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जिला स्तर पर न्यायिक ढाँचा

जिला स्तर पर न्यायिक ढाँचा

● भारत के हर जिला स्तर पर जिला स्तरीय एवं अधीनस्थ न्यायालयों की स्थापना की गई है। 

● जिला स्तर पर अधीनस्थ न्यायालयों की स्थापना का प्रमुख उ‌द्देश्य जिले के मुकदमों को स्थानीय स्तर पर ही फैसला करना हैं. जिससे जनता को न केवल सरलता से न्याय उपलब्ध हो अपितु उच्च न्यायालय के कार्यभार में वृद्धि को कम किया जा सके और जनता को न्याय प्राप्ति के लिए दूर भी नहीं जाना पड़े। 

● जिला एवं अधीनस्थ न्यायालयों की स्थापना का एक प्रमुख उद्देश्य यह भी माना जा सकता है कि जनता के धन व समय को बचाने के लिए भी ऐसा किया गया है। अतः सुलभ व सरल न्याय प्राप्ति के उद्देश्य से स्थानीय लोगों को राहत पहुँचाने के लिए इन न्यायालयों की स्थापना की गई है।

● भारत के हर जिले में विभिन्न प्रकार के अधीनस्थ न्यायालय होते हैं। 

● दीवानीफौजदारी व मालगुजारी न्यायालय में न्यायालय अपने अपने मुकदमों की सुनवाई करते हैं। 

● इन मुकदमों को निम्न बिन्दुओं में विभाजित किया जा सकता है:

1. दीवानी मुकदमे (Civil Cases)

-  दो या दो से अधिक व्यक्तियों में सम्पत्ति का झगड़ाकिसी समझौते को तोड़नातलाकविवाहमालिक-किरायेदार का झगड़ाइन सबकी सुनवाई दीवानी न्यायालय में की जाती है।

2. फौजदारी मुकदमे (Criminal Cases)

-  किसी कानून का उल्लंघन करनाचोरीडकैतीअपहरणजेब काटनाशारीरिक रूप से नुकसान पहुँचानाहत्या करना ऐसे आपराधिक मुकदमे जिनमें जुर्मानाकैद या फिर मृत्युदण्ड भी दिया जा सकता हैफौजदारी न्यायालय में सुने जाते हैं।

जिला एवं अधीनस्थ न्यायालय :-

● जिला स्तरीय न्यायालयों की स्थापना जिले में की जाती है। यह जिले के सबसे बड़े न्यायालय होते हैं जिला स्तर के सभी मुकदमे इसी न्यायालय में सुने जाते हैं। 

● जिले स्तर पर भी दो तरह के जिला न्यायालय होते हैं जो अलग-अलग नामों से जाने जाते हैं। 

● अधीनस्थ न्यायालय – संविधान के भाग-6 में अनुच्छेद-233से 237 तक अधीनस्थ न्यायालयों के गठन के बारे में प्रावधान किया गया है। अधीनस्थ न्यायालयों में जिला न्यायाधीशनगर सिविल न्यायालय के न्यायाधीशमहानगर मजिस्ट्रेट और राज्य की न्यायिक सेवा के सदस्य आते हैं। 

जिला न्यायाधीश की नियुक्ति (अनुच्छेद-233) –

● जिला न्यायाधीशों की नियुक्तिपदस्थापना एवं पदोन्नति राज्यपाल द्वारा राज्य के उच्च न्यायालय के परामर्श से की जाती है। 

जिला न्यायाधीश की योग्यताएँ 

(a) वह केन्द्र या राज्य सरकार में किसी सरकारी सेवा में कार्यरत न हो। 

(b) उसे कम से कम 7 वर्ष का अधिवक्ता का अनुभव हो। 

(c) उच्च न्यायालय ने उसकी नियुक्ति की सिफारिश की हो। 

अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति (अनुच्छेद-234) –

● राज्यपाल राज्य लोक सेवा आयोग एवं उच्च न्यायालय के परामर्श के बाद जिला न्यायाधीश से भिन्न व्यक्ति को भी न्यायिक सेवा में नियुक्त कर सकता है। 

अधीनस्थ न्यायालयों पर नियंत्रण (अनुच्छेद-235) –

● जिला न्यायालयों एवं अन्य न्यायालयों में न्यायिक सेवा से संबंधित व्यक्ति की पदस्थापनापदोन्नति एवं अन्य मामलों पर नियंत्रण का अधिकार राज्य के उच्च न्यायालय को होता है। 

अधीनस्थ न्यायालयों की संरचना 

● जिला न्यायाधीश जिले का सबसे बड़ा न्यायिक अधिकारी होता है। 

● उसे सिविल और आपराधिक मामलों में मूल और अपीलीय क्षेत्राधिकार प्राप्त है। 

● जिला न्यायाधीश सत्र न्यायाधीश भी होता है जब वह दीवानी मामलों की सुनवाई करता है तो उसे जिला न्यायाधीश कहा जाता है तथा जब वह फौजदारी मामलों की सुनवाई करता है तो उसे सत्र न्यायाधीश कहा जाता है। 

● जिला न्यायाधीश के पास जिले के अन्य सभी अधीनस्थ न्यायालयों का निरीक्षण करने की शक्तियाँ होती है। 

● उसके फैसले के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है। 

● जिला न्यायाधीश को किसी अपराधी को उम्रकैद से लेकर मृत्युदंड देने का अधिकार होता है। हालाँकि उसके द्वारा दिए गए मृत्युदण्ड पर तभी अमल किया जाता है जब राज्य का उच्च न्यायालय उसका अनुमोदन कर दे। 

● जिला एवं सत्र न्यायाधीश से नीचे दीवानी मामलों के लिए अधीनस्थ न्यायाधीश का न्यायालय एवं फौजदारी मामलों के लिए मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी का न्यायालय होता है। 

● सबसे निचले स्तर पर दीवानी मामलों के लिए मुंसिफ न्यायाधीश का न्यायालय तथा फौजदारी मामलों के लिए सत्र न्यायाधीश का न्यायालय होता है। मुंसिफ न्यायाधीश का सीमित कार्यक्षेत्र होता है तथा वह छोटे दीवानी मामलों पर निर्णय देता है जबकि सत्र न्यायाधीश ऐसे फौजदारी मामलों की सुनवाई करता है जिसमें वर्ष  कारावास की सजा दी जा सकती है। 

● अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से इन्हें दो भागों में बाँटा जा सकता है:

    1. जिला न्यायालय         2. सत्र न्यायालय

1. जिला न्यायालय (दीवानी न्यायालय) [District Courts (Civil Courts)]

● जिला न्यायालय जिले के दीवानी मामलों की सुनवाई करता हैइसलिए इसे जिला दीवानी न्यायालय भी कहते हैं। यह जिले का सबसे बड़ा न्यायालय होता है जहाँ दीवानी मुकदमे सुने जाते हैं। अक्सर इसी न्यायालय को डिस्ट्रिक्ट और सेशन जज का न्यायालय भी कहा जाता है। इन न्यायालयों को प्रारम्भिक व अपीली दोनों प्रकार के अधिकार प्राप्त होते हैं। 10,000 रुपये से अधिक के विवाद इसके प्रारम्भिक अधिकार क्षेत्र में आते हैं। इसके अतिरिक्त विवाहवसीयत सम्बन्धीआदि के मामले इसी न्यायालय की प्रारम्भिक अधिकार क्षेत्र में आते हैं।

● जिला स्तरीय न्यायालय के नीचे दीवानी मामलों के लिए सिविल जज न्यायालय होते हैं। सिविल जज न्यायालय को 2000 से लेकर 10,000 रुपये तक के मुकदमें सुनने का प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार प्राप्त है ऐसे मामलों मेंजो कि जिला न्यायालय के आदेश से इनमें भेजे जाएँ, इनका अपीलीय क्षेत्राधिकार भी होता है।

● सिविल जज के नीचे मुंसिफ मजिस्ट्रेट का न्यायालय भी होता है। इन न्यायालयों को प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार प्राप्त होता है। न्यून धनराशि के झगड़े इसी न्यायालय में निपटाये जाते हैं। जिला न्यायाधीश केवल अधीनस्थ न्यायाधीश के विरुद्ध अपील को ही नहीं सुनताअपितु कभी-कभी कुछ मुकदमे सीधे जिला न्यायाधीश के न्यायालय से ही दर्ज कराये जाते हैं। इनके न्याय के विरुद्ध राज्य के उच्च न्यायालय में अपील की जाती है।

● जिला स्तरीय न्यायाधीशों एवं अन्य न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है। राज्यपाल इन नियुक्ति के लिए उच्च न्यायालय एवं राज्य लोक सेवा आयोग के परामर्श सेनियुक्तिभर्ती आदि के नियम बनाता है। संविधान के अनुच्छेद 235 के अन्तर्गत जिला स्तरीय न्यायालय पर उच्च न्यायालय का नियंत्रण रहता है। उच्च न्यायालय द्वारा ही उनका पदस्थापन तथा पदोन्नति की जाती है ये अवकाश आदि के लिए भी उच्च न्यायालय के पास आवेदन भेजते हैं।

2. सत्र न्यायालय या फौजदारी न्यायालय (Sessions Courts or Criminal Courts)

● जिला स्तरीय फौजदारी मामलों के लिए सत्र न्यायालय होते हैं. इसलिए इन्हें सत्र न्यायालय या फौजदारी न्यायालय भी कहा जाता है। इस न्यायालय को प्रारम्भिक व अपीलीय दोनों तरह के अधिकार प्राप्त हैं। फौजदारी मामलों में क्रिमिनल प्रोसिजर कोड के अनुसार सेशनवादसेशन न्यायालय के प्रारम्भिक अधिकार सीमा में आते हैं।

● फौजदारी मामलों की सुनवाई के लिए सेशन जज का न्यायालय जिले में सबसे बड़ा न्यायालय होता है। इसको अधीनस्थ न्यायालयों के विरुद्ध अपील सुनने का अधिकार प्राप्त है। इसलिए जिले का सबसे बड़ा अपीलीय न्यायालय भी होता है। सत्र न्यायालय के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील की जाती हैयदि किसी सत्र न्यायालय द्वारा किसी मुकदमे में मृत्युदण्ड की सजा सुनाई जाती है तो मृत्युदण्ड की पुष्टि या स्वीकृति उच्च न्यायालय द्वारा करनी आवश्यक है।

● सत्र न्यायालय के बाद प्रथम श्रेणीद्वितीय श्रेणी और तृतीय श्रेणी मजिस्ट्रेट के न्यायालय आते हैं। मैट्रोपोलिटन शहरों;जैसेदिल्लीकोलकत्तामुम्बई और चेन्नई में प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट को मैट्रोपालिटिन मजिस्ट्रेट कहते हैं। उन सभी व्यक्तियों को जो कानून का उल्लंघन करते पाये जाते हैउन्हें सभी फौजदारी न्यायालय कानूनी आधार पर दोषमुक्त अथवा दण्डित करने के लिए स्वतंत्र होते हैं।

● इन न्यायालयों के अतिरिक्त फौजदारी विवादों के लिए राजस्थान में एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट के न्यायालय भी हैं। राजस्थान प्रशासनिक सेवा के सदस्यों की नियुक्ति एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट के रूप में की जाती है। इन न्यायालयों में स्थानीय अधिनियम यथा गैम्बलिंग एक्टराजस्थान एक्साइज एक्टकेटल ट्रेसपास एक्ट आदि के अन्तर्गत आने वाले मामलों की सुनवाई होती है। इसके अतिरिक्त क्रिमिनल प्रोसिजर कोड के सेक्शन 107, 109, 14 के अन्तर्गत आने वाले मामले भी इसकी अधिकार सीमा में आते हैं। एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट के निर्णयों के विरुद्ध पहले सेशन न्यायालय में एवं उसके बाद यदि आवश्यक हो तो उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।

● एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट के न्यायालय अन्य न्यायालयों से भिन्न है। इन पर प्रशासकीय नियंत्रण राज्य सरकार के द्वारा किया जाता है। इनकी पदोन्नतिस्थानान्तरण तथा इनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही सम्बन्धी मामले भी राज्य सरकार की अधिकार सीमा में आते हैं। इन न्यायालयों पर उच्च न्यायालयों का प्रशासनिक नियंत्रण नहीं होता।

3. मालगुजारी न्यायालय (Revenue Courts)

● भूमि सम्बन्धी मालगुजारी के मुकदमे इसमें दायर किये जाते हैं। मालगुजारी न्यायालय में राजस्व मण्डल सबसे बड़ा न्यायालय होता है। राजस्व मण्डल राज्य का उच्चतम राजस्व न्यायालय है। इसे अपीलीय तथा पुनरीक्षण की शक्तियाँ प्राप्त हैं। उच्च न्यायालय उस दशा में हस्तक्षेप कर सकता हैजब किसी दीवानी तथा राजस्व न्यायालय के मध्य अधिकार सीमा का विवाद हो अथवा राजस्व मण्डल ने अपने अधिकारों का उपयोग गलत रूप से किया हो।

● राजस्थान में राजस्व मण्डल की स्थापना राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 के अन्तर्गत की गई है। इसमें कम से कम 5सदस्य होते हैं। भारतीय प्रशासनिक सेवा के सुपर टाइम स्केल सदस्यों को बोर्ड में नियुक्त किया जा सकता है। राजस्थान का राजस्व मण्डल अजमेर में स्थित है।

● राजस्व बोर्ड के नीचे राजस्व अपीलीय प्राधिकरण का न्यायालय होता है। उसके नीचे जिलाधीशउप जिलाधीश तथा सहायक जिलाधीश के न्यायालय होते हैं। इसके बाद तहसीलदार तथा नायब तहसीलदार के न्यायालय हैं। राजस्व मामलों में प्रारम्भिक क्षेत्राधिकारसहायक जिलाधीश का होता है। राजस्व सम्बन्धी विवादों के अतिरिक्त सहायक जिलाधीश के पास एक्जीक्यूटिव तथा एक्जीक्यूटिव ऑफिसर का भी कार्य रहता है। सहायक जिलाधीश के निर्णयों के विरुद्ध राजस्व अपीलीय प्राधिकरण में अपील की जा सकती है। राजस्व मण्डल सभी अधीनस्थ राजस्व न्यायालयों के विरुद्ध अन्तिम अपील को सुनता है।

महत्त्वपूर्ण बिन्दु :-

·  जिला न्यायालय - जिले के अन्तर्गत आने वाले दीवानी मामलों की सुनवाई जिला न्यायालय में की जाती हैइन्हें दीवानी न्यायालय भी कहते हैं।

·  जिला सत्र न्यायालय - फौजदारी मामलों की सुनवाई जिला सत्र न्यायालय में की जाती है। इनको फौजदारी न्यायालय भी कहते है।

·  जिला न्यायालय को दस हजार रुपये से अधिक का विवाद सुनने का प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार प्राप्त है।

·  सिविल जज न्यायालय - जिला स्तरीय न्यायालयों के नीचे सिविल जज न्यायालय होते हैं। सिविल जज न्यायालय को दस हजार रुपये से नीचे के मुकदमे सुनने का प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार प्राप्त है।

·  मुंसिफ मजिस्ट्रेट न्यायालयसिविल जज के नीचे मुंसिफ मजिस्ट्रेट का न्यायालय होता है। न्यून धनराशि के झगड़े इसी न्यायालय मे निपटाये जाते हैं।

·  अधीनस्थ न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध जिला न्यायालय मे अपील की जा सकती है।

·  जिला न्यायालय के निर्णयों के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।

·  राजस्व मण्डल मालगुजारीभू-राजस्व सम्बन्धी मामलों का सर्वोच्च न्यायालय राजस्व मण्डल है।

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