अजमेर जिले के मेले
पुष्कर मेला
● अजमेर जिले का पुष्कर हिन्दुओं की आस्था का एक प्रमुख केन्द्र है।
● कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक पुष्कर में विशाल मेला लगता है।
● पुष्कर में कार्तिक माह में दीपदान की परम्परा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और पौराणिक है। इसी समय पशु मेला भी लगता है।
● इस मेले के अवसर पर यहाँ विशाल बाजार भी लगता है और विदेशी पर्यटक भी खूब आते हैं।
● इसी मौके पर राज्य सरकार का पर्यटन विभाग भी अनेक प्रकार के आयोजन कर मेले की शोभा और आकर्षण में वृद्धि करता है।
अन्य मेले
● बादशाह मेला – ब्यावर (अजमेर) चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को
● लाल्या व काल्या का मेला – अजमेर।
● कल्पवृक्ष मेला – मांगलियावास (अजमेर) हरियाली अमावस्या को।
बीकानेर जिले के मेले
करणी माता का मेला
● करणी माता के मंदिर में साल में दो बार बड़े मेले लगते हैं।
●पहला मेला नवरात्रि में चैत्र शुक्ल एकम से चैत्र शुक्ल दशमी तक लगता है तथा दूसरा मेला आश्विन शुक्ल एकम से आश्विन शुक्ल दशमी तक लगता है। ये मेले करणी माता के सम्मान में आयोजित होते हैं।
कपिल मुनि का मेला
● यह मेला कार्तिक पूर्णिमा को कोलायत (बीकानेर) में भरता है। यह मेला बीकानेर जिले का एक बड़ा मेला माना जाता है।
● यह मेला कपिलमुनि के सम्मान में भरता है। इस मेले के अवसर पर यहाँ एक विशाल पशु मेला भी लगाया जाता है।
अन्य मेले
● ऊँट मेला – यह विश्व का एकमात्र ऊँट मेला है।
● चनणी चेरी मेला – देशनोक (बीकानेर) फाल्गुन शुक्ल सप्तमी को।
डूँगरपुर जिले के मेले
बेणेश्वर मेला
● यह मेला माघ पूर्णिमा को सोम-माही-जाखम नदियों के संगम पर डूँगरपुर जिले की आसपुर तहसील के नवाटापरा नामक स्थान पर भरता है।
● यह मेला राजस्थान के आदिवासी समाज का सबसे बड़ा मेला है। यह मेला ‘आदिवासियों का कुंभ’ के नाम से प्रसिद्ध है।
● माघ शुक्ल एकादशी से माघ पूर्णिमा तक लगने वाले इस मेले में आदिवासी संस्कृति की अनूठी झलक देखने को मिलती है।
● इस मेले का संबंध संत मावजी से है।
● यहाँ पर विश्व के एकमात्र ‘खण्डित शिवलिंग’ की पूजा होती है।
करौली जिले के मेले
कैलादेवी का मेला
● करौली जिले में त्रिकुट पर्वत की घाटी में कैलादेवी का भव्य मंदिर हैं। यहाँ चैत्र शुक्ल अष्टमी को मेला भरता है। इस मेले में आने वाले भक्तों की विराट संख्या के कारण इसे लक्खी मेला भी कहते हैं।
● इस मेले में कैलादेवी के भक्तों द्वारा लांगुरिया गीत गाए जाते हैं।
श्री महावीरजी मेला
● यह मेला करौली जिले की हिन्डौन तहसील में गम्भीरी नदी के तट पर महावीर स्वामी की स्मृति में भरता है।
● यह मेला प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल त्रयोदशी से वैशाख कृष्ण प्रतिपदा तकभरता है।
● वैशाख कृष्ण प्रतिपदा को महावीर जी की भव्य रथयात्रा निकाली जातीहै। यह जैन समाज का सबसे बड़ा मेला है।
जोधपुर के मेले
धींगागवर बेंतमार मेला
● यह मेला जोधपुर में वैशाख कृष्ण तृतीया को भरता है।
● जोधपुर नगर में प्रतिवर्ष होली के एक पखवाड़े बाद चैत्र शुक्ल तृतीयाको गणगौर का विसर्जन करने के बाद वैशाख कृष्ण पक्ष की तृतीया तकधींगागवर की पूजा होती है।
● इस अवसर पर महिलाएँ बेंतमार मेला आयोजित करती है।
खेजड़ली मेला
● खेजड़ली (जोधपुर) में भाद्रपद शुक्ल दशमी को विश्व का एकमात्र वृक्ष मेला भरता है।
● 1730 ई. में मारवाड़ के महाराजा अभयसिंह के काल में खेजड़ली हत्याकाण्ड हुआ, जिसमें 84 गाँवों के 363 लोग शहीद हुए।
अन्य मेले
● लोटियों का मेला – मण्डोर (जोधपुर) श्रावण शुक्ल पंचमी को।
● वीरपुरी मेला – मंडोर (जोधपुर)
जयपुर जिले के मेले
शीतला माता का मेला
●यह मेला शील की डूँगरी चाकसू (जयपुर) में चैत्र कृष्ण अष्टमी को भरता है। इस मेले में सुसज्जित बैलगाड़ियों से आते हैं, इसलिए इस मेले को बैलगाड़ी मेले के नाम से भी जाना जाता है।
बाणगंगा मेला
● विराटनगर (जयपुर) वैशाख पूर्णिमा को।
चित्तौड़गढ़ जिले के मेले
मातृकुण्डिया मेला
● यह मेला चित्तौड़गढ़ जिले के राशमी क्षेत्र में स्थित हरनाथपुरा गाँव में प्रतिवर्ष वैशाख पूर्णिमा को भरता है।
अन्य मेले
● जौहर मेला – चित्तौड़गढ़ दुर्ग (चित्तौड़गढ़) चैत्र कृष्ण एकादशी
● राम-रावण मेला – बड़ी सादड़ी (चित्तौड़गढ़) - चैत्र शुक्ल दशमी
भीलवाड़ा जिले के मेले
फूलडोल मेला
● रामस्नेही सम्प्रदाय का फूलडोल महोत्सव शाहपुरा (भीलवाड़ा) में फाल्गुन शुक्ल एकादशी से चैत्र कृष्ण पंचमी तक आयोजित होता है।
● शाहपुरा में होली के दूसरे दिन प्रसिद्ध वार्षिक फूलडोल का मेला लगताहै।
अन्य मेले
● सवाई भोज मेला–आसींद (भीलवाड़ा) भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को।
अलवर जिले के मेले
भर्तृहरि मेला
● यह मेला अलवर जिले के भर्तृहरि नामक स्थान पर वर्ष में दो बार वैशाख और भाद्रपद माह में लगता है।
● कालबेलिया नृत्य इस मेले का मुख्य आकर्षण है। इस मेले में कनफटे साधुओं से यह स्थान लघु कुंभ का सा दृश्य उपस्थित करता है।
चन्द्रप्रभु का मेला
● जैन धर्म से संबंधित यह मेला तिजारा (अलवर) में फाल्गुन शुक्ल सप्तमीको भरता है।
अन्य मेले
● नारायणी माता का मेला – सरिस्का (अलवर) वैशाख शुक्ल एकादशीको।
● हनुमानजी का मेला – पांडुपोल(अलवर) भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी व पंचमी को।
बाँसवाड़ा जिले के मेले
मानगढ़ धाम पहाड़ी मेला
● मानगढ़ पहाड़ी (बाँसवाड़ा) - मार्गशीर्ष पूर्णिमा।
● यह मेला गुरु गोविन्द गिरी की स्मृति में आयोजित होता है। इसेआदिवासियों का मेला कहा जाता है।
● इस मेले में सर्वाधिक भील जाति के लोग आते हैं।
घोटिया अम्बा मेला
● यह बाँसवाड़ा जिले का सबसे बड़ा मेला है।
● यह प्रतिवर्ष चैत्र माह की अमावस्या को भरता है जिसमें राजस्थान, गुजरात तथा मध्य प्रदेश आदि प्रांतों से आदिवासी आते हैं।
अन्य मेले
● छींछ माता का मेला – बाँसवाड़ा।
सवाईमाधोपुर जिले के मेले
गणेशजी का मेला
● यह मेला रणथम्भौर दुर्ग में भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को लगता है।
अन्य मेले
● चौथमाता का मेला - चौथ का बरवाड़ा (सवाई माधोपुर) माघ कृष्णचतुर्थी।
जैसलमेर जिले के मेले
बारा रामदेव जी का मेला
●सांप्रदायिक सद्भाव इस मेले की मुख्य विशेषता है। रामदेवरा (रूणेचा) में भाद्रपद शुक्ल द्वितीया को विशाल मेला भरता है।
मरु मेला
●‘स्वर्णनगरी जैसलमेर में राजस्थान पर्यटन विकास निगम द्वारा माघ महीने (फरवरी) में प्रतिवर्ष मरु मेले का आयोजन किया जाता है।
● इस मेले में साफा बाँधने, रस्सी खींचने, ऊँट दौड़, ऊँट का पोलो खेल आदि प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं।
● इस मेले में गैर व अग्नि नृत्य का आयोजन किया जाता है।
चुंघी तीर्थ मेला
● चुंघी (जैसलमेर)भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को।
टोंक जिले के मेले
डिग्गी के कल्याण जी का मेला
● यह मेला टोंक जिले की मालपुरा तहसील में स्थित डिग्गीपुरी में भगवान विष्णु के स्वरूप राजा कल्याण जी की स्मृति में श्रावण माह की अमावस्या को भरता है।
सीकर जिले के मेले
जीणमाता का मेला
● सीकर जिले के रेवासा गाँव में पहाड़ की तलहटी में जीणमाता का मंदिर स्थित है। इस मंदिर में वर्ष में दो बार चैत्र आश्विन माह के नवरात्रों में मेला लगता है।
खाटूश्यामजी का मेला
●खाटूश्यामजी का मंदिर सीकर जिले में स्थित हैं। शीश के दानी के रूप में विख्यात श्रीश्यामजी के मंदिर में फाल्गुन शुक्ल दशमी से द्वादशी तक वार्षिक मेला लगता है।
बाराँ जिले के मेले
सीताबाड़ी का मेला
● यह मेला ज्येष्ठ अमावस्या को भरता है। यह हाड़ौती अँचल का सबसेबड़ा मेला है।
●बाराँ जिले की ‘सहरिया जनजाति का कुंभ' कहा जाने वाला सीताबाड़ी का मेला शाहबाद के निकट सीताबाड़ी में भरता है।
बाड़मेर जिले के मेले
तिलवाड़ा मेला
● यह पशु मेला तिलवाड़ा (बाड़मेर) में मल्लीनाथ की स्मृति में भरता है।
● यह पशु मेला चैत्र कृष्ण एकादशी से चैत्र शुक्ल एकादशी तक आयोजित किया जाता है। इस पशु मेले में राठी, थारपारकर, काँकरेज एवं मालाणी नस्ल की गायों की बिक्री होती है।
कानन मेला
● यह मेला बाड़मेर के कानन में बसंत ऋतु में आयोजित होता है।
● गैर नृत्य इस मेले का मुख्य आकर्षण है।
नागौर जिले के मेले
तेजाजी पशु मेला
● परबतसर (नागौर) में लोकदेवता तेजाजी की स्मृति में भाद्रपद शुक्ल दशमी को पशु मेला आयोजित किया जाता है।
● इस मेले में पशुओं की खरीद-फरोख्त की जाती है।
नागौर मेला
● राजस्थान पर्यटन विकास निगम द्वारा नागौर में प्रतिवर्ष माघ माह में मेले का आयोजन किया जाता है।
● यह पशु मेला गाय, बैल, ऊँट और घोड़ों के क्रय-विक्रय के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ के नागौरी बैल पूरे भारत में प्रसिद्ध हैं।
● इस मेले में चार दिन तक अनेक प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं।
● इस मेले में शाम के समय ऊँटों की दौड़ तथा मुर्गों और साँडों की लड़ाई आयोजित की जाती है।
● मेले के दौरान पर्यटन विकास निगम द्वारा पर्यटन गाँव की स्थापना की जाती है।
झालावाड़ जिले के मेले
चन्द्रभागा मेला
● यह पशु मेला झालरापाटन (झालावाड़) में कार्तिक पूर्णिमा को चन्द्रभागा नदी के तट पर आयोजित किया जाता है।
● इस मेले में मध्य प्रदेश से बड़ी संख्या में पशु व्यापारी भाग लेने के लिए आते हैं।
● मालवी नस्ल के पशुओं के क्रय-विक्रय के लिए यह मेला प्रसिद्ध है।
उदयपुर जिले के मेले
केसरियाजी का मेला
● उदयपुर जिले के धुलेव गाँव में ऋषभदेव का भव्य मंदिर हैं, जहाँ चैत्र कृष्ण अष्टमी को विशाल मेला लगता है।
● इस मंदिर में प्रतिवर्ष आश्विन कृष्ण प्रतिपदा और द्वितीया को भव्य रथयात्रा निकाली जाती है।
अन्य मेले
● सालासर हनुमानजी का मेला – चूरू
● तेजाजी का मेला – परबतसर
● रामदेवजी का मेला – रूणीचा
● पाबूजी का मेला – कोलूमण्ड
● गोगाजी का मेला – ददरेवा
पर्यटन विभाग (राजस्थान) द्वारा आयोजित किए जाने वाले मेलेएवं उत्सव
● ऊँट महोत्सव – बीकानेर - जनवरी
● मरु महोत्सव – जैसलमेर - जनवरी-फरवरी
● हाथी महोत्सव – जयपुर - मार्च।
● मत्स्य उत्सव – अलवर - सितम्बर-अक्टूबर
● ग्रीष्म महोत्सव (समर फेस्टिवल) – माउंट आबू - मई- जून
● मारवाड़ महोत्सव – जोधपुर - अक्टूबर
● वागड़ मेला – डूँगरपुर - नवम्बर
● शरद महोत्सव – माउंट आबू - दिसम्बर
● डीग महोत्सव – डीग (भरतपुर) - जन्माष्टमी
● थार महोत्सव – बाड़मेर - फरवरी
● मीरा महोत्सव – चित्तौड़गढ़ - अक्टूबर
● गणगौर मेला – जयपुर - मार्च
● बैलून महोत्सव – बाड़मेर - अप्रैल
● आभानेरी उत्सव – दौसा
● पतंग महोत्सव, धुलण्डी उत्सव – जयपुर
● थार महोत्सव – बाड़मेर
● रणकपुर उत्सव, गौड़वाड मेला – पाली
● मेवाड़ समारोह – उदयपुर
मुस्लिम धर्म के प्रमुख उर्स
● उर्स शब्द का फारसी के उरुसी से व्युत्पन्न है और इसका अर्थ है- लम्बेवियोग के बाद मिलन से होने वाली खुशी।
● किसी सूफी संत की आत्मा का मिलन परमात्मा से होता है, उस दिन उससूफी संत की स्मृति में उर्स का आयोजन किया जाता है।
ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती (गरीब नवाज) का उर्स – अजमेर
● सूफी संत ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती 1192 ई. में ईरान से भारत आए थे और अपना शेष जीवन अजमेर में बिताया।
● ‘गरीब नवाज’ के नाम से जाने वाले ख्वाजा साहब ने अपना संपूर्ण जीवन मानवता की सेवा में समर्पित कर दिया। अजमेर में उनकी मजार पूरी दुनिया के मुस्लिम धर्मावलम्बियों की आस्था का प्रमुख केन्द्र है।
● इस्लामिक कैलेण्डर के अनुसार रज्जब माह की पहली से छठी तारीखतक अजमेर में ख्वाजा साहब का उर्स मनाया जाता है।
●ख्वाजा साहब का यह उर्स सम्पूर्ण भारत में मुस्लिम समुदाय का कदाचित सबसे बड़ा मेला है जो सर्वधर्म समभाव की अनूठी मिसाल पेश करता है।
तारकीन का उर्स – नागौर
● नागौर में सूफियों की चिश्ती शाखा के संत काजी हम्मीदुद्दीन नागौरी कीदरगाह है जहाँ पर अजमेर के बाद सबसे बड़ा उर्स भरता है।
गलियाकोट का उर्स – डूँगरपुर
● डूँगरपुर जिले की सागवाड़ा तहसील के गलियाकोट, कस्बे में संत सैय्यद फखरुद्दीन की मजार है। यह दाऊदी बोहरा सम्प्रदाय की आस्था का प्रमुख केन्द्र है। इसे ‘मजार–ए–फखरी’ भी कहते हैं।
● मुहर्रम की 27वीं तारीख को होने वाले उर्स के मौके पर मजार शरीफ को फूलों से सजाया जाता है और दीपक प्रज्वलित किए जाते हैं। सामूहिक इबादत होती है तथा कुरान शरीफ का पाठ किया जाता है।
नरहड़ की दरगाह का मेला – झुंझुनूँ
● झुंझुनूँ जिले के नरहड़ गाँव में ‘हजरत हाजिब शक्कर बादशाह’ कीदरगाह है जो ‘शक्कर पीर बाबा’ की दरगाह के नाम से प्रसिद्ध है।
● यहाँ कृष्ण जन्माष्टमी के दिन विशाल मेला लगता है।
मलिक शाह पीर का उर्स – जालोर दुर्ग
पीर दुल्हे शाह की दरगाह – पाली
● यह चैत्र कृष्ण प्रतिपदा व द्वितीया को भरता है।
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