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सामान्य विज्ञान: मानव कंकाल तंत्र

मानव कंकाल तंत्र

ऑस्टियोलॉजी में हड्डियों का अध्ययन किया जाता है।

हड्डियाँ कंकाल संयोजी ऊतक (Skeleton Connective Tissue) है। 

हड्डियाँ मुख्यत: कैल्सियम एवं फॉस्फोरस की बनी होती हैं।

हड्डियों की वृद्धि एवं विकास हेतु विटामिन-D (कैल्सिफेरॉल) आवश्यक होता है। 

वयस्क में 206 हड्डियाँ होती हैं।

क्लेविकल हड्डी (कॉलर-बॉन) को सुन्दरता की हड्डी कहा जाता है।

शरीर की सबसे लम्बी हड्डी – फीमर (जाँघ)

शरीर की सबसे छोटी हड्डी – स्टेपीज (कान)

शरीर की सबसे मजबूत हड्डी – मैण्डीबल (निचले जबड़े में)

सर्वाधिक वज़न सहन करने वाली हड्डी – टीबिया

मायोलॉजी में मांसपेशियों का अध्ययन किया जाता है।

शरीर में 639 मांसपेशियाँ होती हैं।

मायोग्लोबिन के कारण मांसपेशियों का रंग लाल होता है।

सबसे बड़ी मांसपेशी– ग्लूटियस मैक्सीमस

मांसपेशियों में एक्टिन एवं मायोसीन नामक प्रोटीन पाए जाते हैं।

शरीर की सबसे लम्बी मांसपेशी – सार्टोरियस (जाँघ)

शरीर की सबसे छोटी मांसपेशी – स्टेपेडियस (कान)

शरीर की सबसे मजबूत मांसपेशी – मैसेटर (जबड़े)

आँखों की मांसपेशियाँ सबसे सक्रिय मांसपेशियाँ हैं।

हृदय की मांसपेशियाँ सबसे व्यस्त मांसपेशियाँ हैं।

बॉन बैंक (Bone Bank) में बॉन को 40oC से 70oC ताप पर सुरक्षित रखा जाता है।

अस्थिमज्जा (Bone-Marrow) :- 

बड़ी एवं लम्बी हड्डियों में पाई जाने वाली गुहा (Cavity), अस्थि गुहा (Bone Cavity) कहलाती है तथा अस्थिगुहा में पाया जाने वाला अर्द्धतरल पदार्थ अस्थि मज्जा कहलाता है।

अस्थिमज्जा मुख्यत: दो प्रकार का होता है-

(i) लाल अस्थि मज्जा (Red-Bone-Marrow) – लाल अस्थिमज्जा बड़ी हड्डियों के किनारों वाले भागों में पाया जाता है, जहाँ मुख्यत: RBC, बिम्बाणुओं आदि का निर्माण होता है।

(ii) पीला अस्थिमज्जा (Yellow-Bone-Marrow) – यह बड़ी हड्डियों के बीच में पाया जाता है, जहाँ मुख्यत: WBC बनती है।

हड्डियों से संबंधित रोग :- 

(1) गठिया (Gout) –

इसमें हड्डियों के जोड़ों में सूजन आ जाती है तथा दर्द होता है।

रक्त में यूरिक अम्ल की मात्रा बढ़ने से गठिया होता है।

गठिया रोग को ‘अमीरों का रोग’ कहा जाता है।

(2) फ्लोरोसिस –

भूमिगत जल में फ्लोराइड की मात्रा अधिक होने से यह रोग हो जाता है तथा ऐसे जल का सेवन करने से दाँत एवं हड्डियाँ प्रभावित हो जाती हैं।

दाँतों पर भूरे-पीले रंग के धब्बे बन जाते हैं तथा रीढ़ की हड्डी कमजोर होकर झुकने लग जाती है।

(3) ऑस्टियो-ऑर्थराइटिस – 

हड्डियों के जोड़ों में दर्द होता है एवं सूजन आ जाती है, जिससे चलना-फिरना भी मुश्किल हो जाता है।

(4) रिकेट्स (Rickets) /सूखा रोग –

बच्चों में विटामिन-D की कमी से हड्डियाँ कमजोर होकर मुड़ने लग जाती हैं।

(5) ऑस्टियोमलेशिया (Osteomalasia) – 

वयस्क में विटामिन-D की कमी से हड्डियाँ कमजोर होकर मुड़ने लग जाती हैं।

(6) ऑस्टियोमाइलाइटिस – 

यह दर्द युक्त हड्डियों का संक्रमण है।

(7) ऑस्टियोपोरोसिस – 

इसमें हड्डियाँ छिद्रित होकर मुड़ने लग जाती हैं।

(8) प्राथमिक आस्टियोपोरोसिस – 

ये दो प्रकार का होता है-

(i) स्टेप-I ऑस्टियोपोरोसिस –

यह मुख्यत: महिलाओं में रजोनिवृत्ति के बाद होता है तथा महिलाओं में एस्ट्रोजन हॉर्मोन की कमी या कैल्सियम की कमी को दर्शाता है।

(ii) स्टेप-II ऑस्टियोपोरोसिस – 

यह 75 वर्ष की आयु से अधिक पुरुषों एवं महिलाओं में होता है।

(9) द्वितीय ऑस्टियोपोरोसिस –

यह किसी भी उम्र के पुरुषों एवं महिलाओं में कैल्सियम की कमी से हो सकता है।

हड्डियों की संधियाँ :- 

चल/पूर्ण संधि – 

वे संधियाँ जो उन हड्डियों में पाई जाती हैं, जिनमें गति होती है।

चल/पूर्ण संधियाँ – 

1. कंदूक खल्लिका संधि (बॉल एंड सॉकेट)    

2. सैंडिल संधि

3. ग्लाइडिंग/विसर्पी संधि            

4. हिंज/कब्जा संधि

1. कन्दूक खल्लिका संधि (बॉल एण्ड सॉकेट) –

इस प्रकार की संधि में हड्डियाँ इस प्रकार जुड़ी रहती हैं, कि उन्हें सभी दिशाओं में आसानी से घुमाया जा सकता है। 

जैसे – कंधे, कूल्हे आदि में यह संधि पाई जाती है।

2. सैंडिल संधि – 

यह संधि बॉल एण्ड सॉकेट संधि का ही छोटा रूप होती है, जो मुख्यत: अँगूठे में पाई जाती है।

3. हिंज/कब्जा संधि - 

यह संधि खिड़की या दरवाजों में लगे कब्जों की तरह होती है, जिससे अंगों को केवल एक ही दिशा में घुमाया जा सकता है। 

जैसे – कोहनी, घुटने, अँगुलियों के पोरों में संधि पाई जाती है।

4. विसर्पी/ग्लाइडिंग संधि – 

इस प्रकार की संधि में हड्डियाँ एक-दूसरे पर फिसलते हुए गति करती हैं। 

जैसे – कलाई में यह संधि होती हैं।

कंकाल तंत्र को दो भागों में बाँटा जा सकता है :-

(1) अक्षीय कंकाल (Axial Skeleton) 

(2) उपांगीय कंकाल (Appendicular Skeleton)

(1) अक्षीय कंकाल –

अक्षीय कंकाल में कुल 80 हड्डियाँ होती हैं।

कशेरुक दण्ड में जन्म के समय 33 हड्डियाँ होती हैं।

प्रथम कशेरुक को एटलस कहा जाता है, जिससे सिर जुड़ा रहता है।

(2) उपांगीय कंकाल – 

उपांगीय कंकाल में कुल 126 हड्डियाँ होती हैं।

 

दोनों हाथों/अग्रपाद की हड्डियाँ

पैरों की हड्डियाँ

नाम

संख्या

नाम

संख्या

ह्यूमरस

2

फीमर

2

रेडियस अलना

4

पटेला

2

कॉर्पल्स (कलाई)

16

टीबिया-फिंबुला

4

मेटाकॉर्पल्स (हथेली)

10

टोर्सल्स

14

फैलेनजिस (उंगलियाँ)

28

मेटाटॉर्सल्स

10

 

 

फैलेनजिस

28

कुल हड्डियाँ

60

कुलहड्डियाँ

60

पसलियाँ (Ribs) – 

हमारे शरीर में कुल 24 (12 जोड़ी) पसलियाँ होती हैं।

1 से 7वीं जोड़ी की पसलियाँ ‘वास्तविक पसलियाँ’ कहलाती हैं।

8वीं जोड़ी से 10वीं जोड़ी की पसलियाँ ‘छद्म पसलियाँ’ कहलाती हैं अर्थात् ये पसलियाँ दूसरी पसलियों से आपस में जुड़ी रहती हैं।

11वीं एवं 12वीं जोड़ी की पसलियाँ ‘तैरती हुई पसलियाँ’ कहलाती हैं।

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