अत्यधिक बड़ा | वास्तविक तथाउल्टा |
6. ध्रुव (P) तथाफोकस (F) के बीच | दर्पण के पीछे | बड़ा | आभासी तथासीधा |
अवतल दर्पण के उपयोग–
- शेविंग दर्पण में
- दंत विशेषज्ञों तथा नाक-कान-गला रोग विशेषज्ञों द्वारा प्रयुक्त
- सौर भट्टी
- टॉर्च, सर्चलाइट तथा वाहनों के हेडलाइट्स में
- सेटेलाइट, डिश, एन्टेना में
- परावर्तक टेलिस्कोप में
(ii) उत्तल दर्पण –
- ऐसे गोलीय पृष्ठ जिनका बाहरी भाग दर्पण के परावर्तक पृष्ठ की तरह उपयोग में लिया जाता है उन्हें उत्तल दर्पण कहते हैं।
- इसके लिए वक्र पृष्ठ के अन्दर की सतह पर परावर्तक आवरण लगाने के बाद वहाँ रंग कर दिया जाता है ताकि बाहरी उत्तल तल से ही परावर्तन हो।
उत्तल दर्पण
उत्तल दर्पण द्वारा बने प्रतिबिम्ब (किरण आरेख) –
क्र. स. | बिंब कीस्थिति | प्रतिबिंब कीस्थिति | प्रतिबिंब काआकार | प्रतिबिंब कीप्रकृति |
1. | अनन्त पर | फोकस बिन्दु पर(दर्पण के पीछे) | अत्यधिक छोटाबिंदु के आकार का | आभासी तथा सीधा |
2. | अनन्त तथादर्पण के ध्रुवP के बीच | P तथा F केबीच दर्पण केपीछे | छोटा | आभासी तथासीधा |
उत्तल दर्पण के उपयोग –
- वाहनों के पश्च-दृश्य दर्पणों (Side View Mirrors) में
- स्ट्रीट लैंप्स (Street lamps) में
- ATM के दर्पण में
- पहाड़ी क्षेत्रों में घुमावदार सड़कों के मोड़ पर
Note :
- शेविंग दर्पण की फोकस दूरी अधिक होनी चाहिए।
- वाहन के अन्दर चालक के पास स्थित दर्पण, जिसका उपयोग चालक द्वारा वाहन के ठीक पीछे देखने में किया जाता है, उसमें समतल दर्पण का उपयोग किया जाता है।
दर्पण सूत्र (Mirror Formula) :-
- एक गोलीय दर्पण में –
(i) ध्रुव से बिम्ब की दूरी u कहलाती है।
(ii) ध्रुव से प्रतिबिम्ब की दूरी v कहलाती है।
(iii) ध्रुव से फोकस की दूरी f कहलाती है।
- दर्पण सूत्र – \(\frac{1}{v}+\frac{1}{u}=\frac{1}{f}\)
प्रकाश का अपवर्तन :-
अपवर्तन का चित्र
- जब कोई प्रकाश किरण एक माध्यम से दूसरे माध्यम में प्रवेश करती है, तोवह किरण अपने मूल पथ से विचलित हो जाती है, जिसे अपवर्तन कहा जाताहै।
- जब प्रकाश किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में प्रवेश करती है, तो येअभिलम्ब से दूर हट जाती है तथा विरल से सघन माध्यम में प्रवेश करने पर येअभिलम्ब की ओर झुक जाती है।
- अलग-अलग माध्यमों में प्रकाश का वेग भी अलग-अलग होता है, इसकेकारण ही हमें अपवर्तन की परिघटना प्रतीत होती है।
अपवर्तन के नियम :-
(1) आपतित प्रकाश किरण (i) अभिलम्ब (h) तथा अपवर्तित प्रकाश किरण(r) तीनों एक ही तल में होते हैं।
(2) स्नेल का नियम - \(\frac{sin{\theta_i}}{sin{\theta_r}}\) = (अपवर्तनांक) अर्थात् आपतन कोण की ज्या (sin\(\theta_i\)) तथाअपवर्तन कोण की ज्या (sin\(\theta_i\)) का अनुपात किन्हीं दो माध्यमोंके लिए एक नियतांक होता है, जिसे दूसरे माध्यम का पहले माध्यम कोसापेक्ष अपवर्तनांक कहते हैं।
दैनिक जीवन में अपवर्तन :-
(i) तारों का टिमटिमाते हुए प्रतीत होना।
(ii) जल में आधी डूबी हुई वस्तु का मुड़ा हुआ दिखाई देना।
(iii) पानी से भरी बाल्टी के पेंदे का ऊपर उठे हुए दिखाई देना।
(iv) सूर्योदय से पूर्व तथा सूर्यास्त के बाद भी कुछ समय तक सूर्य का दिखाईदेना।
(v) लेंस से अपवर्तन की घटना
(vi) पानी से भरे काँच के ग्लास में रखा नीबू पार्श्व से देखने पर अपनेवास्तविक आकार से बड़ा दिखाई पड़ता है।
पूर्ण आन्तरिक परावर्तन :-
- जब कोई प्रकाश किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में प्रवेश करती हैतथा आपतन कोण का मान क्रांतिक कोण से अधिक हो तो वह प्रकाशकिरण पुन: उसी सघन माध्यम में लौट जाती है, जिसे प्रकाश का पूर्णआन्तरिक परावर्तन कहते हैं।
पूर्ण आंतरिक परावर्तन के लिए आवश्यक दो शर्तें–
(i) प्रकाश का सघन से विरल माध्यम में प्रवेश करना। (सघन "विरल)
(ii) आपतन कोण \((\theta\ i)\)का मान क्रांतिक कोण \((\theta\ c)\) सेअधिक \((\theta\ i>\theta\ c)\)
उदाहरण –
- हीरे का चमकना
- गर्म प्रदेशों में गर्मी के मौसम में सड़क पर जल का आभास होना (मृगमरीचिका कहा जाता है)
- किसी काँच में दरार पड़ने पर दरार का अधिक चमकदार दिखाई देना।
- प्रकाशिक तन्तु में
Note :
- किसी सघन माध्यम में वह विशेष आपतन कोण जिसके लिए विरल माध्यममें अपवर्तन कोण 900 हो, क्रांतिक कोण कहलाता है।
- सघन माध्यम का अपवर्तनांक ज्यादा होने पर क्रांतिक कोण का मान कमहोता है।
प्रकाशिक तन्तु (Optical Fibers) :-
- चिकित्सा, प्रकाशीय सिग्नल के संचरण, विद्युत सिग्नलों को भेजने व प्राप्तकरने में प्रकाशिक तंतु का उपयोग किया जाता है।
- प्रकाशिक तन्तु पूर्ण आंतरिक परावर्तन पर आधारित है।
- प्रकाशिक तन्तु का आविष्कार नरिन्दर कृपानी ने किया था।
प्रकाशिक तंतु के उदाहरण -
(i) जल में पड़ी हुई परखनली चमकीली दिखाई देना।
(ii) काँच में आयी दरारें चमकना।
(iii) कालिख से पुते हुए गोले का जल में चमकना।
प्रकाश का वर्ण विक्षेपण :-
- जब श्वेत प्रकाश किरण को प्रिज्म से गुजारा जाता है तो ये श्वेत प्रकाशकिरण अपने 7 घटक रंगों में विभक्त हो जाती है, जिसे प्रकाश का वर्णविक्षेपण कहते हैं।
- 7 घटक रंग – VIBGYOR (नीचे से ऊपर की ओर रंगों का क्रम)
- लाल रंग की तरंगदैर्ध्य तथा वेग सर्वाधिक होता है।
λR>λv
- बैंगनी रंग के प्रकाश की तरंगदैर्ध्य तथा वेग सबसे कम होता है।
- प्रकाश के अलग-अलग रंगों के लिए माध्यम का अपवर्तनांक भीअलग-अलग होता है इसी कारण से हमें वर्ण विक्षेपण की परिघटना दिखाईदेती है।
लेंस (Lens) :-
- वह पारदर्शी माध्यम जिसकी कम से कम एक सतह वक्रित हो, लेंसकहलाता है।
- लेंस दो प्रकार के होते हैं-
(1) उत्तल लेंस (convex)
(2) अवतल लेंस (concave)
(1) उत्तल लेंस (convex lens) :-
- वह लेंस जो बाहर की ओर उभरे दो गोलीय पृष्ठों से घिरा हो, उत्तल लेंसकहलाता है।
- यह किनारों की अपेक्षा बीच में मोटा होता है।
- यह प्रकाश किरणों को अभिसरित करता है अत: इसे अभिसारी लेंस भीकहते हैं।
- उत्तल लेंस की फोकस दूरी धनात्मक होती है।
- उत्तल लेंस की शक्ति (p) भी धनात्मक होती है।
- उत्तल लेंस का उपयोग दूर दृष्टि दोष के निवारण में किया जाता है।
- उत्तल लेंस से बनने वाला प्रतिबिम्ब वास्तविक होता है।
उत्तल लेंस द्वारा बने प्रतिबिंब की प्रकृति स्थिति तथा आपेक्षिक आकार–
बिंब की स्थिति | प्रतिबिंब की स्थिति | प्रतिबिंब का आपेक्षिक साइज | प्रतिबिंब की प्रकृति |
अनंत पर | फोकस F2 पर | अत्यधिक छोटा (बिन्दु आकार) | वास्तविक तथा उल्टा |
2F1 व अनन्त के बीच | F2 तथा 2F2के बीच | छोटा | वास्तविक तथा उल्टा |
2F1 पर | 2F2 पर | बिंब के आकार का | वास्तविक तथा उल्टा |
F1 तथा 2F1 के बीच | 2F2 व अनन्त के बीच | बिम्ब से बड़ा | वास्तविक तथा उल्टा |
फोकस F1 पर | अनंत पर | असीमित रूप से बड़ा अथवा अत्यधिक आवर्धित | वास्तविक तथा उल्टा |
फोकस F1 तथा प्रकाशिक केन्द्र ‘o’ के बीच | लेंस के उसी तरफ बिंब की ओर | बिंब से बड़ा | आभासी तथा सीधा |
(2) अवतल लेंस (concave lens) :-
- वह लेंस जो अन्दर की ओर वक्रित दो गोलीय पृष्ठों से घिरा हो, अवतललेंस कहलाता है।
- यह किनारों की अपेक्षा बीच में पतला होता है।
- यह प्रकाश किरणों को अपसारित करता है अत: इसे अपसारी लेंस भीकहते हैं।
- अवतल लेंस के लिए फोकस दूरी ऋणात्मक होती है।
- अवतल लेंस के लिए शक्ति (P) भी ऋणात्मक होती है।
- अवतल लेंस से बनने वाला प्रतिबिम्ब सदैव आभासी सीधा व छोटा होता है।
- अवतल लेंस के लिए आवर्धन (m) का मान +1 से कम होता है।
- अवतल लेंस का उपयोग निकट दृष्टि दोष (Myopia) के निवारण में कियाजाता है।
अवतल लेंस से प्रतिबिम्ब–
अवतल लेंस द्वारा बनने वाले प्रतिबिंब की प्रकृति, स्थिति तथा आपेक्षिक साइज –
बिंब की स्थिति | प्रतिबिंब की स्थिति | प्रतिबिंब का आपेक्षिक साइज | प्रतिबिंब की प्रकृति |
अनंत पर | फोकस F1 पर | अत्यधिक छोटा बिन्दु आकार | आभासी तथा सीधा |
अनंत तथा लेंस के प्रकाशिक केन्द्र ‘o’ के बीच | फोकस F1 तथा प्रकाशिक केन्द्र ‘o’ के बीच | बिंब से छोटा | आभासी तथा सीधा |
लेंस सूत्र (Lens Formula) :-
- गोलीय दर्पण की तरह ही लेंस में भी बिम्ब दूरी u प्रतिबिम्ब दूरी v एवंफोकस दूरी f में एक सम्बन्ध होता है जिसे निम्न सूत्र से प्रदर्शित किया जाताहै।
Note : उत्तल लेंस की फोकस दूरी धनात्मक ली जाती है एवं अवतल लेंसकी फोकस दूरी ऋणात्मक ली जाती है।
लेंस की शक्ति/क्षमता :-
- लेंस की शक्ति/क्षमता, फोकस दूरी का व्युत्क्रम होती है अर्थात्
-
- इसका मात्रक डायोप्टर/ /(मी)-1 /(सेमी)-1 होता है।
- उत्तल लेंस की क्षमता धनात्मक तथा अवतल लेंस की क्षमता ऋणात्मकहोती है।
- 1 मीटर फोकस दूरी वाले लेंस की क्षमता 1 डायोप्टर होती है।
इन्द्रधनुष (Rainbow) :-
- वर्षा के बाद अनुकूल परिस्थितियों में आकाश में बनने वाली सात रंगों कीचन्द्राकार आकृति को इन्द्रधनुष कहते हैं।
- जब सूर्य का प्रकाश प्रेक्षक की पीठ के पीछे की दिशा से आ रहा हो तथाजल की बूँदें आँखों के सामने वायु में हो तब पूर्ण आंतरिक परावर्तन, वर्णविक्षेपण तथा अपवर्तन की परिघटनाएँ होने से सामने की ओर इन्द्रधनुष एकसाथ दिखाई देते हैं।
(i) प्राथमिक इन्द्रधनुष–
- दो बार अपवर्तन तथा 1 बार पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के फलस्वरूपप्राथमिक इन्द्रधनुष बनता है।
- सामान्य अवस्था में एकल रूप में, जिसके अन्दर की तरफ बैंगनी रंग दिखाईदेता है। (कोण 42°)
(ii) द्वितीयक इन्द्रधनुष–
- दो बार अपवर्तन तथा दो बार पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के फलस्वरूपद्वितीयक इन्द्रधनुष का निर्माण होता है।
- इसमें अन्दर की तरफ लाल तथा बाहरी चाप की तरफ बैंगनी (कोण 52.5°) दिखाई देता है।
- ये प्राथमिक इन्द्रधनुष के ऊपर/बाहर की ओर बनता है।
प्रकाश का प्रकीर्णन :-
- जब प्रकाश किसी सघन माध्यम से गुजरता है तो माध्यम के कारण प्रकाशको अवशोषित कर अलग-अलग दिशाओं में फैला देते हैं, जिसे प्रकाश काप्रकीर्णन कहते हैं।
- रैले ने बताया कि प्रकीर्णित प्रकाश की तीव्रता (प्रकीर्णन की मात्रा) प्रकाशकी तरंगदैर्ध्य की चतुर्थ घात के व्युत्क्रमानुपाती होती है अर्थात्
- प्रकाश का प्रकीर्णन तरंगदैर्ध्य पर निर्भर करता है अर्थात् जिस रंग में प्रकाशका तरंगदैर्ध्य होता है, उसका प्रकीर्णन अधिक होता है।
- बैंगनी रंग की तरंगदैर्ध्य सबसे कम होती है अत: इसका प्रकीर्णन सर्वाधिकहोता है।
- लाल रंग की तरंगदैर्ध्य सबसे ज्यादा होती है अत: इसका प्रकीर्णन सबसेकम होता है।
प्रकाश के प्रकीर्णन के उदाहरण–
(1) सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय आकाश का लाल नारंगी दिखाई देना।
(2) दिन के समय आकाश का नीला दिखाई देना।
(3) समुद्र का नीला दिखाई देना।
(4) खतरे के निशान लाल रंग के बनाना।
मानव नेत्र :-
- नेत्र दो प्रकार के होते हैं-
1. संयुक्त नेत्र 2. सरल नेत्र
1. संयुक्त नेत्र (Combined Eye) :-
- बहुत सारी सरल आँखें मिलकर एक जटिल आँख का निर्माण करते हैं, जिसेसंयुक्त आँख कहा जाता है।
- संयुक्त आँख की एक इकाई को ओमेनटिडिया कहा जाता है।
- अधिक प्रकाश में संयुक्त आँखों में प्रतिबिम्ब बहुत चमकीला बनता हैजिसके कारण उनको दिखाई नहीं देता है।
- इस कारण ये इधर उधर भटकते रहते हैं।
- उदाहरण कीट-पतंगें।
2. सरल नेत्र (simple eye) :-
- सरल नेत्र, नेत्र गोलक में स्थित होता है।
- नेत्र गोलक का व्यास 2.3 cm. होता है।
- सरल नेत्र में पलकें पाई जाती हैं।
- मानव की ऊपरी पलक गतिशील होती है तथा निचली पलकें स्थिर होती है।
- साँपों में पलकें नहीं पाई जाती हैं।
- पलकों पर बाल पाए जाते हैं जिन्हें बोरेनिया कहा जाता है।
- बोरेनिया धूल व मिट्टी के कणों से आँखों के आन्तरिक भागों की सुरक्षाकरता है।
मानव नेत्र
आँखों पर तीन परतें पाई जाती है :-
1. श्वेत/दृढ़ पटल
2. रक्तक पटल
3. रेटिना/दृष्टिपटल
1. श्वेत पटल/दृढ़ पटल:-
- यह आँख की सबसे बाह्य परत है।
- श्वेत पटल अपारदर्शक होती है।
- ये बाह्य आघातों से आँख के आन्तरिक भाग की रक्षा करती है।
कॉर्निया–
- श्वेत पटल बाहर की तरफ पारदर्शक उभार बनाती है, उसे कॉर्निया कहाजाता है।
- कॉर्निया से कोई रक्तवाहिनी नहीं जुड़ी होती है।
- शरीर का एकमात्र अंग जहाँ पर कोई रक्तवाहिनी नहीं जुड़ी होती है इसलिएकॉर्निया ट्रांसप्लांट सबसे आसान होता है।
- कॉर्निया में रक्त की सप्लाई नहीं होती है।
- कॉर्निया प्रकाश को अवशोषित करने का कार्य करता है।
- कॉर्निया व उत्तल लेंस के मध्य जलीय द्रव पाया जाता है।
- उत्तल लेंस तथा रेटिना के मध्य काचाभ द्रव पाया जाता है।
2. रक्तक पटल :-
- ये आँख की मध्य परत है।
- ये आँख को रक्त अर्थात् भोजन सप्लाई करती है।
- इसमें मिलेनिन के कण पाए जाते हैं जो आँखों के रंगों के निर्धारण करते हैं। जैसे :- मानव की काली आँख, बिल्लियों की भूरी आँखें, खरगोश की लालआँखें।
3. दृष्टिपटल (रेटिना) :-
- ये आँख की सबसे आन्तरिक परत है।
- रेटिना पर Image (प्रतिबिम्ब) बनता है।
- रेटिना पर वास्तविक तथा उल्टा प्रतिबिम्ब बनता है।
- रेटिना के जिस बिंदु पर व्यक्ति का स्पष्ट प्रतिबिम्ब बनता है उसे yellow spot (पीत बिंदु) कहा जाता है।
- रेटिना के जिस बिंदु पर अच्छा प्रतिबिम्ब नहीं बनता है, उसे Blind spot (अंधबिंदु) कहा जाता हैं।
मानव नेत्र दृष्टि दोष :-
निकट दृष्टि दोष (Myopia) –
- इस दृष्टि दोष में व्यक्ति पास/निकट की वस्तुओं को स्पष्ट देख सकता हैलेकिन दूर स्थित वस्तुएँ अस्पष्ट दिखाई देती हैं।
- निकट दृष्टि दोष में प्रतिबिंब रेटिना (दृष्टिपटल) पर न बनकर रेटिना से पहलेबनता है।
- निकट दृष्टि दोष के उपचार हेतु अवतल लेंस (Concave Lens) का प्रयोगकिया जाता है।
- निकट दृष्टि दोष में आँखों के लेंस की फोकस दूरी कम हो जाती है तथालेंस की क्षमता बढ़ जाती है।
दूर दृष्टि दोष (Hypermetropia) –
- दूर दृष्टि दोष में व्यक्ति को दूर की वस्तुएँ स्पष्ट दिखाई देती हैं लेकिननिकट की वस्तुएँ अस्पष्ट दिखाई देती हैं।
- दूर दृष्टि दोष के उपचार हेतु उत्तल लेंस (Convex Lens) का प्रयोग कियाजाता है।
- दूर दृष्टि दोष में प्रतिबिंब रेटिना पर न बनकर रेटिना के पीछे बनता है।
- दूर दृष्टि दोष में लेंस की फोकस दूरी बढ़ जाती है एवं लेंस की क्षमता कमहो जाती है।
जरा दृष्टि दोष (Presbyopia) –
- जरा दृष्टि दोष के उपचार हेतु द्विफोकसी (बाईफोकल) लेंस प्रयुक्त होताहै।
- जरा दृष्टि दोष वृद्धावस्था में होने वाला दृष्टि दोष है।
- जरा दृष्टि दोष में व्यक्ति को न तो पास की वस्तुएँ स्पष्ट दिखाई देती हैंऔर न ही दूर की वस्तुएँ स्पष्ट दिखाई देती हैं।
दृष्टि वैषम्य/Astigmatism –
- दृष्टि वैषम्य में व्यक्ति ऊर्ध्व दिशा में स्पष्ट नहीं देख पाता है।
- दृष्टि वैषम्य के उपचार हेतु 'बेलनाकार लेंस' (Cylindrical Lens) काप्रयोग किया जाता है।
मोतियाबिंद (Cataracts) –
- बढ़ती उम्र के साथ लेंस का लचीलापन कम होने लगता है एवं लेंसअपारदर्शी होने से व्यक्ति को धुँधला दिखाई देने लगता है।
- मोतियाबिंद के उपचार हेतु 'इन्ट्रा ऑक्यूलर लेंस' (IOL) का प्रयोग कियाजाता है।
नोट :
- पानी की बूँद हवा में उत्तल लेंस की भाँति व्यवहार करती है।
- हवा का बुलबुला पानी में अवतल लेंस की भाँति व्यवहार करता है।
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