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सामान्य विज्ञान: प्रजनन तंत्र

प्रजनन तंत्र

नर प्रजनन तंत्र :-

- लड़कों में यौवन अवस्था 13-15 वर्ष की आयु में प्रारंभ होती है तथा 18-19 वर्ष की आयु में लड़कों में लैंगिक परिपक्वता आ जाती है।

- नर में वृषण (Testis) को प्राथमिक जनन अंग माना गया है, जिन्हें नर जननांग (Gonads) कहा जाता है।

Note : 

- मनुष्य में लैंगिक जनन होता है।

- क्लोनिंग अलैंगिक (Asexual) जनन है। 

वृषण (Testis) :

- वृषण, वृषणकोष में स्थित होते हैं।

- क्रिप्टोऑगोडिज्म की स्थिति में वृषण उदर में रह जाते हैं।

- दोनों वृषणों में 1-3 नलिकाएँ पाई जाती हैं, उन्हें शुक्र जनन नलिकाएँ कहते हैं। इन नलिकाओं में निम्नलिखित कोशिकाएँ पाई जाती हैं-

  (i) नर जर्म कोशिका – ये शुक्राणुओं का निर्माण करती है।

  (ii) सर्टोली कोशिकाएँ – ये कोशिकाएँ शुक्राणुओं को पोषण प्रदान करती हैं।

- इन कोशिकाओं के मध्य ‘अन्तराली कोशिकाएँ (Interstitial Cells)/लीडिंग कोशिकाएँ’ पाई जाती हैं, जो नर हॉर्मोन (टेस्टोस्टेरॉन) स्रावित करती है। 

- वृषण का तापमान शरीर के तापमान से लगभग 2 से 3oC कम होता है, जो शुक्राणुओं के लिए आवश्यक होता है।

- पीयूष ग्रंथि (पिट्यूटरी) से बनने वाला LH (ल्यूटीनाइजिंग हॉर्मोन) वृषण की अन्तराली/लीडिंग कोशिकाओं को हॉर्मोन बनाने हेतु प्रेरित करता है।

Note : 

पुरुष नसबंदी को वैसेक्टॉमी, जबकि महिला नसबंदी को ट्यूबैक्टॉमी कहते हैं।

वृषण में शुक्राणुओं के निर्माण को ‘शुक्र-जनन’ (Spermatogenesis) कहते हैं।

- शुक्राणुओं का जीवनकाल लगभग 75 घंटे होता है।

द्वितीयक अंग : 

वृषण कोष – 

यह वृषण को स्थिर बनाए रखने तथा वृषण के ताप को बनाए रखने में सहायक होता है।

अधिवृषण – 

- यह एक तरफ शुक्रवाहिनी तथा दूसरी तरफ वृषण से जुड़ा भाग है जो शुक्राणुओं के विकास में सहायक होता है। 

शुक्रवाहिनी – 

यह नलीनुमा संरचना होती है, जो वृषण से शुक्राणुओं को शुक्राशय तक पहुँचाती है। 

- पुरुष नसबंदी (वैसेक्टॉमी) के दौरान शुक्रवाहिनी को अवरुद्ध/काट दिया जाता है।

शुक्राशय – 

- यह थैलीनुमा संरचना होती है, जहाँ शुक्राणुओं का संग्रहण किया जाता है। 

- शुक्राशय द्वारा बनाया गया विशेष द्रव ‘शुक्र द्रव’ कहलाता है। 

- शुक्र द्रव में फ्रक्टोज पाया जाता है, जो शुक्राणुओं को पोषण एवं ऊर्जा प्रदान करता है। 

- शुक्राशय से बना द्रव वीर्य के निर्माण में सहायक होता है।

प्रोस्टेट ग्रंथि – 

- प्रोस्टेट ग्रंथि का आकार अखरोट के समान होता है। 

- प्रोस्टेट ग्रंथि द्वारा बनाया गया द्रव भी वीर्य के निर्माण में सहायक होता है।

कॉऊपर्स ग्रंथि – 

- यह ग्रंथि प्रोस्टेट ग्रंथि के ठीक नीचे स्थित होती है तथा इससे बना तरल पदार्थ मूत्र मार्ग को चिकनाहट प्रदान करता है।

शिश्न –

- इसी से मूत्रमार्ग द्वारा मूत्र, वीर्य, प्रोस्टेट ग्रंथि द्वारा स्रावित तरल पदार्थों का मूत्रद्वार के द्वारा उत्सर्जन किया जाता है।

मादा प्रजनन तंत्र :-

- प्राथमिक अंग : अण्डाशय (Ovary) महिलाओं में प्राथमिक जनन अंग होते हैं।

- द्वितीयक अंग : गर्भाशय (Uterus), अण्डवाहिनियाँ, योनि (Vagina) आदि द्वितीयक अंग होते हैं।

अण्डाशय (Ovary) – 

- मादा में अण्डाशय दोनों वृक्कों के नीचे उदरगुहा में गर्भाशय के दोनों ओर स्थित होते हैं।

- 'अण्डाशय' एस्ट्रोजन, प्रोजेस्ट्रॉन हॉर्मोन एवं अण्डाणुओं का निर्माण करते हैं।

- अण्डाशय में स्थित कॉर्पस ल्यूटियम कोशिकाएँ एस्ट्रोजन एवं प्रोजेस्ट्रॉन हॉर्मोन स्रावित करती हैं।

Note :

- एस्ट्रोजन हॉर्मोन महिलाओं में द्वितीयक लैंगिक लक्षणों के विकास में सहायक होता है, जिसे महिला वृद्धि का हॉर्मोन भी कहा जाता है।

- प्रोजेस्ट्रॉन हॉर्मोन गर्भधारण का हॉर्मोन कहलाता है।

- अण्डाशय में स्थित 'अण्डाशयी पुटि्टकाएँ' (Ovarian Vesicles) अण्डाणुओं का निर्माण करती हैं।

- रजोदर्शन – लड़कियों में मासिक चक्र का प्रारंभ होना 

- रजोनिवृत्ति – महिलाओं में लगभग 45 वर्ष की आयु के पश्चात् मासिक चक्र का बंद हो जाना।

- प्रत्येक मासिक चक्र में 1 अण्डाणु बनता है।

- अण्डाशय द्वारा मासिक चक्र के 14वें दिन अण्डाणु बनता है तथा 14वें दिन ही अण्डोत्सर्जन/Ovulation (अण्डाणु का अण्डाशय से अण्डवाहिनी में पहुँचना) होता है। 

- अण्डोत्सर्जन – LH (ल्यूटीनाइजिंग हॉर्मोन)- पीयूष ग्रंथि से 

अण्डवाहिनी – 

- अण्डवाहिनी का मध्य भाग अपेक्षाकृत चौड़ा होता है, जिसे एम्पुला कहते हैं जबकि गर्भाशय से जुड़ा भाग इस्थमस कहलाता है।

- अण्डवाहिनी के एम्पुला में निषेचन संपन्न होता है।

गर्भाशय (Uterus) – 

- गर्भाशय थैलीनुमा संरचना होती है।

- गर्भाशय का भीतरी आवरण एण्डोमेट्रियम कहलाता है, जबकि बाहरी आवरण मायोमैट्रियम कहलाता है।

Note : 

महिलाओं में मासिक चक्र के समय रक्तस्राव एण्डोमैट्रियम के टूटने से होता है।

- भ्रूण, अपरा (Placenta) के द्वारा एण्डोमैट्रियम से जुड़ता है, जिसे रोपण कहा जाता है। 

योनि (Vagina) –

- योनि में लैक्टोबैसीलस जीवाणु पाए जाते हैं अर्थात् योनि का माध्यम अम्लीय होता है।

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