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सामान्य विज्ञान: मानव रोग एवं उनका उपचार

मानव रोग एवं उनका उपचार

मानव रोग (Human Disease) :-

- सामान्य शारीरिक परिस्थितियों एवं कार्यों का न हो पाना ही रोग है।

- आनुवंशिक कारणों, पोषण संबंधी समस्याओं, शारीरिक-क्रियात्मक विकारों या किसी संक्रमण के कारण सामान्य शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक क्रियाओं में उत्पन्न बाधा को ही रोग कहते हैं।

शब्दावली (Definitions) :- 

रोगजनक (Pathogen) –

- वह सूक्ष्मजीव (Microorganism) जो रोग उत्पन्न करता है, रोगकारक/रोगजनक (Pathogen) कहलाता है। उदाहरण – प्लाज़्मोडियम मलेरिया रोग का रोगजनक।

रोगवाहक (Vector) –

- ऐसे जीव जो किसी रोगकारक को अपने शरीर में पोषण (Nutrition) एवं आवास (Habitat) प्रदान करते हैं तथा इनके फैलने में भी सहायक होते हैं। उदाहरण – मादा एनोफिलीज़ मच्छर मलेरिया की रोगवाहक।

परजीवी (Parasites) –

- ऐसे जीव जो किसी दूसरे जीव के शरीर में या शरीर पर रहकर भोजन व आवास प्राप्त करते हैं तथा सामान्यतया रोग भी उत्पन्न करते हैं, परजीवी कहलाते हैं।

परपोषी (Host) – 

- ऐसे जीव जो किसी परजीवी को पोषण (Nutrition) एवं आवास प्रदान करते हैं, परपोषी कहलाते हैं।

आशय (Reservoir) – 

ऐसे जीव जो किसी परजीवी (Parasite) को अपने शरीर पर आश्रय तो देते हैं लेकिन स्वयं उससे प्रभावित नहीं होते हैं तथा ये इस परजीवी को फैलाने में सहायक होते हैं। उदाहरण – फल चमगादड़ (Fruit Bat) निपाह वायरस का जीव आशय है।

वाहक (Carrier) – 

ये ऐसे जीव हैं जो किसी रोगजनक जीव को एक स्थान से हमारे भोजन एवं जल तक स्थानांतरित करते हैं। उदाहरण – मक्खी (House Fly), हैजा (Cholera) की वाहक है।

इन्टरफेरॉन – 

- ये प्रोटीन से बने होते हैं।

- जब शरीर में वायरस संक्रमण (Infection) होता है तो कोशिकाओं (Cells) द्वारा इसका स्रवण (Secretion) किया जाता है, जिससे संक्रमण (Infection) में ज्यादा प्रसार ना हो।

टीका (Vaccine) – 

टीका किसी रोग के प्रति हमारे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) को प्रेरित करता है, जिससे उस रोग को उत्पन्न करने वाले रोगजनक (Pathogen) के लिए हमारे शरीर में एंटीबॉडी का निर्माण हो जाता है।

- टीके (Vaccine) केवल रोग से बचाव करते हैं, इलाज नहीं।

- वैक्सीन सामान्यतया दो प्रकार की होती है – 

  (i) सक्रिय (Active) (ii) निष्क्रिय (Passive)

 

सक्रियटीका 

(Active Vaccine)

निष्क्रियटीका 

(Passive Vaccine)

-  इनमें रोगकारक को मृत (Dead) या निष्क्रिय करके अथवा इसके किसी भाग को हमारे शरीर में प्रवेश कराया जाता है, जिससे हमारे शरीर में एंटीबॉडी निर्माण होता है।

-  इनमें पहले से निर्मित एंटीबॉडी को शरीर में डाला जाता है।

-  ये वैक्सीन सामान्यतया जीवनभर सुरक्षा देती है। उदाहरण–  पोलियो वैक्सीन, कोविड वैक्सीन

- ये कुछ समय तक ही सुरक्षा देते हैं  उदाहरण–  टिटेनस वैक्सीन

कोविड-19 में प्रयुक्त वैक्सीन्स के प्रकार – 

(i)  निष्क्रिय वायरस आधारित -

- इस टीके में SARS-CoV-2 वायरस को निष्क्रिय करके व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कराया जाता है जिससे व्यक्ति के शरीर में इस वायरस के प्रति एंटीबॉडीज़ का निर्माण होता है।

- उदाहरण– सिनोफार्म, सिनोवैक, कोवैक्सीन (प्रथम स्वदेशी कोविड वैक्सीन) भारत बायोटेक द्वारा निर्मित।

(ii) m-RNA आधारित वैक्सीन – 

- इनमें वायरस RNA का ही छोटा-सा भाग हमारे शरीर में प्रवेश कराया जाता है। जब RNA कोशिकाओं में पहुँच कर प्रोटीन निर्माण (जो वायरस में होता है।) करता है तो इस विजातीय प्रोटीन के प्रति एंटीबॉडीज़ का निर्माण होता है। m-RNA आधारित वैक्सीन का प्रयोग पहली बार मनुष्यों में किया जा रहा है।

- उदाहरण – मॉडर्ना, फाईज़र।

(iii)     वेक्टर आधारित वैक्सीन – 

- वेक्टर आधारित वैक्सीन में एडीनो वायरस का प्रयोग करते हुए SARS-COV-2 वायरस के स्पाइक प्रोटीन्स को मानव शरीर में पहुँचाया जाता है, जिसके प्रति हमारे शरीर में एंटीबॉडीज़ का विकास होता है।

- उदाहरण – 

- ऑक्सफॉर्ड-एस्ट्राजेनेका – भारत में ‘कोविशील्ड’ के नाम से सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा उत्पादित।

- स्पूतनिक-V

- जॉनसन एंड जॉनसन

(iv)     प्रोटीन आधारित वैक्सीन –

- स्पाइक प्रोटीन को वैक्सीन के रूप में शरीर में प्रवेश कराया जाता है, इस प्रोटीन को एंटीजन समझ कर हमारा शरीर एंटीबॉडी का निर्माण करता है।

- उदाहरण – नोवावैक्स (U.S.A. Based)

संक्रामक रोग :-

बैक्टीरिया जनित रोग

रोग

रोगकारक

लक्षण

उपचार /परीक्षण /वैक्सीन

टी.बी./ट्यूबरक्यूलोसिस/तपेदिक

मायकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्यूलोसिस

सामान्यतया फेफड़े (Lungs) प्रभावित, अन्य अंगों में भी संक्रमण हो सकता है। लम्बे समय तक खाँसी (Cough), वजन में कमी, हल्का बुखार, भूख न लगना।

परीक्षण – मेन्टॉक्स परीक्षण/ट्यूबरक्यूलिन टेस्ट।

उपचार – एंटीबायोटिक दवाएँ 

- MDR थैरेपी (Multiple Drug Resistant T.B.) में एक साथ अलग-अलग प्रकार की एंटीबायोटिक्स का प्रयोग।

- DOTS (Direct Observation Treatment Short Course)

टीका/वैक्सीन – B.C.G. (बैसीलस कामेट गुऐरिन)

टायफाइड/आंत्र-शोथ/Slow-Fever

/मियादी बुख़ार

साल्मोनेला टाईफी

सर्वप्रथम आँतों (Intestines) में संक्रमण, उल्टी-दस्त बुख़ार, अल्सर (Ulcer) होना, मल के साथ रक्त।

टेस्ट – विडाल टेस्ट।

उपचार – एंटीबायोटिक दवाएँ।

वैक्सीन – TAB-वैक्सीन – टायफाइड एवं पैराटायफॉइड A & B

हैजा/कॉलेरा

/विसूचिका

विब्रियो कॉलेरी (‘,’/कोमा की आकृति)

उल्टी-दस्त एवं तेज बुख़ार।

परीक्षण – मल-परीक्षण (Stool Test)

उपचार – एंटीबायोटिक दवाएँ, ORS घोल (Oral Rehydration Solution)

वैक्सीन – ड्यूकोरल टीका।

डिफ़्थीरिया/गलघोंटू

कोर्निबैक्टीरियम डिफ़्थीरियाई

इसमें गले व श्वसन पथ में संक्रमण से श्वासनली (Trachea) अवरुद्ध हो जाती है जिससे श्वास लेने में कठिनाई होती है।

परीक्षण – शिक टेस्ट (Schick Test)

उपचार – एंटीबायोटिक दवाएँ।

वैक्सीन – D.P.T. वैक्सीन

परट्यूसिस/कालीखाँसी/100-Days Cough/कुकर खाँसी

हीमोफिलस या बोर्डेटेला परट्यूसिस

तेज एवं लम्बे समय तक चलने वाली खाँसी जिसमें खाँसते समय बच्चे के गले से कुत्ते के पिल्ले जैसी आवाज उत्पन्न होती है।

परीक्षण – लक्षण देखकर।

उपचार – एंटीबायोटिक दवाएँ।

वैक्सीन – D.P.T.

टिटनेस (Tetanus) / Lock Jaw

क्लोस्ट्रीडियम टिटेनाई

 

ये बैक्टीरिया मांसपेशियों (Muscles) की गतियों को प्रभावित करता है। पूरे शरीर में सेप्सिस (Sepsis-संक्रमण पूरे शरीर में) का खतरा जबड़े की पेशियाँ प्रभावित होने से मुँह खुल नहीं पाता है।

उपचार – एंटीबायोटिक दवाएँ 

वैक्सीन -  D.P.T., ATS (एंटी टिटनेस सीरम)

 

बोटूलिज़्म/ख़तरनाक खाद्यविषाक्तता

क्लोस्ट्रीडियम बोटुलिनम (अवायवीय बैक्टीरिया)

उल्टी-दस्त, तंत्रिका तंत्र (Nervous System) तथा पेशियों पर प्रभाव, उपचार न मिलने पर मृत्यु।

उपचार – एंटीबायोटिक दवाएँ, एन्टीटॉक्सिन्स।

एंथ्रेक्स

बैसीलस एंथ्रेसिस

त्वचा पर फफोले (Blisters), श्वसन पथ में संक्रमण, तेज बुख़ार।

उपचार – एंटीबायोटिक दवाएँ।

वैक्सीन – एंथ्रेक्स वैक्सीन।

प्लेग/काली मौत 

(Black Death)

येरसीनिया पेस्टिस।

तेज बुख़ार, शरीर के दूरस्थ हिस्सों में गेंग्रीन, जिससे ये भाग काले पड़ने लगते हैं।

उपचार – एंटीबायोटिक दवाएँ, सर्जरी।

भारत में वर्ष 1994 में सूरत (गुजरात) में फैला।

कुष्ठ रोग (Leprosy)

मायकोबैक्टीरियम लैप्रे

हल्का बुखार, शरीर के दूरस्थ हिस्से नष्ट होने लगते हैं।

परीक्षण – लेप्रोमिन टेस्ट

उपचार – एंटीबायोटिक दवाएँ।

वैक्सीन – B.C.G. 

निमोनिया (Pneumonia)

डिप्लोकोकस/स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनियाई

सामान्यतया बच्चों में तेज बुख़ार तथा फेफड़ों (Lungs) में संक्रमण जिससे श्वास लेने में कठिनाई होती है।

उपचार – एंटीबायोटिक दवाएँ।

टीका – P.C.V. (Pneumococcal Vaccine)

 गोनेरिया (Gonorrhea)

/सुजाक

नेस्सिरिया गोनोराई

जननांगों (Genital Organs) के पास घाव होना, तेज खुजली (Itching), जनन क्षमता में कमी।

उपचार – एंटीबायोटिक दवाएँ।

सिफलिस (Syphilis)

ट्रेपोनीमा पैलिडम

गोनेरिया के समान ही लेकिन इसमें व्यक्ति की याद्दाश्त (Memory) भी कमजोर होने लगती है।

उपचार – एंटीबायोटिक दवाएँ।

वायरस जनित रोग

रोग

रोगकारक

लक्षण

उपचार /परीक्षण /वैक्सीन

पोलियो मायलाईटिस

पोलियो वायरस (एंटीरो वायरस)

सर्वप्रथम आँतों में संक्रमण, तंत्रिकाओं (Nerves) एवं पेशियों (Muscles) को प्रभावित करता है, अस्थि मज्जा को भी नष्ट कर देता है जिससे व्यक्ति को विकलांगता हो जाती है।

उपचार – कोई उपचार नहीं।

वैक्सीन – I.P.V. (Inactivated Polio Vaccine), OPV (Oral Polio Vaccine) 

स्मॉल पॉक्स/चेचक/

बड़ी माता

वेरियोला वायरस

तेज बुख़ार + शरीर पर दाने (Blisters) जो ठीक हो जाने के बाद भी त्वचा पर गड्‌ढ़े के रूप में दिखाई देते थे।

 

चिकन पॉक्स/छोटीमाता

वैरीसेला वायरस

अत्यधिक तेज बुख़ार, जोड़ों में दर्द, त्वचा पर तरल से भरे दाने (Blisters) 

 

डेंगू (Dengue)

डेंगू वायरस, आरबो वायरस

(i) प्रथम अवस्था तेज बुख़ार + शरीर में दर्द। (हड्डी तोड़ बुख़ार 3-4 दिन तक)

(ii) द्वितीय अवस्था प्लेटलेट्स की संख्या में कमी।

-  B.P. में कमी, व्यक्ति को चक्कर आना, कमजोरी 

-  रक्त-स्रवण (Bleeding)

उपचार – लक्षणात्मक उपचार।                                           

परीक्षण – टॉर्निक्वेट टेस्ट (Torniquet Test)

हिपेटाईटिस/यकृत शोथ

हिपेटाइटिस वायरस 

(A, B, C, D व E)

यकृत (Liver) में सूजन (Swelling) व संक्रमण, वजन में कमी, बुख़ार रहना, पाचन क्रिया प्रभावित, ज्यादा संक्रमण होने पर मृत्यु।

उपचार – लक्षणात्मक उपचार।

वैक्सीन – हेपेटाइटिस वैक्सीन। (भारत में जेनेटिक इंजीनियरिंग से तैयार तथा वाणिज्यिक उत्पादन वाली प्रथम वैक्सीन)

हर्पिज रोग

HSV (हर्पिज सिम्प्लेक्स वायरस)

बुख़ार, होंठों पर या इनके किनारों पर घाव हो जाना।

टेस्ट – PCR (Polymerase Chain Reaction) टेस्ट

उपचार – एंटीवायरस दवाएँ

M – Measles/ख़सरा/

मीज़ल्स

रुबियोला वायरस

गले में संक्रमण, खाँसी-बुख़ार, शरीर पर लाल रंग के दाने (Blisters) उभरना।

उपचार – लक्षणात्मक उपचार।

वैक्सीन – MMR वैक्सीन।

M - Mumps/गलसुआ

पेरामिक्सो वायरस।

पेरोटिड लार ग्रंथि में सूजन, तेज बुख़ार, कभी-कभी जननांगों में सूजन जिससे व्यक्ति की जनन क्षमता समाप्त होती जाती है।

उपचार – लक्षणात्मक उपचार।

टीका – MMR वैक्सीन

रुबेला (Rubella)/

जर्मन ख़सरा

रुबेला वायरस।

सामान्य ख़सरे के समान लेकिन इसमें लक्षण ज्यादा समय तक, आँखों में सूजन।

उपचार – लक्षणात्मक 

टीका/वैक्सीन – MMR वैक्सीन

एड्स 

(AIDS – Acquired Immunodeficiency Syndrome)

HIV

व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) में कमी। (WBC की संख्या में कमी)

- वजन धीरे-धीरे कम होना।

- द्वितीयक संक्रमण

- Multiple Organ Failure– अंतत: मृत्यु।

परीक्षण – ELISA – (Enzyme Linked Immunosorbent Assay) टेस्ट, यह परीक्षण PCR तकनीक पर आधारित है।

- वेस्टर्न ब्लॉट परीक्षण।

उपचार  बचाव ही उपचार है।

रेबीज (Hydrophobia)/

जलभित्ति 

रैब्डो वायरस

रोगी व्यक्ति को तेज बुख़ार, उल्टी-दस्त, गले की पेशियों (Muscles) में तीव्र संकुचन (Contractions) होने से तेज दर्द, जो जल पीते समय और बढ़ जाता है। रोगी जल देखकर डरने लगता है। जिस जंतु ने काटा वह भी पागल हो जाता है तथा 2-3 सप्ताह में मृत्यु हो जाती है।

उपचार – एंटी-रेबीज़ दवाएँ, कुत्तों व अन्य जंतुओं का टीकाकरण।

इबोला वायरस रोग (EVD)

इबोला वायरस।

तेज बुख़ार, खाँसी-जुकाम, शरीर से रक्त स्रवण। 

उपचार – लक्षणात्मक उपचार।

निपाह (Nipah) रोग

निपाह वायरस।

तेज बुख़ार, उल्टी-दस्त, श्वसन में परेशानी।

उपचार – लक्षणात्मक (मृत्युदर अधिक)

स्वाइन फ़्लू

फ़्लू वायरस 

(H­1N1), H.N.-हीमेग्लूटिनिन न्यूरोमिनिडेज़

श्वसन पथ में संक्रमण, तेज बुख़ार एवं जुक़ाम।

उपचार – लक्षणात्मक उपचार।

वैक्सीन – स्वाइन फ़्लू वैक्सीन।

 

MERS (Middle East Respiratory Syndrome)

मर्स कोरोना वायरस।

श्वसन पथ में संक्रमण।

 

उपचार – लक्षणात्मक।

 

COVID-19

SARS-CoV-2 वायरस

तेज बुख़ार, श्वसन पथ एवं फेफड़ों में संक्रमण, रक्त में O2 का स्तर कम होना, खाँसी एवं जुकाम।

 

परीक्षण – RT-PCR (रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन पॉलीमरेज चेन रिएक्शन) 

- रेपिड एंटीजन-एंटीबॉडी टेस्ट। (Ig-G, Ig-M)

उपचार – लक्षणात्मक उपचार 

- रेमेडेसिविर (एंटीवायरल ड्रग्स)

- प्लाज़्मा थैरेपी (अभी मान्य नहीं है।)

- 2-D-G (DRDO द्वारा विकसित)

- विटामिन-C (इम्युनिटी बढ़ाता है।)

वैक्सीन – कोवैक्सिन, कोविशील्ड, स्पूतनिक-V, जॉनसन एंड जॉनसन, सिनोफार्म, सिनोवेक, नोवावैक्स, जायकोव-D, मॉडर्ना, फाइजर।

प्रोटोजोआ जनित रोग

रोग

रोगकारक

लक्षण

उपचार /परीक्षण /वैक्सीन

मलेरिया

-   प्लाज़्मोडियम – (Pl वाइवेक्स, Pl फैल्सीपेरम (सबसे घातक), Pl ओवेल, Pl मलेरी)

-   संक्रमित मच्छर के काटने से

-   रात्रि में तेज बुख़ार के साथ कंपकंपी (Shivering) 

-   लम्बे समय तक संक्रमण रहने पर एनीमिया।

-   RBC की संख्या में कमी, यकृत (Liver) में संक्रमण।

परीक्षण – Blood Test

उपचार – सिनकोना वृक्ष की छाल से प्राप्त कुनैन सल्फेट।

 

 

अमीबीय पेचिश (Amoebic Dysentery)

एण्ट अमीबा हिस्टोलाईटिका

उल्टी-दस्त, तेज बुख़ार, आंत्रीय अल्सर, मल के साथ रक्त

परीक्षण – मल परीक्षण (Stool Test)

उपचार – एंटीबायोटिक दवाएँ एवं ORS विलयन।

लीशमानियासिस/काला अजार/Black-fever 

लीशमानिया डोनोवानी

बुख़ार, RBC नष्ट होने लगती है, शरीर पर काले रंग के दाने (Blisters)

उपचार – एंटीबायोटिक दवाएँ।

ट्रिपनोसोमिएसिस (अफ्रीकन)/निद्रारोग 

ट्रिपेनोसोमा ब्रूसी गैम्बियेन्स

व्यक्ति (रोगी) में जैविक घड़ी (Biological Clock) प्रभावित होती है जिससे रोगी को नींद ज्यादा आती है।

उपचार – एंटीबायोटिक दवाएँ।

ट्रिपनोसोमिऐसिस (अमेरिकन)/चाग़ास रोग 

ट्रिपनोसोम क्रूज़ाई

‘चागोमा’ (Local Swelling) का विकास, बुख़ार, उल्टी-दस्त।

उपचार – एंटीबायोटिक दवाएँ।

 

कृमि (Nematodes) जनित रोग

रोग

रोगकारक

लक्षण

उपचार /परीक्षण /वैक्सीन

फाइलेरिया/हाथीपाँव (Elephantiasis)/

श्लीपद/फील पाँव

वुचेरेरिया बेन्क्रोफ़्टाई

ये लसिका ग्रंथियों (Lymph Nodes) में संक्रमण करते हैं तथा पैरों में लसिका का जमाव होने लगता है, जिससे पाँवों में सूजन आ जाती है।

उपचार – कृमिनाशक दवाएँ, सर्जरी

एस्केरिएसिस 

एस्केरिस

आँतों (Intestines) में संक्रमण होने से पेट दर्द होना, वजन नहीं बढ़ना।

उपचार – कृमिनाशक दवाएँ।

नारु रोग/ड्रेकनक्यूलोसिस

ड्रेकनक्यूलस मेडीनेंसिस

इसमें कृमि/निमेटोड शरीर पर बने फफोले (Blister) से धीरे-धीरे बाहर निकलता है। सामान्य बुख़ार, वजन में कमी।

उपचार – कृमिनाशक दवाएँ।

टीनिएसिस

टीनिया सोलियम/फीता कृमि (Tape Worm)

आँतों में संक्रमण, बुख़ार, वजन में कमी, यदि ये रक्त से होकर मस्तिष्क तक पहुँच जाए तो व्यक्ति की मृत्यु।

उपचार – कृमि नाशक दवाएँ।

कवक जनित रोग

रोग

रोगकारक

लक्षण

उपचार /परीक्षण /वैक्सीन

म्यूकरमाइकोसिस (Black Fungus)

म्यूकर, राइजोपस जैसे कवकों से।

यह फंगस/कवक ऐसे व्यक्तियों में जल्दी संक्रमण करता है, जिनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी हो, ज्यादा समय से स्टीरॉइड का सेवन कर रहे हो या डायबिटीज से पीड़ित हो।

- इनमें श्वसन पथ में संक्रमण होता है जिससे आँखें, जबड़े तथा फेफड़े नष्ट होने लगते हैं।

उपचार – एम्फोटेरिसिन-B, सर्जरी

दाद (Ring Worm)

ट्रायकोडर्मोफायटॉन कवक

त्वचा में संक्रमण।

-

एथलीट फुट

एपिडर्मोफायटॉन कवक

पैरों में संक्रमण।

-

मोनिलियासिस

केण्डिडा एल्बीकेंस

नाखूनों में संक्रमण

-

 गंजापन

यीस्ट

बाल अधिक झड़ना

-

गैर संक्रामक रोग (Non-Contagious Disease) :- 

(i)  डायबिटीज़ मेलाइटस/मधुमेह – 

- अग्न्याशय (Pancreas) की -Cells से इंसुलिन हॉर्मोन का स्रवण होता है जो हमारे रक्त में शर्करा के स्तर को कम करता है।

- मधुमेह रोग में इस हॉर्मोन की कमी से रक्त में शर्करा स्तर बढ़ने लगता है।

- मधुमेह के दो मुख्य प्रकार – Type-I & Type-II

 

Type-I

Type-II

(IDDM) इंसुलिननिर्भरडायबिटीज़मेलाइटस

(NIDDM – Non-insulin-dependent diabetes mellitus)

- इसमें -Cells नष्ट हो जाने से शरीर में इंसुलिन की कमी हो जाती है।

- इसमें इंसुलिन व -Cells तो पर्याप्त मात्रा में लेकिन शरीर की Cells पर इंसुलिन का प्रभाव नहीं।

- इसे ‘Juvenile Diabities’ भी कहते हैं। (कम उम्र में होने के कारण) 

- ज्यादा वजन, मोटापा एवं आनुवंशिक कारणों से।

- डायबिटीज व्यक्ति में घाव (Wound) भर नहीं पाते, बार-बार मूत्र आना, ज्यादा भूख व प्यास लगना, वजन में कमी आना, कम दिखाई देना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।

- नियमित व्यायाम एवं स्वस्थ जीवन शैली द्वारा डायबिटीज को नियंत्रित किया जा सकता है।

(ii) कैंसर रोग/कर्क रोग – 

- हमारे शरीर में कोशिकाओं की अनियमित एवं अनियंत्रित तथा अस्वाभाविक वृद्धि को ही कैंसर कहते हैं। 

- ऐसे पदार्थ जो कैंसर उत्पन्न करने से सहायक हो ‘कार्सिनोजन्स’ कहलाते हैं।

  जैसे – रासायनिक उर्वरक, X-किरणें, गामा-विकिरणें, कार्बन युक्त धुआँ, प्रदूषित वायु, जल में उपस्थित भारी तत्त्व (पारा, आर्सेनिक)

- ये कार्सिनोजन्स हमारे शरीर में निष्क्रिय ओंको जीन्स (Onco genes) को सक्रिय कर देते हैं।

- शरीर के एक भाग से अन्य भागों तक कैंसर का प्रसार – मेटास्टेसिस

- त्वचा का कैंसर – मेलानोमा/कार्सिनोमा

- रक्त कैंसर – ल्यूकेमिया

- आंतरिक अंगों का कैंसर – सार्कोमा

- लसिका ग्रंथियों का कैंसर – लिम्फोमा

- कैंसर का उपचार करने हेतु कीमोथैरेपी तथा रेडियोथैरेपी का प्रयोग करते हैं।

- समस्थानिक (Isotopes) Co60, I131, P32 का प्रयोग।

प्रदूषण जनित रोग :-

तत्त्व/यौगिक

रोग

Hg/पारा/मर्करी

मिनीमाटा रोग 

Cd/कैडियम 

इटाई-इटाई रोग (जोड़ों में तेज दर्द)

As/आर्सेनिक

ब्लैक फुट रोग

नाइट्रेट (No-3)

पेयजल में नाइट्रेट की अधिकता से 

F/फ्लोराइडलवण

पेयजल में फ़्लोराइड की अधिक मात्रा का सेवन करने से है। (फ्लोरोसिस), दाँतों का पीलापन, अस्थियों (Bones) का मुड़ जाना।

आनुवंशिक रोग :-

- माता-पिता के गुणसूत्र (Chromosomes), जीन, DNA आदि में विकार या परिवर्तन होने से बच्चों में वंशानुगत होने वाले रोग आनुवंशिक रोग कहलाते हैं।

गुणसूत्रों की संख्या में परिवर्तन –

1. अलिंग गुणसूत्रों (Autosomes) की संख्या में परिवर्तन –

(i) डाउन सिंड्रोम/मंगोलिज़्म – 

- इसमें रोगी व्यक्ति में 21वें गुणसूत्र की अतिरिक्त प्रति (Extra Copy) पाई जाती है अर्थात् 21वें गुणसूत्र की ट्राईसोमी। (कुल 47 गुणसूत्र)

- व्यक्ति का कद छोटा, आँखें चौड़ी, ऊपरी होंठ कटा हुआ, कठोर तालु (Hard Palate) में दरार, मानसिक विकास अवरुद्ध। (मंगोल मूर्खता)

(ii) पटाऊ सिंड्रोम – 13वें गुणसूत्र की ट्राईसोमी

(iii) एडवर्ड सिंड्रोम – 18वें गुणसूत्र की ट्राईसोमी

- दोनों ही रोगों में बच्चे के चेहरे (नाक, आँख, जबड़े तथा होंठों) का विकास नहीं हो पाता है।

- ऐसे बच्चे या तो गर्भावस्था में ही मर जाते हैं अथवा जन्म के कुछ समय बाद मर जाते हैं।

2. लिंग गुणसूत्रों की संख्या में परिवर्तन – 

(i) क्लाइनेफेल्टर सिंड्रोम (44+XXY) – ‘X’ गुणसूत्र की ट्राईसोमी 

- ऐसे पुरुष में मादा के लक्षण

- ऐसे पुरुष बंध्य (Sterile)

(ii) जैकब सिंड्रोम (44+XYYY) – ‘Y’ गुणसूत्र की ट्राई/टेट्रासोमी 

- ऐसे पुरुषों में लैंगिक लक्षणों का विकास अधिक।

- आपराधिक प्रवृत्ति के।

(iii) टर्नर सिण्ड्रोम (44+XO) – ‘X’ गुणसूत्र की मोनोसोमी।

- मादा के लैंगिक लक्षणों का विकास नहीं।

- ये मादा बंध्य।

(iv) सुपरफ़ीमेल/मेटाफ़ीमेल (44+XXXX) – ‘X’ गुणसूत्र की टेट्रासोमी 

- मादा के लैंगिक लक्षणों का विकास अधिक।

गुणसूत्रों की संरचना में परिवर्तन–

1. लिंग गुणसूत्र की संरचना में परिवर्तन –

(i) हीमोफिलिया/Bleeder’s Disease/शाही रोग –

- इस रोग में X गुणसूत्र पर विकृत जीन होने से रोगी व्यक्ति में रक्त का थक्का नहीं बन पाता है। 

- रोगी व्यक्ति में कुछ स्कंदन कारक (Blood Clotting Factors) का निर्माण नहीं हो पाता है।

- 44+XY – सामान्य नर

- 44+XY – रोगी नर

- 44+XX – सामान्य मादा

- 44+XX – वाहक मादा

- 44+XX - रोगी मादा  

(ii) वर्णान्धता (Color Blindness) – 

- इसमें भी X गुणसूत्र पर विकृत जीन होने से व्यक्ति वर्णांध होता है। ऐसे व्यक्ति रंगों में विभेदन नहीं कर पाते हैं। (मुख्यतया लाल व हरे में)

2. अलिंग गुणसूत्रों की संरचना में परिवर्तन –

(i) थैलेसीमिया तथा सिकल सेल एनीमिया – दोनों रोगों में RBC में विकृत Hb का निर्माण, जिसमें O2 परिवहन की क्षमता घट जाती है।

(ii) क्राई-डू-कैट  बच्चा रोते समय बिल्ली के जैसी आवाज उत्पन्न करता है।

(iii) गैलेक्टोसीमिया – बच्चे में दूध पचाने की क्षमता नहीं होती है।

(iv) एलकेप्टोन्यूरिया – रोगी का मूत्र (Urine) वायु के संपर्क में आते ही काला पड़ जाता है। (हीमोजेन्टिसिक एसिड के कारण)

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