जिला प्रशासन (सामान्य प्रशासन एवं पुलिस प्रशासन)
● भारत जैसे विशाल क्षेत्रफल तथा जनसंख्या वाले देश में प्रशासन को बेहतर ढंग से चलाने के लिए देश को छोटी-छोटी प्रशासनिक इकाइयों में बाँटा गया है। इन प्रशासनिक इकाइयों में जिला प्रशासन सबसे महत्त्वपूर्ण कड़ी है।
● जिला (District) शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द Districuts से मानी जाती है जिसका अर्थ है- ‘न्यायिक प्रशासन’।
● भारत में जिला प्रशासन का वर्तमान स्वरूप सर्वप्रथम मौर्यकाल में देखने को मिलता है, जहाँ जिले के लिए ‘जनपद’ शब्द का प्रयोग हुआ तथा उसके प्रमुख को ‘राजुका’ कहा जाता था।
● भारत में जिला शब्द की शुरुआत ब्रिटिश काल में वर्ष 1776 में हुई।
● भारतीय संविधान के अनुच्छेद-233 में ‘जिला’ शब्द का उल्लेख जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में किया गया है।
● प्रशासनिक इकाई के रूप में जिला शब्द को सर्वप्रथम 73वें व 74वें संविधान संशोधन, 1992 द्वारा संविधान के भाग-9 एवं भाग-9क में शामिल किया गया।
● जिला, संभाग की इकाई है तथा स्थानीय क्षेत्रों एवं राज्य प्रशासन के मध्य की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है।
राजस्थान में संभागीय व्यवस्था :-
● भारत में सर्वप्रथम सन् 1829 में जिला कलेक्टर के कार्यों पर पर्यवेक्षण हेतु संभागीय आयुक्त पद सृजित किया गया था।
● 1949 में नवगठित राजस्थान में कुल 25 जिले बनाए गए जिन्हें 5 संभागों– जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, बीकानेर व कोटा में विभाजित किया गया।
● अप्रैल, 1962 में सुखाड़िया सरकार ने संभागीय व्यवस्था को समाप्त कर दिया।
● 26 जनवरी, 1987 को हरिदेव जोशी सरकार ने राज्य को 6 संभागों (जयपुर, अजमेर, जोधपुर, उदयपुर, कोटा, बीकानेर) में बाँटकर संभागीय व्यवस्था पुन: कायम की।
● 4 जून, 2005 को भरतपुर को सातवाँ संभाग बनाया गया।
● वर्तमान में राज्य में 7 संभाग हैं -
क्र. | संभाग | संभाग में शामिल जिले |
1. | जोधपुर संभाग – | जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, बालोतरा, जालौर, पाली, सिरोही, फलोदी (8) |
2. | उदयपुर संभाग – | उदयपुर, बाँसवाड़ा, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, डूँगरपुर, प्रतापगढ, सलूम्बर (7) |
3. | जयपुर संभाग – | जयपुर, दौसा, अलवर, बहरोड-कोटपूतली, खैरथल-तिजारा, झुंझुनूँ, सीकर (7) |
4. | बीकानेर संभाग– | बीकानेर, श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, चूरू (4) |
5. | कोटा संभाग – | कोटा, झालावाड़, बाराँ, बूँदी (4) |
6. | अजमेर संभाग – | अजमेर, भीलवाड़ा, नागौर, टोंक, ब्यावर, डीडवाना-कुचामन (6) |
7. | भरतपुर संभाग – | भरतपुर, धौलपुर, करौली, सवाई माधोपुर, डीग, (5) |
नोट :
● 17 मार्च, 2023 को तत्त्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा श्री रामलुभाया (सेवानिवृत्त आई.ए.एस.) की अध्यक्षता में गठित उच्च स्तरीय समिति की सिफारिश पर 19 नए जिले तथा 03 नए संभाग बनाने की घोषणा की गई, जिसे 04 अगस्त, 2023 को विचार-विमर्श के बाद मंत्रिमण्डल द्वारा अनुमोदित कर दिया गया।
● राज्य में पाली,बाँसवाड़ा और सीकर नए संभाग बनाए गए।
● 7 अगस्त, 2023 को प्रत्येक जिला मुख्यालय पर सरकार द्वारा नवीन जिलों का विधिवत उद्घाटन किया गया।
● संभागीय स्तर पर प्रशासन तंत्र का मुखिया संभागीय आयुक्त होता है जो अपने अधीनस्थ जिलों के प्रशासन पर नियंत्रण एवं उनके कार्यों में समन्वय स्थापित करने का कार्य करता है।
● संभागीय आयुक्त के पद पर भारतीय प्रशासनिक सेवा (I.A.S.) का वरिष्ठ अधिकारी नियुक्त किया जाता है।
● 17 मार्च, 2023 को तत्त्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा श्री रामलुभाया (सेवानिवृत्त आई.ए.एस.) की अध्यक्षता में गठित उच्च स्तरीय समिति की सिफारिश पर 19 नए जिले तथा 03 नए संभाग बनाए गए थे, जो 29 जनवरी, 2024 भजनलाल सरकार की केबिनेट की बैठक में नवीनतम 03 संभाग तथा 9 जिलों को हटा दिया गया।
राजस्थान में जिले :-
● 30 मार्च, 1949 को राजस्थान के गठन के समय कुल 25 जिले थे।
● राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश पर 1 नवम्बर, 1956 को राज्य का पुनर्गठन किया गया तथा अजमेर-मेरवाड़ा क्षेत्र भी राजस्थान में मिला दिया गया एवं अजमेर राजस्थान का 26वाँ जिला बना। इसके पश्चात् राज्य में निम्न जिले और गठित किए गए-
जिले के गठन का क्रमांक | जिले का नाम | जिले के गठित होने की दिनांक |
27 वाँ | धौलपुर | 15 अप्रैल, 1982 |
28 वाँ | बाराँ | 10 अप्रैल, 1991 |
29 वाँ | दौसा | 10 अप्रैल, 1991 |
30 वाँ | राजसमंद | 10 अप्रैल, 1991 |
31 वाँ | हनुमानगढ़ | 12 जुलाई, 1994 |
32 वाँ | करौली | 19 जुलाई, 1997 |
33 वाँ | प्रतापगढ़ | 26 जनवरी, 2008 |
34 से 41 | बालोतरा, ब्यावर, डीग, डीडवाना-कुचामन, कोटपुतली-बहरोड़, खैरथल-तिजारा, फलौदी, सलूम्बर | 4 अगस्तर, 2023 |
♦ जिला प्रशासन की विशेषताएँ:-
1. सामान्यत: जिले की जनसंख्या 10 लाख एवं क्षेत्रफल 4 हजार वर्गमील होता है।
2. जिला प्रशासन, स्थानीय क्षेत्रों एवं राज्य प्रशासन के मध्य महत्त्वपूर्ण कड़ी है।
3. जिला प्रशासन, संभाग की इकाई होती है जिस पर संभागीय आयुक्त नियंत्रण रखता है।
4. जिला प्रशासन का प्रमुख जिला कलेक्टर होता है जो जिले के सभी विभागों का मुख्य नियंत्रक एवं समन्वयक होता है।
5. जिला प्रशासन के अधीन विभिन्न राजस्व, कानून-व्यवस्था एवं विकासात्मक कार्यों को निष्पादित करने वाली प्रशासनिक इकाइयाँ कार्य करती है।
♦ जिला प्रशासन के कार्य:-
1. जिले में कानून-व्यवस्था बनाए करना।
2. सरकार का भू-राजस्व एकत्र करना।
3. जिले की शहरी और ग्रामीण जनता का कल्याण करना।
4. लोकसभा, विधानसभा एवं स्थानीय निकायों के चुनाव करवाना।
5. सरकारी योजनाओं एवं आदेशों को जिले में लागू करना ।
♦ जिला प्रशासन का संगठनात्मक ढाँचा:-
जिला कलेक्टर
● जिला कलेक्टर, जिला प्रशासन के संगठनात्मक ढाँचे के शीर्ष पर स्थित होता है।
● यह जिले का सर्वोच्च कार्यकारी, प्रशासनिक एवं राजस्व अधिकारी होता है। इसे जिलाधीश अथवा जिला मजिस्ट्रेट भी कहा जाता है।
● भारत में जिला कलेक्टर पद का सृजन वर्ष 1772 में वॉरेन हेस्टिंग्स द्वारा किया गया तथा उसे भू-राजस्व का अधिकार दिया गया।
● जिला कलेक्टर भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) रैंक का अधिकारी होता है।
● जिला कलेक्टर को जिला प्रशासन की आँख, कान एवं हाथ कहा जाता है।
● यह संभागीय आयुक्त के निर्देशन में कार्य करता है।
जिला कलेक्टर के कार्य एवं भूमिका:-
A.प्रशासनिक अधिकारी के रूप में – एक प्रशासनिक अधिकारी के रूप में जिला कलेक्टर निम्नलिखित कार्यों को संपादित करता हैं-
1. जिले में मुख्य प्रोटोकॉल अधिकारी के रूप में कार्य करता है।
2. जिला प्रशासन के विभिन्न अधिकारियों जैसे तहसीलदार, नायब तहसीलदार और जिले में कार्यरत अन्य राजपत्रित अधिकारियों को पदस्थापना करना और उनका स्थानांतरण करना।
3. जिले में जिला निर्वाचन अधिकारी के रूप में कार्य करता है।
4. जिले में मुख्य जनगणना अधिकारी के रूप में कार्य करता है।
5. राष्ट्रीय पर्वों को जिले में मनाना एवं ध्वजारोहण करना।
6. जिला कोषागार एवं उप-कोषागार का पर्यवेक्षण करना।
7. सरकारी वाहनों, सर्किट हाउस और डाक बंगले पर नियंत्रण रखना।
8. जिला प्रशासन की संपत्ति, धरोहर, भवनों, इमारतों और पर्यटक स्थलों की रक्षा करना।
9. जिला प्रशासन में कार्यरत अधिकारियों एवं कर्मचारियों का निरीक्षण करना।
10. बाढ़, भूकंप, अकाल, सूखा और अतिवृष्टि के समय आपदा निवारण अधिकारी के रूप में कार्य करना तथा जिला प्रशासन को उचित आदेश एवं मार्गदर्शन प्रदान करना।
B. जिलाधीश/जिला कलेक्टर के रूप में –
1. भू- राजस्व की दरों का निर्धारण करना।
2. भू-राजस्व का संग्रह करना।
3. कृषि ऋणों का वितरण और उनकी वसूली करना।
4. भू-अभिलेख से संबंधित सभी प्रकरणों को देखना।
5. भू-राजस्व से संबंधित मुकदमों की अपील पर सुनवाई करना।
6. भूमि अधिग्रहण से संबंधित कार्य करना।
7. स्टैम्प एक्ट का क्रियान्वयन करना।
8. पेट्रोल, शराब, मादक पदार्थों, ज्वलनशील पदार्थों, प्रतिबंधित औषधियों पर आबकारी शुल्क लगाकर नियंत्रित करना।
9. कृषि से संबंधित सांख्यिकी और आँकड़ों को तैयार करवाना ।
10. जिला स्तर के स्थानीय अधिकारियों के राजस्व निर्णय की अपीलें सुनना।
C. जिला दण्डाधिकारी के रूप में –
1. जिले में शांति-व्यवस्था और कानून व्यवस्था बनाए रखना।
2. शान्ति भंग होने से उत्पन्न संकट में आदेश जारी करना तथा धारा-144 लागू करना।
3. साम्प्रदायिक दंगों, आतंककारी गतिविधियों, जन आन्दोलनों, उग्र छात्र प्रदर्शनों, राजनीतिक आन्दोलनों तथा जातीय संघर्षों पर नियंत्रण करना।
4. फौजदारी घटनाओं के बारे में पुलिस से जानकारी प्राप्त करना।
5. जिले की पुलिस के कार्यों का निरीक्षण करना और उसे तत्संबंधी आदेश एवं निर्देश जारी करना।
6. अपराधियों और असामाजिक तत्त्वों को जिले से बाहर भेजना।
7. जिला कारागारों एवं उनमें रहने वाले कैदियों का निरीक्षण करना।
8. जिला पुलिस प्रशासन की वार्षिक रिपोर्ट प्राप्त करना और गृह विभाग को उस वार्षिक रिपोर्ट को भेजना।
9. शस्त्र, होटल, विस्फोटक पदार्थों के लाइसेंसों की अनुमति देना एवं उन्हें नियंत्रित करना।
10. भारत में आने वाले विदेशियों के परिपत्रों की जाँच करना।
D. जिला विकास अधिकारी के रूप में –
1. जिले में विकास कार्यों से संबंधित विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों का क्रियान्वयन करना।
2. जिले में विभिन्न प्रकार की विकासात्मक और रोजगारोन्मुखी योजनाओं को लागू करना।
3. औद्योगिक विकास के लिए जिला उद्योग केन्द्रों को आवश्यक मार्गदर्शन और निर्देश जारी करना।
4. ग्रामीण क्षेत्रों में विकास में जन सहभागिता को प्राप्त करके विकासात्मक कार्य करना।
5. पंचायती राज संस्थाओं को विकास कार्यों के लिए सहयोग करना।
6. एकीकृत ग्रामीण विकास योजनाओं का जिले में संचालन करना।
7. जिला परिषद् को विकास के लिए योजनाएँ बनाने और उन्हें क्रियान्वित करने के लिए निर्देश जारी करना।
उपखण्ड अधिकारी (SDM)
● राज्य में जिलों को उपखण्डों में विभाजित किया गया है।
● उपखण्ड के सर्वोच्च अधिकारी को उपखण्ड अधिकारी (SDO) कहा जाता है।
● जिले में एक से अधिक उपखण्ड होते हैं और कई जिलों में तो 5 से 6 तक उपखण्ड होते हैं।
● यह उपखण्ड अधिकारी जिला कलेक्टर और तहसीलदारों के मध्य एक प्रशासनिक कड़ी का कार्य करता है।
● उपखण्ड अधिकारी, उपखण्ड में राजस्व से संबंधित उपखण्ड मजिस्ट्रेट (SDM) और कार्यपालक दण्डनायक के रूप में कार्य करता है।
● उपखण्ड अधिकारी राज्य प्रशासनिक सेवा का अधिकारी होता है।
उपखण्ड अधिकारी के कार्य एवं भूमिका:-
A. भू-राजस्व अधिकारी के रूप में –
1. वह अपने उपखण्ड क्षेत्र में भू-राजस्व से संबंधित न्यायिक, अर्द्धन्यायिक और प्रशासनिक नियंत्रण करने से संबंधित कार्यों को सम्पन्न करता है।
2. वह अपने उपखण्ड में भू-अभिलेख और राजस्व ग्रामों के नक्शे तैयार करवाता है।
3. वह राजस्व प्रशासन से संबंधित निम्न स्तरीय कार्मिकों और अधिकारियों जैसे- पटवारी, भू-अभिलेख निरीक्षक और गिरदावर पर नियंत्रण करता है और कानूनगो तथा तहसीलदारों के कार्यों का निरीक्षण करता है।
4. वह उपखण्ड क्षेत्रों में भूमि का सर्वे और सीमांकन करवाता है, साथ ही उपखण्ड की फसलों और कृषि उत्पादन का आकलन करवाता है व उसकी रिपोर्ट तैयार करवाता है।
5. उपखण्ड अधिकारी अपने क्षेत्र में भू-राजस्व संग्रहण के लिए तहसीलदार और अन्य अधीनस्थ कार्मिकों को निर्देश देता है।
6. वह अपने उपखण्ड की शांति-व्यवस्था और राजस्व प्रशासन से संबंधित कार्यों की रिपोर्ट जिला कलेक्टर को प्रस्तुत करता है।
B. न्यायिक अधिकारी के रूप में –
1. उपखण्ड अधिकारी अपने क्षेत्र के भू-राजस्व भूमि और सरकारी संपत्ति से संबंधित प्रारंभिक अपीलीय और पुनरीक्षण के लिए न्यायिक और अर्द्धन्यायिक शक्तियों का प्रयोग करता है।
2. वह जिन प्रकरणों में न्यायिक अधिकारी के रूप में कार्य करता है वे प्रकरण निम्नलिखित हैं-
(i) भूमि सीमा विवाद
(ii) चारागाह और वन भूमि विवाद
(iii) भू-अभिलेख और पंजीकरण के विवाद
(iv) भूमि के नामान्तरण के विवाद
C. उपखण्ड दण्डनायक के रूप में –
1. वह उपखण्ड में सब डिविजनल मजिस्ट्रेट के रूप में शांति व्यवस्था बनाए रखता है।
2. फौजदारी प्रशासन का संचालन करने, जेल, पुलिस थानों और पुलिस चौकियों का निरीक्षण करने, किसी अपराधी को पुलिस के रिमाण्ड में रखने और उपखण्ड क्षेत्र में धारा-144 लागू करने संबंधी कार्यों को सम्पन्न करता है।
D. प्रशासनिक अधिकारी के रूप में –
1. उपखण्ड प्रशासन में पदस्थापित लोक सेवकों पर नियंत्रण और पर्यवेक्षण से संबंधित कार्यों को संपादित करता है।
2. वह उपखण्ड क्षेत्र की जनता के लिए आवश्यक उपभोग की वस्तुओं जैसे- गेहूँ, चीनी, मिट्टी का तेल, चावल आदि का उचित मूल्यों पर वितरण करवाता और उनका निरीक्षण करता है।
3. वह राजस्व अभियानों के अंतर्गत आने वाली विभिन्न प्रकार की जन शिकायतों का निराकरण करता है।
4. यह गाँवों में विकास कार्यक्रमों और आर्थिक एवं सामाजिक न्याय के लिए कार्य करता है।
तहसीलदार
● प्रशासनिक सुविधा की दृष्टि से प्रत्येक जिले को उपखण्डों में और उपखण्ड को तहसीलों में विभाजित किया गया है।
● तहसील राजस्व प्रशासन की एक मुख्य इकाई होती है।
● तहसील का प्रमुख अधिकारी तहसीलदार होता है।
● तहसील अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है सरकारी मालगुजारी वसूल करने वाली प्रशासनिक इकाई।
● राजस्थान में अलवर में सन् 1791 में तहसील शब्द का प्रयोग राजस्व प्रशासन में देखने को मिलता है। राजस्थान में तहसीलदार राज्य अधीनस्थ सेवा का अधिकारी होते हुए भी राजपत्रित अधिकारी होता है।
तहसीलदार के कार्य एवं भूमिका:-
A. भू- राजस्व अधिकारी के रूप में –
1. वह तहसील क्षेत्र के प्रत्येक गाँव के भू-अभिलेख, नक्शों और सूचनाओं को सुरक्षित रूप में रखता है।
2. वह तहसील के सभी पटवारियों, कानूनगो और भूमि निरीक्षकों के कार्यों का निरीक्षण करता है।
3. वह गाँवों की भूमि की खसरा, नक्शा, नामान्तरण सर्वेक्षण और भूमि से संबंधित आवश्यक अभिलेख तैयार करवाता है।
4. भू-राजस्व के दोषी व्यक्तियों (जिन्होंने भू-राजस्व को नहीं चुकाया है) की फसल की उपज या अन्य चल-अचल राजस्व संपत्ति को नीलाम एवं कुर्की कर वह भू-राजस्व को वसूल करता है।
5. तहसीलदार तहसील क्षेत्र में राजस्व न्यायालय के रूप में भूमि सीमा संबंधी विवाद, गोचर एवं वन भूमि संबंधी विवाद, भूमि का नामांतरण संबंधी विवाद, भू-राजस्व वसूली संबंधी विवाद और सरकारी भूमि पर अतिक्रमण संबंधी विवादों का निपटारा करता है।
6. वह अपने उपखण्ड में भू-अभिलेख और राजस्व ग्रामों के नक्शे तैयार करवाता है।
B. न्यायिक अधिकारी के रूप में –
● राजस्व प्रशासन के नियमों के अंतर्गत तहसीलदार निम्नलिखित प्रकरणों की प्राथमिक सुनवाई करता है –
(i) काश्तकारी भूमि विवाद।
(ii) चारागाह भूमि एवं वन भूमि विवाद
(iii) कृषि भूमि सीमा विवाद
(iv) लगान मुक्त भूमि की जाँच एवं परीक्षण करना
(v) उत्तराधिकार एवं नामांतरण संबंधी विवाद
(Vi) भूमि मुआवजे के मामलों से संबंधित विवाद और संबंधी प्रकरणों
नोट : तहसीलदार उपर्युक्त प्रकरणों में दोषी व्यक्तियों को न्यायिक अधिकारी के रूप में 6 माह की सजा और 200 रुपये का जुर्माना लगा सकता है।
C. प्रशासनिक अधिकारी के रूप में –
1. तहसीलदार प्रशासनिक कार्यों में तहसील के कोषागार की रक्षा एवं नियंत्रण करता है।
2. कृषि भूमि के विक्रय का पंजीकरण करता है।
3. आम निर्वाचन में समुचित व्यवस्थाएँ करता है।
4. तहसील में विभिन्न प्रकार की केन्द्रीय सरकार एवं राज्य सरकार की योजनाओं का संचालन एवं पर्यवेक्षण करता है।
5. सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत सस्ते मूल्यों की दुकानों का निरीक्षण करता है।
6. कृषि उपजों, कृषि जोतों की श्रेणी, भूमि स्वामित्व और कृषि भूमि के क्षेत्रफल से संबंधित सूचनाएँ एवं आँकड़े एकत्र करता है।
7. जन्म एवं मृत्यु का पंजीयन करता है।
8. प्राकृतिक आपदाओं के समय राहत कार्यों का संचालन करता है।
9. तहसीलदार अपनी तहसील के क्षेत्र का समय-समय पर दौरा करता है, जन-सुनवाई करता है तथा लोगों की समस्याओं का निराकरण करता है।
● तहसील प्रशासन में तहसीलदार को उसके कार्यों को सम्पन्न करने के लिए नायब तहसीलदार, कानूनगो, गिरदावर, भूमि राजस्व निरीक्षक और पटवारी सहायता करते हैं।
पटवारी
● प्रत्येक तहसील विभिन्न पटवार क्षेत्रों में विभाजित होती है।
● प्रत्येक पटवार क्षेत्र का प्रमुख राजस्व अधिकारी पटवारी होता है।
● पटवारी पद का उल्लेख सर्वप्रथम मुगलकाल में मिलता है।
● पटवारी सरकारी प्रतिनिधि के रूप में भारत की ग्रामीण जनता के प्रत्यक्ष निकटतम रहता है।
● तमिलनाडु में पटवारी को कारनाम, उत्तरप्रदेश में लेखापाल तथा महाराष्ट्र में तलैठी पदनाम से संबोधित किया जाता है।
● पटवारी का चयन राजस्व मण्डल, अजमेर के द्वारा किया जाता है।
● पटवारी को विभिन्न प्रशिक्षण केन्द्रों में प्रशिक्षण दिया जाता है।
● राजस्थान में पटवारी प्रशिक्षण केन्द्र टोंक, कोटा, जोधपुर, अलवर (देवखेड़ा), उदयपुर (देबारी), श्रीगंगानगर (गजसिंहपुर) जिलों में स्थित हैं जिनमें पटवारियों को प्रशिक्षण दिया जाता हैं।
पटवारी के कार्य एवं भूमिका:-
A. भू-अभिलेख रखना –
● अपने पटवार क्षेत्र की भूमि के दस्तावेजों, नक्शों और अन्य अभिलेखों को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी पटवारी की होती है।
● इन अभिलेखों में गाँवों की भूमि की प्रकृति, क्षेत्रफल, भूमि का मालिकाना हक, फसल की स्थिति, सिंचाई के साधन, भूमि के मानचित्र और भू-राजस्व आदि का विस्तृत विवरण होता है।
● पटवारी अपने पटवार कार्यालय में गाँव की कृषि भूमि की गिरदावरी रिपोर्ट, जमाबंदी बिक्री, राजस्व वसूली पत्र, भूमि का नक्शा, संरक्षण चिह्नों की सूची, खसरा नंबर आदि अभिलेखों को सुरक्षित रखता है।
B. भू-राजस्व संग्रहण करना –
● गाँव में भू-राजस्व प्राप्त करने का मुख्य उत्तरदायित्व पटवारी का होता है।
● पटवारी ही गाँव में एकत्र किए गए भू-राजस्व को तहसील मुख्यालय के कोषागार में जमा करवाता है।
C. आपातकालीन सहायता –
● गाँव में आने वाली विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं, जैसे- बाढ़, सूखा, अकाल, भूकंप, तूफान, ओलावृष्टि, पाला पड़ना, महामारी, टिड्डी दल का आक्रमण और फसलों का रोग लगने की स्थिति में पटवारी अपने अधीन आने वाले गाँवों में हुए नुकसान की जानकारी एवं सूचना हेतु तहसील कार्यालय को एक रिपोर्ट प्रस्तुत करता है।
D. राजस्व अभियानों का संचालन करना –
● राजस्थान में समय-समय पर राजस्व अभियानों का संचालन किया जाता है।
● राजस्व अभियानों के समय गाँवों के राजस्व संबंधी रिकॉर्ड या अभिलेखों को अप-टू-डेट किया जाता है।
● इन राजस्व अभियानों में ग्रामीणों की समस्याओं का निवारण करने का प्रयास किया जाता है।
● गाँवों में राजस्व अभियानों के सफल संचालन के लिए पटवारी की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
E. समग्र ग्रामीण विकास करना –
● गाँवों के समग्र विकास में पटवारी और ग्राम सेवक की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है।
● गाँवों के विकास हेतु राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी योजना, मनरेगा, 20 सूत्री कार्यक्रम, इंदिरा आवास योजना, स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना, वृद्धावस्था पेंशन योजना, सामाजिक सुरक्षा योजना आदि के संचालन में पटवारी की प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
F. सरकार के विभिन्न कार्य करना –
● पटवारी के द्वारा समय-समय पर सरकार के विभिन्न कार्य किए जाते हैं।
● पशु गणना करना, आर्थिक गणना करना, जनगणना करना और निर्वाचन संबंधी कार्यों को करने में सहायता करना पटवारी का मुख्य दायित्व होता है।
पुलिस अधीक्षक (SP)
● पुलिस अधीक्षक - जिला स्तर पर सर्वोच्च पुलिस अधिकारी।
● भारतीय संविधान में ‘पुलिस‘ राज्य सूची का विषय है।
● भारतीय पुलिस, पुलिस अधिनियम, 1861 के तहत् कार्य करती है।
पद की सुरक्षा :-
● संविधान के अनुच्छेद- 311(1) के तहत् अखिल भारतीय सेवा या राज्य सरकार के किसी भी सरकारी कर्मचारी को अधीनस्थ प्राधिकारी द्वारा नहीं हटाया जा सकता।
● अनुच्छेद- 311(2) - सिविल सेवक को जाँच के पश्चात् एवं उसे अपने खिलाफ आरोपों की सूचना देने व इस संबंध में सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर प्रदान करने के बाद ही पदावनत या पद से हटाया जा सकता है।
अनुच्छेद- 311 के तहत् संरक्षण प्राप्त कर्मचारी (लोकसेवक) :-
● संघ की लोक सेवा।
● अखिल भारतीय सेवा।
● राज्यों की लोक सेवा।
● लोक सेवाओं का संवैधानिक प्रावधान - संविधान का भाग XIV ।
कार्य :-
● जिला कलेक्टर के साथ मिलकर कानून एवं विधि व्यवस्था बनाये रखना।
● जिला पुलिस का अधीक्षण एवं नेतृत्व नियंत्रण।
● राजनीतिक एवं सांप्रदायिक विवादों से निपटना।
● पुलिस प्रशासन (जिला) एवं जनप्रतिनिधियों के बीच कड़ी।
● पुलिस कार्मिकों में अनुशासन सुनिश्चित करना।
● यह ‘सर्किल निरीक्षक’ रैंक तक के कर्मचारियों की पदोन्नति एवं स्थानान्तरण कर सकता है।
● प्राथमिकी रिपोर्ट के निपटान/समाधान की समीक्षा करना।
● जिले में विभिन्न प्रकार के ऑपरेशन का क्रियान्वयन।
● क्षेत्र के पुलिस थानों का निरीक्षण करना।
कमिश्नरेट व्यवस्था
● इस प्रणाली के तहत् ‘पुलिस आयुक्तों‘ को अतिरिक्त जिम्मेदारियों के साथ कुछ ‘दांडिक शक्तियाँ‘ भी प्रदान की जाती हैं।
● विश्व के कई प्रगतिशील देशों में इस प्रणाली को कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिये सबसे प्रभावी माध्यम माना गया है।
● वर्ष 1983 में जारी ‘6th राष्ट्रीय पुलिस आयोग रिपोर्ट‘ में 10 लाख से अधिक आबादी वाले महानगरों के लिये इस व्यवस्था को आवश्यक बताया गया।
संवैधानिक प्रावधान :-
● संविधान की 7वीं अनुसूची के तहत् 'लोक व्यवस्था' और 'पुलिस' राज्य के विषय हैं।
● इन मामलों में कानून बनाने, संशोधन करने, समितियों-आयोगों की सिफारिशों को लागू करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है।
● आजाद भारत के लगभग सभी राज्यों में जिला स्तर पर कानून एवं व्यवस्था संचालन के लिये जिला मजिस्ट्रेट एवं पुलिस अधीक्षक की नियुक्ति द्वारा नियंत्रण हेतु ‘दोहरी व्यवस्था‘ सुनिश्चित की गई।
● 'दोहरी व्यवस्था' के तहत् पुलिस, दंगा, कर्फ्यू जैसी परिस्थितियों में जिला मजिस्ट्रेट के आदेश अनुसार कार्यवाही करती है।
कमिश्नरेट व्यवस्था का स्वरूप :-
● इस व्यवस्था के तहत् पुलिस और कानून व्यवस्था की सम्पूर्ण शक्तियाँ 'पुलिस आयुक्त' में निहित होती है।
● इस व्यवस्था में 'पुलिस आयुक्त' अपने कार्यक्षेत्र में कानून व्यवस्था बनाये रखने संबंधित निर्णयों के लिये 'राज्य सरकार' के प्रति उत्तरदायी होता है।
राजस्थान के परिप्रेक्ष्य में कमिश्नरेट व्यवस्था -
● सर्वप्रथम प्रयास - भैरोंसिंह शेखावत द्वारा
● शुरुआत - 1 जनवरी, 2011 (मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समय)
इस व्यवस्था की जरूरत क्यों :-
● महानगरों में बढ़ती जनसंख्या के दबाब के कारण विधि-व्यवस्था के बेहतर प्रबंधन हेतु, पुलिस तंत्र को एकीकृत करना।
● प्रशासन की दोहरी व्यवस्था में साझा उत्तर दायित्व में, पुलिस को जिलाधिकारी द्वारा स्थिति के आकलन के बाद दिये आदेश के अनुसार कार्य करने से स्वतंत्रता प्राप्त हुई।
● दोहरी - व्यवस्था में दोनों अधिकारियों (जिलाधिकारी व एसपी) के बीच समन्वय की कमी के कारण, आरोप-प्रत्यारोप जैसी घटनाओं से मुक्ति।
● विषम परिस्थितियों में कठिन निर्णय लेने एवं उनके शीघ्र क्रियान्वन में आसानी।
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