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संधि एवं संधि-विच्छेद

संधि एवं संधि-विच्छेद

संधि का अर्थ– मेल/संयोग/समझौता/एक तरह का वर्ण-विकार।

परिभाषा– दो वर्णों के परस्पर मेल से उत्पन्न विकार को व्याकरण में संधि कहते हैं, अर्थात् प्रथम शब्द का अन्तिम वर्ण और दूसरे शब्द का प्रथम वर्ण मिलकर उच्चारण और लेखन में कोई परिवर्तन करते हैं तो उसे संधि कहते हैं; जैसे–
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संयोग प्रथम शब्द का अन्तिम वर्ण और दूसरे शब्द का प्रथम वर्ण मिलकर उच्चारण और लेखन में कोई परिवर्तन नहीं कर पाए, तो उसे संयोग कहते हैं; जैसे– युग् + बोध = युग्बोध

संधि के प्रकार

संधि तीन प्रकार की होती हैं–
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 स्वर संधि– ‘स्वर + स्वर’

यदि प्रथम शब्द का अंतिम वर्ण और दूसरे शब्द का प्रथम वर्ण स्वर ही आ जाए तो स्वर के उच्चारण और लेखन में जो विकार/परिवर्तन होता है, उसे स्वर संधि कहते हैं; जैसे–

कीट + अणु = कीटाणु

स्वर संधि के भेद 5

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दीर्घ स्वर संधि

यदि ‘अ/आ’ के बाद समान स्वर ‘अ/आ’ ही आ जाए तो ‘आ’ हो जाता है, यदि ‘इ/ई’ के बाद समान स्वर ‘इ/ई’ ही आ जाए तो ‘ई’ हो जाती है तथा ‘उ/ऊ’ के बाद समान स्वर ‘उ/ऊ’ ही आ जाए तो ‘ऊ’ हो जाता है।

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अ/आ + अ/आ = आ

अ + अ = आ

शत + अंश = शतांश

प्र + अर्थी = प्रार्थी

अन्त्य + अक्षरी  = अन्त्याक्षरी

मध्य + अह्‌न = मध्याह्‌न   

पूर्व + अह्‌न = पूर्वाह्‌न

विरह + अग्नि = विरहाग्नि 

स्व + अधीन  = स्वाधीन

चर + अचर = चराचर

पूर्ण + अंक = पूर्णांक

अधिक + अंश  = अधिकांश

भोजन + अर्थ  = भोजनार्थ

अंध + अनुगामी  = अंधानुगामी

पत्र + अंक = पत्रांक

नील + अंचल  = नीलांचल

पद + अवनत  = पदावनत

परम + अणु  = परमाणु

वात + अयन = वातायन 

शत + अब्दी = शताब्दी

बीज + अंकुर = बीजांकुर

लोहित + अंग  = लोहितांग 

आग्नेय + अस्त्र  = आग्नेयास्त्र

भस्म + अंकुर  = भस्मांकुर

हिम + अंशु = हिमांशु 

त्रिपुर + अरि  = त्रिपुरारि 

तीर्थ + अटन = तीर्थाटन 

मेघ + अवली = मेघावली 

विष + अणु = विषाणु

विक्रम + अब्द  = विक्रमाब्द 

स + अभिप्राय  = साभिप्राय

स + अंग = सांग

स + अवधि = सावधि

उदय + अचल  = उदयाचल

राष्ट्र + अध्यक्ष  = राष्ट्राध्यक्ष

सर्व + अंगीण  = सर्वांगीण

मृग + अंक = मृगांक

हिम + अद्रि = हिमाद्रि

देह + अतीत  = देहातीत

दिवस + अवसान  = दिवसावसान

दिन + अंक = दिनांक

अस्त + अचल  = अस्ताचल

युग + अंतर = युगांतर

उप + अध्याय  = उपाध्याय

शश + अंक = शशांक 

कीट + अणु = कीटाणु

शीत + अंशु = शीतांशु 

अमृत + अंशु = अमृतांशु 

देश + अटन = देशाटन

जीव + अणु = जीवाणु 

परम + अणु  = परमाणु

अक्ष + अंश = अक्षांश

स + अर्थक = सार्थक

स + अर्थ = सार्थ

उत्तर + अर्द्ध  = उत्तरार्द्ध 

स्व + अनुभूत  = स्वानुभूत

भग्न + अवशेष = भग्नावशेष

स + अवरोध  = सावरोध

उप + अंग  = उपांग

स्व + अभिमान = स्वाभिमान

हर्ष +अतिरेक  = हर्षातिरेक

क्रम + अंक = क्रमांक

जठर + अग्नि  = जठराग्नि

नव + अंकुर = नवांकुर

स्पर्श + अनुभूति  = स्पर्शानुभूति

स्व + अध्याय = स्वाध्याय

दृश्य + अवली  = दृश्यावली

स + अवधान = सावधान

मर्म + अंतक = मर्मांतक

सहस्र + अब्दी  = सहस्राब्दी 

ध्वंस + अवशेष = ध्वंसावशेष

हस्त + अंतरण = हस्तांतरण

दिव्य + अस्त्र = दिव्यास्त्र

अद्य + अवधि  = अद्यावधि

दिवस + अंत = दिवसांत

पाठ + अन्तर = पाठान्तर

ऊर्ध्व + अधर = ऊर्ध्वाधर

तथ्य + अन्वेषण  = तथ्यान्वेषण

प्र + अंगन =  प्रांगण (न का ण व्यंजन संधि भी)

नयन + अंबु = नयनांबु

दाव + अनल = दावानल

गीत + अंजलि  = गीतांजलि

अर + अवली = अरावली

पर + अधीन  = पराधीन 

मत + अंतर = मतांतर

मूल्य + अंकन  = मूल्याकंन

तिल + अंजलि  = तिलांजलि

परम + अर्थ = परमार्थ

दीप + अवली  = दीपावली

विकल + अंग  = विकलांग

रोम + अवली  = रोमावली

पोषण + अभाव  = पोषणाभाव

शोक + अन्वित = शोकान्वित 

काम + अयनी  = कामायनी

स + अष्टांग = साष्टांग

दाव + अग्नि  = दावाग्नि

ऊह + अपोह = ऊहापोह 

पद + अर्थ  = पदार्थ

विंध्य + अचल  = विंध्याचल

सुषुप्त + अवस्था  = सुषुप्तावस्था

अधिक + अधिक  = अधिकाधिक

कृष्ण + अवतार  = कृष्णावतार 

हुत (हवनसामग्री) +

असन (भोजन) = हुतासन    

स्व + अर्थ = स्वार्थ

मध्य + अवधि  = मध्यावधि

अन्य + अन्य  = अन्यान्य

क्वथन + अंक  = क्वथनांक

पर + अर्थ  = परार्थ

शत + अधिक  = शताधिक

रत्न + अवली  = रत्नावली

रस + अयन = रसायन

अर्ध + अंश = अर्धांश

गत + अनुगतिक  = गतानुगतिक 

धर्म + अर्थ = धर्मार्थ

अ + आ = आ

जन + आकांक्षा = जनाकांक्षा

कुसुम + आगम = कुसुमागम

शोक + आकुल = शोकाकुल

मकर + आकृति = मकराकृति

मेघ + आलय = मेघालय

पंच + आयत = पंचायत 

जल + आशय  = जलाशय

तुषार + आच्छन्न = तुषाराच्छन्न

कुसुम + आकर = कुसुमाकर

प्रेम + आसक्त  = प्रेमासक्त

गमन + आगमन  = गमनागमन

शीत + आकुल = शीताकुल

आम + आशय  = आमाशय

भाव + आविष्ट  = भावाविष्ट

गर्भ + आधान  = गर्भाधान

ऐक्य + आत्म  = ऐक्यात्म

पूर्ण + आहुति  = पूर्णाहुति

मित + आहार  = मिताहार

छात्र/छात्रा + आवास   = छात्रावास

सौभाग्य + आकांक्षिणी = सौभाग्याकांक्षिणी

विजय + आकांक्षी = विजयाकांक्षी 

स्नेह + आकांक्षी  = स्नेहाकांक्षी 

मरण + आसन्न = मरणासन्न

धर्म + आत्मा = धर्मात्मा

कुश + आसन  = कुशासन

भय + आनक  = भयानक

आर्य + आवर्त  = आर्यावर्त

स्वर्ण + आभ  = स्वर्णाभ

भय + आक्रांत  = भयाक्रांत

प्राण + आयाम = प्राणायाम

जन + आदेश  = जनादेश

शयन + आगार = शयनागार

कंटक + आकीर्ण = कंटकाकीर्ण           

स्वर्ग + आरोहण  = स्वर्गारोहण

जन + आधार  = जनाधार    

हास्य + आस्पद = हास्यास्पद

सिंह + आसन  = सिंहासन

पित्त + आशय  = पित्ताशय

विरह + आतुर  = विरहातुर

फल + आहार  = फलाहार

अन्य + आश्रित = अन्याश्रित

आयुध + आगार  = आयुधागार

खग + आश्रय  = खगाश्रय

गर्भ + आशय  = गर्भाशय

गुरुत्व + आकर्षण = गुरुत्वाकर्षण

दीप + आधार  = दीपाधार

यात + आयात  = यातायात

रत्न + आकर  = रत्नाकार

रस + आभास  = रसाभास

लोक + आयुक्त = लोकायुक्त

शाक + आहारी = शाकाहारी

शोक + आकुल = शोकाकुल

सत्य + आग्रह  = सत्याग्रह

सिंह + आसन  = सिंहासन

स्थान + आपन्न = स्थानापन्न

हिम + आलय  = हिमालय

विवाद + आस्पद = विवादास्पद

जन + आकीर्ण = जनाकीर्ण  

आ + अ = आ

द्‌वारका + अधीश = द्‌वारकाधीश 

रचना + अवली = रचनावली

ब्रह्मा + अंड = ब्रह्माण्ड

विद्‌या + अर्जन = विद्‌यार्जन

महा + अमात्य  = महामात्य

निशा + अंत  = निशांत

शिक्षा + अर्थी  = शिक्षार्थी

सेवा + अर्थ = सेवार्थ   

सत्ता + अंतरण = सत्तांतरण 

सुधा + अंशु = सुधांशु

पुरा + अवतंश  = पुरावतंश

मुक्ता + अवली = मुक्तावली

श्रद्धा + अंजलि = श्रद्धांजलि

विद्या + अर्थी = विद्यार्थी

कृपा + अर्थ = कृपार्थ

सीमा + अंत  = सीमांत

द्राक्षा + अवलेह = द्राक्षावलेह 

तथा + अपि  = तथापि   

आ + आ = आ

शंका + आलु = शंकालु  

क्रिया + आत्मक  = क्रियात्मक    

कारा + आवास = कारावास

चिकित्सा + आलय  = चिकित्सालय

प्रेरणा + आस्पद  = प्रेरणास्पद

दया + आनंद = दयानंद

द्राक्षा + आसव = द्राक्षासव

निशा + आनन  = निशानन

रचना + आत्मक  = रचनात्मक

वार्ता + आलाप = वार्तालाप

महा + आशय  = महाशय

चिंता + आतुर  = चिंतातुर

श्रद्धा + आलु = श्रद्वालु  

प्रतीक्षा + आलय = प्रतीक्षालय

प्रेक्षा + आगार  = प्रेक्षागार

स्वेच्छा + आचार  = स्वेच्छाचार

कारा + आगार  = कारागार

प्रतीक्षा + आतुर = प्रतीक्षातुर

कृपा + आलु = कृपालु 

भाषा + आबद्ध = भाषाबद्ध       

कृपा + आकांक्षी  = कृपाकांक्षी

कृपा + आकांक्षिणी  = कृपाकांक्षिणी

इ/ई + इ/ई = ई

इ + इ = ई

प्रति + इत  = प्रतीत

अति + इव  = अतीव 

अधि + इन = अधीन

अभि + इष्ट = अभीष्ट

अति + इंद्रिय = अतीन्द्रिय

प्रति + इक = प्रतीक

गिरि + इन्द्र = गिरीन्द्र

कवि + इन्द्र = कवीन्द्र  

मणि + इन्द्र = मणीन्द्र

अति + इत = अतीत

मुनि + इन्द्र = मुनीन्द्र

प्राप्ति + इच्छा  = प्राप्तीच्छा

रवि + इन्द्र  = रवीन्द्र

हरि + इच्छा = हरीच्छा 

क्षिति + इन्द्र  = क्षितीन्द्र

इ + ई = ई

अधि + ईक्षण  = अधीक्षण

क्षिति + ईश = क्षितीश

अधि + ईश्वर  = अधीश्वर

रवि + ईश = रवीश

कवि + ईश्वर  = कवीश्वर

परि + ईक्षित  = परीक्षित

अभि + ईप्सा = अभीप्सा

प्रति + ईक्षा = प्रतीक्षा

वारि + ईश = वारीश

परि + ईक्षा = परीक्षा

वि + ईक्षण = वीक्षण

प्रति + ईक्षित = प्रतीक्षित

मुनि + ईश्वर = मुनीश्वर

कपि + ईश = कपीश

गिरि + ईश = गिरीश   

हरि + ईश = हरीश

परि + ईक्षण  = परीक्षण

अधि + ईक्षक  = अधीक्षक       

मुनि + ईश  = मुनीश

वि + ईक्षा = वीक्षा     

कपि + ईश्वर  = कपीश्वर

ई + इ = ई

यती + इंद्र  = यतींद्र

शची + इंद्र = शचीन्द्र

लक्ष्मी + इच्छा  = लक्ष्मीच्छा

सुधी + इंद्र = सुधीन्द्र 

फणी + इंद्र = फणीन्द्र

मही + इन्द्र = महीन्द्र 

महती + इच्छा  = महतीच्छा 

ई + ई = ई

श्री + ईश = श्रीश     

मही + ईश = महीश   

रजनी + ईश = रजनीश

नदी + ईश्वर  = नदीश्वर

नदी + ईश = नदीश 

सती + ईश = सतीश

नारी + ईश्वर = नारीश्वर

फणी + ईश्वर = फणीश्वर

लक्ष्मी + ईश = लक्ष्मीश

उ/ऊ + उ/ऊ = ऊ

उ + उ = ऊ 

लघु + उत्तम = लघूत्तम

मृत्यु + उपरांत  = मृत्यूपरांत

अनु + उदित = अनूदित

सु + उक्ति = सूक्ति

मधु + उत्सव = मधूत्सव        

विधु + उदय = विधूदय

भानु + उदय = भानूदय

मंजु + उषा = मंजूषा

कटु + उक्ति = कटूक्ति

गुरु + उपदेश = गुरूपदेश

अनु + उत्तर = अनूत्तर  

बहु + उद्‌देशीय = बहूद्देशीय 

उ + ऊ = ऊ

धातु + ऊष्मा = धातूष्मा

सिंधु + ऊर्मि = सिंधूर्मि

बहु + ऊर्जा = बहूर्जा

लघु + ऊर्मि = लघूर्मि

ऊ + उ = ऊ    

वधू + उक्ति = वधूक्ति

वधू + उल्लास  = वधूल्लास

वधू + उत्साह = वधूत्साह

भू + उद्धार = भूद्धार

भू + उपरि = भूपरि

भू + उत्थान = भूत्थान 

ऊ + ऊ = ऊ   

भू + ऊर्द्ध = भूर्द्ध

सरयू + ऊर्मि = सरयूर्मि

भू + ऊर्जित = भूर्जित

भू + ऊर्ध्व = भूर्ध्व

भू + ऊष्मा = भूष्मा

ऋ + ऋ = ॠ

पितृ + ऋण = पितृण

होतृ + ऋकार  = होतृकार

स्वसृ + ऋण = स्वसृण

भ्रातृ + ऋकार  = भ्रातृकार

जामातृ + ऋण = जामातृण

मातृ + ऋकार  = मातृकार        

विशेष– ऐसे शब्द () हिन्दी में प्रचलित नहीं है फिर भी परीक्षार्थी परीक्षा की दृष्टि से ध्यान रखे।

गुण स्वर संधि

यदि ‘अ/आ’ के बाद असमान स्वर ‘इ/ई’ आ जाए तो ‘ए’ हो जाता है, यदि ‘अ/आ’ के बाद असमान स्वर ‘उ/ऊ’ आ जाए तो ‘ओ’ हो जाता है तथा ‘अ/आ’ के बाद ‘ऋ’ आ जाए तो ‘अर्’ हो जाता है।

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अ/आ + इ/ई = ए

अ + इ = ए

ज्ञान + इंद्रिय = ज्ञानेंद्रिय

शुभ + इच्छु = शुभेच्छु

न + इति = नेति

नव + इन्दु = नवेन्दु

धीर + इन्द्र = धीरेन्द्र

कर्म + इन्द्रिय = कर्मेन्द्रिय

भोजन + इच्छुक = भोजनेच्छुक          

देव + इन्द्र = देवेन्द्र

इतर + इतर = इतरेतर

मानव + इतर = मानवेतर

हित + इच्छा = हितेच्छा

मानव + इन्द्र = मानवेन्द्र

योग + इन्द्र = योगेन्द्र

उप + इन्द्र = उपेन्द्र

भारत + इन्द्र = भारतेन्द्र

जित + इन्द्रिय/इंद्रिय = जितेन्द्रिय/जितेंद्रिय

शब्द + इतर = शब्देतर

प्र + इषक = प्रेषक 

घ्राण + इन्द्रिय  = घ्राणेन्द्रिय

वाच + इतर = वाचेतर

प्र + इषिति = प्रेषिति 

अन्त्य + इष्टि = अन्त्येष्टि

शुभ + इच्छा = शुभेच्छा

स्व + इच्छा = स्वेच्छा

ब्रज + इन्द्र = ब्रजेन्द्र

गज + इन्द्र = गजेन्द्र

विवाह + इतर  = विवाहेतर

साहित्य + इतर = साहित्येतर 

शिक्षण + इतर  = शिक्षणेतर

अल्प + इच्छा  = अल्पेच्छा

नग + इन्द्र = नगेन्द्र

मृग + इन्द्र = मृगेन्द

मत्स्य + इन्द्र = मत्स्येन्द्र    

अन्य + इतर = अन्येतर

शिव + इन्द्र = शिवेन्द्र

अ + ई = ए

अप + ईक्षा = अपेक्षा

नर + ईश = नरेश

परम + ईश्वर = परमेश्वर 

अंक + ईक्षण = अंकेक्षण

हृषिक + ईश = हृषिकेश 

उप + ईक्षा = उपेक्षा

योग + ईश्वर = योगेश्वर

विमल + ईश = विमलेश

अल्प + ईश = अल्पेश 

नाग + ईश = नागेश

प्र + ईक्षक = प्रेक्षक

तप + ईश = तपेश    

सर्व + ईश्वर = सर्वेश्वर

प्र + ईक्षा = प्रेक्षा

देव + ईश्वर = देवेश्वर

खग + ईश = खगेश

सिद्ध + ईश्वरी  = सिद्धेश्वरी

आ + इ = ए

रसना + इन्द्रिय = रसनेन्द्रिय

सुधा + इन्दु  = सुधेन्दु   

महा + इन्द्र = महेन्द्र

यथा + इच्छा = यथेच्छा 

आ + ई = ए

रमा + ईश = रमेश     

गुडाका + ईश  = गुडाकेश 

मिथिला + ईश  = मिथिलेश

उमा + ईश = उमेश

द्वारका + ईश = द्वारकेश

महा + ईश = महेश

राका + ईश = राकेश

महा + ईश्वर = महेश्वर

अ/आ + उ/ऊ = ओ

अ + उ = ओ

पूर्ण + उपमा = पूर्णोपमा

जन + उत्सव = जनोत्सव 

पूर्व + उक्त = पूर्वोक्त

प्रेम + उत्पादक = प्रेमोत्पादक

प्राप्त + उदक  = प्राप्तोदक

भाव + उद्रेक = भावोद्रेक   

समास + उक्ति  = समासोक्ति

वेद + उक्त = वेदोक्त

नर + उचित = नरोचित

सूर्य + उदय = सूर्योदय

वीर + उचित = वीरोचित

अतिशय + उक्ति = अतिशयोक्ति

आनंद + उत्कर्ष = आनंदोत्कर्ष

जीर्ण + उद्‌धार = जीर्णोद्‌धार

पश्चिम + उत्तर  = पश्चिमोत्तर

प्राण + उत्कर्ष  = प्राणोत्कर्ष

मानव + उचित = मानवोचित

व्यंग्य + उक्ति = व्यंग्योक्ति

लोक + उक्ति = लोकोक्ति

अन्य + उक्ति = अन्योक्ति

भाग्य + उदय = भाग्योदय

बाल + उचित  = बालोचित

दर्प + उक्ति = दर्पोक्ति

भाव + उत्कर्ष  = भावोत्कर्ष

रस + उत्कर्ष = रसोत्कर्ष   

वेद + उक्ति = वेदोक्ति

भय + उत्पादक = भयोत्पादक

पुरुष + उत्तम  = पुरुषोत्तम

शाक + उपजीवी = शाकोपजीवी

नव + उन्मेष = नवोन्मेष

प्राण + उत्सर्ग  = प्राणोत्सर्ग

दुग्ध + उपजीवी = दुग्धोपजीवी

वैर + उद्‌धार = वैरोद्‌धार

हत + उत्साह = हतोत्साह

अन्त्य + उदय  = अन्त्योदय

मित्र + उचित = मित्रोचित

पुरुष + उचित  = पुरुषोचित

हत + उत्साह = हतोत्साह

प्रश्न + उत्तर = प्रश्नोत्तर 

चरम + उत्कर्ष  = चरमोत्कर्ष

धीर + उदात्त = धीरोदात्त

उन्नत + उदर  = उन्नतोदर 

दीप + उत्सव = दीपोत्सव

नील + उत्पल  = नीलोत्पल

जन + उपयोगी = जनोपयोगी

हर्ष + उल्लास  = हर्षोल्लास

पुष्प + उद्यान  = पुष्पोद्यान

स + उद्देश्य = सोद्देश्य

पद + उन्नति = पदोन्नति

सह + उदर = सहोदर

धीर + उद्‌धत  = धीरोद्धत

अवसर + उचित = अवसरोचित

स्वातन्त्र्य + उत्तर = स्वातन्त्र्योत्तर

हित + उपदेश  = हितोपदेश  

कठ + उपनिषद् = कठोपनिषद्

स + उत्साह = सोत्साह

रस + उद्रेक = रसोद्रेक

रहस्य + उद्घाटन = रहस्योद्घाटन

प्र + उत्साहक  = प्रोत्साहक 

स + उदाहरण  = सोदाहरण

उत्तर + उत्तर = उत्तरोत्तर

आत्म + उत्सर्ग = आत्मोत्सर्ग

नव + उत्पल = नवोत्पल

विवाह + उत्सव = विवाहोत्सव

हित + उपदेश  = हितोपदेश

वसंत + उत्सव  = वसंतोत्सव

नर + उत्तम = नरोत्तम

ग्राम + उत्थान  = ग्रामोत्थान 

यज्ञ + उपवीत  = यज्ञोपवीत 

मरण + उपरान्त = मरणोपरान्त

हिम + उपल = हिमोपल

देव + उचित = देवोचित

सर्व + उत्तम = सर्वोत्तम

प्र + उज्ज्वल = प्रोज्ज्वल

मद + उन्मत्त = मदोन्मत्त

ईश + उपनिषद् = ईशोपनिषद्

सर्व + उपरि = सर्वोपरि

देव + उपरि = देवोपरि

प्र + उत्साहन = प्रोत्साहन

प्र + उन्नति = प्रोन्नति 

आ + उ = ओ

महा + उदय = महोदय 

महा + उरू = महोरू

रम्भा + उरू = रम्भोरू

कथा + उपकथन = कथोपकथन

गंगा + उदक = गंगोदक

महा + उत्सव = महोत्सव

करुणा + उत्पादक = करुणोत्पादक

यथा + उचित = यथोचित

विद्या + उन्नति = विद्योन्नति

अ + ऊ = ओ

नव + ऊढ़ा = नवोढ़ा   

सागर + ऊर्मि  = सागरोर्मि

जल + ऊष्मा = जलोष्मा

नव + ऊर्जा = नवोर्जा

जल + ऊर्मि = जलोर्मि

सूर्य + ऊर्जा = सूर्योर्जा

आ + ऊ = ओ 

गंगा + ऊर्मि = गंगोर्मि   

दया + ऊर्मि = दयोर्मि

यमुना + ऊर्मि  = यमुनोर्मि

महा + ऊर्जा = महोर्जा

अ/आ + ऋ = अर्

अ + ऋ = अर्

वसंत + ऋतु = वसंतर्तु

प्रेम + ऋतु = प्रेमर्तु

देव + ऋषि = देवर्षि

साम + ऋचा = सामर्चा

देव + ऋचा = देवर्चा 

भरत + ऋषि = भरतर्षि

कुल + ऋषि = कुलर्षि  

सप्त + ऋषि = सप्तर्षि

कण्व + ऋषि = कण्वर्षि

उत्तम + ऋण = उत्तमर्ण

शीत + ऋतु = शीतर्तु

हेमंत + ऋतु = हेमंतर्तु

देव + ऋण = देवर्ण

अधम + ऋण  = अधमर्ण

ग्रीष्म + ऋतु = ग्रीष्मर्तु

शिशिर + ऋतु  = शिशिरर्तु

हिम + ऋतु = हिमर्तु    

नारद + ऋषि = नारदर्षि

आ + ऋ = अर्

महा + ऋण = महर्ण    

वर्षा + ऋतु = वर्षर्तु

सदा + ऋतु = सदर्तु

महा + ऋषि = महर्षि

वृद्धि स्वर संधि

यदि ‘अ/आ’ के बाद ‘ए/ऐ’ आ जाए तो ‘ऐ’ हो जाता है और यदि ‘अ/आ’ के बाद ‘ओ/औ’ आ जाए तो ‘औ’ हो जाता है।

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अ/आ + ए/ऐ = ऐ

अ + ए = ऐ

वित्त + एषणा  = वित्तैषणा

प्रिय + एषी = प्रियैषी

कुल + एषणा  = कुलैषणा

पुत्र + एषी = पुत्रैषी

धन + एषणा = धनैषणा

एक + एक = एकैक 

शुभ + एषी = शुभैषी

हित + एषी = हितैषी 

धन + एषी = धनैषी

लोक + एषणा  = लोकैषणा

एक + एव = एकैव 

अ + ऐ = ऐ

विश्व + ऐक्य = विश्वैक्य

मत + ऐक्य = मतैक्य

स्व + ऐच्छिक  = स्वैच्छिक

विश्व + ऐक्य = विश्वैक्य 

विचार + ऐक्य  = विचारैक्य

लोक + ऐश्वर्य  = लोकैश्वर्य

जन + ऐक्य = जनैक्य 

धन + ऐश्वर्य = धनैश्वर्य

ज्ञान + ऐश्वर्य = ज्ञानैश्वर्य

परम + ऐश्वर्य = परमैश्वर्य    

आ + ए = ऐ

वसुधा + एव = वसुधैव  

सदा + एव = सदैव 

तथा + एव = तथैव

आ + ऐ = ऐ

महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य 

महा + ऐन्द्रजालिक  = महैन्द्रजालिक

गंगा + ऐेश्वर्य = गंगैश्वर्य

अ/आ + ओ/औ = औ

अ + ओ = औ

जल + ओक = जलौक     

परम + ओजस्वी = परमौजस्वी

जल + ओघ = जलौघ 

सुन्दर + ओदन = सुन्दरौदन

आ + ओ = औ

महा + ओजस्वी = महौजस्वी

महा + ओज = महौज

अ + औ = औ

परम + औदार्य = परमौदार्य  

प्र + औद्‌योगिकी = प्रौद‌्योगिकी

मंत्र + औषधि  = मंत्रौषधि

जल + औषधि  = जलौषधि

वन + औषध = वनौषध

आ + औ = औ

महा + औत्सुक्य = महौत्सुक्य

महा + औषध  = महौषध

यण् स्वर संधि

////ऋ + असमान स्वर = य्, व्, र्

यदि ‘इ/ई/उ/ऊ’ और ‘ऋ’ के बाद कोई असमान स्वर आ जाए तो ‘इ/ई’ का ‘य्’, ‘उ/ऊ’ का ‘व्’ और ‘ऋ’ का ‘र्’ हो जाता है; जैसे–

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इ/ई + असमान स्वर = य्

इ + असमान स्वर = य्

इ + अ = य

अति + अल्प = अत्यल्प

नि + अस्त = न्यस्त 

वि + अक्ति = व्यक्ति

वि + अक्त = व्यक्त

जाति + अभिमान  = जात्यभिमान

अभि + अंतर = अभ्यंतर

वि + अष्टि = व्यष्टि

वि + असन = व्यसन

वि + अग्र = व्यग्र

वि + अर्थ = व्यर्थ

वि + अभिचार  = व्यभिचार

प्रति + अभिज्ञ  = प्रत्यभिज्ञ

वि + अय = व्यय

अभि + अर्थना  = अभ्यर्थना

परि + अंत = पर्यंत

परि + अवसान = पर्यवसान

अति + अधिक = अत्यधिक

अधि + अक्षर  = अध्यक्षर

प्रति + अंग = प्रत्यंग

परि + अटन = पर्यटन

वि + अंजन = व्यंजन

अधि + अक्षि (अक्षि = अध्यक्ष के ‘इ’ का लोप)

प्रति + अभिज्ञ  = प्रत्यभिज्ञ 

प्रति + अंतर = प्रत्यंतर

परि + अटक = पर्यटक

अति + अन्त = अत्यंत

प्रति + अक्षि = प्रत्यक्ष

मति + अनुसार = मत्यनुसार

त्रि + अम्बक = त्र्यम्बक 

गति + अवरोध = गत्यवरोध

अधि + अयन  = अध्ययन

प्रति + अर्पण = प्रत्यर्पण

अभि + अर्थी = अभ्यर्थी

इति + अलम् = इत्यलम्

त्रि + अक्षर = त्र्यक्षर

यदि + अपि = यद्यपि

गति + अर्थक  = गत्यर्थक 

गति + अनुसार = गत्यनुसार

द्वि + अर्थी = द्‌व्यर्थी

रीति + अनुसार = रीत्यनुसार

प्रति + अक्षर = प्रत्यक्षर

स्वस्ति + अयन = स्वस्त्ययन

राशि + अंतरण = राश्यंतरण 

इ + आ = या

वि + आप्त = व्याप्त

वि + आघात = व्याघात

परि + आवरण  = पर्यावरण

वि + आकरण  = व्याकरण

वि + आकुल = व्याकुल 

अभि + आगत  = अभ्यागत

वि + आख्या = व्याख्या 

वि + आपक = व्यापक

नि + आय = न्याय

वि + आख्यान  = व्याख्यान

वि + आस = व्यास

वि + आयाम = व्यायाम

अति + आचार  = अत्याचार  

प्रति + आभूति = प्रत्याभूति  

अभि + आस = अभ्यास    

वि + आघात = व्याघात

अधि + आत्म  = अध्यात्म

प्रति + आशी = प्रत्याशी

अधि + आपक = अध्यापक

अधि + आत्मिक = आध्यात्मिक

परि + आकुल  = पर्याकुल 

वि + आप्ति = व्याप्ति

अधि + आय = अध्याय

प्रति + आशित  = प्रत्याशित

प्रति + आरोपण = प्रत्यारोपण

अभि + आगत  = अभ्यागत 

परि + आय = पर्याय

प्रति + आख्यान = प्रत्याख्यान

प्रति + आशा = प्रत्याशा

प्रति + आवर्तन = प्रत्यावर्तन

प्रति + आरोप  = प्रत्यारोप

परि + आप्त = पर्याप्त 

वि + आवर्तन  = व्यावर्तन

अति + आवश्यक  = अत्यावश्यक

अधि + आदेश  = अध्यादेश

नि + आस = न्यास

अधि + आपन  = अध्यापन

प्राप्ति + आशा  = प्राप्त्याशा

ध्वनि + आत्मक = ध्वन्यात्मक 

इति + आदि = इत्यादि           

इ + उ = यु

वि + उत्पत्ति = व्युत्पत्ति

अति + उक्ति = अत्युक्ति

अति + उत्तम = अत्युत्तम

अति + उक्ति = अत्युक्ति

प्रति + उत्पन्न  = प्रत्युत्पन्न

प्रति + उत्तर = प्रत्युत्तर

प्रति + उपकार  = प्रत्युपकार 

अभि + उत्थान = अभ्युत्थान

अभि + उदय = अभ्युदय

मति + उन्नति  = मत्युन्नति

मति + उदय = मत्युदय

प्रति + उपलब्ध = प्रत्युपलब्ध

इ + ऊ = यू

वि + ऊह = व्यूह

नि + ऊन = न्यून

प्रति + ऊह = प्रत्यूह   

अधि + ऊढ़ा = अध्यूढ़ा

प्रति + ऊष = प्रत्यूष   

इ + ए = ये

प्रति + एक = प्रत्येक

प्रति + एकता  = प्रत्येकता

अति + एकता  = अत्येकता

इ + ओ = यो

दधि + ओदन = दध्योदन    

ई + असमान स्वर = य्

ई + अ = य

देवी + अर्पण = देव्यर्पण

नदी + अम्बु = नद्यम्बु

नदी + अंश = नद्यंश

नदी + अर्पण = नद्यर्पण 

देवी + अंग = देव्यंग

स्त्री + अंग = स्त्र्यंग

ई + आ = या

नदी + आवेग = नद्यावेग 

देवी + आशा = देव्याशा

नारी + आदेश  = नार्यादेश

स्त्री + आदेश = स्त्र्यादेश

नदी + आमुख  = नद्यामुख   

सखी + आगमन = सख्यागमन

सखी + आदेश = सख्यादेश

ई + उ = यु

स्त्री + उचित = स्त्र्युचित

सुधी + उपास्य  = सुध्युपास्य

सखी + उत्तर = सख्युत्तर   

नारी + उद्धार = नार्युद्धार

नारी + उचित = नार्युचित

स्त्री + उपयोगी = स्त्र्युपयोगी

ई + ऊ = यू

नदी + ऊर्मि = नद्यूर्मि

ई + ए = ये

देवी + एकता = देव्येकता 

ई + ऐ = यै

देवी + ऐश्वर्य = देव्यैश्वर्य

ई + औ = यौ

वाणी + औचित्य = वाण्यौचित्य           

उ/ऊ + असमान स्वर = व्

उ + असमान स्वर = व्

उ + अ = व

सु + अल्प = स्वल्प

शिशु + अंग = शिश्वंग

मनु + अंतर = मन्वंतर

सु + अस्ति = स्वस्ति

मधु + अरि = मध्वरि

अनु + अय = अन्वय

तनु + अंगी =  तन्वंगी

परमाणु + अस्त्र = परमाण्वस्त्र

समनु + अय = समन्वय

उ + आ = वा

मनु + आदेश = मन्वादेश 

सु + आदेश = स्वादेश

गुरु + आसन = गुर्वासन

सु + आकार = स्वाकार 

अनु + आदेश  = अन्वादेश

सु + आगत = स्वागत 

परमाणु + आधार = परमाण्वाधार

मधु + आचार्य  = माध्वाचार्य 

गुरु + आज्ञा = गुर्वाज्ञा

साधु + आचार  = साध्वाचार

उ + इ = वि

धातु + इक = धात्विक

मनु + इच्छा = मन्विच्छा

अनु + इष्ट = अन्विष्ट

धातु + इच्छा =  धात्विच्छा

मधु + इच्छा = मध्विच्छा

अनु + इति = अन्विति

गुरु + इच्छा = गुर्विच्छा

अनु + इत = अन्वित

साधु + इच्छा = साध्विच्छा

उ + ई = वी

अनु + ईक्षण = अन्वीक्षण 

अनु + ईक्षा = अन्वीक्षा

उ + ए = वे

शिशु + एकता  = शिश्वेकता

अनु + एषक = अन्वेषक

अनु + एषण = अन्वेषण 

उ + ओ = वो

लघु + ओष्ठ = लघ्वोष्ठ

उ + ऋ = वृ

अनु + ऋचा = अन्वृचा 

गुरु + ऋण = गुर्वृण        

ऊ + असमान स्वर = व्

ऊ + अ = व

सरयू + अम्बु = सरय्वम्बू

वधू + अर्थ  = वध्वर्थ

ऊ + आ = वा

वधू + आगमन  = वध्वागमन

वधू + आदेश = वध्वादेश

ऊ + इ = वि 

वधू + इच्छा = वध्विच्छा                                                                                                                                                               

विशेष– द्य, ह्य, र्य तथा र्व हो, तो प्राय: यण् संधि होती है; जैसे–

द्‌य → द्य  → नदी + अर्पण = नद्यर्पण/नद्‌यर्पण 

ह्‌य → ह्य → मही + आधार = मह्याधार/मह्‌याधार

र्‌य → र्य → परि + उषण = पर्युषण/पर्‌युषण

र्‌व → र्व → गुरु + आज्ञा = गुर्वाज्ञा/गुर्‌वाज्ञा

ऋ + असमान स्वर = र

मातृ + आदेश  = मात्रादेश    

दातृ + उदारता  = दात्रुदारता

दातृ + आदेश  = दात्रादेश

धातृ + इच्छा = धात्रिच्छा

मातृ + आदेश  = मात्रादेश 

पितृ + उपदेश  = पित्रुपदेश 

वक्तृ + उद्‌बोधन = वक्त्रुद्‌बोधन 

वक्तृ + इच्छा = वाक्त्रिच्छा 

स्वस्तृ + अनुमति = स्वस्त्रनुमति

धातृ + अंश = धात्रंश

मातृ + अनुमति = मात्रनुमति

पितृ + अनुमति = पित्रनुमति  

पितृ + इच्छा = पित्रिच्छा

दातृ + उत्कंठा  = दात्रुत्कंठा

दातृ + इच्छा = दात्रिच्छा

भ्रातृ + इच्छा = भ्रात्रिच्छा

मातृ + आनंद  = मात्रानंद

भ्रातृ + उपकार = भ्रात्रुपकार 

भ्रातृ + आदेश  = भ्रात्रादेश

मातृ + इच्छा = मात्रिच्छा

पितृ + एषणा   = पित्रेषणा 

पितृ + उत्सुकता = पित्रुत्सुकता

जामातृ + इच्छा = जामात्रिच्छा

मातृ + अर्थ = मात्रर्थ

अयादि स्वर संधि

/// + असमान स्वर = अय्आय्, अव्, आव्

यदि ‘ए/ऐ/ओ/औ’ के बाद कोई असमान स्वर आ जाए तो ‘ए’ का ‘अय्’, ‘ऐ’ का ‘आय्’, ‘ओ’ का ‘अव्’ और ‘औ’ का ‘आव्’ हो जाता है।

A diagram of a mathematical equationDescription automatically generated   

ए असमान स्वर = अय्          

विने + अ = विनय

विले + अ = विलय

विजे + ई = विजयी

शे + अन = शयन

ने + अन = नयन

उदे + अ = उदय 

ने + अ = नय

संचे + अ = संचय

ऐ + असमान स्वर = आय्

गै + अक = गायक 

नै + अक = नायक 

गै + अन = गायन 

दै + अक = दायक

नै + इका = नायिका

शै + अक = शायक

विधै + इका = विधायिका

सै + अक = सायक 

विनै + अक = विनायक

विधै + अक = विधायक

दै + इका = दायिका

ओ + असमान स्वर = अव्         

प्रसो + अ = प्रसव 

गो + ईश = गवीश

गो + एषणा = गवेषणा

हो + इष्य = हविष्य 

भो + अति = भवति

लो + इत्र = लवित्र (हँसिया) 

पो + इत्र = पवित्र 

ओ + इ  = अवि

ओ + ई  = अवी

पो + अन = पवन 

भो + अन = भवन

श्रो + अन = श्रवण    

भो + इष्य = भविष्य 

औ + असमान स्वर = आव्        

पौ + अन = पावन 

श्रौ + अन = श्रावण   

नौ + इक = नाविक

पौ + अक = पावक

भौ + इनी = भाविनी

भौ + अ = भाव

भौ + अना = भावना 

शौ + इका = शाविका

श्रौ + इका = श्राविका

शौ + अक = शावक 

श्रौ + अक = श्रावक 

धौ + अक = धावक 

धौ + इका = धाविका

‘ऋ’ का प्रयोग तीन संधियों में होता है; जैसे–

‘ऋ’ संबंधी संधि

दीर्घ संधि

गुण संधि

यण् संधि

ऋ + ऋ = ॠ

अ/आ + ऋ = अर्

ऋ + असमान स्वर = र्

पितृ + ऋण = पितृण

होतृ + ऋकार = होतृकार

वसंत + ऋतु = वसंतर्तु

प्रेम + ऋतु = प्रेमर्तु

मातृ + आदेश = मात्रादेश

मातृ + अर्थ = मात्रर्थ

पहचान– ृ + ऋ 

पहचान–ऋषि, ऋतु, ऋषभ

पहचान–त्र

विशेष–मंत्रालय तथा छात्रालय दीर्घ संधि के उदाहरण हैं।

‘स्व’ का प्रयोग

‘स्व’ का प्रयोग दीर्घ, गुण, वृद्धि, यण् तथा व्यंजन संधियों में किया जाता है; जैसे– 

‘स्व’ खुद का अर्थ दे तो– 

   स्व + अध्याय = स्वाध्याय (दीर्घ संधि)

   स्व + इच्छा = स्वेच्छा (गुण संधि)

   स्व + ऐच्छिक  = स्वैच्छिक (वृद्धि संधि)

   स्व + छंद = स्वच्छंद (व्यंजन संधि)

‘स्व’ खुद का अर्थ न दे तो– 

   सु + अल्प = स्वल्प (यण् संधि)

   सु + आगत  = स्वागत (यण् संधि)

   सु + अस्ति = स्वस्ति (यण् संधि)

   सु + अच्छ  = स्वच्छ (यण संधि)

स्वर संधि के अपवाद

जिन शब्दों के अंत में ‘अक्षि’ व ’रात्रि’ लिखा हो उनका संधि करते समय ‘अक्ष’ एवं ’रात्र’ हो जाता है; जैसे–

नव + रात्रि = नवरात्र

दिवा + रात्रि = दिवारात्र

प्रति + अक्षि = प्रत्यक्ष

अधि + अक्षि = अध्यक्ष

सहस्त्र + अक्षि  = सहस्त्राक्ष

● इसी प्रकार अन्य अपवाद संधि शब्द–

अक्ष + ऊहिनी  = अक्षौहिणी

शक + अन्धु = शकन्धु

कर्क + अन्धु = कर्कन्धु

कुल + अटा = कुलटा

यथा + इच्छा = यथेच्छ

अल्प + इच्छा  = अल्पेच्छ

प्र + भू = प्रभु

स्व + ईर = स्वैर

स्व + ईरिणी = स्वैरिणी

स्व + ईरिता = स्वैरिता  

प्र + ऊढि = प्रौढि

प्र + ऊह = प्रौह 

प्र + ऊढ़ = प्रौढ़

वस्त्र + ऋण = वस्त्रार्ण

प्र + ऋण = प्रार्ण

वसन + ऋण = वसनार्ण

बिंब + ओष्ठ  = बिंबोष्ठ/बिंबौष्ठ

अधर + ओष्ठ  = अधरोष्ठ/अधरौष्ठ

कंठ + ओष्ठ्‌य  = कंठोष्ठ्‌य/कंठौष्ठ्‌य

दंत + ओष्ठ्‌य = दंतोष्ठ्‌य/दंतौष्ठ्‌य

मार्त + अंड = मार्तंड

सीम + अंत = सीमंत

सार + अंग = सारंग

व्यंजन संधि

व्यंजन संधि में निम्न स्थितियाँ हो सकती हैं– स्वर + व्यंजन,  व्यंजन + स्वर,  व्यंजन + व्यंजन।

स्वर + व्यंजन = नि + संग = निषंग।

व्यंजन + स्वर = दिक् + अन्त = दिगन्त।

व्यंजन + व्यंजन = दिक् + गयंद = दिग्गयंद।

यदि किसी स्वर के बाद व्यंजन आ जाए, व्यंजन के बाद स्वर आ जाए अथवा व्यंजन के बाद व्यंजन ही आ जाए तो व्यंजन के उच्चारण और लेखन में जो परिवर्तन होता है, उसे व्यंजन संधि कहते हैं।

व्यंजन संधि के नियम

नियम–1 यदि प्रत्येक वर्ग के प्रथम वर्ण (क्/च्/ट्/त्/प्) के बाद कोई घोष वर्ण (व्यंजन वर्गों के 3,4,5 वें वर्ण (पंचम वर्ण को छोड़कर)), अंत:स्थ वर्ण (य,व,र,ल), ह वर्ण तथा कोई भी स्वर आ जाए तो क्/च्/ट्/त्/प् का अपने ही वर्ग का तीसरा वर्ण (ग्/ज्/ड्/द्/ब्) हो जाता है; अर्थात् ये वर्ण अपने ही वर्ग के तीसरे वर्ण में बदलते हैं।

विशेष:– यदि क्/च्/ट्/त्/प् वर्णों के साथ स्वर का योग हो तो संधि होने पर स्वर की वर्तनी हलन्त वर्ण में जुड़ जाएगी; जैसे– 

दिक् + अन्त = दिगन्त

अगर व्यंजन का योग व्यंजन से ही होता है तो वर्ण हलन्त ही रहेगा; जैसे– दिक् + गयंद = दिग्गयंद

‘दिक्’ से निर्मित शब्द

दिक् + गज = दिग्गज 

दिक् + गयंद = दिग्गयंद     

दिक् + व्याप्त  = दिग्व्याप्त  

दिक् + दर्शन = दिग्दर्शन 

दिक् + देवता = दिग्देवता 

दिक् + दर्शक = दिग्दर्शक 

दिक् + भ्रम/भ्रमित  = दिग्भ्रम/दिग्भ्रमित

दिक् + विजय  = दिग्विजय

दिक् + बल = दिग्बल

‘वाक्’ से निर्मित शब्द    

वाक् + जाल = वाग्जाल

वाक् + दण्ड = वाग्दण्ड

वाक् + दत्त/दत्ता = वाग्दत्त/वाग्दत्ता

वाक् + विदग्ध  = वाग्विदग्ध

वाक् + वैदग्ध्य  = वाग्वैदग्ध्य

वाक् + विलासी = वाग्विलासी

वाक् + दोष = वाग्दोष

वाक् + भट = वाग्भट

वाक् + विश्वास = वाग्विश्वास

वाक् + दान = वाग्दान

वाक् + देवी = वाग्देवी

वाक् + विलास = वाग्विलास

वाक् + अधिप  = वागधिप 

वाक् + अंत = वागंत

वाक् + ईश = वागीश 

वाक् + ईशा/ईश्वरी = वागीशा/वागीश्वरी 

वाक् + ईश्वर = वागीश्वर

वाक् + विरोध  = वाग्विरोध

वाक् + वैभव = वाग्वैभव    

वाक् + वीर = वाग्वीर

वाक् + व्यापार = वाग्व्यापार 

वाक् + वज्र = वाग्वज्र

‘दृक्’ से निर्मित शब्द

दृक् + अंचल = दृगंचल 

दृक् + अध्यक्ष  = दृगध्यक्ष 

दृक् + इच्छा = दृगिच्छा    

दृक् + दोष = दृग्दोष

दृक् + गति = दृग्गति

दृक् + वृत = दृग्वृत

ऋक् + वेद = ऋग्वेद

ऋक् + वेदी = ऋग्वेदी

'षट्' से निर्मित शब्द

षट् + अंगी = षडंगी 

षट् +  भुजा = षड्भुजा   

षट् + अग्नि = षडग्नि 

षट् + अभिज्ञ = षडभिज्ञ 

षट् + आत्मा = षडात्मा 

षट् + आयतन  = षडायतन

षट् +  योनि = षड्‌योनि

षट् +  रस = षड्‌रस

षट् +  वदन = षड्वदन

षट् +  वर्ग = षड्वर्ग 

षट् + गुण = षड्गुण 

षट् + अंग = षडंग 

षट् + भाव = षड्भाव

षट् + अंगिनी = षडंगिनी 

षट् + अक्षरी = षडक्षरी 

षट् + ज = षड्ज

षट् +  ऋतु = षड्ऋतु

षट् +  दर्शन = षड्दर्शन

षट् +  यंत्र = षड्‌यंत्र  

षट् +  विकार  = षड्विकार

षट् +  अक्षर = षडक्षर

'तत्' से निर्मित शब्द

तत् + भव = तद्भव    

तत् + अनन्तर  = तदनन्तर    

तत् + योग = तद्योग

तत् + गुण = तद्गुण

तत् + उपरान्त  = तदुपरान्त

तत् + धर्म = तद्‌धर्म

तत् + रूप = तद्‌रूप

तत् + आकार  = तदाकार 

तत् + इच्छा = तदिच्छा 

तत् + अधीन = तदधीन

तत् + रूपता = तद्‌रूपता

'सत्' से निर्मित शब्द

सत् + असत् = सदसद्

सत् + इच्छा = सदिच्छा

सत् + गुण = सद्गुण

सत् + वस्तु = सद्वस्तु 

सत् + वृत्त = सद्वृत्त

सत् + आचार  = सदाचार 

सत् + विवेक = सद्विवेक    

सत् + आशय  = सदाशय

सत् + भाव = सद्भाव 

सत् + आकार  = सदाकार

सत् + आत्मा = सदात्मा

सत् + उपयोग  = सदुपयोग

सत् + गति = सद्गति 

सत् + वेग = सद्वेग

'चित्' से निर्मित शब्द

चित् + आत्मा  = चिदात्मा

चित् + रूप = चिद्रूप

चित् + आभास = चिदाभास 

चित् + आकार  = चिदाकार

चित् + विलास  = चिद्विलास

'जगत्' से निर्मित शब्द

जगत् + अंबा = जगदंबा 

जगत् + आचार्य = जगदाचार्य 

जगत् + योनि  = जगद्योनि 

जगत् + रक्षक  = जगद्रक्षक

जगत् + वंद्य = जगद्वंद्य

जगत् + आलोक = जगदालोक

जगत् + विनाश = जगद्विनाश

जगत्+ईश/ईश्वर/ईश्वरी  = जगदीश/जगदीश्वर/जगदीश्वरी

जगत् + आनंद = जगदानंद

जगत् + गुरु = जगद्गुरु

जगत् + विख्यात = जगद्विख्यात          

अन्य उदाहरण–

पोत् + दार = पोद्दार

पश्चात् + वर्ती = पश्चाद्वर्ती    

विद्युत् + वेग = विद्युद्वेग 

अच् + आदि = अजादि

पश्चात्  +  गति = पश्चाद्गति

पश्चात् + धर्म = पश्चाद्धर्म

विद्युत् + ध्वज  = विद्युद्ध्वज

अप् + ज = अब्ज 

अप् + द = अब्द 

सुप् + आदि = सुबादि

अच् + अन्त = अजन्त

अप् + धि = अब्धि 

नियम– 2 यदि किसी वर्ग के प्रथम एवं तीसरे वर्ण (क्/ट्/त्/द्) के बाद पंचम वर्ण (न/म) आए तो प्रथम एवं तीसरा वर्ण (क्/ट्/त्/द्) अपने ही वर्ग के पंचम वर्ण (ड़्/ण्/न्) में बदल जाएंगे।  

नोट:– ङ्/ञ्/ण् से हिन्दी में किसी भी शब्द की शुरुआत नहीं होती।

'वाक्' से निर्मित शब्द–

वाक् + मय = वाङ्मय    

वाक् + निपुण  = वाङ्निपुण

वाक् + मयी = वाङ्मयी 

वाक् + मूर्ति = वाङ्मूर्ति

वाक् + मुख = वाङ्मुख 

'जगत्' से निर्मित शब्द–

जगत् + निवास = जगन्निवास

जगत् + मिथ्या = जगन्मिथ्या

जगत् + माता  = जगन्माता 

जगत् + मोहिनी = जगन्मोहिनी

जगत् + मय = जगन्मय 

जगत् + नाथ = जगन्नाथ

जगत् + नियंता = जगन्नियंता 

जगत् + मंगल  = जगन्मंगल

जगत् + मयी = जगन्मयी  

जगत् + मण्डल = जगन्मण्डल

'सत्' से निर्मित शब्द

सत् + मातुर = सन्मातुर 

सत् + मात्र = सन्मात्र

सत् + निवृत्त = सन्निवृत्त

सत् + निवेश = सन्निवेश

सत् + नियम = सन्नियम

सत् + निपात = सन्निपात

सत् + निबंध = सन्निबंध

सत् + निभूत = सन्निभूत  

सत् + निधि = सन्निधि 

सत् + निधान = सन्निधान

सत् + नियम = सन्नियम

सत् + निपात = सन्निपात

सत् + नारी = सन्नारी 

सत् + नियंता = सन्नियंता

सत् + नियोग = सन्नियोग

सत् + निविष्ट = सन्निविष्ट 

सत् + निमग्न = सन्निमग्न

सत् + मित्र = सन्मित्र

सत् + निहित = सन्निहित  

सत् + नाम = सन्नाम

'दिक्' से निर्मित शब्द–

दिक् + मूढ = दिङ्मूढ 

दिक् + माया = दिङ्माया

दिक् + मात्र = दिङ्मात्र 

दिक् + मोह = दिङ्मोह 

दिक् + मण्डल  = दिङ्मण्डल

दिक् + मुख = दिङ्मुख 

दिक् + नाथ = दिङ्नाथ

दिक् + नाग = दिङ्नाग    

'उत्' से निर्मित शब्द–

उत् + नत = उन्नत

उत् + नति = उन्नति

उत् + मोचन = उन्मोचन

उत् + नयन = उन्नयन

उत् + नत = उन्नत

उत् + मीलित = उन्मीलित

उत् + माद = उन्माद 

उत् + मान = उन्मान 

उत् + मार्ग = उन्मार्ग 

उत् + मुख = उन्मुख 

उत् + निद्र = उन्निद्र

उत् + मत = उन्मत

उत् + मथ = उन्मथ

उत् + मीलन = उन्मीलन

उत् + मूलन = उन्मूलन 

उत् + मेष = उन्मेष   

उत् + मुक्ति = उन्मुक्ति

'चित्' से निर्मित शब्द–

चित् + मय = चिन्मय 

चित् + मात्र = चिन्मात्र 

'शरद्' से निर्मित शब्द–

शरद् + महोत्सव = शरन्महोत्सव         

शरद् + माला = शरन्माला

शरद् + मुख = शरन्मुख 

शरद् + मेघ = शरन्मेघ

'श्रीमत्' से निर्मित शब्द–

श्रीमत् + नारायण = श्रीमन्नारायण        

वृहत् + नेत्र = वृहन्नेत्र

ऋक् + मंत्र = ऋङ्मंत्र

श्रीमत् + नाम  = श्रीमन्नाम

भवत् + नाम = भवन्नाम

वृहत् + नल = वृहन्नल 

विद्युत् + माला  = विद्युन्माला

विद्युत् + मण्डल = विद्युन्मण्डल

'षट्' से निर्मित शब्द–

षट् + मास = षण्मास     

षट् + मुख = षण्मुख

षट् + मूर्ति = षण्मूर्ति

षट् + मातुर = षाण्मातुर

'तत्' से निर्मित शब्द–

तत् + मय = तन्मय   

तत् + मति = तन्मति

तत् + मात्रा = तन्मात्रा

तत् + नाम = तन्नाम

यदि ‘द्’ के पहले ’ऋ’ स्वर आता है तो ’द्’ मूर्धन्य अनुनासिक व्यंजन ’ण्’ में बदल जाता है; जैसे–

मृद् + मय = मृण्मय

मृद् + मूर्ति = मृण्मूर्ति

मृद् + मयी = मृण्मयी

अन्य उदाहरण–

विद्वत् + मुख = विद्वन्मुख

विद्वत् + मण्डल = विद्वन्मण्डल

शरद् + मास = शरन्मास

उपनिषद् + मर्म = उपनिषन्मर्म

सुहृत् + नाश = सुहृन्नाश 

सम्राट् + नीति  = सम्राण्नीति

सम्यक् + नीति = सम्यङ्नीति

वणिक् + माता = वणिङ्माता

पराक् + मुख = पराङ्मुख  

वणिक् + नीति  = वणिङ्नीति

विद्वत् + मूर्ति = विद्वन्मूर्ति

हनुमत् + नाम  = हनुमन्नाम

हनुमत् + नाटक = हनुमन्नाटक

विराट् + नगर  = विराण्नगर

उपनिषद् + मीमांसा  = उपनिषन्मीमांसा    

नियम–3 यदि प्रथम शब्द के अंतिम वर्ण 'द्' के बाद दूसरे शब्द के प्रथम वर्ण के रूप में क/ख/त/थ/प/फ/स आए तो 'द्' का 'त्' हो जाएगा।

'उद्' से निर्मित शब्द– 

उद् + खचित = उत्खचित 

उद् + तर = उत्तर

उद् + तम = उत्तम

उद् + तीर्ण = उत्तीर्ण   

उद् + कट = उत्कट

उद् + खनन = उत्खनन

उद् + क्षिप्त = उत्क्षिप्त 

उद् + कण्ठा = उत्कण्ठा 

उद् + कण्ठित  = उत्कण्ठित

उद् + कर्ष = उत्कर्ष

उद् + कल = उत्कल 

उद् + पन्न = उत्पन्न 

उद् + पाटन = उत्पाटन 

उद् + पात = उत्पात 

उद् + पादन = उत्पादन

उद् + पादक = उत्पादक

उद् + ताप = उत्ताप

उद् + तुङ्ग = उत्तुङ्ग 

उद् + तेजक = उत्तेजक 

उद् + तोलन = उत्तोलन 

उद् + पादिका  = उत्पादिका 

उद् + पीडन = उत्पीडन 

उद् + पीडक = उत्पीडक 

उद् + फुल्ल = उत्फुल्ल     

उद् + साह = उत्साह

उद् + सिक्त = उत्सिक्त 

उद् + सुक = उत्सुक 

उद् + सेक = उत्सेक 

उद् + कोची = उत्कोची 

उपनिषद् + कथा = उपनिषत्कथा

उपनिषद् + काल = उपनिषत्काल

उद् + सर्ग = उत्सर्ग 

उद् + सर्जन = उत्सर्जन 

उद् + सव = उत्सव

उद् + साद/सादन = उत्साद/उत्सादन 

उद् + पत्ति = उत्पत्ति

उद् + सारण = उत्सारण 

उपनिषद् + समीक्षा = उपनिषत्समीक्षा

शरद् + काल = शरत्काल

शरद् + समारोह = शरत्समारोह

शरद् + सुषमा  = शरत्सुषमा

शरद् + पूर्णिमा = शरत्पूर्णिमा

विपद् + काल  = विपत्काल

विपद् + ति = विपत्ति

आपद् + काल  = आपत्काल

आपद् + ति = आपत्ति

सम्पद् + काल  = सम्पत्काल

सम्पद् + ति = सम्पत्ति

मृद् + तिका = मृत्तिका

मृद् + पात्र = मृत्पात्र 

मृद् + प्रतिमा = मृत्प्रतिमा 

संसद् + कथन  = संसत्कथन

हृद् + परीक्षण  = हृत्परीक्षण 

'तद्/सद्' से निर्मित शब्द

तद् + काल = तत्काल 

तद् + पुरुष = तत्पुरुष

तद् + परायण  = तत्परायण 

तद् + सम = तत्सम

तद् + क्षण = तत्क्षण 

तद् + पर = तत्पर

सद् + पथ = सत्पथ 

सद् + संग = सत्संग 

सद् + काल = सत्काल 

सद् + कर्म = सत्कर्म

उद् + स्थान  = उत्थान

उद् + स्थापन = उत्थापन

उद् + स्थित = उत्थित (उपर्युक्त तीनों संधि शब्दों में ‘स्’ का लोप भी हुआ हैं।)

नियम–4 त् व द् संबंधी विशेष नियम

त्/द् + च = च्च 

उद् + चय = उच्चय 

उद् + चलन = उच्चलन 

 सत् + चित = सच्चित

सत् + चरित्र = सच्चरित्र

शरद् + चन्द्र = शरच्चन्द्र

उद् + चारण = उच्चारण

भगवत् + चरण = भगवच्चरण

वृहत् + चयन = वृहच्चयन

वृहत् + चिंतन  = वृहच्चिंतन

उद् + चलित = उच्चलित 

उद् + चाटन = उच्चाटन 

उद् + चार = उच्चार 

जगत् + चिंतन  = जगच्चिंतन

जगत् + चर्या = जगच्चर्या

विद्युत् + चालक = विद्युच्चालक          

विद्वत् + चर्या = विद्वच्चर्या

यावत् + चिंतन = यावच्चिंतन

त्/द् + छ = च्छ

उद् + छिन्न = उच्छिन्न

उद् + छादन = उच्छादन

विद्युत् + छटा  = विद्युच्छटा

सत् + छाया = सच्छाया

त्/द् + ज = ज्ज

उद् + ज्वल = उज्ज्वल

उद् + जैन = उज्जैन

उद् + जयिनी = उज्जयिनी

जगत् + जननी = जगज्जननी

वृहत् + जन = वृहज्जन

विद्वत् + जन = विद्वज्जन

विद्वत् + जीवन = विद्वज्जीवन

तडित् + ज्योति = तडिज्ज्योति

विपद् + ज्वाला = विपज्ज्वाला

जगत् + जीवन = जगज्जीवन

सत् + जन = सज्जन

तत् + जन्य = तज्जन्य

सत् + जाति = सज्जाति 

विद्युत् + जाल  = विद्युज्जाल

विपद् + जाल  = विपज्जाल

भगवत् + ज्योति = भगवज्ज्योति

वृहत् + ज्योति  = वृहज्ज्योति           

यावत् + जीवन = यावज्जीवन 

त्/द् + ट = ट्ट

तत् + टीका = तट्टीका  

वृहत् + टीका = वृहट्टीका

मत् + टीका = मट्टीका

सत् + टीका = सट्टीका 

भवत् + टिप्पणी = भवट्टिप्पणी

त्/द् + ड = ड्ड

उद् + डयन = उड्‌डयन 

उद् + डीन = उड्‌डीन 

उद् + डीश = उड्‌डीश 

भवत् + डमरू  = भवड्‌डमरू

त्/द् + ल = ल्ल

उद् + लेख = उल्लेख

उद् + लंघन = उल्लंघन    

उद् + लेखन = उल्लेखन 

उद् + लिखित  = उल्लिखित

विपद् + लीन = विपल्लीन

तडित् + लेखा  = तडिल्लेखा

शरद् + लास = शरल्लास

उद् + लास = उल्लास 

उद् + लसित = उल्लसित

उद् + लाघ = उल्लाघ 

उद् + लीढ = उल्लीढ     

पद् + लवित = पल्लवित

पद् + लव = पल्लव

पद् + लवन = पल्लवन

तत् + लीन = तल्लीन

तत् + लय = तल्लय

त्/द् + श =  च्छ

उद् + श्वास = उच्छ्वास

उद् + श्वसन = उच्छ्वसन

उद् + शोषण = उच्छोषण 

तत् + शरण = तच्छरण 

उद् + शासन = उच्छासन   

उद् + शिष्ट = उच्छिष्ट 

उद् + श्वसित = उच्छ्वसित 

उद् + शास्त्र = उच्छास्त्र 

उद् + शृंखल = उच्छृंखल

मृद् + शकटिक = मृच्छकटिक 

शरद् + शशि = शरच्छशि

सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र

सत् + शासन = सच्छासन

जगत् + शांति  = जगच्छांति

श्रीमत् + शरत् + चंद्र = श्रीमच्छरच्चंद्र

त्/द् +  ह = द्ध

उद्+ हार = उद्‌धार/उद्धार

उद् + हरण = उद्धरण      

उद् + हारक = उद्धारक 

उद् + हृत = उद्‌धृत  

उद् + हव = उद्धव 

उद् + हत = उद्धत

उद् + हृति = उद्‌धृति

तत् + हित = तद्धित

पद् + हति = पद्‌धति

आगम व्यंजन संधि

नियम–5 यदि प्रथम शब्द का अंतिम वर्ण कोई स्वर आ जाए तथा दूसरे शब्द का प्रथम वर्ण 'छ' हो तो स्वर और छ के मध्य 'च्' का आगम हो जाता है।

स्व + छंद = स्वच्छंद 

आ + छादन = आच्छादन

शिव + छाया = शिवच्छाया 

आ + छादित = आच्छादित

वि + छिन्न = विच्छिन्न

परि + छेदक = परिच्छेदक 

मातृ + छाया = मातृच्छाया

दातृ + छाया = दातृच्छाया

पितृ + छाया = पितृच्छाया

एक + छत्र = एकच्छत्र

प्रति + छवि = प्रतिच्छवि

दंत + छेद = दंतच्छेद

रद + छेद = रदच्छेद

तरु + छाया = तरुच्छाया

वृक्ष + छाया = वृक्षच्छाया

शशि + छवि = शशिच्छवि

अनु + छेद = अनुच्छेद 

वि + छेद = विच्छेद  

प्रति + छाया = प्रतिच्छाया 

दंत + छद = दंतच्छद 

अंग + छेद = अंगच्छेद

मुख + छवि = मुखच्छवि

प्र + छन्न = प्रच्छन्न 

आ + छन्न = आच्छन्न 

संधि + छेद = संधिच्छेद

लक्ष्मी + छाया  = लक्ष्मीच्छाया 

छत्र + छाया = छत्रच्छाया 

शाला + छादन  = शालाच्छादन          

परि + छंद = परिच्छंद 

श्री + छाया = श्रीच्छाया 

षागम व्यंजन संधि

नियम–6 परि + कार/कृत/करण/कृति/कर्ता/कारक/क्रिया = 'ष्' का आगम। 

परि + कार = परिष्कार  

परि + कर्ता = परिष्कर्ता

परि + कारक = परिष्कारक

परि + कृत = परिष्कृत

परि + करण = परिष्करण 

परि + कृति = परिष्कृति

परि + क्रिया = परिष्क्रिया 

सागम व्यंजन संधि

नियम–7 सम् + कार/कृत/करण/कृति/कर्ता/कारक/क्रिया = 'स्' का आगम। ('सम्' के 'म्' का अनुस्वार बन जाएगा) 

सम् + कृत = संस्कृत

सम् + कृति = संस्कृति 

सम् + कारक = संस्कारक

सम् + क्रिया = संस्क्रिया 

सम् + कर्ता = संस्कर्ता

सम् + करण = संस्करण 

सम् + कार = संस्कार 

नियम–8 ष् + त/थ/न = त का ट्, थ का ठ् तथा न का ण् हो जाता है।

आकृष् + त = आकृष्ट

पुष् + ति = पुष्टि      

निकृष् + त = निकृष्ट

नष् + त = नष्ट

षष् + थी = षष्ठी

हृष् + त = हृष्ट 

षष् + थ = षष्ठ 

षष् + ति = षष्टि 

उत्कृष् + त = उत्कृष्ट

‘न्’ का ‘ण्’ में परिवर्तन

नियम–8.1 यदि ऋ/र/ष के बाद कहीं भी 'न' वर्ण आ जाए तो 'न' का 'ण' हो जाता है; जैसे–

ऋ + न = ऋण 

ऋ + नी = ऋणी 

तुष् + नीक = तुष्णीक 

तृ + न = तृण

तृष् + ना = तृष्णा

परि + नत = परिणत 

परि + नति = परिणति 

परि + नद्ध = परिणद्ध 

परि + नय = परिणय 

परि + नाम = परिणाम 

परि + मान = परिमाण 

परि + नाय = परिणाय 

परि + नाह = परिणाह 

परि + नीत = परिणीत 

परि + नीता = परिणीता 

परि + नेता = परिणेता 

परि + नेतु = परिणेतु 

प्र + आन = प्राण

प्र + आनक = प्राणक 

प्र + नलिका = प्रणलिका 

प्र + नायक = प्रणायक 

प्र + नाम = प्रणाम

प्र + नाद = प्रणाद 

प्र + नव = प्रणव 

प्र + नय = प्रणय

प्र + नति = प्रणति 

प्र + नत = प्रणत 

प्र + न = प्रण 

विष् + नु = विष्णु

प्र + निधान = प्रणिधान 

प्र + निनाद = प्रणिनाद 

प्र + निपात = प्रणिपात 

प्र + निहित = प्रणिहित 

प्र + नीत = प्रणीत 

प्र + नोद = प्रणोद 

प्र + यान = प्रयाण 

नियम–8.2 इ/उ/ऐ + स/स्थ = ष्/ष्ठ

नि + संग = निषंग 

नि + संगी = निषंगी 

नि + साद = निषाद 

नि + सिद्ध = निषिद्ध 

नि + सेक = निषेक 

नि + सेध = निषेध

नि + सेवक = निषेवक 

अभि + सिक्त  = अभिषिक्त 

अभि + सेक = अभिषेक 

अभि + सेचन  = अभिषेचन

परि + सद् = परिषद् 

परि + सेक = परिषेक 

प्रति + सेध = प्रतिषेध 

प्रति + सेधक = प्रतिषेधक 

प्रति + सिद्ध = प्रतिषिद्ध 

वि + सम = विषम

वि + सय = विषय

वि + साद = विषाद 

नि + स्नात = निष्णात     

नि + स्था = निष्ठा     

प्रति + स्था = प्रतिष्ठा 

प्रति + स्थान = प्रतिष्ठान 

प्रति + स्थित = प्रतिष्ठित

प्रति + स्थापन्न = प्रतिष्ठापन्न 

युधि + स्थिर = युधिष्ठिर

वि + स्था = विष्ठा 

वि + सन्न = विषण्ण 

अधि + स्थाता  = अधिष्ठाता

अधि + स्थान = अधिष्ठान

नि + सन्न = निषण्ण

अनु + संगी = अनुषंगी  

अनु + सक्त = अनुषक्त 

अनु + सेक = अनुषेक 

सु + साद = सुषाद 

सु + समा = सुषमा 

सु + समित = सुषमित

सु + सुप्त = सुषुप्त 

सु + सिक्त = सुषिक्त 

सु + सिर = सुषिर 

सु + सुप्सु = सुषुप्सु 

सु + सुप्सा = सुषुप्सा 

सु + स्मिता = सुष्मिता

सु + सुम्ना = सुषुम्ना/णा 

नै + स्थिक = नैष्ठिक

नै + स्थुर्य = नैष्ठुर्य     

नियम–9 यदि प्रथम शब्द का अंतिम वर्ण 'म्' हो तथा अंतिम शब्द का प्रथम वर्ण 'क से भ' तक (पंचम वर्ण को छोड़कर) हो तो 'म्' अंतिम शब्द के प्रथम वर्ण के पंचम वर्ण (ङ् /ञ् /ण् /न् /म्) में बदल जाएगा या अनुस्वार (×) बनेगा।

तीर्थम् + कर = तीर्थङ्कर/तीर्थंकर

दीपम् + कर = दीपङ्कर/दीपंकर  

सम् + कलन = सङ्कलन/संकलन

सम् + कट = सङ्कट/संकट

सम् + क्रांति = सङ्क्रांति/संक्रांति

सम् + क्रमण = सङ्क्रमण/संक्रमण

सम् + कीर्ण = सङ्कीर्ण/संकीर्ण

सम् + कीर्तन = सङ्कीर्तन/संकीर्तन

सम् + कोच = सङ्कोच/संकोच

सम् + क्षिप्त = सङ्क्षिप्त/संक्षिप्त

सम् + क्षेप = सङ्क्षेप/संक्षेप

सम् + गठन = सङ्गठन/ संगठन

सम् + गति = सङ्गति/संगति

अलम् + कृति  = अलङ्कृति/अलंकृति

अलम् + कार = अलङ्कार/अलंकार

अलम् + करण  = अलङ्करण/अलंकरण          

शुभम् + कर = शुभङ्कर/शुभंकर

सम् + गीत = सङ्गीत/संगीत

सम् + ग्रह = सङ्ग्रह/संग्रह

सम् + ग्राम = सङ्ग्राम/संग्राम

सम् + घनन = सङ्घनन/संघनन

सम् + घर्ष = सङ्घर्ष/संघर्ष

सम् + घात = सङ्घात/संघात

अलम् + कृत = अलङ्कृत/अलंकृत

अहम् + कार = अहङ्कार/अहंकार

किम् + कर = किङ्कर/किंकर

भयम् + कर = भयङ्कर/भयंकर

हृदयम् + गम = हृदयङ्गम/हृदयंगम

अस्तम् + गत = अस्तङ्गत/अस्तंगत

दिवम् + गत = दिवङ्गत/दिवंगत

शम् + कर = शङ्कर/शंकर

सम् + चालन = सञ्चालन/संचालन

सम् + चय = सञ्चय/संचय       

चम् + चल = चञ्चल/चंचल

पम् + चम = पञ्चम/पंचम

चिरम् + जीव = चिरञ्जीव/चिरंजीव

चिरम् + जीत = चिरञ्जीत/चिरंजीत

धनम् + जय = धनञ्जय/धनंजय

सम् + चित = सञ्चित/संचित

सम् + चार = सञ्चार/संचार

किम् + चित् = किञ्चित्/किंचित

अकिम् + चन  = अकिञ्चन/अकिंचन

सम् + जीव = सञ्जीव/संजीव

सम् + जीवनी  = सञ्जीवनी/संजीवनी

सम् + धान = सन्धान/संधान

सम् + धानित  = सन्धानित/संधानित 

सम् + ज्ञा = सञ्ज्ञा/संज्ञा

सम् + ज्ञान = सञ्ज्ञान/संज्ञान      

सम् + ताप = सन्ताप/संताप

सम् + त्रास = सन्त्रास/संत्रास

सम् + तुष्ट = सन्तुष्ट/संतुष्ट

सम् + तप्त = सन्तप्त/संतप्त

सम् + तोष = सन्तोष/संतोष

सम् + द्रवण = सन्द्रवण/संद्रवण 

सम् + दिग्ध = सन्दिग्ध/संदिग्ध

सम् + देश = सन्देश/संदेश

सम् + देह = सन्देह/संदेह

सम् + तुलन = सन्तुलन/संतुलन

मृत्युम् + जय = मृत्युञ्जय/मृत्युंजय

दम् + ड = दण्ड/दंड

दम् + डित = दण्डित/दंडित

घम् + टी = घण्टी/घंटी

सम् + तति = सन्तति/संतति

परम् + तु = परन्तु/परंतु

परम् + तप = परन्तप/परंतप 

सम् + देह = सन्देह/संदेह         

धुरम् + धर = धुरन्धर/धुरंधर

सम् + धि = सन्धि/संधि           

सम् + धेय = सन्धेय/संधेय

नियम–9.1 यदि 'म्' का योग प/फ/ब/भ से होता है तो 'म्' का अनुस्वार वाला रूप संधि की श्रेणी में आएगा; परंतु 'म्' का 'म्' ही रहने पर वह संयोग की श्रेणी में आएगा; जैसे–

सम् + भाव =  सम्भाव (संयोग)/संभाव (संधि)

ऋतम् + भरा =  ऋतम्भरा(संयोग)/ऋतंभरा(संधि)

स्वयम् + भू् =  स्वयम्भू(संयोग)/ स्वयंभू(संधि)

सम् + भव =  सम्भव(संयोग)/संभव(संधि)

सम् + भावना  =  सम्भावना(संयोग)/संभावना(संधि) 

सम् + भू =  सम्भू(संयोग)/संभू(संधि)

सम् + भूति =  सम्भूति(संयोग)/संभूति(संधि)

सम् + भोग =  सम्भोग(संयोग)/संभोग(संधि)

विश्वम् + भर  =  विश्वम्भर(संयोग)/विश्वंभर(संधि)

अवश्यम् + भावी =  अवश्यम्भावी(संयोग) / अवश्यंभावी (संधि)    

नियम–9.2 'म्' का योग 'म' से होने पर 'म्' का अनुस्वार बनाना अनुचित होगा। वहाँ पर 'म्' का 'म्' ही रहेगा; जैसे–

सम् + मुख = सम्मुख (संयोग)

सम् + मीलित  = सम्मीलित (संयोग)

सम् + मत = सम्मत (संयोग)

सम् + मान = सम्मान (संयोग)

सम् + मति = सम्मति (संयोग)

सम् + मेलन = सम्मेलन (संयोग)

नियम–9.3 यदि प्रथम शब्द का अंतिम वर्ण 'म्' हो तथा दूसरे शब्द का प्रथम वर्ण पंचम वर्ण (न) हो तो 'म्' दूसरे शब्द के प्रथम वर्ण के समान ही (हलन्त सहित) बन जाएगा; जैसे– 

सम् + निवेश = सन्निवेश   

सम् + निकर्ष = सन्निकर्ष

सम् + निहित = सन्निहित 

सम् + न्यास = सन्न्यास 

सम् + निवृत्ति  = सन्निवृत्ति

सम् + नियोग = सन्नियोग

सम् + निपात = सन्निपात

सम् + निधान  = सन्निधान

सम् + न्यासी = सन्न्यासी  

किम् + नर = किन्नर 

नियम–9.4 यदि 'म्' का योग य/व/र/ल/श/ष/ह वर्णों से होने पर 'म्' का हमेशा अनुस्वार ही होगा; जैसे–

सम् + यम = संयम

सम् + यत = संयत    

सम् + रक्षण = संरक्षण 

सम् + राग = संराग

सम् + लग्न = संलग्न

सम् + लाप = संलाप

सम् + वत् = संवत् 

सम् + यमित = संयमित 

सम् + याव = संयाव 

सम् + योग = संयोग

सम् + योजन = संयोजन

सम् + वर = संवर

सम् + वरण = संवरण  

सम् + वार = संवार 

सम् + वास = संवास 

सम् + वाहक = संवाहक

सम् + विज्ञात  = संविज्ञात 

सम् + विदा = संविदा 

सम् + विदित = संविदित 

सम् + विधा = संविधा 

सम् + वर्धक = संवर्धक

सम् + वर्धित = संवर्धित

सम् + वलित = संवलित 

सम् + वाद = संवाद

सम् + वादी = संवादी 

सम् + विधान  = संविधान

सम् + विभाग  = संविभाग

सम् + वृत्ति = संवृत्ति 

सम् + शुद्ध = संशुद्ध 

सम् + शुद्धि = संशुद्धि 

सम् + शोधन = संशोधन 

सम् + श्रय = संश्रय 

सम् + श्रुत = संश्रुत

सम् + श्लिष्ट = संश्लिष्ट 

सम् + श्लेष = संश्लेष 

सम् + हति = संहति

सम् + हर्ष = संहर्ष

सम् + हवन = संहवन

सम् + वृत्त = संवृत्त 

सम् + वृद्धि = संवृद्धि 

सम् + वेग = संवेग 

सम् + वेदन = संवेदन 

सम् + शय = संशय

सम् + श्लेषण  = संश्लेषण  

सम् + सर्ग = संसर्ग 

सम् + सार = संसार 

सम् + सारी = संसारी 

सम् + सिद्ध = संसिद्ध 

सम् + सक्त = संसक्त  

सम् + सक्ति  = संसक्ति 

सम् + सद् = संसद् 

सम् + सरण = संसरण

सम् + सर्ग = संसर्ग 

सम् + सर्जन = संसर्जन

सम् + सृति = संसृति 

सम् + सृष्ट = संसृष्ट   

सम् + वेदना = संवेदना

प्रियम् + वद = प्रियंवद 

प्रियम् + वदा = प्रियंवदा 

स्वयम् + वर = स्वयंवर

सम् + सृष्टि = संसृष्टि

सम् + सेक = संसेक 

सम् + स्तुति = संस्तुति

सम् + स्मरण = संस्मरण

सम् + हार = संहार

सम् + हिता = संहिता  

सम् + हारक = संहारक

सम् + हार्य = संहार्य 

विशेष– ‘रामायण’ शब्द में तीन संधि होती है।

(i) दीर्घ स्वर संधि – राम + अयन = रामायण (अ + अ = आ)

(ii) व्यंजन संधि – राम + अयन = रामायण (न का ण)

(iii) अयादि स्वर संधि – रामै + अन = रामायण (ऐ का आय्)

‘च्छीकरण’ संबंधी व्यंजन संधि

त्/द् + छ = च्

त्/द्+ श = च्छ

स्वर + छ = च् (आगम)

उद् + छिन्न = उच्छिन्न

उद् + छेद = उच्छेद

उद् + श्वास = उच्‌छवास

उद् + शास्त्र = उच्‌छास्त्र

स्व + छंद = स्वछंद

रद + छेद = रदच्छेद

व्यंजन लोप संबंधी नियम

‘अत्/अस्’ का लोप

‘स्’ का लोप

‘न्’ का लोप

पतत् + अंजलि = पतंजलि

मनस् + ईष = मनीष

मनस् + ईषा = मनीषा 

उद् + स्तंभ = उत्तंभ

उद् + स्थान = उत्थान

उद् + स्थित = उत्थित

युवन् + राज = युवराज

राजन् + पुत्र = राजपुत्र

प्राणिन् + मात्र = प्राणिमात्र

पक्षिन् + गण = पक्षिगण

मंत्रिन् + मंडल = मंत्रिमंडल


विसर्ग संधि

: + ‘स्वर/व्यंजन’

यदि किसी विसर्ग के बाद स्वर या व्यंजन आ जाए तो विसर्ग के उच्चारण और लेखन में जो विकार/परिवर्तन होता है, उसे विसर्ग संधि कहते हैं।

विसर्ग संधि के नियम 

नियम–1 यदि प्रथम शब्द का अंतिम वर्ण विसर्ग (:) हो (विसर्ग से पूर्व वाले व्यंजन में 'अ' स्वर हो) तथा दूसरे शब्द का प्रथम वर्ण अ/घोष व्यंजन (वर्गों का 3/4/5 वाँ वर्ण)/अंत:स्थ (य/र/ल/व)/ह वर्ण हो तो विसर्ग (:) का 'ओ' बन जाता हैं।

नोट:– यदि 'अ:' के बाद 'अ' स्वर आ जाए तो दूसरे शब्द के प्रथम स्वर 'अ' का लोप हो जाएगा; जैसे– मन: + अभिराम = मनोभिराम

अन्य उदाहरण

मन: + अभिलाषा = मनोभिलाषा

मन: + अनुभूति = मनोनुभूति 

मन: + विज्ञान  = मनोविज्ञान

मन:+ नयन = मनोनयन   

मन: + योग = मनोयोग

मन: + विकार  = मनोविकार

मन: + दशा = मनोदशा

मन: + हर = मनोहर  

मन: + अनुकूल = मनोनुकूल

मन: + अनुसार = मनोनुसार

पर: + अक्षि = परोक्ष 

मन: + वेग = मनोवेग

मन: + वृत्ति = मनोवृत्ति

अन्य: + अन्य  = अन्योन्य

मन: + भावना  = मनोभावना

मन: + धारा = मनोधारा

मन: + ज्ञ = मनोज्ञ 

मन: + ज  = मनोज

मन: + विनोद  = मनोविनोद 

मन: + बल = मनोबल

मन: + राम = मनोरम

मन: + मंथन = मनोमंथन

मन: + व्यथा = मनोव्यथा

मन: + नीत = मनोनीत

मन: + रथ = मनोरथ

मन: + निग्रह = मनोनिग्रह

मन: + भव = मनोभव 

‘यश’ से निर्मित शब्द

यश: + दा = यशोदा

यश: + भव = यशोभव    

यश: + गीत = यशोगीत    

यश: + वर्मन = यशोवर्मन

यश: + धरा = यशोधरा

यश: + गान = यशोगान

यश: + भूमि = यशोभूमि

यश: + वर्धन = यशोवर्धन 

‘पय:’ से निर्मित शब्द

पय: + धि = पयोधि 

पय: + धर = पयोधर

पय: + ज = पयोज 

पय: + निधि = पयोनिधि

पय: + द = पयोद 

‘तिर:’ से निर्मित शब्द

तिर: + धान = तिरोधान    

तिर: + भाव = तिरोभाव

तिर: + भूत = तिरोभूत

तिर: + हित = तिरोहित

‘पुर:’ से निर्मित शब्द

पुर: + हित = पुरोहित 

पुर: + धा = पुरोधा

पुर: + गामी = पुरोगामी 

पुर: + वाक् = पुरोवाक्

‘तेज:’ से निर्मित शब्द

तेज: + मय = तेजोमय    

तेज: + बल = तेजोबल

तेज: + मूर्ति = तेजोमूर्ति

तेज: + रूप = तेजोरूप

‘सर:’ से निर्मित शब्द

सर: + ज = सरोज    

सर: + कार = सरोकार

सर: + रूह = सरोरूह 

सर: + वर = सरोवर 

‘शिर:’ से निर्मित शब्द

शिर: + भाग = शिरोभाग   

शिर: + भूषण  = शिरोभूषण

शिर: + रेखा = शिरोरेखा

शिर: + मणि = शिरोमणि

शिर: + धार्य = शिरोधार्य 

‘तम:’ से निर्मित शब्द

तम: + गुण = तमोगुण     

तम: + वृत्ति = तमोवृत्ति

तम: + भाव = तमोभाव 

‘वय:’ से निर्मित शब्द

वय: + वृद्ध = वयोवृद्ध

वय: + वेग = वयोवेग

‘नभ:’ से निर्मित शब्द

नभ: + मंडल = नभोमण्डल

नभ: + भाग = नभोभाग 

‘अध:’ से निर्मित शब्द

अध: + भाग = अधोभाग   

अध: + वस्त्र = अधोवस्त्र

अध: + मुखी = अधोमुखी 

अध: + गति = अधोगति

अध: + गामी = अधोगामी

अध: + हस्ताक्षरकर्ता  = अधोहस्ताक्षरकर्ता 

’रज:’ से निर्मित शब्द

रज: + गुण = रजोगुण     

रज: + दर्शन = रजोदर्शन

रज: + भाव = रजोभाव

रज: + दर्शन = रजोदर्शन 

रज: + निवृत्ति  = रजोनिवृत्ति 

‘उर:’ से निर्मित शब्द

उर: + ज = उरोज (स्तन)

उर: + भाग = उरोभाग 

नियम–2 यदि प्रथम शब्द का अंतिम वर्ण ‘अ/आ’ स्वर को छोड़कर अन्य कोई स्वर (इ, ई, उ, ऊ) के बाद विसर्ग (:) आए तथा दूसरे शब्द का प्रथम वर्ण वर्गों का 3/4/5 वाँ वर्ण या य/र/ल/व/ह/कोई स्वर आ जाए तो विसर्ग (:) 'र्' में बदल जाएगा।

बहि: + अंग = बहिरंग

आयु: + वेद = आयुर्वेद 

आवि: + भाव  = आविर्भाव 

प्रादु: + भाव = प्रादुर्भाव

रति: + अंग = रतिरंग

ज्योति: + विद्  = ज्योतिर्विद् 

यजु: + वेद = यजुर्वेद 

यजु: + भाग = यजुर्भाग

बहि: + मुखी = बहिर्मुखी

बहि: + द्वंद्व = बहिर्द्वन्द्व

रति: + मुख = रतिर्मुख

धनु: + धर = धनुर्धर

आवि: + भूत = आविर्भूत

बहि: + भाग = बहिर्भाग

रति: + अंश = रतिरंश  

यजु: + विद्या = यजुर्विद्या 

धनु: + वेद = धनुर्वेद

धनु: + बाण = धनुर्बाण

धनु: + विद्या = धनुर्विद्या

ज्योति: + युक्त  = ज्योतिर्युक्त

ज्योति: + मय  = ज्योतिर्मय

यजु: + मंत्र = यजुर्मंत्र

आयु: + भाग = आयुर्भाग

आयु: + विज्ञान = आयुर्विज्ञान

आशी: + वचन = आशीर्वचन

मुहु: + मुहु = मुहुर्मुहु 

प्रादु: + भूत = प्रादुर्भूत

चतु: + भाग = चतुर्भाग

धनु: + धारी = धनुर्धारी

धनु: + ज्ञान = धनुर्ज्ञान 

चतु: + दिश = चतुर्दिश

चतु: + मास = चतुर्मास

आशी: + वाद  = आशीर्वाद

●  नियम–3 यदि प्रथम शब्द के अंतिम वर्ण 'अ/आ' स्वर के बाद विसर्ग (:) आए तथा दूसरे शब्द का प्रथम वर्ण 'अ' को छोड़कर अन्य कोई स्वर (आ/इ/उ/ए) आए तो विसर्ग (:) का लोप हो जाता है (यहाँ ‘अ:’, ’ओ’ में नहीं बदलता है।) और एक ही शिरोरेखा के नीचे लिखा जाता है; जैसे–

यश: + इच्छा = यशइच्छा

तत: + एव = ततएव

तेज: + आभास = तेजआभास 

अत: + एव = अतएव

मन: + उच्छेद  = मनउच्छेद  

पय: + आदि = पयआदि   

नियम–4 यदि प्रथम शब्द के अंतिम वर्ण 'अ/आ' स्वर के बाद विसर्ग (:) आए तथा दूसरे शब्द का प्रथम वर्ण 'क/प' में से कोई एक वर्ण आ जाए तो विसर्ग (:) 'स्' में बदल जाएगा।

पुर: + कार = पुरस्कार

पुर: + कृत = पुरस्कृत     

नम: + कार = नमस्कार   

श्रेय: + कर = श्रेयस्कर    

पर: + पर = परस्पर

वृह: + पति = वृहस्पति 

भा: + पति = भास्पति

तिर: + कार = तिरस्कार 

भा: + कर = भास्कर 

वाच: + पति = वाचस्पति

भा: + कर = भास्कर 

तिर: + कृत = तिरस्कृत

नोट:– यदि प्रथम शब्द के अंतिम वर्ण 'अ/आ' स्वर के बाद विसर्ग (:) आए तथा दूसरे शब्द का प्रथम वर्ण 'क/प/फ/स' में से कोई एक वर्ण आ जाए तो विसर्ग (:) में कोई परिवर्तन नहीं होगा; अर्थात् विसर्ग (:) ज्यों का त्यों रहेगा; जैसे–  

प्रात: + काल = प्रात:काल

मन: + प्रसाद = मन:प्रसाद

मन: + कामना  = मन:कामना

पुन: + प्राप्ति = पुन:प्राप्ति  

वय: + क्रम = वय:क्रम

अन्त: + पुर = अन्त:पुर 

तप: + पूत = तप: पूत

पय: + पान = पय:पान

अन्त: + करण  = अन्त:करण

रज: + कण = रज:कण

अध: + पतन = अध:पतन  

पुन: + फलित  = पुन:फलित 

नियम–5 यदि प्रथम शब्द के अंतिम वर्ण के रूप में किसी भी स्वर के बाद विसर्ग (:) आए तथा दूसरे शब्द के आरंभ में च/छ/श आए तो विसर्ग (:) 'श्' में बदल जाता है; जैसे–

पुन: + चर्या = पुनश्चर्या

पुन: + चरण = पुनश्चरण 

ज्योति: + चक्र  = ज्योतिश्चक्र

मन: + चेतना = मनश्चेतना

तप: + चर्या = तपश्चर्या

यश: + शरीर = यशश्शरीर

पुन: + च = पुनश्च

पुर: + चरण = पुरश्चरण

अन्त: + चक्षु = अन्तश्चक्षु

मन: + चिकित्सा = मनश्चिकित्सा

यश: + शेष = यशश्शेष

आ: + चर्य = आश्चर्य

क: + चित् = कश्चित्  

हरि: + चन्द्र = हरिश्चन्द्र

नियम–6 यदि प्रथम शब्द के अंत में किसी भी स्वर के बाद विसर्ग (:) आए तथा दूसरे शब्द के आरंभ में 'त/स' वर्ण में से कोई एक वर्ण आए तो विसर्ग (:) 'स्' में परिवर्तित हो जाएगा; जैसे–

प्रात: + स्मरण  = प्रातस्स्मरण/प्रात:स्मरण 

चन्द्र: + तम = चन्द्रस्तम 

अन्त: + तल = अन्तस्तल

पुन: + स्मरण  = पुनस्स्मरण

इत: + तत: = इतस्तत: 

शिर: + त्राण = शिरस्त्राण 

नम: + ते = नमस्ते

मन: + ताप = मनस्ताप

बहि: + स्थल = बहिस्स्थल 

मन: + संताप  = मनस्संताप 

नियम–7 यदि प्रथम शब्द के अंत में किसी भी स्वर के बाद विसर्ग (:) आए तथा दूसरे शब्द के आरंभ में 'ट/ष' वर्ण में से कोई एक वर्ण आए तो विसर्ग (:) 'ष्' में परिवर्तित हो जाएगा; जैसे–

राम: + षष्ठ = रामष्षष्ठ    

चतु: +  षष्टि = चतुष्षष्टि (चौसठ) 

राम: + टीकेत  = रामष्टीकेत 

धनु: + टंकार = धनुष्टंकार 

नियम–8 यदि प्रथम शब्द के अंत में ‘अ/आ’ स्वर को छोड़कर अन्य किसी भी स्वर (इ:/उ:) के बाद विसर्ग आए तथा दूसरे शब्द के आरंभ में 'क/प/म' वर्ण आ जाए तो विसर्ग (:) 'ष्' में परिवर्तित हो जाएगा; जैसे–

बहि: + कृत =  बहिष्कृत

चतु: + पथ = चतुष्पथ

चतु: + कोण = चतुष्कोण 

आवि: + कृत = आविष्कृत 

बहि: + कार = बहिष्कार

चतु: + काष्ठ = चतुष्काष्ठ

चतु: + पद = चतुष्पद

वपु: + मान् = वपुष्मान् 

ज्योति: + मति  = ज्योतिष्मति

चतु: + पाद = चतुष्पाद    

आवि: + कार  = आविष्कार

विशेष– ‘नीरज और नीरव’ शब्दों में संधि तथा संयोग दोनों के नियम लगते हैं एवं दोनों ही शुद्ध है; क्योंकि दोनों के शुद्ध होने की रचना अलग-अलग है।

नि: (रहित) + रज (धुल) = नीरज (धुल रहित)

नीर (जल) + ज (जन्म) = नीरज (कमल)


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