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उच्च न्यायालय राजस्थान पॉलिटी नोट्स

उच्च न्यायालय

♦ भारत में एकल न्यायिक व्यवस्था का प्रावधान है -

● राजस्थान में न्यायिक व्यवस्था के शीर्ष स्तर पर राजस्थान उच्च न्यायालय है। 

● संविधान के अनुच्छेद-214 के तहत राजस्थान उच्च न्यायालय का उद्घाटन जयपुर के महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय द्वारा 29 अगस्त, 1949 को जोधपुर में किया गया। 

● प्रथम मुख्य न्यायाधीश कमलकान्त वर्मा एवं 11 अन्य न्यायाधीशों को महाराजा मानसिंह ने शपथ दिलवाई। 

● संविधान लागू होने के बाद प्रथम मुख्य न्यायाधीश श्री कैलाशनाथ वांचू थे।

● न्यायाधीश श्री कैलाशनाथ वांचू मुख्य न्यायाधीश के पद पर सर्वाधिक लम्बी अवधि तक पदासीन रहे। (1951-1958)

● पी. सत्यनारायण राव समिति (सदस्य – पी. सत्यनारायण राव, वी. विश्वनाथन, बी. के. गुप्ता) की सिफारिश पर राजस्थान उच्च न्यायालय की जयपुर की बैंच 1958 में समाप्त कर दी गई। 

● सन् 1977 में पुन: जयपुर बैंच की स्थापना की गई। 

● राजस्थान उच्च न्यायालय में वर्तमान में मुख्य न्यायाधीश सहित 50 न्यायाधीश के पद स्वीकृत है। 

● वर्तमान राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री एम.एम. श्रीवास्तव हैं। 

● भारतीय संविधान के भाग-6 के अनुच्छेद-214 से लेकर 232 तक राज्यों के उच्च न्यायालय के संगठन एवं प्राधिकार संबंधी प्रावधानों का वर्णन किया गया है। 

● अनुच्छेद-214 के तहत प्रत्येक राज्य में एक उच्च न्यायालय होगा लेकिन अनुच्छेद-231 के अन्तर्गत संसद को दो या दो से अधिक राज्यों के लिए एक ही उच्च न्यायालय की व्यवस्था की शक्ति प्राप्त है। (7 वें संविधान 1956 के तहत)

● पहले भारत में 21 उच्च न्यायालय थे।

● मार्च, 2013 में मेघालय, मणिपुर एवं त्रिपुरा में नए उच्च न्यायालय स्थापित किए गए हैं। 

● वर्तमान में 25 उच्च न्यायालय है। 

● 25वाँ उच्च न्यायालय आंध्रप्रदेश राज्य का जो 1 जनवरी, 2019 को अमरावती में स्थापित हुआ है।  

● केन्द्रशासित प्रदेशों में दिल्ली व जम्मू-कश्मीर ऐसे संघ शासित क्षेत्र है जिनके उच्च न्यायालय है।

♦ उच्च न्यायालय का गठन (अनुच्छेद-216) –

● अनुच्छेद-216 में उच्च न्यायालय के गठन का उल्लेख किया गया है। जिसमें एक मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीश होंगे। 

● संविधान में न्यायाधीशों की संख्या निश्चित नहीं है। राष्ट्रपति समय-समय पर आवश्यकतानुसार न्यायाधीशों की संख्या निर्धारित करते हैं। 

♦ न्यायाधीशों की नियुक्ति (अनुच्छेद-217) –

● उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। 

● उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश और संबंधित राज्य के राज्यपाल से परामर्श के पश्चात् की जाती है।  

● कॉलेजियम की अनुशंसा पर अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। 

● संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा उच्च न्यायालय के 2 वरिष्ठतम न्यायाधीश इस संदर्भ में पहल करते हैं। 

● इनके द्वारा उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम (भारत का मुख्य न्यायाधीश + 4 वरिष्ठतम न्यायाधीश) के पास नाम भेजे जाते हैं। यह कॉलेजियम राष्ट्रपति को इस सन्दर्भ में अनुशंसा करते हैं।  

♦ न्यायाधीशों की योग्यताएँ [अनुच्छेद-217 (2)] –

1. वह भारत का नागरिक हो। 

2. वह भारत के राज्यक्षेत्र में कम से कम दस वर्ष तक न्यायिक पद

धारण कर चुका हो। या वह उच्च न्यायालय या न्यायालयों में लगातार 10 वर्षों तक अधिवक्ता रह चुका हो। 

♦ शपथ अथवा प्रतिज्ञान (अनुच्छेद-219) –

● सभी न्यायाधीशों को शपथ राज्यपाल अथवा राज्यपाल द्वारा अधिकृत किए गए व्यक्ति द्वारा दिलाई जाती है। 

● सभी न्यायाधीश पद तथा संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ लेते हैं। 

● उच्च न्यायालय का न्यायाधीश तीसरी अनुसूची के अनुसार शपथ ग्रहण करता है। 

नोट : (1) अनुच्छेद-220 में यह स्पष्ट उल्लिखित है कि उच्च न्यायालय का न्यायाधीश सेवानिवृत्ति के बाद उन उच्च न्यायालयों में अधिवक्ता के रूप में सेवा नहीं दे सकते हैं जहाँ उन्होंने न्यायाधीश के रूप में सेवा दी है।  

(2) न्यायाधीशों को सेवानिवृत्ति के बाद भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन कोई लाभ का पद भी नहीं दिया जाता है। 

(3) न्यायाधीश सेवानिवृत्ति के बाद चुनाव लड़ सकते हैं। उदाहरण के लिए – उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश विजय बहुगुणा किसी भी राज्य के पहले एवं एकमात्र मुख्यमंत्री हैं जो उच्च न्यायालय में न्यायाधीश भी रह चुके हैं। 

♦ वेतन एवं भत्ते (अनुच्छेद-221) –

● उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन एवं भत्ते राज्य की संचित निधि से मिलते हैं परन्तु पेंशन भारत की संचित निधि से मिलती है। 

● उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का वेतन 2,50,000/- तथा अन्य न्यायाधीशों का वेतन 2,25,000/- हैं।

● पद पर रहते हुए उनके वेतन भत्ते में अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। 

♦ न्यायाधीशों का कार्यकाल 

● संविधान में उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का कार्यकाल निश्चित नहीं किया गया है। लेकिन इस संबंध में चार प्रावधान किए गए हैं -

1. उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की 62 वर्ष की सेवानिवृत्ति आयु होती है। (15वें संशोधन अधिनियम, 1963 द्वारा सेवानिवृत्ति की आयु 60 से 62 वर्ष कर दी गई।) 

2. राष्ट्रपति को त्यागपत्र भेज सकता है। 

3. संसद की सिफारिश से राष्ट्रपति उसे पद से हटा सकता है। 

4. उसकी नियुक्ति उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में हो जाने या उसका किसी दूसरे उच्च न्यायालय में स्थानांतरण हो जाने पर वह पद छोड़ देता है। 

♦ न्यायाधीशों को हटाना 

● उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को राष्ट्रपति के आदेश से पद से हटाया जा सकता है। 

● सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश की तरह ही उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को उसी प्रक्रिया और आधारों पर हटाया जा सकता है। 

● न्यायाधीश जाँच एक्ट (1968) में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को महाभियोग की प्रक्रिया द्वारा हटाने के नियम निम्न हैं–

1. यदि प्रस्ताव लोकसभा में पेश हो तो 100 सदस्यों या फिर राज्यसभा में पेश हो तो 50 सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित हटाने के प्रस्ताव को अध्यक्ष/सभापति को सौंपा जाएगा।   

2. अध्यक्ष/सभापति प्रस्ताव को स्वीकृत या अस्वीकृत कर सकता है। 

3. यदि प्रस्ताव स्वीकृत हो जाता है तो अध्यक्ष/सभापति एक समिति का गठन करेगा। समिति में उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या कोई न्यायाधीश, किसी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा एक प्रख्यात न्यायविद् होना अनिवार्य है।

4. यदि समिति यह पाती है कि न्यायाधीश कदाचार का दोषी है या अयोग्य है तो सदन प्रस्ताव पर विचार कर सकता है। 

5. संसद के दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत से प्रस्ताव पास होने के बाद न्यायाधीश को हटाने के लिए इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है।

6. अंतत: न्यायाधीश को हटाने के लिए राष्ट्रपति आदेश पारित कर देते हैं।

● इस प्रकार उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के समान ही है।

नोट : पी.डी. दीनाकरन (कर्नाटक), सौमित्र सैन (कोलकाता), एस. के सेंगले (जबलपुर) तथा जे.बी. पारदीवाला (गुजरात) उच्च न्यायालय के 4 ऐसे न्यायाधीश है जिन्हें हटाने हेतु राज्यसभा में प्रस्ताव लाया गया था। दीनाकरन ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। सेंगले के विरुद्ध गठित समिति ने आरोपों को खारिज कर दिया। पारदीवाला के विरुद्ध लाया गया प्रस्ताव लम्बित है। जबकि सौमित्र सैन एकमात्र ऐसे न्यायाधीश है जिनके विरुद्ध राज्यसभा में प्रस्ताव पारित किया गया है। लेकिन लोकसभा में चर्चा होने से पहले ही उन्होंने अपना इस्तीफा दे दिया।  

♦ न्यायाधीशों का स्थानांतरण (अनुच्छेद-222) –

● भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श के बाद राष्ट्रपति एक न्यायाधीश का स्थानांतरण एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय में कर सकता है। 

● तृतीय न्यायाधीश केस (1998) में उच्चतम न्यायालय ने राय दी कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के स्थानांतरण मामले में भारत के मुख्य न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों, उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों (एक वहाँ से जहाँ से न्यायाधीश का स्थानांतरण हो रहा है, एक वहाँ से जहाँ वह जा रहा हो) से परामर्श करना चाहिए। 

● इस तरह एकमात्र भारत के मुख्य न्यायाधीश की राय से ही परामर्श प्रक्रिया पूरी नहीं होती है। 

♦ कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश (अनुच्छेद-223) –

● राष्ट्रपति किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को निम्न तीन स्थितियों में उच्च न्यायालय का कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश नियुक्त कर सकता है-

1. उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का पद रिक्त हो। 

2. उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश अस्थायी रूप से अनुपस्थित हो। 

3. यदि मुख्य न्यायाधीश अपने कार्य में अक्षम हो। 

♦ अतिरिक्त और कार्यकारी न्यायाधीश (अनुच्छेद-224) –

● अतिरिक्त का प्रावधान केवल उच्च न्यायालय के लिए है। जबकि तदर्थ न्यायाधीश की नियुक्ति उच्च न्यायालय में नहीं की जाती है। 

● राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श के बाद निम्नलिखित परिस्थितियों में योग्य व्यक्तियों को उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीशों के रूप में अस्थायी रूप से नियुक्त कर सकते हैं, जिसकी अवधि 2 वर्ष से अधिक नहीं होगी। 

1. यदि अस्थायी रूप से उच्च न्यायालय का कामकाज बढ़ गया हो। 

2. उच्च न्यायालय में बकाया कार्य अधिक हो। 

● राष्ट्रपति उन परिस्थितियों में योग्य व्यक्तियों को किसी उच्च न्यायालय का कार्यकारी न्यायाधीश नियुक्त कर सकता है जब उच्च न्यायालय का न्यायाधीश (मुख्य न्यायाधीश के अलावा) अनुपस्थित या अन्य कारणों से अपने कार्यों का निष्पादन करने में असमर्थ हो तथा किसी न्यायाधीश को अस्थायी तौर पर संबंधित उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया हो। 

नोट : हालाँकि अतिरिक्त या कार्यकारी न्यायाधीश 62 वर्ष की आयु के पश्चात् पद पर नहीं रह सकता। 

♦ सेवानिवृत्त न्यायाधीश [अनुच्छेद-224 (A)] –

● उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश किसी भी समय उस उच्च न्यायालय अथवा किसी अन्य उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश को अस्थायी के लिए बतौर कार्यकारी न्यायाधीश काम करने के लिए कह सकते हैं। वह ऐसा राष्ट्रपति की पूर्व संस्तुति एवं संबंधित व्यक्ति की मंजूरी के बाद ही कर सकता है।

♦ न्यायाधीशों की स्वाधीनता 

● संविधान में अनुच्छेद-202 के तहत व्यवस्था की गई है कि न्यायाधीशों के वेतन एवं भत्ते राज्य की संचित निधि पर भारित होंगे। 

● अनुच्छेद-221 के तहत न्यायाधीशों की नियुक्ति के पश्चात् संसद उनके वेतन व भत्तों में अलाभकारी परिवर्तन नहीं कर सकती है। 

नोट :   अनुच्छेद-360 (4) (ख) के अनुसार अलाभकारी परिवर्तन केवल वित्तीय आपातकाल के समय ही हो पाएगा।  

● उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को पद से उसी रीति से हटाया जाएगा, जिस रीति से उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है। 

♦ उच्च न्यायालय का न्याय क्षेत्र एवं शक्तियाँ 

● उच्च न्यायालय राज्य में अपील करने का सर्वोच्च न्यायालय होता है।

● यह नागरिकों के मूल अधिकारों का रक्षक होता है। 

● उच्च न्यायालय की समस्त शक्तियों एवं क्षेत्राधिकार को तीन वर्गों में बाँटा जा सकता हैं– 

1. न्याय संबंधित शक्तियाँ –

A. प्रारंभिक क्षेत्राधिकार / मूल अधिकारिता –

● प्रारंभिक क्षेत्राधिकार का अर्थ है उच्च न्यायालय की विवादों की प्रथम दृष्टया सुनवाई सीधे (न कि अपील के जरिए) करने का अधिकार है जो निम्नलिखित मामलों में विस्तारित है-

(i) अधिकारिता का मामला, वसीयत, विवाह, तलाक, कंपनी कानून, न्यायालय की अवमानना। 

(ii) संसद सदस्यों और विधानमंडल सदस्यों के निर्वाचन संबंधी विवाद।

(iii) राजस्व मामले या राजस्व संग्रहण के लिए बनाए गए किसी अधिनियम अथवा आदेश के संबंध में। 

(iv) नागरिकों के मूल अधिकारों का प्रवर्तन। 

(v) संविधान की व्याख्या के संबंध में अधीनस्थ न्यायालय से स्थानांतरित मामलों में।

(vi) उच्च महत्त्व के मामलों में चार उच्च न्यायालयों (कलकत्ता, बंबई, मद्रास और दिल्ली उच्च न्यायालय) के मूल नागरिक क्षेत्राधिकार है। 

नोट : 1973 से पूर्व कलकत्ता, बंबई एवं मद्रास उच्च न्यायालयों के पास मूल आपराधिक न्यायिक क्षेत्र थे। इनका आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 द्वारा पूर्णतया निरस्त कर दिया गया।  

B. अपीलीय क्षेत्राधिकार – 

● उच्च न्यायालय को दीवानी एवं फौजदारी दोनों मामलों में अपील सुनने का अधिकार प्राप्त है। 

i. दीवानी मामले  इस संबंध में उच्च न्यायालय का न्यायादेश निम्नानुसार है- 

(a) जिला न्यायाधीशों और अन्य अधीनस्थ न्यायाधीशों से ऊँचे मूल्य वाले वादों में तथ्य और विधि दोनों के प्रश्नों पर अपील सीधे उच्च न्यायालय को होती है। 

(b) पेटेण्ट तथा डिजाइन, उत्तराधिकार, भूमि प्राप्त, दिवालियापन और संरक्षता आदि अभियोगों के मामलों में। 

(c) कोई ऐसा मामला जिसमें संविधान की व्याख्या का प्रश्न निहित हो (तथ्यों का नहीं)

ii. आपराधिक मामले  उच्च न्यायालय का आपराधिक मामलों में अपीलीय क्षेत्राधिकार निम्नलिखित हैं-  

(a) सत्र न्यायालय और अतिरिक्त सत्र न्यायालय के निर्णय के खिलाफ उच्च न्यायालय में तब अपील की जा सकती है जब किसी को सात साल से अधिक सजा हुई है। 

नोट :   सत्र न्यायालय या अतिरिक्त सत्र न्यायालय द्वारा दी गई मृत्यु-दण्ड पर कार्यवाही से पहले उच्च न्यायालय द्वारा इसकी पुष्टि की जानी चाहिए। चाहे सजा पाने वाले व्यक्ति ने कोई अपील की हो या न की हो।  

(b) आपराधिक प्रक्रिया संहिता (1973) में कुछ मामलों में उल्लिखित सहायक सत्र न्यायाधीश, नगर दंडाधिकारी या उच्च दंडाधिकारी के निर्णय के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।  

C. रिट क्षेत्राधिकार–

● अनुच्छेद-226 के अनुसार प्रत्येक उच्च न्यायालय अपनी अधिकारिता वाले समूचे राज्य क्षेत्र में मूल अधिकारों को लागू करवाने के लिए या किसी अन्य प्रयोजन के लिए किसी व्यक्ति या प्राधिकारी को ऐसे निर्देश, आदेश या रिट, जैसे- बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार-पृच्छा, उत्प्रेषण, इंजक्शन रिट या उनमें से किसी को जारी कर सकेगा। 

नोट :   इंजंक्शन नामक याचिका केवल उच्च न्यायालय में ही दायर की जाती है। यह याचिका अंतरिम राहत उपलब्ध करवाती है।  

● जब किसी नागरिक के मूल अधिकार का हनन होता है तो पीड़ित व्यक्ति का अधिकार है कि वह या तो उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय सीधे जा सकता है। 

● हालाँकि उच्च न्यायालय का इस संबंध में न्यायिक क्षेत्र में उच्चतम न्यायालय से ज्यादा विस्तारित है क्योंकि उच्चतम न्यायालय केवल मूल अधिकारों के हनन होने पर रिट जारी करता है जबकि उच्च न्यायालय मूल अधिकारों सहित एक सामान्य कानूनी अधिकार के उल्लंघन पर रिट जारी कर सकता है।  

D. उच्च न्यायालय का अभिलेख न्यायालय होना/कोर्ट ऑफ रिकॉर्ड–

● संविधान के अनुच्छेद-215 के अनुसार प्रत्येक उच्च न्यायालय अभिलेख न्यायालय होगा और उसको अपनी अवमानना के लिए दण्ड देने की शक्ति सहित ऐसे न्यायालय की सभी शक्तियाँ होगी। उच्च न्यायालय को अपने अधीनस्थ न्यायालयों के संरक्षण निर्देशन की शक्ति है। इसे अवमानना पर दंड की शक्ति भी है।

नोट–    वर्ष 2017 में कलकत्ता उच्च न्यायालय के तत्कालीन न्यायाधीश सी.एस. कर्णन को अवमानना के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा 6 माह की सजा दी गई थी।   

E. पर्यवेक्षीय क्षेत्राधिकार 

● उच्च न्यायालय को अधिकार है कि वह अपने क्षेत्राधिकार के क्षेत्र के सभी न्यायालयों व सहायक न्यायालयों के क्रियाकलापों पर नजर रखे।

● इस प्रकार वह -

(a) मामले वहाँ से स्वयं के पास मँगवा सकता है। 

(b) सामान्य नियम तैयार और जारी कर सकता है। 

(c) उनके द्वारा रखे जाने वाले लेख, सूची आदि के लिए प्रपत्र निर्धारित कर सकता है। 

(d) क्लर्क, अधिकारी एवं वकीलों के शुल्क आदि निश्चित करता है। 

2. प्रशासन संबंधि शक्तियाँ –

● उच्च न्यायालय को यह अधिकार है कि वह अपने अधीनस्थ न्यायालयों के किसी निर्णय के बारे में पूछताछ कर सकता है। 

● संविधान का अनुच्छेद-227 उच्च न्यायालय को अन्य अधीनस्थ न्यायालयों के अधीक्षण की शक्ति देता है। 

● उच्च न्यायालय को यह भी देखने का अधिकार है कि अधीनस्थ न्यायालय शक्ति का अतिक्रमण तो नहीं कर रहे हैं। 

● उच्च न्यायालय को अभियोगी को एक न्यायालय से दूसरे न्यायालय को स्थानांतरित करने का भी अधिकार है। 

● अनुच्छेद-228 के अंतर्गत उच्च न्यायालय संवैधानिक महत्त्व के प्रश्नों को अधीनस्थ न्यायालय से अपने पास मँगवा सकता है। 

नोट :   अनुच्छेद-229 के तहत उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अपने अधिकारियों व कर्मचारियों की नियुक्ति करते हैं। उनके सन्दर्भ में सेवा शर्तों का निर्धारण करना भी उच्च न्यायालय का ही कार्य है। 

3. न्यायिक पुनरवलोकन की शक्तियाँ –

● उच्च न्यायालय की न्यायिक पुनरवलोकन की शक्ति राज्य विधानमंडल व केन्द्र सरकार दोनों के अधिनियमों और कार्यकारी आदेशों की संवैधानिकता के परीक्षण के लिए है। 

● यदि वे संविधान का उल्लंघन करने वाले हैं तो उन्हें असंवैधानिक और शून्य घोषित किया जा सकता है। यद्यपि न्यायिक पुनरवलोकन जैसे शब्द का उल्लेख संविधान में कही भी नहीं किया गया है लेकिन अनुच्छेद-13 और 226 में उच्च न्यायालय द्वारा समीक्षा के उपबंध स्पष्ट है।

राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एवं उनका कार्यकाल

क्र.सं.

नाम

कार्यालय

1

न्यायमूर्ति के. के. वर्मा

29.08.1949 से 24.01.1950

2

न्यायमूर्ति कैलाश नाथ वांचू

02.01.1951 से 10.08.1958

3

न्यायमूर्ति सरजू प्रसाद

28.02.1959 से 10.10.1961

4

न्यायमूर्ति जे. एस. राणावत

11.10.1961 से 31.05.1963

5

न्यायमूर्ति डी. एस. दवे

01.06.1963 से 17.12.1968

6

न्यायमूर्ति डी. एम. भंडारी

18.12.1968 से 15.12.1969

7

न्यायमूर्ति जे. नारायण

16.12.1969 से 13.02.1973

8

न्यायमूर्ति बी. पी. बेरी

14.02.1973 से 16.02.1975

9

न्यायमूर्ति पी. एन. सिंघल

17.02.1975 से 05.11.1975

10

न्यायमूर्ति वी. पी. त्यागी

06.11.1975 से 27.12.1977

11

न्यायमूर्ति सी. होनैया

27.04.1978 से 22.09.1978

12

न्यायमूर्ति सी. एम. लोढ़ा

12.03.1979 से 09.07.1980

13

न्यायमूर्ति के. डी. शर्मा

07.01.1981 से 22.10.1983

14

न्यायमूर्ति पी. के. बनर्जी

23.10.1983 से 30.09.1985

15

न्यायमूर्ति डी. पी. गुप्ता

12.04.1986 से 31.07.1986

16

न्यायमूर्ति जे. एस. वर्मा

01.09.1986 से 22.05.1989

17

न्यायमूर्ति के. सी. अग्रवाल

15.04.1990 से 07.04.1994

18

न्यायमूर्ति जी. सी. मित्तल

12.04.1994 से 03.03.1995

19

न्यायमूर्ति ए.पी. रावानी

04.04.1995 से 10.09.1996

20

न्यायमूर्ति एम. जी. मुखर्जी

19.09.1996 से 24.12.1997

21

न्यायमूर्ति शिवराज वी. पाटिल

22.01.1999 से 14.03.2000

22

डॉ. ए. आर. लक्ष्मणन

29.05.2000 से 25.11.2001

23

न्यायमूर्ति अरुण कुमार

02.12.2001 से 02.10.2002

24

न्यायमूर्ति अनिल देव सिंह

24.12.2002 से 22.10.2004

25

न्यायमूर्ति एस. एन. झा

12.10.2005 से 15.06.2007

26

न्यायमूर्ति जे. एम. पांचाल

16.09.2007 से 11.11.2007

27

न्यायमूर्ति नारायण रॉय

05.01.2008 से 31.01.2009

28

न्यायमूर्ति दीपक वर्मा

06.03.2009 से 10.05.2009

29

न्यायमूर्ति जगदीश भल्ला

10.08.2009 से 31.10.2010

30

न्यायमूर्ति अरुण मिश्र

26.11.2010 से 13.12.2012

31

न्यायमूर्ति अमिताव रॉय

02.01.2013 से 05.08.2014

32

न्यायमूर्ति सुनील अम्बवानी

24.03.2015 से 21.08.2015

33

न्यायमूर्ति सतीश कुमार मित्तल

05.03.2016 से 14.04.2016

34

न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा

14.05.2016 से 17.02.2017

35

न्यायमूर्ति प्रदीप नन्द्राजोग

02.04.2017 से 06.04.2019

36

न्यायमूर्ति एस. रविन्द्र भट्‌ट

05.05.2019 से 23.09.2019

37

न्यायमूर्ति इन्द्रजीत महान्ती

06.10.2019 से 12.10.2021

38

न्यायमूर्ति अकील कुरैशी

12.10.2021 से 06.03.2022

39.

न्यायमूर्ति शंभाजी शिवाजी 

शिंदे

21.06.2022 से 01.08.2022

40.

न्यायमूर्ति पंकज मित्तल

14.10.2022 से 05.02.2023

41.

न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह

30.05.2023 से 09.11.2023

42.

न्यायमूर्ति एम.एम. श्रीवास्तव

06.02.2024 से वर्तमान

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