उत्सर्जन तंत्र
- उत्सर्जन के आधार पर मनुष्य यूरियोटेलिक है अर्थात् मनुष्य का मुख्य उत्सर्जी पदार्थ यूरिया है।
- मनुष्य में मुख्य उत्सर्जी अंग वृक्क है।
- यकृत, फेफड़े, त्वचा, आँतें आदि अन्य उत्सर्जी अंग हैं।
- मनुष्य के उत्सर्जन तंत्र में मुख्यत: निम्नलिखित अंग होते हैं–
(i) वृक्क (Kidney) :-
- वृक्क उदरगुहा में डायफ्रॉम के नीचे मेरुदण्ड के दोनों ओर स्थित होते हैं।
- वृक्क सेम के बीज के समान होते हैं।
- प्रत्येक वृक्क की लम्बाई लगभग 10-12 सेमी., चौड़ाई लगभग 5-7 सेमी. जबकि मोटाई लगभग 2-3 सेमी. होती है।
- वृक्क का रंग भूरा-पीला होता है।
- प्रत्येक वृक्क का वज़न लगभग 140-150 ग्राम होता है।
- मनुष्य के शरीर में वृक्क 1 जोड़ी होते हैं।
- वृक्क का बाहरी आवरण ‘पेरिटोनियम’ कहलाता है।
- वृक्क में पाई जाने वाली खाँच ‘हाइलम’ कहलाती है, जहाँ से मूत्रवाहिनियाँ, तंत्रिकाएँ, धमनियाँ, शिराएँ आदि वृक्क में प्रवेश करती हैं।
- मूत्रवाहिनी का वह भाग जो वृक्क के हाइलम से जुड़ा रहता है, कीप की आकृति का होता है, जिसे ‘मूत्रवाहिनी की श्रोणि’ (Pelvis of Uretra) कहा जाता है।
- वृक्क का बाहरी भाग कॉर्टेक्स (Cortex) जबकि भीतरी भाग मैड्यूला (Medulla)/मध्यांश होता है।
- वृक्क के कार्य –
(i) वृक्क, रक्त का शुद्धीकरण करते हैं।
(ii) वृक्क को शरीर का मुख्य उत्सर्जी अंग माना गया है क्योंकि शरीर के तरल उत्सर्जी पदार्थों का लगभग 70-80 % उत्सर्जन केवल वृक्कों द्वारा किया जाता है।
(iii) वृक्क को रक्त के रासायनिक संघटन का नियंत्रणकर्ता भी माना गया है।
(ii) मूत्रवाहिनी (Uretra) :-
- प्रत्येक वृक्क से एक मूत्रवाहिनी निकलती है, जिसके द्वारा अपशिष्ट पदार्थों को वृक्क से मूत्राशय तक पहुँचाया जाता है।
- प्रत्येक मूत्रवाहिनी की लम्बाई लगभग 25-30 सेमी. होती है।
- मूत्राशय एक थैलीनुमा संरचना होती है, जहाँ अपशिष्ट पदार्थों को इकट्ठा किया जाता है।
- मूत्राशय में लगभग 700-800 ml तरल अपशिष्ट पदार्थों का संग्रहण किया जाता है।
- मूत्राशय से अपशिष्ट पदार्थों को मूत्रद्वार (Urethra) के माध्यम से शरीर से बाहर उत्सर्जित किया जाता है।
(iii) मूत्र (Urine) :-
- स्वस्थ व्यक्ति प्रतिदिन लगभग 1.5 लीटर मूत्र उत्सर्जित करता है।
- मूत्र की मात्रा पर नियंत्रण पीयूष ग्रंथि द्वारा स्रावित ADH तथा एड्रीनल द्वारा स्रावित एल्डेस्टेरोन हॉर्मोन द्वारा किया जाता है।
- यूरोक्रोम वर्णक के कारण मूत्र का रंग हल्का-पीला होता है, जो RBC के विघटन से बनता है।
- मानव मूत्र का pH लगभग 6 होता है अर्थात् यह हल्का अम्लीय प्रकृति का होता है।
- मानव मूत्र में यूरिया की मात्रा लगभग 2-2.5 % होती है।
- अन्य घटकों में प्रोटीन, यूरिक अम्ल आदि 1-3 % होते हैं।
- व्यक्ति प्रतिदिन लगभग 25-30 ग्राम यूरिया का उत्सर्जन करता है।
- यूरीनॉइड्स के कारण मूत्र में प्राकृतिक गंध/हल्की गंध होती है।
मूत्र संबंधी विकार :-
- हीमेटयूरिया – मूत्र के साथ रक्त का आना।
- ऐनयूरिया – मूत्र का उत्पादन लगभग बंद हो जाना।
- औलिगोयूरिया – मूत्र की मात्रा का सामान्य से कम हो जाना।
- प्रोटीन यूरिया – मूत्र में प्रोटीन की मात्रा का बढ़ जाना।
- डिसयूरिया – दर्दयुक्त मूत्र का उत्सर्जन अर्थात् मूत्र उत्सर्जन के समय जलन/दर्द होना है।
- ग्लाईकासूरिया – मूत्र में शर्करा की मात्रा बढ़ जाना।
- पॉलियूरिया – बार-बार मूत्र लगना (डायबिटीज इनसिपीड्स), इस विकार में मूत्र की मात्रा सामान्य से कई गुना बढ़ जाती है।
डाईयूरेसिस – मूत्र की मात्रा बढ़ जाना।
- कीटोनयूरिया – मूत्र में कीटोन बॉडी का उत्सर्जन होना।
- वृक्क की क्रियात्मक इकाई नेफ्रॉन कहलाती है।
- नेफ्रॉन का अग्र भाग प्यालेनुमा होता है, जिसे ‘बॉमन-सम्पुट’ (बॉमन-कैप्सूल) कहा जाता है।
- अभिवाही-धमनिका अपेक्षाकृत चौड़ी होती है जबकि अपवाही धमनिका अपेक्षाकृत पतली होती है।
- बॉमन सम्पुट में अभिवाही धमनिका का गुच्छा पाया जाता है, जिसे ग्लोमेरूलस कहा जाता है।
- ग्लोमेरूलस में लगने बाला दाब ‘ग्लोमेरूलस हाइड्रोलिक दाब’ (GHP) कहलाता है, जिसका मान 60-70 mmHg होता है।
- बोमन सम्पुट एवं ग्लोमेरूलस को संयुक्त रूप से ‘मेल्पीघी-संरचना’ कहा जाता है।
- GHP के रक्त के शुद्धीकरण को परानिस्यंदन कहा जाता है।
Note :
- शरीर से बाहर मशीनों की सहायता से रक्त का शुद्धीकरण ‘डायलाइसिस’ कहलाता है।
- डायलाइसिस का संबंध वृक्क से है।
- वृक्क प्रति मिनट लगभग 1000-1200 ml रक्त का शुद्धीकरण करते हैं जो हृदय द्वारा 1 मिनट में पम्प किए गए रक्त का लगभग 1/5 भाग होता है।
- अपवाही धमनियों में शुद्ध रक्त आ जाता है।
- लूप ऑफ हेनले/हेनले लूप का आकार अंग्रेजी के अक्षर ‘U’ के समान होता है, जो मूत्र में पानी की अतिरिक्त मात्रा का अवशोषण करता है।
- मूत्र संग्राहक नलिका अपशिष्ट पदार्थों को मूत्र वाहिनी में छोड़ती है।
- व्यक्ति यदि लम्बे समय तक भूखा रहता है, तो वृक्क का कार्य बढ़ जाता है।
Note :
- नेफ्राइटिस (वृक्कशोध) नेफ्रॉन में होने वाला संक्रमण है।
- अमीबा, हाइड्रा आदि में कोई उत्सर्जी अंग नहीं होता है। इनमें विसरण (Diffusion) द्वारा उत्सर्जन की क्रिया होती है।
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