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राजस्थान भूगोल: जल संसाधन

जल संसाधन

● जल संसाधनों का योजनाबद्ध, समुचित एवं विवेकपूर्ण उपयोग करना ताकि भविष्य के लिए जल को सुरक्षित रखा जा सकें।

● पृथ्वी पर जीवन संभव जल की उपलब्धता के कारण ही है।

● जल का उपयोग सिंचाई, पेयजल, उद्योग व दैनिक घरेलू कार्य आदि में किया जाता हैं।

● प्राचीन काल से जल संरक्षण परम्परा चली आ रही है।

● भुवनदेव आचार्य की पुस्तक ‘अपराजित पृच्छा’ में बावड़ी के प्रकारों का उल्लेख मिलता हैं।

● कौटिल्य की पुस्तक अर्थशास्त्र में जल प्रबंधन का उल्लेख मिलता है।

● जूनागढ़ शिलालेख में चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा सुदर्शन झील के निर्माण का उल्लेख मिलता है।

पृथ्वी :-

● पृथ्वी का कुल क्षेत्रफल 51 करोड़ वर्ग किलोमीटर है।

● पृथ्वी पर जल मण्डल 70.08 प्रतिशत है, जिसका कुल क्षेत्रफल 36.17 करोड़ वर्ग किलोमीटर है।

● पृथ्वी पर स्थल मण्डल 29.02 प्रतिशत है, जिसका कुल क्षेत्रफल 14.83 करोड़ वर्ग किलोमीटर है।

● भूमध्य रेखा पृथ्वी को दो भागों में विभाजित करती है–

(i) उत्तरी गोलार्द्ध- 40 प्रतिशत जल मण्डल, 60 प्रतिशत स्थल मण्डल।

(ii) दक्षिणी गोलार्द्ध- 81 प्रतिशत जल मण्डल, 19 प्रतिशत स्थल मण्डल।

● जल मण्डल में महासागर, सागर, खाड़ियाँ, नदियाँ, तालाब, झीलें व अन्य जल संसाधन आते हैं।

● स्थल मण्डल में महाद्वीप, स्थलाकृति, पर्वत, पठार, मैदान व अन्य उच्चावच आते हैं।

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●  राजस्थान में देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 10.4 प्रतिशत है जबकि जल की उपलब्धता 1.61 प्रतिशत है।

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राजस्थान में भूमिगत जल की ब्लॉकवार स्थिति :-

क्र. सं.

श्रेणी

वर्ष में ब्लॉकों की संख्या

2009

2013

2017

2020

2022

2023

1.

सुरक्षित

31

44

45

37

38

38

2.

अर्द्ध संकटग्रस्त

16

28

29

29

20

22

3.

संकटग्रस्त

25

09

33

23

22

23

4.

अत्यधिक दोहित

166

164

185

203

219

216

5.

लवणीय

1

3

3

3

03

03

योग

239

248

295

295

302

302

जल संरक्षण (Water Conservation) :-

●  जल प्रकृति की अनुपम देन है। 

●  जल संरक्षण/संसाधन किसी भी देश व राज्य की सामाजिक-आर्थिक विकास की प्राथमिक आवश्यकता है।

●  किसी स्थान पर वर्षा-जल का उचित जल प्रबंधन कर संग्रहण करना भी जल संरक्षण का हिस्सा है।

●  राजस्थान में जल संरक्षण के प्रति संवेदनशीलता परम्परागत रही है क्योंकि वर्षा की कमी व सूखे की आशंका यहाँ हमेशा बनी रहती है।

जल संरक्षण के निम्न उपाय 

(Following measures of water conservation) :-

●  सिंचाई हेतु नवीन पद्धतियों को अपनाना।

●  भूमिगत जल का विवेकपूर्ण उपयोग।

●  वृक्षारोपण में वृद्धि (वनस्पति विनाश पर नियंत्रण)

●  कृषि पद्धति एवं फसल प्रतिरूप में परिवर्तन।

●  परम्परागत जल संरक्षण/वर्षा जल संरक्षण विधियों का उपयोग

●  वर्षा जल का संचयन (रूफ टॉप व रेन वॉटर हॉर्वेस्टिंग)

●  छोटे तालाबों, बाँधों एवं एनीकटों का निर्माण 

●  नहरी तंत्र का सुदृढ़ीकरण (जर्जर नहरी तंत्र की मरम्मत)

राजस्थान में जल संरक्षण की विधियाँ :-

(A) परम्परागत जल संरक्षण की विधि– इस विधि में आगोर, झालरा, टोबा, मदार, जोहड़, नाडी, खड़ीन, टाँका, बावड़ी, नेष्टा, कुई, तालाब एवं झीलें शामिल हैं।

(B) आधुनिक जल संरक्षण की विधि– इस विधि के अंतर्गत रेन वॉटर हॉर्वेस्टिंग (वर्षा जल संग्रहण) एवं शुष्क कृषि पद्धति शामिल हैं।

(A) राजस्थान में परम्परागत जल संरक्षण की विधियाँ :-

(1)  आगोर/पायतन– 

● घरों में वर्षा जल संग्रहण हेतु बनाया गया छोटा आँगन ‘आगोर या पायतन’ कहलाता है।

● यह एक वर्षा जल संरक्षण की विधि है।

● आगोर ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्र में होते हैं।

● यह पश्चिमी राजस्थान में देखने को मिलते हैं।

(2)  मदार–

● यह आगोर/पायतन का विस्तृत रूप हैं।

● तालाब व झील में वर्षा जल संरक्षण हेतु आस-पास निर्धारित भू-सीमा का निर्धारण करना मदार कहलाता है।

● मदार वर्षा जल संरक्षण एवं संग्रहण की विधि हैं।

● राजस्थान में इसका विकास पश्चिमी राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में देखने को मिलता है।

(3)  खड़ीन–

● बालुका-स्तूप के मध्य वर्षा जल एकत्र हेतु निर्मित एनीकट को खड़ीन कहते हैं।

● भारत में विशेष प्रकार की कृषि खड़ीन का संबंध राजस्थान के पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर से हैं।

● 15वीं शताब्दी में जैसलमेर में पालीवाल ब्राह्मणों द्वारा जल संरक्षण हेतु बहुउद्देश्यीय तकनीक का विकास किया गया।

● पश्चिमी राजस्थान में वर्षा जल संरक्षण की बहुउद्देश्यीय तकनीक खड़ीन है।

(4)   नेष्टा / नेहटा / नेहड़ / नेड़ा–

● किसी जल संरक्षण (नदी, तालाब व झील) के अतिरिक्त वर्षा जल को अन्य जल स्रोत में स्थानान्तरित करने की विधि नेष्टा कहलाती है।

● नदियों में अतिरिक्त जल को नालियाँ बनाकर खेतों में पहुँचाया जाता है उस माध्यम को नेष्टा कहा जाता है।

● राजस्थान में नेष्टा सर्वाधिक पश्चिमी राजस्थान में लूणी नदी के आस-पास मिलता है। 

(5)   झालरा–

● उच्च भूमि क्षेत्र के वर्षा जल रिसाव को संगृहीत/संरक्षित करने हेतु उच्च भूमि के पाद/तलहटी में बनाया गया कुण्ड झालरा कहलाता है।

● राजस्थान में सर्वाधिक झालरा जोधपुर में स्थित है।

● झालरा का स्वयं का कोई आगोर नहीं होता है।

(6) जोहड़–

● शेखावाटी क्षेत्र में वर्षा जल संरक्षण हेतु छोटे तालाब को ‘सर’ कहा जाता है।

● शेखावाटी प्रदेश में (चूरू, झुंझुनूँ  व सीकर) में वर्षा जल संग्रहण एवं संरक्षण हेतु अन्त: प्रवाह क्षेत्र में बनाए गए कच्चे कुएँ को जोहड़ कहते हैं।

● शेखावाटी क्षेत्र में पक्के कुएँ को ‘नाड़ा’ कहा जाता है।

(7)   नाडी–

● छोटे तालाब व पोखर को नाडी कहा जाता है।

● राजस्थान में सर्वप्रथम नाडी का निर्माण महाराजा राव जोधा ने करवाया था।

● नाडी का सर्वाधिक प्रचलन, जोधपुर क्षेत्र में है।

(8)  टोबा–

● यह नाडी के समान होता है, जो अधिक गहरा तथा ऊपर से चतुर्भुजाकार या वर्गाकार होता है।

(9) कुई/बेरी–

● तालाबों व झीलों के पास 10-12 मीटर गहरा गर्त होता है जिसमें तालाब, झील के जल का रिसाव होता रहता है, उसे कुई/बेरी कहा जाता है।

●  कुई/बेरी का सर्वाधिक प्रचलन बीकानेर, जैसलमेर व बाड़मेर में है।

(10)  टाँका/कुण्डी–

● घरों में जल संरक्षण हेतु निर्मित कुण्ड टाँका कहलाता है।

(11) तालाब– 

●  राजस्थान में प्राचीन समय से ही तालाबों का प्रचलन जल संरक्षण हेतु होता आ रहा है।

●  ग्रामीण क्षेत्रों में वर्षा जल संरक्षण हेतु वर्षा के जल को निचले गर्त के एक सिरे पर बाँध अथवा दीवार बनाकर पानी को एकत्र कर लिया जाता है, तालाब कहलाता है।

●  कुछ स्थानों पर प्राकृतिक गर्तों में पानी एकत्र हो जाने पर वे स्वत: ही तालाब का रूप ले लेते हैं।

●  वर्तमान में शहरीकरण, औद्योगिक विकास तथा जनसंख्या के दबाव के कारण तालाबों का अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है।

●  राजस्थान में सामान्यत: दक्षिण एवं दक्षिण पूर्वी जिलों में तालाबों की संख्या सर्वाधिक है।

● तालाबों द्वारा सर्वाधिक सिंचाई भीलवाड़ा जिले में होती है।

● राजस्थान में तालाबों द्वारा सिंचाई भीलवाड़ा, उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, बाँसवाड़ा, बूँदी, टोंक, अजमेर, जयपुर, कोटा, डूँगरपुर व सवाई माधोपुर में होती हैं।

राजस्थान के प्रमुखतालाब

1.

घड़सीसर तालाब

जैसलमेर

2.

कौशिकरामकुण्ड

जैसलमेर

3.

ब्रह्म सागर कुण्ड

जैसलमेर

4.

बारेठा तालाब

भरतपुर

5.

एडवर्ड सागर

डूँगरपुर

6.

गजरूप सागर

जैसलमेर

7.

हिण्डोली तालाब

बूँदी

8.

तेजसागर तालाब

प्रतापगढ़

9.

सेनापानी तालाब

चित्तौड़गढ़

10.

वानकिया तालाब

चित्तौड़गढ़

11.

पद्मिनी तालाब

चित्तौड़गढ़

12.

सरेरी  तालाब

भीलवाड़ा

13.

पन्ने लाल शाह का तालाब

झुंझुनूँ 

14.

तालाब शाही

धौलपुर

15.

लाखोटिया तालाब

पाली

16.

रामेलाव तालाब

पाली

17.

सुख सागर तालाब

सवाई माधोपुर

18.

गुलाब सागर

जोधपुर

(12) बावड़ी (वापी)–

●  राजस्थान में बावड़ियों का निर्माण प्राचीन काल से किया जा रहा है।

●  यह एक जलकुण्ड होता है, जिसमें जल की सतह तक जाने के लिए चारों ओर कई सीढ़ियाँ बनी होती है।

●  बावड़ी निर्माण का उद्देश्य जल संरक्षण एवं पुण्य प्राप्ति होता था।

●  अनेक राजाओं ने अपने महलों और विभिन्न स्थानों पर कई सुन्दर बावड़ियों का निर्माण करवाया था, जो कलात्मक भी होती थी।

●  शेखावाटी की बावड़ियाँ, बूँदी की बावड़ियाँ तथा आभानेरी-दौसा की चाँद बावड़ी अपनी स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध हैं।

●  बूँदी को बावड़ियों का शहर/सिटी ऑफ स्टेप वेल्स कहा जाता है।

●  वास्तुशास्त्र पर आधारित अपनी पुस्तक ‘अपराजितपृच्छा’ में भुवनदेवाचार्य ने बावड़ियों के चार प्रकारों का उल्लेख किया हैं–

(i)     नंदा बावड़ीइस प्रकार की बावड़ी का निर्माण मनोकामना पूर्ण करने हेतु करवाया जाता था। इस बावड़ी में एक ओर द्वार तथा तीन कूट बने हुए हैं।

(ii)   भद्रा बावड़ीयह सबसे सुंदर बावड़ी होती है इसमें दो द्वार तथा तथा छह कूट बने होते हैं।

(iii)  जया बावड़ीतीन द्वार तथा नौ कूट निर्मित बावड़ी।

(iv)  सर्वतोमुख बावड़ीचार द्वार तथा बारह कूट निर्मित बावड़ी।        

राजस्थान की प्रमुखबावड़ियाँ

1.

चाँद/तिलस्माबावड़ी

आभानेरी (दौसा)

2.

भाण्डारेजबावड़ी

दौसा

3.

रानी जीकी बावड़ी

बूँदी

4.

काकी जीकी बावड़ी

बूँदी

5.

मेड़तणीजीकी बावड़ी

झुंझुनूँ

6.

विनाताबावड़ी

चित्तौड़गढ़

7.

त्रिमुखीबावड़ी

उदयपुर

8.

पन्नामीणाबावड़ी

जयपुर

9.

तापीबावड़ी

जोधपुर

10.

जालपबावड़ी

जोधपुर

11.

कातनाबावड़ी

ओसियां (जोधपुर)

12.

दूध बावड़ी

सिरोही

नोट :

चाँद बावड़ी–

●  19.5 मीटर गहरी बावड़ी योजना में वर्गाकार है तथा इसकाप्रवेश द्वार उत्तर की ओर है।

●  इस बावड़ी का निर्माण गुर्जर-प्रतिहार काल में निकुंभ क्षत्रिय राजा चाँद ने करवाया था।

(B)  आधुनिक जल संरक्षण की विधियाँ :-

1.  रेन वॉटर हार्वेस्टिंग (वर्षा जल संग्रहण)–

●  वर्षा जल संग्रहण की यह सबसे आधुनिक विधि है। 

●  राज्य में जल की कमी को देखते हुए राज्य सरकार ने वर्षा जल संग्रहण हेतु आवास परिसरों, संस्थानों, प्रतिष्ठानों, होटलों आदि पर इस सिस्टम को लगाना अनिवार्य कर दिया है।

●  रेन वॉटर हार्वेस्टिंग द्वारा निम्नलिखित प्रकार से वर्षा के जल का संचयन किया जा सकता है-

             (1) वर्षा जल को सीधे जमीन से उतारना

             (2) खाई बनाकर रिचार्जिंग करना

             (3) कुओं में पानी उतारना

             (4) ट्यूबवेल में पानी उतारना

             (5) टैंक में पानी जमा करना

2. शुष्क कृषि पद्धति–

●  इस पद्धति गैर सिंचित शुष्क भूमि पर कृषि तकनीक है जो वर्षा के जल को रोकने, मिट्टी की नमी के वाष्पीकरण को दबाकर, मिट्‌टी में पानी को भंडारित करने और पानी का प्रभावी उपयोग करने की तकनीक है।

● इस पद्धति में फव्वारा पद्धति तथा बूँद-बूँद सिंचाई पद्धति का प्रयोग कर वर्षा जल का सदुपयोग किया जाता है।

जल संरक्षण के सरकारी प्रयास :-

1.   राज्य जल नीति (1999)–

● राजस्थान सरकार द्वारा वर्ष 1999 को ‘जल नीति’ स्वीकृति दी गई।

● जल नीति के अनुरूप जनता तक संकल्पों को पहुँचाने के लिए ‘जन जागृति अभियान’ के तहत पूरे राज्य में जल  सदुपयोग के लिए बूँद-बूँद सिंचाई पर जोर दिया जा रहा है।

2.  जल शक्ति अभियान–

●  इस अभियान की शुरुआत 1 जुलाई, 2019 को केन्द्रीय जल मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने की। 

● यह अभियान प्रमुख रूप से जल सुरक्षा एवं संरक्षण के लिए चलाया जा रहा है।

3.  मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान–

● इस अभियान की शुरुआत गर्दन खेड़ी (झालावाड़) से 27 जनवरी, 2016 को की गई थी।

● भू-जल के निरन्तर अत्यधिक दोहन से अधिकांश ब्लॉक डार्क जोन में शामिल हो गए हैं।

● इस अभियान का उद्देश्य जल का सदुपयोग और बूँद-बूँद जल का संग्रहण।

4.  अटल भू-जल योजना– 

● इस योजना को 1 अप्रैल, 2020 से प्रारंभ किया गया।

● अटल भू-जल योजना भारत सरकार एवं विश्व बैंक के 50:50 प्रतिशत वित्तीय सहायता से लागू की गई है।

● इस योजना में भू-जल विभाग नोडल विभाग एवं कृषि, उद्यानिकी, जलग्रहण एवं भू-संरक्षण, जल संसाधन, पंचायती राज एवं ग्रामीण विकास, जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी, ऊर्जा एवं वन विभाग मुख्य सहभागी विभाग हैं।

5.  राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना–

● इस परियोजना का उद्देश्य मौसम निर्णायक प्रणाली का विकास   करना, मौसम संबंधी पूर्वानुमान का प्रसारण, बेहतर जल प्रबंधन, बाढ़, सूखा प्रबंधन करना है।

6. राजीव गाँधी जल संचय योजना–

● राजीव गाँधी जल संचय योजना वर्ष 2019 को शुरू की गई।

● राजीव गाँधी जल संचय योजना का मुख्य उद्देश्य – भू-जल के गिरते स्तर को कम करना, ज्यादा से ज्यादा क्षेत्र में वृक्षारोपण करना जिससे राज्य में हरित क्षेत्र बढ़े, परम्परागत स्रोतों को पुनर्जीवित करना, भू-जल स्तर में वृद्धि करना।

● राजीव गाँधी जल संचय योजना हेतु ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग को प्रशासनिक विभाग एवं जल ग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग को नोडल विभाग बनाया गया।

● इस योजना के अंतर्गत जल संरक्षण के विभिन्न निर्माण कार्य एवं सुधार कार्य, यथा- एनीकट, तालाब, रिचार्ज शाट, पुराने टाँके, टाँका, तालाब व एनीकट की मरम्मत करना।

7. मुख्यमंत्री राजनीर योजना–

● इस योजना की विधानसभा में 13 मार्च, 2020 को घोषणा की गई।

● इस योजना का मुख्य उद्देश्य शहरी क्षेत्रों में घरेलू उपभोक्ताओं की जल खपत 15000 लीटर  (मासिक) होने पर जल उपभोक्ताओं का जल शुल्क माफ किया जाएगा।

8.  राज्य जल नीति (फरवरी, 2010)–

● राज्य जल नीति के प्रमुख बिन्दु :-

-  जल संसाधनों को सुनियोजित तरीके से विकसित किया जाएगा।

-  सभी नई परियोजनाएँ सूक्ष्म जलग्रहण क्षेत्र पर आधारित होगी।

-  जिससे आधिक्य जल के उपयोग में समानता सुनिश्चित हो।

-  आपूर्ति आधारित प्रबंध के स्थान पर माँग आधारित प्रबंध जलनीति का आवश्यक अंग होगा।

-  गिरते भू-जल स्तर को रोकने एवं बेहतर जल संसाधन प्रबंधन हेतु संबंधित कानूनों में आवश्यक संशोधन किए जाएँगे।

-  जल शुल्क को तर्क संगत बनाया जाएगा।

● राज्य जल नीति के उद्देश्य :-

-  नदी जलग्रहण एवं लघु जलग्रहण क्षेत्र को एक इकाई मानते हुए जल प्रबंधन में एकीकृत बहु-आयामी दृष्टिकोण से जल संसाधनों की आयोजना।

-  राज्य में जल संसाधन की आयोजना नदी जलग्रहण एवं लघु जलग्रहण को इकाई मानते हुए सतही जल एवं भू-जल योजना के लिए समन्वित नीति अपनाकर प्रबंध करना।

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