मानव पाचन तंत्र
पाचन (Digestion) :-
- पाचन वह प्रक्रिया है, जिसमें बड़े एवं जटिल पदार्थों को छोटे एवं सरल पदार्थों में तोड़ा जाता है।
- मनुष्य में पाचन के पाँच प्रमुख चरण होते हैं–
(i) अन्तर्ग्रहण
(ii) पाचन
(iii) अवशोषण
(iv) स्वांगीकरण (Assimilation)
(v) मलोत्सर्जन (Stool Excretion)
- मुखगुहा (Oral Cavity) में स्थित दाँत भोजन को काटने, चीरने एवं चबाने में सहायक होते हैं।
जीभ :-
- जीभ मांसपेशियों से बनी संरचना है, जो आधार से लिंगुअल फ्रेनुलम से जुड़ी रहती है।
- जीभ पर स्वाद कलिकाएँ पाई जाती हैं।
- पुरुषों की तुलना में महिलाओं में स्वाद कलिकाएँ अधिक होती है।
दाँत :-
- इनेमल शरीर का सबसे कठोर पदार्थ है, जो दाँतों पर आवरण के रूप में पाया जाता है तथा मुख्यत: कैल्सियम-फॉस्फेट व कैल्सियम कार्बोनेट का बना होता है।
- हमारी मुखगुहा में चार प्रकार के दाँत होते हैं-
1. कृतनक (Incisor)
2. रदनक (Canine)
3. अग्र चवर्णक (Pre-Molar)
4. चवर्णक (Molar)
(i) कृतनक -
- मनुष्य में कृतनक दाँत लगभग 6 माह की आयु में निकलते हैं।
- कृतनक दाँतों की कुल संख्या 8 होती हैं।
- दूसरा कृतनक (Second Incisor) हाथी में हाथीदाँत (गजदंत) के रूप में होता है।
(ii) रदनक –
- मांसाहारियों में रदनक दाँत अधिक विकसित होते हैं।
- मनुष्य में ये दाँत लगभग 16 से 20 माह की आयु में निकलते हैं।
- रदनक दाँतों की कुल संख्या 4 होती हैं।
(iii) अग्रचवर्णक -
- बच्चे के 10 से 11 वर्ष का होने के दौरान यह दाँत निकलते हैं।
- इन दाँतों की कुल संख्या 8 होती है।
(iv) चवर्णक दाँत –
- इन दाँतों की कुल संख्या 12 होती है।
- तृतीय चवर्णक (3rd Molar) को अक्ल दाढ़ (Wisdom Teeth) कहा जाता है।
- लार ग्रंथियों द्वारा बनाया गया टायलिन एंजाइम कार्बोहाइड्रेट के पाचन में सहायक होता है।
- ‘लाइसोसोम’ शरीर में भोजन के साथ आए हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करता है।
- आँसुओं में लाइसोजाइम एंजाइम पाया जाता है।
- मुखगुहा में बनी भोजन की लुगदी (लसलसा पदार्थ) ‘बोलस’ (Bolus) कहलाती है।
- मुखगुहा, ग्रसनी (Pharynx) में खुलती है।
- ग्रसनी से श्वास एवं भोजन दोनों ही गुजरते हैं।
- एपिग्लोटिस वॉल्व (घाटी-ढक्कन) भोजन के कणों को श्वासनली में जाने से रोकता है।
- भोजननली में कोई पाचक एंजाइम नहीं पाया जाता है अर्थात् भोजननली में पाचन संबंधी क्रिया नहीं होती है।
- मुँह का सामान्य pH लगभग 6.5 होता है।
- आमाशय का वह भाग जो भोजननली से जुड़ा रहता है, ‘कॉर्डियक आमाशय’ कहलाता है।
- आमाशय का मध्य भाग ‘फंडिक आमाशय’ कहलाता है।
- आमाशय का अंतिम भाग जो छोटी आँत से जुड़ा रहता है, पाइलोरिक आमाशय कहलाता है।
- आमाशय में पाई जाने वाली ऑक्सिन्टिक कोशिकाएँ हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCl) बनाती है।
Note – आमाशय का pH लगभग 1.5 से 2 होता है।
- HCl पेप्सिनोजन को पेप्सिन में बदलने तथा प्रौरेनिन को रेनिन में बदलने में सहायक होता है।
- पेप्सिन प्रोटीन के पाचन में जबकि रेनिन दूध के पाचन में सहायक होता है।
- गैस्ट्रिक लाइपेज वसा (Fat) के पाचन में सहायक होता है।
- अम्लीयता के उपचार में दी जाने वाली दवाइयाँ एण्टासीड्स कहलाती हैं। जैसे – मैग्नीशियम हाइड्रॉक्साइड (मिल्क ऑफ मैग्नीशिया)
- आमाशय की भीतरी सतह में जठर ग्रंथियाँ पाई जाती हैं, जो जठर रस का निर्माण करती हैं।
- आमाशय से भोजन छोटी आँत में जाता है।
छोटी आँत (Small Intestine) :-
- छोटी आँत की लम्बाई लगभग 5-6 मीटर होती है।
- छोटी आँत का प्रमुख कार्य भोजन का पाचन एवं अवशोषण करना है।
- छोटी आँत के मुख्यत: तीन भाग होते हैं-
(i) ग्रहणी (Duodenum)
(ii) मध्यांत्र (Jejunum)
(iii) शेषांत्र (Ileum)
Note –
- पित्तरस में कोई पाचक एंजाइम नहीं होता है।
- पित्तरस भोजन को क्षारीय माध्यम उपलब्ध करवाता है तथा वसा के पायसीकरण में सहायक होता है।
- जटिल वसा को सरल वसा में तोड़ना जिससे उसका पाचन आसानी से हो, ‘वसा का पायसीकरण’ कहलाता है।
बड़ी आँत (Large Intestine) -
- बड़ी आँत की लम्बाई लगभग 1 से 1.5 मीटर होती है।
- बड़ी आँत का प्रमुख कार्य अतिरिक्त पानी, खनिज, एंटीबायोटिक्स आदि का अवशोषण करना है।
- बड़ी आँत के मुख्यत: तीन भाग होते हैं-
(i) सीकम
(ii) कोलोन/कोलन
(iii) मलाशय
यकृत (Liver) :-
- यकृत, लार ग्रंथियाँ तथा अग्न्याशय प्रमुख पाचक ग्रंथियाँ हैं।
- यकृत शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि तथा सबसे बड़ा आन्तरिक अंग है।
Note – त्वचा शरीर का सबसे बड़ा अंग है।
- यकृत में यकृत-पालिकाएँ (Liver Loobes) पाई जाती हैं, जो यकृत की क्रियात्मक इकाई मानी जाती है।
- पित्तरस (Bile-Juice) का निर्माण यकृत में होता है जबकि संग्रहण पित्ताशय में किया जाता है।
- यकृत में Vitamin-A,D,E,K का संग्रहण भी होता है।
- हीपेटोलॉजी में यकृत का अध्ययन किया जाता है।
- अत्यधिक एल्कोहॉल के सेवन से यकृत प्रभावित होता है।
- एल्कोहल का अवशोषण आमाशय में होता है।
- पीलिया में यकृत प्रभावित होता है।
- यकृत की पुनरुद्भवन क्षमता (Regeneration Capacity) सर्वाधिक होती है।
- यकृत को शरीर की रसायनशाला भी कहा जाता है।
- यकृत विषैले पदार्थों को विषहीन बनाता है।
- यकृत अमोनिया को यूरिया में बदलता है।
- यकृत हीपैरिन का निर्माण भी करता है।
अग्न्याशय (Pancreases) :-
- यकृत के बाद शरीर की दूसरी सबसे बड़ी ग्रंथि अग्न्याशय है।
- अग्न्याशय एक मिश्रित ग्रंथि है।
- अग्न्याशय से अग्न्याशयी रस (Pancreatic Juice) बनता है, जिसे ‘पूर्ण-पाचक रस’ भी कहा जाता है।
- पूर्ण पाचक रस में मुख्यत: निम्नलिखित एंजाइम पाए जाते हैं-
(i) एमाइलेज – कार्बोहाइड्रेट के पाचन में सहायक।
(ii) ट्रिप्सीन – प्रोटीन के पाचन में सहायक।
(iii) लाइपेज – वसा (Fat) के पाचन में सहायक।
लार ग्रंथियाँ :-
- इसमें तीन प्रकार की लार ग्रंथियाँ पाई जाती हैं, यथा-
(i) पैरोटिड लार ग्रंथि (Parotid Slavery gland)
- यह ग्रंथि कान के ठीक नीचे स्थित होती है।
- गलसुआ (Mups) रोग में पैरोटिड लार ग्रंथि में सूजन आ जाती है।
(ii) सबलिंगुअल लार ग्रंथि (Sublingual)
- जीभ के नीचे स्थित होती है।
(iii) सबमेंडीबुलर लार ग्रंथि
- जबड़ों के बीच में स्थित होती है।
पित्तरस (Bile-Juice) :-
- पित्तरस (Bile Juice) का निर्माण यकृत की हिप्पटोसाइट्स कोशिकाओं द्वारा किया जाता है।
- पित्तरस में सोडियम बाईकार्बोनेट होता है, जिसके कारण पित्तरस क्षारीय प्रकृति का होता है।
- पित्तरस में पित्त वर्णक (बिलीरूबिन, बिलीवर्डिन) तथा पित्त लवण भी पाए जाते हैं।
- बिलीरूबिन, बिलीवर्डिन वर्णक RBC के अपघटन से बनते हैं तथा इन्हीं वर्णकों के कारण मल के रंग का निर्धारण होता है।
- इण्डोल एवं स्केटॉल यौगिकों के कारण मल में दुर्गंध आती है।
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